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उत्तर प्रदेश : आंकड़ों की बाज़ीगरी में उलझी रही जनता... एक साल और बीत गया

साल 2017 में जब उत्तर प्रदेश ने भाजपा को चुना, तो ऐसा लगा बस अब सारे कष्ट कट गए, लेकिन जैसे-जैसे दिन बीते वैसे-वैसे हर मोर्चे पर सवाल उठने लगे।
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उत्तर प्रदेश... सियासत के लिहाज़ से देखें तो इससे बड़ा कुछ नहीं, चुनाव आते हैं तो यहां की जनता अपना प्रतिनिधि ऐसे चुनती है, जैसे घर का मुखिया चुना जा रहा हो। 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में भी यही हुआ, यहां की जनता ने भाजपा को फिर से गद्दी सौंप दी, इसका कारण था कि भाजपा ने ऐसे-ऐसे दावे किए जिनसे लगा बस इससे ज्यादा और क्या चाहिए उत्तर प्रदेश को।

भाजपा ने इंसान की सबसे महत्वपूर्ण चीज़ राशन को मुफ्त तौर पर घरों-घरों तक पहुंचाया, लेकिन यहां सिर्फ राशन ही नहीं बल्कि योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीरें भी राशन वाले झोले के ज़रिए पहुंचाई गईं। इसका भी उन्हें बखूबी मिला। लेकिन वक्त बीता तो लोगों के घऱों में सिर्फ नेताओं के तस्वीरों वाले झोले ही रह गए, क्योंकि सरकार ने मुफ्त में राशन देना बंद कर दिया। कुछ दिया भी तो महज़ चावल।

फिलहाल साल 2022 तो ख़त्म होने वाला है, ऐसे में हमें ये जानना बेहद ज़रूरी है, कि जिस पार्टी के नेता को प्रदेश की जनता ने मुखिया चुना है, वो अपने वादों पर कितना ख़रा है।

सबसे पहले बात मुफ़्त राशन की

खाद्य एवं रसद विभाग के अनुसार... उत्तर प्रदेश में अप्रैल महीने के बाद जनता को सरकार की ओर से मिलने वाले राशन में गेहूं मिलना पूरी तरह से बंद हो गया है। हालांकि चावल बांटना जारी रहा था, लेकिन अगर ठीक से रसद विभाग के आकंड़ों को देखें तो जितना गेहूं सरकार की ओर से आवंटित किया गया है, उसमें से हर बार काफी मात्रा में राशन बच जाता है, उदाहरण के तौर पर रसद विभाग द्वारा जारी आख़िरी आंकड़ों का सहारा लेते हुए नवंबर से पहले मई तक महीनों को देखते हैं।

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ये वो आंकड़े हैं जो सरकार की ओर से जारी किए गए हैं, जिन्हें देखकर सवाल ये उठता है, कि जो शेष चावल बच रहा है, उसका इस्तेमाल कहां किया जा रहा है।

फिलहाल राशन वितरण को लेकर ही जब न्यूज़क्लिक ने जब बिजनौर के डीएसओ से बात की, तब उन्होंने बताया कि अब राशन में सिर्फ चावल दिया जा रहा है, वो भी प्रधानमंत्री योजना के अंतर्गत। बल्कि योगी सरकार की ओर से मुफ्त राशन योजना के तहत अब पैसे लिए जा रहे हैं।

इसी मुद्दे पर जब हमने बुंदेलखंड के सामाजिक कार्यकर्ता अजय राय से बातचीत की, तब उन्होंने बताया कि महीने में राशन एक बार देना है या दो बार कोई नियम नहीं है। ठेकेदार कब पैसा ले लेता है, कब मुफ्त बांटने लगता है, इसका भी कुछ पता नहीं है। नमक, तेल, चना वाला सिस्टम तो पूरी तरह से ख़त्म कर दिया गया है। अब महज़ चावल के सहारे जनता को बहकाया जा रहा है।

हमने सवाल किया कि जब गिनती के हिसाब से राशन आवंटित किया जाता है, तो बच कैसे जाता है। इसपर अजय राय का जवाब था, कि दूरगामी ग्रामीण क्षेत्रों में जानकारी अभाव है, वो कई किलोमीटर से राशन लेने आते हैं, ऐसे में अगर किसी के अंगूठे में तेल या कुछ गलती से लग गया, या किसी कारण उसके अंगूठे का निशान नहीं लग पाया, तो उसके हिस्से में राशन आना लगभग असंभव हो जाता है। और उसी बचे हुए राशन का ब्लेक किया जाता है।

