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हरिद्वार में ‘धर्म संसद’ के नाम पर तीन दिन तक चलते रहे अल्पसंख्यक विरोधी भाषण, प्रशासन मौन! 

‘धर्म संसद' नाम का इस्तेमाल कर उत्तराखंड के हरिद्वार में 17 दिसंबर से लेकर 19 दिसंबर तक एक ऐसी सभा का आयोजन हुआ जिसमें सब कुछ अपवित्र और आपत्तिजनक था।
dharm sansad

हिंदू दर्शन के मुताबिक 'धर्म’ का मतलब ‘कर्तव्य' होता है। दुनिया के सभी धर्मों की तरह हिंदू धर्म का मर्म भी इंसानियत है। इसलिए कोई भी ऐसा कर्तव्य जो इंसानियत के खिलाफ जाता हो वह हिंदू धर्म नहीं हो सकता। 'संसद' आधुनिक राज्य प्रणाली की एक ऐसी व्यवस्था है जहां पर समाज के सुधि जन इकट्ठा होकर स्वतंत्रता समानता न्याय शांति जैसे आधुनिक मूल्यों को मकसद मानकर समाज की प्रगति के लिए चर्चा करते हैं। इस तरह से देखा जाए तो 'धर्म संसद’ एक पवित्र शब्द हुआ।

लेकिन 'धर्म संसद' नाम का इस्तेमाल कर उत्तराखंड के हरिद्वार में 17 दिसंबर से लेकर 19 दिसंबर तक एक ऐसी सभा का आयोजन हुआ जिसमें सब कुछ अपवित्र था। सब कुछ धर्म संसद के खिलाफ था। उग्र दक्षिणपंथी और हिंदुत्ववादी संगठन के पैरोकारों ने लगातार तीन दिनों तक मुस्लिम समुदाय के खिलाफ आतंक और जहर की ऐस बातें कहीं जो संविधान के खिलाफ तो थीं हीं साथ में दुनिया के किसी भी धर्म के मर्म के खिलाफ थी। इस बैठकी में खुल्लम-खुल्ला मुस्लिमों के नरसंहार की उद्घोषणा की गई।

इस सभा में हिंदुत्व से जुड़ी नामी-गिरामी हस्तियां शामिल थीं। हिंदू रक्षा सेना के अध्यक्ष स्वामी प्रबोधानंद गिरी, हिंदू महासभा की जनरल सेक्रेटरी साध्वी पूजा पांडे, स्वामी आनंद स्वरूप, यति नरसिंहानंद, धर्मराज महाराज, सिंधु सागर स्वामी, भाजपा प्रवक्ता स्वामी उपाध्याय, सुदर्शन चैनल के सुरेंद्र चव्हाणके, उत्तर प्रदेश सरकार के राज्य मंत्री राजेश्वर सिंह- यह सारे वे नाम हैं, जिन्होंने तीन दिनों तक धर्म संसद जैसे शब्द की आड़ लेकर मानवता के खिलाफ आतंक फैलाने का काम किया। इन सभी नामों के साथ बड़ी बात यह है कि यह पहले भी खुल्लम-खुल्ला समाज में मुस्लिम नफरत का कारोबार चला चुके हैं। इनके खिलाफ शिकायतें भी दर्ज है। लेकिन इन पर सरकार ने किसी भी तरह की कार्यवाही नहीं की है। 

इन सब से जुड़ी ऐसी तमाम खबरें हैं जो यह साफ-साफ बताती हैं कि यह सभी नाम किसी ना किसी तरह से भाजपा सरकार के सांप्रदायिक मशीनरी का हिस्सा हैं। भाजपा सरकार के कई बड़े नेताओं के साथ इनका उठना-बैठना है। भारतीय समाज की निगरानी अगर संविधान के जरिए होती तो ऐसे लोगों का सार्वजनिक जीवन में किसी भी तरह का स्वीकार नहीं होता। लेकिन भाजपा सरकार आने के बाद ये लोग खुल्लम-खुल्ला जहर घोल रहे हैं। 

