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उत्तराखंड: विकास के नाम पर 16 घरों पर चला दिया बुलडोजर, ग्रामीणों ने कहा- नहीं चाहिए ऐसा ‘विकास’

चमोली जिले के हाट गांव में अलकनंदा नदी पर 444 मेगावाट की विष्णुगाड-पीपलकोटी नाम की एक विद्युत परियोजना का निर्माण कार्य चल रहा है। इसी परियोजना के लिए हाट गांव को विस्थापित किया जा रहा है।
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हाट गांव में प्रशासन द्वारा तोड़े गये घर (फोटो-राजेंद्र हटवाल)

एक माँ जिसका बेटा सरहद पर देश की सुरक्षा के लिए तैनात है, एक पोता जो श्राद्ध में अपनी दादी को तर्पण दे रहा था और एक दिव्यांग, उन्हें बिना किसी पूर्व चेतावनी के, प्रशासन ने पुलिस के सहयोग से जबरन घर से निकाल कर उन के घरों पर बुलडोजर चला कर बेघर कर दिया, यह कहना है हाट गांव के उन 16 परिवारों का जो विष्णुगाड-पीपलकोटी विद्युत् परियोजना के लिए आज बेघर हो चुके हैं। 

प्रशासन ने जबरन तोड़ दिए घर 

आप को बता दें उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले के हाट गांव में अलकनंदा नदी पर 444 मेगावाट की विष्णुगाड-पीपलकोटी नाम की एक विद्युत परियोजना का निर्माण कार्य चल रहा है, साल 2003 में प्रस्तावित इस परियोजना से प्रभावित 7 गांव में से केवल हाट गांव को ही विस्थापित होने की जरूरत थी, प्रशासन के कहने पर गांव के कुछ लोगो ने पहले ही गांव को छोड़ दिया, लेकिन इसी गांव के कुछ परिवारों का कहना है कि यह उनके पुरखों की जमीन है, हम इसको खाली नहीं करना चाहते हैं, इसके लिए गांव वालो ने कई बार विरोध प्रदर्शन भी किया, लेकिन 22 सितम्बर 2021 को पुलिस फोर्स और प्रशासन की उपस्थिति में जबरन गांव वालो के घरो को तोड़ दिया गया।

Uttarakhandघर के बाहर बिखरा हुआ राशन (फोटो-नरेंद्र पोखरियाल)

जिस कारण 15 से भी अधिक परिवार आज खुले में रात बिताने को मजबूर हैं, लोग चिल्लाते रहे, महिलाएं रोती रहीं और प्रशासन से रहम की गुहार लगाती रहीं लेकिन प्रशासन और पुलिस ने इन सभी को अनदेखा करते हुए उनके सामान को जबरन घरों से बाहर फैंक दिया और इस कार्यवाही का विरोध कर रहे गांव के कुछ लोगों को पुलिस गिरफ्तार कर गोपेश्वर थाने ले गयी। प्रभावित परिवारों का कहना है कि हमको बिना किसी पूर्व सूचना के ही प्रशासन ने इस प्रकार का अमानवीय कार्य किया है, हम लोगों ने कभी सोचा भी नहीं था कि हमारी सरकार कभी हम लोगों को इतने बेरहम तरीके से हमारे घर से बेघर कर देगी।

Uttarakhandअपने टूटे घर देख, फ़फक कर रोता सेना से छुट्टी पर आया जवान (फोटो- राजेंद्र हटवाल )

प्रशासन की कार्यवाही के विरोध में प्रदर्शन  

बिना पूर्व सूचना के घरो को तोड़ने पर गुस्साए गांव वालो ने 4 अक्टूबर 2021 को टीएचडीसी के प्रशासनिक भवन के सामने धरना दिया, धरना दे रहे लोगो की मांग है कि 2009 में जो हाट गांव के लोगो के साथ विस्थापन को लेकर समझौता हुआ था उसको रद्द किया जाये, इस पूरे समझौते की एक स्वतंत्र कमेटी के द्वारा जाँच की जाये, जो लोग बेघर हो चुके हैं, तुरंत उनके रहने की व्यवस्था की जाये और इस परियोजना का नाम विष्णुगाड-पीपलकोटी विद्युत परियोजना से बदल कर विष्णुगाड-हाट विद्युत परियोजना हो जाये, ताकि हमारे गांव से जुड़ी जो हमारी पहचान है वह लुप्त ना हो जाये। धरनास्थल पर पहुंचे सयुंक्त मजिस्ट्रेट और उप जिलाधिकारी अभिनव शाह ने लोगों को आश्वासन दिया कि 12-13 अक्टूबर को गांव वालों की मुलाक़ात मुख्यमंत्री से कराई जायेगी, जिसके बाद लोगो ने धरना समाप्त कर दिया।

Uttarakhand
धरने पर बैठे हुए गांव वाले 


Uttarakhandजबरन घरों को तोड़े जाने के विरोध में टीएचडीसी के प्रशासनिक भवन के बहार धरना देते ग्रामीण (फोटो-नरेंद्र पोखरियाल) 