आपको बता दें कि प्रदेश में पात्र गृहस्थी लाभार्थी यूनिट संख्या लगभग 14.97 करोड़ और अन्त्योदय कार्ड धारक यूनिट संख्या लगभग 1.31 करोड़ है।

अब यहां पर ये कहा जा सकता है भाजपा ने जिस मुफ्त राशन को ज़रिया बनाकर प्रदेश की सत्ता में वापसी की थी, उस मुफ्त राशन में कुछ दिनों पहले तक महज़ चावल बचे थे, जो फिलहाल ज़मीन पर पूरी तरह से खत्म होता दिखाई दे रहा है।

यही वो राशन के पैकेट थे, जिनके थैलों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ की तस्वीरें लगाकर घर-घर पहुचाया गया था, लेकिन आज के वक्त उन्ही ग़रीबों के घर में सिर्फ तस्वीरों वाला झोला बचा है।

प्रदेश में आवारा पशुओं का हाल क्या है?

किसे नहीं याद होगी चुनाव से पहले फतेहपुर की वो रैली, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता से कहा था कि हमें आशीर्वाद दीजिए, जब 10 मार्च को हमारी सरकार फिर से बनेगी, कुछ दिनों के भीतर ही आवारा पशुओं को सड़कों से गायब कर देंगे। सभी पशुओं के लिए व्यवस्थित आश्रय बनावाए जाएंगे।

लेकिन स्थिति आज भी वही है, तो तब थी। तब भी किसान रात को खेतों में बैठकर अपनी फसल बचा रहा था, और आज भी। सड़कों पर तब छुट्टा जानवरों के कारण दुर्घटनाएं हो रही थीं, आज भी।

ऐसा नहीं है कि सरकार को ओर से इसके रखरखाव के लिए रुपये नहीं आवंटित किए गए, ज़रूर किए गए हैं, लेकिन आवंटित रुपयों को ग़ौर से देखेंगे तो ऐसा उलझ जाएंगे... मानों सरकार सब कुछ सही बोल रही हो। पिछले पांच साल में सरकारी आंकड़े क्या बोल रहे हैं पहले वो देख लीजिए।

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इन आंकड़ों को सरकारी वेबसाइट पर देखने के लिए यहां क्लिक करें:

https://koshvani.up.nic.in/KoshvaniStatic.aspx

इन आंकड़ों की कलाबाज़ी में साल 2018-19 तक सबकुछ ठीक था, जितना पैसा गौ-संरक्षण केंद्र बनाने के लिए पेश हुआ, उतना ही आवंटित हुआ और उतना ही खर्च हुआ। लेकिन जब वक्त बीता और सरकार को लगा अब जनता इस ओर इतना ध्यान नहीं देगी, खेल वहीं से शुरू हुआ। साल 2019-20 में छुट्टा जानवरों के रख-रखाव के लिए तो पूरा पैसा मिल गया, लेकिन गौ-संरक्षण केंद्र के पैसों में जमकर धांधली हुई, और पेश हुए 147.60 करोड़ के बजट में से खर्च के लिए महज़ 115.20 रुपये ही दिए गए।

साल 2020-21 पर नज़र डालिए जहां देश, प्रदेश और विपक्ष को दिखाने के लिए तो 147 करोड़ 60 लाख रुपये का बजट पेश किया गया, लेकिन सरकारी खजाने से निकलकर खर्च महज़ 79.20 हुआ।

ताज़ा 2022-23 के वित्तीय वर्ष में तो गौ-संरक्षण केंद्र बनाने और छुट्टा पशुओं के रख-रखाव में व्यय दोनों में गड़बड़ी दिखी।

यानी सरकार द्वारा पेश बजट- खर्च के लिए पास रुपये और ज़मीन पर खर्च किए गए रुपयों में बड़ा अंतर ये बताने के लिए काफी है कि आख़िर छुट्टा पशुओं की इतनी समस्याएं क्यों हैं।