इसमें कोई संदेह नहीं है कि उत्तर प्रदेश चुनाव के ठीक पहले मुस्लिमों के खिलाफ जहर का प्रसारण हिंदू मुस्लिम ध्रुवीकरण के मकसद से किया गया है। ऐसी बातें की गई हैं जिन्हें अगर कोई भाजपा विरोधी बोलता तो अब तक वह जेल में होता। अगर सच में भारत में हिंदू धर्म के मर्म को समझने वाली कोई सरकार होती तो शर्मसार हो चुकी होती कि हिंदू धर्म का नाम लेकर कितनी अनर्गल बातें की जा रही हैं।

तीन दिनों तक चले आतंक के प्रसार की इस बैठकी में क्या कहा गया उसकी बानगी देखिए। द क्विंट के मुताबिक निरंजिनी अखाड़े के महामंडलेश्वर और हिंदू महासभा के महासचिव अन्नपूर्णा मां ने कहा, “अगर आप उन्हें खत्म करना चाहते हैं, तो उन्हें मार डालें ... हमें 100 सैनिकों की जरूरत है जो इसे जीतने के लिए 20 लाख को मार सकें।" बिहार के धर्मदास महाराज ने कहा, "अगर मैं संसद में मौजूद होता जब पीएम मनमोहन सिंह ने कहा कि राष्ट्रीय संसाधनों पर अल्पसंख्यकों का पहला अधिकार है, तो मैं नाथूराम गोडसे का अनुसरण करता, और उनके सीने में छह बार रिवॉल्वर से गोली मार दी होती."

आनंद स्वरूप महाराज ने कहा, "अगर सरकारें हमारी मांग नहीं सुनती हैं (उनका मतलब अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा के माध्यम से एक हिंदू राष्ट्र की स्थापना) है, तो हम 1857 के विद्रोह की तुलना में कहीं अधिक भयानक युद्ध छेड़ेंगे."

सागर सिंधुराज महाराज ने जोर देकर कहा, "मैं बार-बार दोहराता रहता हूं कि 5000 रुपये मोबाइल खरीदने के बजाय 1 लाख रुपये का हथियार खरीदो. आपके पास कम से कम लाठी और तलवारें तो होनी ही चाहिए.” शास्त्र मेव जयते' का नारा देते हुए नरसिंहानंद ने कहा, "आर्थिक बहिष्कार से काम नहीं चलेगा। हिंदू समूहों को खुद को अपडेट करने की जरूरत है। तलवारें मंच पर ही अच्छी लगती हैं. ये लड़ाई बेहतर हथियार वाले लोग ही जीतेंगे।"

इस तरह की तमाम बातें हुईं जो धर्म संसद की पवित्रता के खिलाफ थीं। इंसानियत के खिलाफ थीं। मानवता के खिलाफ थीं। भारत के संविधान के खिलाफ थीं। हिंदू धर्म के खिलाफ थीं। अगर धर्म संसद होती तो धर्म के विद्वान भौतिक दुनिया के दुखों पर बात करते। इंसान की निजी और सार्वजनिक जीवन की परेशानी पर बात करते।  दुखों से छुटकारा पाने पर बात करते। नैतिक प्रतिमान और जीवन शैली पर बात करते। धर्म की भूमिका पर बात करते कि कैसे हिंदू धर्म के भीतर मौजूद बहुत बड़ा समुदाय बेतहाशा गरीबी में जी रहा है। जीवन के मकसद पर बात करते। सत्य पर बात करते। व्यक्ति के अस्तित्व की भूमिका पर बात करते। हिंदू धर्म की खामियों पर बात करते। मुस्लिम धर्म पर बात करते तो हिंदू धर्म और मुस्लिम धर्म के साहचर्य पर बात करते। वैमनस्य भाव से रहित मुस्लिम धर्म की खामियों पर बात करते। मुस्लिम धर्म के विद्वानों के साथ बात करते। वह तमाम तरह की चर्चाएं होतीं जिसमें सहमति असहमति सब कुछ होती। लेकिन सबका मकसद इंसानियत को निखारना होता ना कि बर्बाद करना। अगर कुछ ऐसा होता तो यह वाकई धर्म संसद कहलाता। धर्म संसद की पवित्रता को दर्शाता। भारतीय संस्कृति के उत्थान का मार्ग होता।

