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उत्तराखंड: गैरसैंण विधानसभा का घेराव करने पहुंचे घाट आंदोलनकारियों पर पुलिस का बर्बर लाठीचार्ज

एक सड़क को चौड़ी कराने के लिए चमोली के लोग पिछले तीन महीने से आंदोलन कर रहे हैं। इस दौरान उन्होंने धरना दिया, अनशन किया, यहां तक कि टॉवर पर भी चढ़े लेकिन सरकार को सुनाई और दिखाई न दिया, अब जब आंदोलनकारी मुख्यमंत्री को अपनी मुश्किल सुनाने विधानसभा की तरफ चल दिए तो उन्हें मिली पानी की बौछार और लाठी की मार।
उत्तराखंड: गैरसैंण विधानसभा का घेराव करने पहुंचे घाट आंदोलनकारियों पर पुलिस का बर्बर लाठीचार्ज

उत्तराखंड के सीमांत ज़िले चमोली में आम लोग घाट मोटर मार्ग को डेढ़ लेन करने की मांग को लेकर पिछले तीन महीने से अलग-अलग तरीके से शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे थे, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। फिर आंदोलनकारियों ने तय किया कि यदि हमारी मांग पूरी नहीं की जाती है तो 1 मार्च 2021 को विधानसभा सत्र के दौरान राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैण में विधानसभा का घेराव  किया जायेगा। अपने इसी आह्वान को सफल बनाने और सरकार को अपनी दिक्कत बताने के लिये 250 वाहनों में सवार करीब 4000 लोगों ने जिसमें पुरुषों के साथ महिलाएं एवं बच्चे भी शामिल थे, विधानसभा का कूच किया। लेकिन जब मार्च आगे बढ़ रहा था तो पुलिस ने गैरसैण से पांच किमी पहले दिवाली खाल गाँव में मार्च को रोकने के लिये आंदोलनकारियों के ऊपर वाटर कैनन का इस्तेमाल कर लाठियां बरसाई जिसके कारण आंदोलनकारियों को गंभीर चोट आयी हैं। इसके बाद कई आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कर मेहलचौरी में अस्थायी जेल भेज दिया गया पर बाद में इन को रिहा भी कर दिया गया।

युवा आंदोलनकारी आदित्य बिष्ट का कहना है कि पिछले कुछ सालों में इस सड़क पर बढ़ते यातायात के कारण आये दिन दुर्घटनाएं होती रहती हैं। इसी कारण स्थानीय लोगों को भी अवागमन में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। बरसात के मौसम में ये समस्या और भी बड़ी हो जाती है। समस्या से निजात पाने के लिये क्षेत्र की जनता सरकार से गुहार लगाती आयी है।

वर्तमान सरकार ने चुनावी रैलियों में सड़क को डेढ़ लेन करने का वादा भी किया गया था लेकिन इतना समय बीत जाने के बाद भी कोई काम न होता देख क्षेत्र की जनता को आंदोलन का रुख करना पड़ा। पिछले तीन महीनो में जब कोई सुनवाई नहीं हुई तब जनता ने अपनी बात मुख्यमंत्री से बताने के लिये विधानसभा का रुख किया। लेकिन यहाँ भी जनता को मुख्मंत्री से मिलने से रोका गया और ये तानाशाही की गयी।

उनका कहना है कि सरकार के इस बर्ताव को सहन नहीं करेगे और आंदोलन तब तक जरी रखा जायेगा जब तक हमारी मांग पूरी नहीं हो जाती।

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आंदोलन की अगुआई कर रही संयुक्त संघर्ष समिति और प्रशासन के बीच काफी लम्बे समय तक बातचीत भी हुई लेकिन समस्या का कोई हल नहीं निकल पाया। समिति के सदस्य कुंवर राम का कहना है की आगे कमेटी जो निर्णय लेगी उसी प्रकार आंदोलन को जारी रखा जाएगा। साथ ही समिति के सदस्यों का कहना है की आंदोलन शान्तिपूर्ण ढंग से चल रहा था। हमें केवल विधानसभा पहुचकर मुख्यमंत्री  त्रिवेंद्र सिंह रावत से अपनी मांग रखनी थी। उनको उप चुनाव के समय किया वादा याद दिलाना था लेकिन पुलिस के द्वारा जो निर्मम लाठीचार्ज की गया वो अमानवीय है। उस का हिसाब सरकार को देना होगा।  