अब कुछ तस्वीरें देख लीजिए।

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ये तस्वीरें बिजनौर की हैं, जहां गौशाला के नाम पर दो तिरपाल हैं, लेकिन ऊपर देखने पर सीधा आसमान दिखाई पड़ता है। पशुओं के लिए पीने को पानी नहीं है। पशुओं का हालत भी बखूबी देखी जा सकती है। ऐसी तस्वीरें प्रदेश भर में हैं जो विचलित कर सकती है। सरकार की इन्ही लापरवाहियों का ख़ामियाजा आज किसान और आम जनता भुगत रही है।

आपको बता दें कि सरकार की ओर से कहा गया है कि हर एक गोवंश के लिए प्रतिदिन 30 रुपये के हिसाब से धन आवंटित किया जाएगा।

क्योंकि साल 2019 में आई पशुगणना की 20वीं रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में छुट्टा पशुओं की संख्या तेज़ी से बढ़ी है, रिपोर्ट के अनुसार इन पशुओं की संख्या 11.8 लाख हो गई थी। वहीं इससे पहले हुई जनगणना में छुट्टा पशुओं की संख्या 10 लाख से ज्यादा थी। यानी पांच सालों में पशुओं की संख्या में करीब 17.3 फीसदी की वृद्धि हुई है।

इसका मोटा-माटी कारण ये भी रहा कि भाजपा की सरकार देश में बनने के बाद स्लॉटर हाउस पूरी तरह से बंद कर दिए। फिर मवेशियों को रखने पर लगातार हुई लोगों की पिटाई भी जानवरों को खुला छोड़ देने का बड़ा कारण बना। यानी अब 2019 के बाद अगर अंदाज़ा लगाएं तो लगभग तीन सालों में 12-15 प्रतिशत तो वृद्धि हुई ही होगी। और अगर ऐसा है, तो छुट्टा मवेशियों की संख्या करीब 2 लाख और बढ़ जाती है।

अंदाज़तन पशुओं की बढ़ी संख्य़ा के हिसाब से अगर बहुत गुणा-गणित भी करें तो व्यय की जाने वाली धनराशि 4-5 करोड़ के इर्द-गिर्द ही पहुंच रही है, और ऐसे में पशुधन से निकलने वाले पैसों में इतना अंतर सोचने पर मजबूर करता है।

इसे सरकार की नियत कहिए या नीति, आवंटित धन राशि में से एक पशु पर महज़ 30 रुपये की प्रतिदिन खर्च किए जा रहे हैं। जो रखरखाव के लिए बिल्कुल काफी नहीं है। इस विषय पर जब हमने ज़मीनी पड़ताल की तो पता चला कि स्थिति पहली से ज्यादा गंभीर है। आवार पशुओं की पकड़ना पूरी तरह से बंद कर दिया गया है, खुलेआम घूम रह है, जहां-तहां उनकी मौत हो जाती है। गिने-चुने आश्रय बने हैं तो उसमें पशु ठूस-ठूस कर भरे जाते हैं। रोज़ के हिसाब से 30 रुपये खुराकी देते हैं, उसी में रहने खाने से लेकर सारी व्यवस्था करनी पड़ती है, न वहां पानी की व्यवस्था, ठंड के मौसम में भी व्यव्स्था नहीं है।

इसके अलावा छुट्टा जानवरों के कारण सड़क दुर्घटनाओं में इज़ाफा ही हुआ है। परिवहन विभाग की रोड सेफ्टी की साल 2021 की रिपोर्ट के अनुसार बीते एक साल में एक्सप्रेस वे पर हुए हादसे देख लीजिए---

सड़क दुर्घटनाओं के अलावा छुट्टा पशुओं ने किसानों की भी हालत ख़राब कर रखी है।

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अब भी आस में किसान

उत्तर प्रदेश में इस साल सरकारी खरीद पिछले 15 सालों में सबसे न्यूनतम रही है,  इससे पहले वर्ष 2006-07 में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 49 हजार टन गेहूं खरीदा गया था। यूपी में गेहूं खरीद 1 अप्रैल से 15 जून निर्धारित कि गयी थी। खरीद कम होने पर अंतिम तिथि को 30 जून तक भी बढ़ाया गया लेकिन इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। आपको बता दें कि इस साल सरकार ने 60 मिट्रिक टन गेहूं खरीद का लक्ष्य रखा था, जबकि 1 जुलाई तक महज़ 3.35 मिट्रिक टन गेहूं ही खरीदा गया था, जो लक्ष्य का महज़ 5.59 फीसदी रहा।

