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उत्तराखंड : किसानों ने पहाड़ी क्षेत्रों में बारिश, ओलावृष्टि से हुए फसल के नुक़सान के लिए मांगा मुआवज़ा

सूत्रों का कहना है कि कोविड-19 के मामलों से निपटने में व्यस्त राज्य सरकार के अधिकारियों को फसलों के नुकसान का आकलन करना अभी बाकी है।
उत्तराखंड

अप्रैल के मध्य और मई के पहले सप्ताह में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने आम कृषि और बागवानी की फसल को बुरी तरह से प्रभावित किया है, खासकर उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में।

राज्य की मशीनरी, जो नोवेल कोरोना वायरस या कोविड-19 से संबंधित मामलों से निबटने में पूरी तरह से व्यस्त है, उसे फसलों के नुकसान और किसानों को मुआवजा देने का व्यापक आकलन करना अभी बाकी है। 

इस साल एक कृषि विभाग के सर्वेक्षण के अनुसार, 29 अप्रैल तक ऋषिकेश में खेती के कुल क्षेत्र के लगभग 1,679.41 हेक्टेयर भूमि पर उगने वाली फसलों को नुकसान हुआ है जो करीब 50 प्रतिशत है, जिससे किसानों को 4.10 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। 

ऋषिकेश के खादी क्षेत्र के कृषि अधिकारी दीपक भंडारी ने कहा कि अप्रैल की शुरुआत में 10 पहाड़ी जिलों के विपरीत, मैदानी इलाकों में अधिकांश गेहूं की फसल की कटाई की गई थी, जहां बाद में ठंडी जलवायु के कारण बुवाई और कटाई होती है। इस प्रकार, ऐसे मामलों में, उन क्षेत्रों में किसानों को अधिक नुकसान हुआ है।

एक अनुमान के अनुसार, ऊधमसिंह नगर में एक लाख हेक्टेयर और पिथौरागढ़ में 32,000 हेक्टेयर में गेहूं की फसल खराब हो गई है। अल्मोड़ा, बागेश्वर, चंपावत और नैनीताल जिलों सहित कुमाऊं क्षेत्र भी गंभीर रूप से प्रभावित हुआ हैं। स्थानीय स्रोतों के अनुसार, नैनीताल के गांवों रामगढ़, बेगलटघाट, कोटला में फसलों को 30 प्रतिशत के करीब का नुकसान हुआ है।

नैनीताल में एक सामाजिक कार्यकर्ता बिशन रजवार ने बताया कि: "किसानों को महामारी के चलते फसल काटने के लिए मजदूर नहीं मिले। परिवहन व्यवस्था भी भी बंद हो गई थी (तालाबंदी के कारण) इसलिए किसान अपनी तैयार फसल भी नहीं बेच पाए, जिससे उनकी खड़ी फसल खराब हो गई।”

“तालाबंदी के कारण मंडी बंद है। इसलिए, किसानों ने अपनी फसलों को नकदी पर एक चौथाई मूल्य पर स्थानीय ग्राहकों को बेचना पड़ा है। इलाक़े में कमलघाटी फल सब्ज़ी उत्पादन  एसोसिएशन के अध्यक्ष बिजेन्द्र नेत्री ने कहा कि किसानों ने सरकार से मुआवज़े की मांग की है, लेकिन उन्हें अभी तक कुछ नहीं मिला है।

रुद्रप्रयाग की स्थिति भी बेहतर नहीं है। गाँव के एक प्रधान इंदर लाल ने बताया है कि कई वर्षों के बाद इतनी भारी बारिश हुई है। उनके अनुसार, ऐसे समय में "यह भयानक बारिश फसल के लिए ठीक नहीं है।”

यमुना और गंगा घाटी के उत्तरकाशी इलाके के नौगाँव, बडकोट, चिन्यालीसौड़ और भिलंगना क्षेत्र और पौड़ी गढ़वाल के टिहरी और धुमाकोट क्षेत्र के घनसाली, प्रताप नगर, जाखणीधार क्षेत्र में बड़े पैमाने पर हुई ओलावृष्टि से सेब, बेर, खुबानी, नाशपाती, आड़ू, सब्जियों, बागवानी उत्पादों और अनाज की फसलों को नुकसान हुआ है। 

नौगाँव में, भारी वर्षा के कारण सिंचाई और जल आपूर्ति प्रणाली भी क्षतिग्रस्त हो गईं है। “बारिश के पानी के तेज बहाव के कारण आए मलबे के साथ फसलें भी बह गई हैं। नौगांव के सुनारा छानी इलाके में कई घरों में पानी भर गया था। लोगों को घरों को छोड़ अपने पशुओं के साथ भागना पड़ा और खुले में रात गुजारनी पड़ी। वे अपने घरों को तभी लौट सके जब दिन के समय उनके घरों से पानी निकल गया था, ”नौगांव के एक स्थानीय किसान सुनील बिष्ट ने उक्त बातें बताई। 

हालांकि, टिहरी के जिला होर्टीकल्चर अधिकारी दिनेश कुमार तिवारी ने कहा कि जल जमाव के लिए ग्रामीण दोषी हैं, क्योंकि उन्होंने जल निकासी के लिए कोई जगह नहीं छोड़ी थी, जिसके कारण खेतों में पानी भर गया और सिंचाई और जल आपूर्ति प्रणाली को नष्ट कर दिया।