विस्थापन के लिये समझौता होने पर भी गांव के लोगों ने क्यों खाली नहीं किया गांव 

गांव के निवासी नरेंद्र पोखरियाल का कहना है कि 2009 में हाट गांव के विस्थापन को लेकर होने वाले समझौते के दौरान गांव के केवल कुछ ही लोग मौजूद थे, जो इस समझौते से सहमत थे, लेकिन गांव के अधिकांश लोग समझौते के लिये होने वाली सभा में मौजूद ही नहीं थे, लेकिन फिर भी प्रशासन द्वारा बार-बार गांव खाली करने के लिए दबाव बनाया गया। जिसका विरोध हम सब गांव वालो ने मिलकर किया, प्रशासन को यदि हमारी जमीन चाहिए तो उसके लिये पहले हमारी मंजूरी आवश्यक है, लेकिन प्रशासन ने जबरन हमारे घरों को तोड़ दिया। गांव के अधिकांश परिवार इस समझौते को नहीं मानते हैं। नरेंद्र पोखरियाल आगे बताते हैं कि प्रशासन को यदि कोई जगह खाली करानी होती है तो उसके लिए प्रशासन द्वारा लोगों को सूचित किया जाता है, कुछ समय जनता को दिया जाता है ताकि वह अपने घरों से जरूरी सामान को सुरक्षित निकाल लें, लेकिन यहां प्रशासन के द्वारा इस प्रकार की कोई सूचना घरों को तोड़े जाने से पहले हमें नहीं दी गई, हमारे घरों में रखा कीमती सामान, प्रशासन द्वारा की गयी इस कार्रवाई में टूट चुका है, हमारे गांव से विस्थापित हुए लोगों के पुनर्वास की कोई योजना प्रशासन द्वारा नहीं बनायी गयी है, जिन परिवारों का घर उनसे छीन लिया गया है वे आज खुले आसमान के नीचे रात गुजारने को मजबूर हैं।  नरेंद्र आगे बताते है कि अपनी इच्छा से जो परिवार विस्थापित हुए हैं उनको जो राशि सरकार द्वारा दी गयी है वह आज के समय में महंगाई को देखते हुए बहुत ही कम है, इसके अतिरिक्त, गांव वालो ने अपना गांव खाली न करने को लेकर एक जनहित याचिका उच्च न्यायालय में डाली थी, जिस पर न्यायालय ने योजना की मुख्य कार्यदायी संस्था टीएचडीसी से जवाब भी मांगा, लेकिन टीएचडीसी ने इस बारे में अपनी कोई जबाबदेही नहीं समझी। 

प्रकृति के लिए भी हानिकारक  

2014 में डॉ. रवि चोपड़ा की अध्यक्षता में आयी एक्सपर्ट कमेटी (असेसमेंट ऑफ़ एनवायर्नमेंटल डिग्रिडेशन एंड इम्पैक्ट ऑफ़ हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट) की रिपोर्ट में भी इस परियोजना को इस क्षेत्र के लिए खतरा बताया गया है।  एक्सपर्ट कमेटी के सदस्य रहे हेमंत ध्यानी बताते हैं कि हिमालय में बनायी जा रही इन परियोजनाओं ने आपदाओं को बढ़ाया है, जिसका सीधा उदाहरण हम तपोवन परियोजना में देख सकते हैं जहां लगभग 200 लोग आपदा के कारण मारे गये, ऐसे समय पर जब सारी दुनिया के वैज्ञानिक पृथ्वी के बढ़ते तापमान को लेकर चिंतित हैं और बार बार इस प्रकार के निर्माण न करने के चेतावनी दे रहे हैं, ऐसे समय में हमारे राज्य में विकास के नाम पर प्रकृति को होने वाले नुकसान की परवाह किये बिना लगातार ये निर्माण कार्य किये जा रहे हैं। आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा बसाये गये इस ऐतिहासिक गांव को आज विकास के नाम पर उजाड़ दिया गया, आखिर यह विकास किसके लिये है? जो लोगों से उनका घर छीने और राज्य में आपदाओं को बढ़ाये, ऐसे विकास की आवश्यकता हम को नहीं है। 

न्यूजक्लिक ने प्रशासन का पक्ष जानने के लिए उप जिलाधिकारी अभिनव शाह से फोन पर बात की, उन्होंने हमें बताया कि मैं एक सरकारी कर्मचारी हूँ हमें गांव को खाली कराने का आदेश था, लेकिन अधिक जानकारी के लिये आप को कार्यदायी संस्था टीएचडीसी से ही बात करनी होगी, जिसके बाद हमने टीएचडीसी पीपलकोटी यूनिट हेड आर एन सिंह से फ़ोन पर संपर्क करने की कोशिश की लेकिन संपर्क नहीं हो पाया, हमारे द्वारा आर एन सिंह को ईमेल कर दिया गया है जानकारी मिलने पर आप को अवगत करा  दिया जायेगा। 

(लेखक देहरादून स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं , लेख में निहित विचार उनके निजी हैं। )

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