पिछले वर्षों में भाजपा सरकार के शासन में आने पर जब सरकारी खरीद ज्यादा रही तब राज्य सरकार ने इसका खूब क्रेडिट लिया और अपनी पीठ खूब थपथपाई परन्तु अब खरीद में रिकॉर्ड गिरावट हुई है तो अंतर्राष्टीय परिस्थियों का हवाला देकर अपना पल्ला झाड़ लिया है।

प्रदेश में 40 जिले ऐसे हैं जिनमे गेहूं खरीद लक्ष्य से 5 प्रतिशत से भी कम है और 21 ऐसे जिले है जिनमे 1 फ़ीसदी भी खरीद नहीं हुईं है, जबकि इन जिलों में पिछले वर्ष रिकॉर्ड खरीद हुई थी। इसमें आगरा, मथुरा, बदायूं, मुरादाबाद, एटा, रामपुर, इटावा, जालौन, फ़िरोज़ाबाद, ललितपुर, बुलंदशहर, खीरी, संभल, कन्नौज, पीलीभीत, अमरोहा, हाथरस, मैनपुरी, कानपूर, कासगंज शामिल हैं, और साल सबसे अधिक खरीद वाराणसी, मऊ, मिर्जापुर सोनभद्र जिले में में हुई परन्तु इन जिलों में भी खरीद पिछले वर्ष से काफी कम है।इनका संपूर्ण ब्योरा सरकारी दस्तावेज़ में ज़िलावार नीचे लिंक पर क्लिक कर देख सकते हैं:

किसान अपनी परेशानियों को लेकर बीती 26 नवंबर यानी संविधान दिवस के दिन लखनऊ पहुंचे थे, और एक महापंचायत के आयोजन किया था। यहां किसानों ने कहा कि एक तरफ किसान इन छुट्टा जानवरों से परेशान हैं, तो दूसरी तरफ डीएपी खाद की कीमतों ने भी कमर तोड़ रखी है। 1600 रुपये बोरी डीएपी खाद डाल कर किसान बुआई कर रहा है और फसल जब तैयार होती है तो उसे छुट्टा जानवर चर जा रहे हैं। वह बताते हैं कि हरदोई जिले में 83 गौशालाएं हैं लेकिन सब खाली पड़ी हैं। यानी गौशालाएं चल तो रही हैं मगर सिर्फ काग़ज़ों पर।

किसानों ने बताया कि दीपावली पर एक सिलेंडर मुफ्त देने को कहा लेकिन नहीं मिला। बिजली बिल आधार करने को कहा था उल्टा बढ़ गया। ट्यूबवेल तक पर मीटर लगा दिया गया है।

विस्थापन का शिकार किसान

कश्मीर से लेकर कैराना तक विस्थापन का मुद्दा हर वक्त गर्म रखने वाली भाजपा उस वक्त चुप बैठ जाती है, जब गौतमबुद्ध नगर के किसानों को इनकी मर्जी के ख़िलाफ कहीं और बसाने का दबाव बनाया जाता है। जेवर एयरपोर्ट बनाने के लिए रनहेरा के 90 प्रतिशत लोग और कुरैब के 70 प्रतिशत ग्रामीण विस्थापन की चपेट में आए।

किसानों की बड़ी मांगे अब भी अधूरी

  • एयरपोर्ट, सड़क परियोजना या आवासीय योजना के लिए जबरन भूमि अधिग्रहण न किया जाए।
  • खेतों में बाड़, कंटीले तार या अन्य तरीके से घेरेबंदी पर रोक न लगाई जाए।
  • गन्ने का बकाया भुगतान किसानों को पर्ची मिलने के एक महीने के भीतर ही किया जाए। गन्ना बकाया भुगतान में देरी पर ब्याज किसानों को मिले। गन्ने का समर्थन मूल्य 500 रुपये प्रति क्विंटल किया जाए।
  • किसानों को सिंचाई और अन्य कृषि कार्यों के लिए बिजली आपूर्ति की गारंटी दी जाए।
  • पूर्वांचल और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों को भारी बारिश से हुए नुकसान को देखते हुए किसान कर्ज माफी योजना का लाभ बिना किसी शर्तों के दिया जाए।
  • किसान आंदोलन के दौरान किसानों, किसान नेताओं पर दर्ज मुकदमों की पूरी तरह से वापसी हो।
  • व्यापारियों, कर्मचारियों की तरह किसान पेंशन की व्यवस्था सरकार करे।
  • किसानों को एमएसपी गारंटी दी जाए।
  • किसान आंदोलन में शहीद हुए किसानों के परिवारों को उचित मुआवजे का भुगतान और उनके पुनर्वास की व्यवस्था की जाए और शहीद किसानों के लिए सिंधु मोर्चा पर स्मारक बनाने के लिए भूमि आवंटित की जाए।

