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उत्तराखंड : पहले से ही ख़स्ताहाल रोडवेज़ को सरकार कर रही है और भी कमज़ोर

उत्तराखंड सरकार ने स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत हरिद्वार रोड स्थित रोडवेज़ वर्कशाप को मसूरी-देहरादून विकास प्राधिकरण को सौंपने का निर्णय लिया है। कर्मचारियों का कहना है, "एक तो सरकार हमारे हिस्से का पैसा दे नहीं रही है और हमारे पास जो सीमित साधन हैं उन्हें भी छीन रही है।"
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Image courtesy: Inextlive

उत्तराखंड सरकार ने स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत हरिद्वार रोड स्थित रोडवेज़ वर्कशाप को मसूरी-देहरादून विकास प्राधिकरण को देने का निर्णय लिया है। इसी फ़ैसले के ख़िलाफ़ रोडवेज़ कर्मचारी यूनियन ने विरोध दर्ज किया है। यूनियन ने साफ़ कहा है कि अगर शासन परिवहन निगम की ज़मीन का अधिग्रहण करना चाहता है तो तत्काल ही आईएसबीटी देहरादून का स्वामित्व परिवहन निगम के नाम पर किया जाए।

आपको बता दें कि साल 2003 में उत्तरांचल रोडवेज़ को उत्तर प्रदेश रोडवेज़ से अलग किया गया था। उस समय केंद्र सरकार ने वादा किया था की जितनी भी साझी संपत्ति है उसके बाज़ार मूल्य का लगभग 14% उत्तरांचल रोडवेज़ को दिया जाएगा। लेकिन परिवहन निगम के मुताबिक़ वो राशि अभी तक नहीं मिली है। एक अंदाज़े के मुताबिक़ यह राशि क़रीब सात-आठ सौ करोड़ हैं। इसको लेकर कर्मचारियों में ग़ुस्सा है। उनका कहना है "एक तो सरकार हमारे हिस्से का पैसा दे नहीं रही है और हमारे पास जो सीमित साधन हैं उन्हें भी छीन रही है।"

कर्मचारी यूनियन का कहना है कि केंद्र, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में एक ही पार्टी की सरकार होने के बावजूद परिसंपत्तियों का बंटवारा न होना चिंता का विषय है। बंटवारा न होने के कारण परिवहन निगम को आर्थिक नुक़सान उठाना पड़ रहा है। यूनियन की बैठक में परिवहन निगम को सौ करोड़ रुपये अतिरिक्त अंशदान के तौर पर देने की मांग उठाई गई है।

क्या है पूरा मामला?

स्मार्ट सिटी के तहत ज़िला स्तरीय सभी सरकारी कार्यालय एक ग्रीन बिल्डिंग में शिफ़्ट किए जाने की कवायद में सरकार ने रोडवेज़ की कार्यशाला की ज़मीन शहरी विकास विभाग को ट्रांसफ़र करने के आदेश दे दिए हैं। इस बारे में शुक्रवार को परिवहन सचिव शैलेश बगोली की ओर से जारी आदेश में बताया गया कि "कार्यशाला की ज़मीन की प्रतिपूर्ति के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की गई है। ज़मीन ट्रांसफ़र के बाद प्रतिपूर्ति की राशि पर फ़ैसला होगा। हरिद्वार रोड पर रोडवेज़ कार्यशाला में 204 करोड़ रुपये की लागत से छह मंज़िला ग्रीन बिल्डिंग बनेगी।"

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कार्यशाला को ट्रांसपोर्टनगर शिफ़्ट किया जाना है। इंटीग्रेटेड ग्रीन बिल्डिंग में कलेक्ट्रेट, विकास भवन, तहसील समेत तमाम ज़िलास्तरीय सरकारी कार्यालय होंगे। यहां हर तरह की जनसुविधाएं भी मिलेंगी। पिछले दिनों सचिवालय में हुई स्मार्ट सिटी को लेकर बैठक में शासन ने कार्यशाला की भूमि को शीघ्र ही शहरी विकास को देने के लिए हामी भरी थी। शुक्रवार को परिवहन सचिव शैलेश बगोली ने तत्काल प्रभाव से कार्यशाला की भूमि शहरी विकास विभाग को हस्तांतरित करने के आदेश दिए।

वहीं, कर्मचारी यूनियनों ने सरकार के आदेश का विरोध किया है। उत्तरांचल रोडवेज़ कर्मचारी यूनियन के प्रदेश महासचिव अशोक चौधरी ने कहा कि सरकार जबरन भूमि का अधिग्रहण नहीं कर सकती। पहले आईएसबीटी का स्वामित्व रोडवेज़ को दिया जाए, जो शहरी विकास विभाग के अधीन है। इसके अलावा कार्यशाला निर्माण और शिफ़्टिंग का पूरा ख़र्च भी सरकार ही वहन करे। अगर ऐसा नहीं हुआ तो यूनियन इस फ़ैसले के विरोध में आंदोलन करेगी।

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