घाट आंदोलन का समर्थन विभिन्न राजनीतिक दल भी कर रहे है। आंदोलन के समर्थन में पहुंचे सीपीएम के राज्य सचिव राजेंद्र सिंह नेगी का कहना है कि जनता की मांग जायज है। हम पूर्ण रूप से जनता की मांग का समर्थन करते हैं और सरकार की और से पुलिस द्वारा की गई लाठीचार्ज की घोर निंदा करते है साथ ही इस तानाशाह सरकार को ये याद दिलाना चाहते है कि उत्तराखंड एक जन आंदोलन की भूमि है यहाँ समय–समय पर आंदोलन होते आये हैं चाहे वह राजशाही के खिलाफ आंदोलन हो या चिपको आंदोलन। घाट आंदोलन को भी उसी तरह से सफल बनाया जायेगा।

आंदोलन में सम्मलित अखिल भारतीय किसान सभा, भारत की जनवादी नौजवान सभा,  एसएफआई, एनएसयूआई आदि संगठनों ने भी आंदोलन का समर्थन करते हुए प्रशासनिक कार्यवाही की घोर निंदा की और अंत तक आंदोलन में भाग लेने की बात कही है।

भाकपा माले के गढ़वाल सचिव इन्द्रेश मैखुरी ने गैरसैण में हुई इस घटना को अलोकतांत्रिक बताते हुआ कहा की सरकार को जनता से सीधे बात करनी चाहिये थी क्योंकि इस सड़क को बनाने का वादा राज्य के दो मुख्यमंत्री कर चुके हैं। राज्य में केवल एक सड़क नहीं बल्कि ऐसी और बहुत सी सड़के हैं जिन को बनाने की घोषणा मुख्यमंत्री कर चुके हैं लेकिन उन पर भी कोई कम नही हुआ है। यदि सरकार ने जल्द ही इन सडकों को बनवाने का काम शुरू नहीं किया तो बाकी सड़कों के लिये भी आंदोलन किया जायेगा।

एनएसयूआई के राज्य सचिव मोहन भंडारी ने गैरसैंण में हुई इस घटना की निंदा करते हुए कहा 2 मार्च को डीएवी कालेज में इस घटना के विरोध में उन के द्वारा प्रदर्शन किया जायेगा ।

पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत ने घटना की निंदा करते हुए कहा कि घाट की जनता काफी लम्बे समय से आंदोलन कर रही है, आंदोलनकारियों पर पुलिस के द्वारा बर्बरता पूर्ण लाठी बरसाकर सरकार ने अपनी कायरता का परिचय दिया है। जिस में कुछ माता बहने भी बुरी तरह चोटिल हुई हैं, इस की जितनी भी निंदा की जाय कम है।

यूकेडी की महिला प्रदेश अध्यक्ष परमिला रावत ने घटना की निंदा करते हुए कहा की आज सरकार ने अपनी दमनकारी नीति दिखाते हुए उत्तराखण्ड आंदोलन का वो दौर याद दिलाया जब मुलायम सिंह की सरकार में आंदोलनकारियों पर गोली चलायी गयी थी। क्या इस दिन के लिये उत्तराखंड बना था कि अपनी पुलिस अपनी माता बहनों पर लाठी बरसाए। घटना के विरोध में यूकेडी के द्वारा आज, मंगलवार को देहरादून में मुख्यमंत्री का पुतला दहन भी किया जा रहा है।     

सरकार अब इस घटना को लेकर बचाव की मुद्रा में है। सरकार के प्रवक्ता मदन कौशिक ने कहा कि यह घटना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। सरकार सभी वर्गों व आंदोलनकारियो की बात सुनती है। इस मामले में भी उनकी बात सुनी जायेगी और उचित कार्यवाही होगी। साथ ही मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने ट्वीट कर कहा कि घटना को गंभीरता से लिया गया है। जिलाधिकारी को जांच कराये जाने के आदेश दे दिए गये हैं, दोषियों को नहीं छोड़ा जायेगा।

लाठीचार्ज का विरोध करते हुए एसएफआई राज्य अध्यक्ष नितिन मलेथा ने कहा कि एक उत्तराखंडी वीर चंद्र सिंह गढ़वाली थे जिन्होंने पेशावर में अंग्रेजों की दमनकारी नीति का विरोध करते हुए निहत्थों पर फायर करने से मना कर दिया व पहाड़ियों का सर गर्व से ऊंचा करते हुए सदा सदा के लिये इतिहास के पन्नों मे स्वर्ण अक्षरों मे दर्ज कराया था। लेकिन आज विकास की मांग कर रहे अपने ही पहाड़ी भाई, बहनों व बुजुर्गों पर पर सरकार के आदेश पर पुलिस के द्वारा लाठी बरसाना अमानवीय है। सरकार को जनता से सीधे बात करनी चाहिए तभी इस समस्या का कोई हल निकल पायेगा। आवाज उठाती जनता को बलपूर्वक चुप करा देना लोकतंत्र के खिलाफ है। ये बात वर्तमान सरकार को समझनी होगी।  

(लेखक देहरादून स्थित एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं।)

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