बेरोज़गारी के बीच आंकड़ों का भ्रमजाल

पूरे देश के साथ-साथ उत्तर प्रदेश भी भयंकर बेरोज़गारी के चंगुल से निकल नहीं पा रहा है। युवाओं के लगातार प्रदर्शन और विपक्ष के दबाव में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ज़मीन पर कुछ कर दिखाने में नाकाम दिखे लेकिन ग़लत ट्वीट कर भ्रम फैलान की कोशिश ज़रूर कर ली।

सबसे पहले आप मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ये ट्वीट देख लीजिए

इस ट्वीट में मुख्यमंत्री ख़ुद कह रहे हैं कि प्रदेश में बेरोज़गारी दर महज़ 02 फीसदी रह गई है। लेकिन सर्वे और दस्तावेज़ कुछ और ही बयां कर रहे हैं।

सीएमआईई के अनुसार नवंबर 2022 में यूपी में बेरोजगारी दर 2% नहीं बल्कि 4.1% प्रतिशत है। यानी योगी आदित्यनाथ बेरोजगारी दर को आधी करके बता रहे हैं। मई-अगस्त तिमाही में बेरोजगारी दर का ये आंकड़ा 3.27% था। यानी अगर पिछली तिमाही से तुलना करें तो भी बेरोजगारी दर में बढ़ोतरी ही हुई है।

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बेरोज़गारी दर की सच्चाई आप इस रिपोर्ट में देख सकते हैं:

https://unemploymentinindia.cmie.com/

ख़ैर... यहां एक आंकड़े पर ग़ौर करना और ज़रूरी है, कि साल 2017 में जब अखिलेश सरकार को बेदख़ल कर भाजपा सत्ता में आई थी, तब भाजपा की ओर से दावा किया गया था कि 2017 में प्रदेश के भीतर बेरोज़गारी दर 19 प्रतिशत थी। हालांकि सीएमआईई की मई-अगस्त 2017 की रिपोर्ट के बताती है कि उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी दर 3.88% प्रतिशत थी। यानी दोनों ही संदर्भों में योगी आदित्यनाथ का दावा ग़लत है।

बेरोज़गारी दर के मूल आंकड़ें इस लिंक पर क्लिक कर देख सकते है:

फिलहाल प्रदेश में बेरोज़गारी बहुत बड़ा मुद्दा है।

छात्र संघ चुनाव बैन

उत्तर प्रदेश की मौजूद सरकार विश्विद्यालयों में होने वाले छात्र संघ चुनाव को इतना महत्वपूर्ण नहीं मानती है। जिसका नज़राना इन दिनों अयोध्या और प्रयागराज में देखने को मिल रहा है। प्रयागराज के इलाहाबाद विश्वविद्यालय में तो छात्र पिछले करीब तीन सालों से चुनाव बहाली के लिए धरने पर बैठे हैं, पिछले 100 दिनों से आमरण अनशन कर रह हैं, लेकिन प्रशासन के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही, दूसरी ओर मौका पड़ने पर छात्रों को पीट ज़रूर दिया जाता है। जिसका उदाहरण हालही में देखने को मिला जब विश्वविद्यालय परिसर में धरना स्थल पर गोलियां चल गईं। दूसरी ओर अयोध्या मंडल के साकेत विश्वविद्यालय में छात्रों ने जमकर प्रदर्शन किया है, उनका कहना भी है कि यहां चुनाव बहाल कराए जाना बेहद ज़रूरी है।

फिलहाल आपको बता दें कि मौजूदा सरकार सवालों को वैसे भी इतना तवज्जो नहीं देती है, और फिर छात्र अगर राजनीति में कदम रखेगा, तो सवाल पूछेगा ही।

 ख़ैर... वादों के पूरा हो जाने की आस में प्रदेश की जनता अब भी है, और नए साल की शुरुआत भी हो रही है। क्योंकि साल 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में हो सकता है कि राजनीतिक लाभ के लिए ही सरकार जनता पर मेहरबान हो जाए और अपने वादों को तो कम से कम पूरा ही कर ले।

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