तिवारी ने कहा कि नुकसान के आकलन की प्रक्रिया शुरू हो गई है, और पटवारी (राजस्व कर्मचारी) को जमीन से डेटा संकलित करने का निर्देश दे दिया गया है। उन्होंने कहा, "यह उप-प्रभागीय मजिस्ट्रेट और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का एक जिला स्तरीय अधिकारी है, जो रिपोर्ट तैयार करेगा और इसे जिला मजिस्ट्रेट को भेजेगा।"

नुकसान के आकलन और मुआवजे के बारे में पूछे जाने पर, हरिद्वार के जिला मजिस्ट्रेट सी॰ रविशंकर ने न्यूजक्लिक को बताया कि अभी भी फसल के नुकसान के बारे में एक रिपोर्ट तैयार की जा रही है। उनके अनुसार "दिए गए मानदंडों के आधार पर, केवल वही किसान इसके पात्र होंगे जिनकी 33 प्रतिशत से अधिक फसलों को नुकसान हुआ है।" 

भाटिया, सिरारी, धारी और कलोगी कुफलॉन जोकि फल पैदा करने वाले क्षेत्र हैं को पिछले आधे महीने में तीन ओलावृष्टि की चपेट का सामना करना पड़ा जिसने फल की कलियों और फूलों को नष्ट कर दिया। मोरी, पुरोला, बैंबेगोन जोकि फलों की बेल्ट है को भी इसी तरह की तबाही का सामना करना पड़ा है। इस क्षेत्र के पानल पट्टी में पोंटी क्षेत्र में भी सब्जियों की फसलों को नुकसान हुआ है।

मोरी के किसान रणवीर रौतेला ने कहा, “अप्रैल तक फलदार पेड़ों की फुल लगाने का क्रम पूरा हो जाता था, लेकिन ओलावृष्टि के कारण ज्यादातर कलियां और फूल गिर गए। शेष में अब फलने की अवस्था पूरी होने में अधिक समय लगेगा क्योंकि इस वक़्त जलवायु में आवश्यक ऊष्मा नहीं होती है। अगर बारिश इसी तरह जारी रही, तो हम इनको भी खो देंगे।”

दुर्घटनावश, जबकि किसान जलवायु संबंधी कारणों से घाटे में चल रहे हैं, राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और कृषि/बागवानी विभागों की वेबसाइटों पर इसका कोई उल्लेख नहीं है।

राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सचिव एसए मुरुगेसन ने कहा कि कृषि और बागवानी के नुकसान के साथ प्राधिकरण का कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने कहा कि नुकसान का मूल्यांकन करना और किसानों को राहत प्रदान करना प्रत्येक जिला मजिस्ट्रेट की जिम्मेदारी है। प्रत्येक जिले से संकलित रिपोर्ट सचिव, कृषि और बागवानी को प्रभावितों को मुआवजे की राशि के वितरण के लिए मानदंडों के अनुसार भेजी जाती है।

इस बीच, कृषि और बागवानी मामलों को देखने वाले अधिकारियों को इस मुद्दे को टालते देखा गया खासकर जब किसानों के नुकसान का आकलन या राहत का सवाल आया तो अधिकारी बगले झाँकते पाए गए।

कृषि और बागवानी सचिव आर॰ मीनाक्षी सुंदरम ने मीडिया के सवालों का जवाब देना मुनासिब  नहीं समझा। 

कृषि विभाग के निदेशक, गौरी शंकर ने, हालांकि, किसानों को मुआवजे देने के मामले की उपेक्षा करते हुए कहा कि राज्य में अब तक कृषि को कोई नुकसान नहीं हुआ है, और बताया कि बारिश शुरू होने से पहले ही सभी फसलों को काट लिया गया था।

उत्तराखंड में 'बीज़ बचाओ आंदोलन' (सेव सीड्स मूवमेंट) की अगुवाई करने वाले एक जाने-माने कार्यकर्ता विजय जरदारी ने किसानों की स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की है और किसानों के लिए मुआवजे की मांग करते हुए मुख्यमंत्री और जिला मजिस्ट्रेट को पत्र लिखा है।

"मैंने जिला मजिस्ट्रेट के अलावा मुख्यमंत्री से भी अपील की है कि किसानों को पिछले दो महीनों में हुए पूरे नुकसान का व्यापक मूल्यांकन किया जाए और आकलन के अनुसार किसानों को बेहतर मुआवजे की सुविधा प्रदान की जाए।"

जरधारी ने बताया कि फसल के नुकसान के मामले में, जलवायु परिवर्तन और बेमौसम भारी बारिश ने पैदावार में इस बीमारी को घुसेड़ दिया है। “आलू, गोभी, फूलगोभी, मटर जैसी सब्जियों को पाला मार गया है, जबकि गेहूं सूज कर काला पड़ गया है। सेब, बेर, आड़ू जैसे उत्पादों की क़िस्मों को भी नुकसान हुआ हैं। ऐसी उपज के लिए या तो कोई खरीदार नहीं मिलेगा या उनकी कीमते नाममात्र की होंगी।” उन्होंने कहा कि सरकार को किसानों को मुफ्त कीटनाशक देने चाहिए और साथ ही उनका कर्ज भी माफ़ कर देना चाहिए और सब्सिडी भी दी जानी चाहिए, क्योंकि वे इस साल फसलों में किए गए निवेश को कवर नहीं कर पाएंगे।

लेखिका पर्यावरण पर लिखने वाली स्वतंत्र पत्रकार है।

अंग्रेज़ी में यह लेख पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Uttarakhand Farmers Seek Compensation as Rain, Hail Damage Crop, Fruits in Hilly Areas

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