लेकिन धर्म संसद के नाम पर जिस तरह का जहर घोला गया। वह हिंदू धर्म के खिलाफ था। हिंदू धर्म का कोई भी प्रतिबद्ध उपासक और अनुयाई यह नहीं कह सकता कि उसका धर्म दूसरे धर्म के लोगों के नरसंहार की वकालत करता है। इसलिए ऐसे आयोजनों से इंसानियत, भारतीय संविधान, भारत की समरसता और सद्भाव की भावना तो शर्मसार होती ही है लेकिन सबसे अधिक शर्मसार हिंदू धर्म होता है। 

इस आयोजन को रोका जा सकता था। इस तरह की हिंसक चर्चाएं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत नहीं आती हैं। सुप्रीम कोर्ट का फैसला है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत वैसी अभिव्यक्ति नहीं आ सकती है, जो खुल्लम-खुल्ला हिंसा को उकसावा दे। ऐसी बातें करें जो किसी दूसरे समुदाय के प्रति सार्वजनिक तौर पर नफरत को बढ़ावा देकर हिंसा का माहौल बनाएँ। यहां पर तो सार्वजनिक तौर पर सभा और सोशल मीडिया के जरिए पूरे देश को सुनाया जा रहा था कि मुस्लिमों का नरसंहार कर दिया जाए। यह पहली ही नजर में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ है। आपराधिक प्रवृत्ति का जीता जागता उदाहरण है। ऐसी बातों के लिए वक्ताओं को सीधे जेल भेजना चाहिए। लेकिन अब तक ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। 

सोशल मीडिया पर वे सभी जहरीले भाषण चल रहे हैं। जबकि सोशल मीडिया के प्लेटफार्म अगर खुद को लोक व्यवस्था के अंतर्गत बताते हैं तो उन्हें उन वक्तव्य को हटा लेना चाहिए। उस सभा में केवल वक्ता नहीं थे बल्कि उसे सुनने वाले भी थे। उन्होंने भी तालियां बजाईं। यह आयोजन हरिद्वार में हो रहा था। इस तरह की हिंसा का आयोजन पर हरिद्वार के लोगों का विरोध होना चाहिए था। पुलिस और प्रशासन को इस आयोजन की खबर लगते ही इसे बंद करा देना चाहिए था। उत्तराखंड की सरकार को उन सभी वक्ताओं पर गंभीर कार्यवाही करनी चाहिए थी, जिन्होंने जहर घोलने का काम किया। प्रधानमंत्री समेत भारत की सरकार को खुलेआम कहना चाहिए था कि किसी भी दूसरे समुदाय के प्रति किसी व्यक्ति के जरिए की गई ऐसी अभिव्यक्ति बर्दाश्त नहीं की जाएगी? लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। यही दुख की बात है। यहीं सबसे घातक बात है। यही वह डर है जो भारत की आत्मा को मारे जा रहा है।

यह बात छिपी हुई है मगर जगजाहिर है कि मुस्लिमों के प्रति ज़हर घोलने की यह सारी कार्यवाही भाजपा के इशारे पर सरकार के देखरेख में हो रही थी। अगर सरकार के शीर्ष नेता इसे खारिज कर देते तो यह नहीं होता। लेकिन वह खारिज नहीं करने वाले। और ऐसे प्रकरण होते रहेंगे। इसका नुकसान केवल आज का समय नहीं बल्कि आने वाला समय भी सहेगा। 

अगर देश की आत्मा को बचाना है और देश की समरसता को बचाना है तो केवल प्रधानमंत्री सहित भाजपा के कुनबे को दोष देना ही काफी नहीं है। अगर देश केवल चंद लोगों की बपौती बनकर रह जाए तो वह देश नहीं कहलाता है। लोक व्यवस्था को बनाए रखने की जिम्मेदारी केवल राजनीतिक पदों पर बैठे प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की नहीं होती। मोदी और योगी की नहीं है। बल्कि संविधान से संचालित होने वाले प्रशासनिक अधिकारियों और न्यायाधीशों की भी है। 

भारत के संविधान के खिलाफ जाते हुए देशभर में जहर की सार्वजनिक दुकानदारी की जा रही हो और उस पर कार्यपालिका और न्यायपालिका भी राजनीतिक लोगों का गुलाम बन कर रह जाए तो देश को कोई नहीं बचा सकता। हरिद्वार में अभिव्यक्त हुई जहरीली बातें बर्दाश्त के बाहर होती हैं। लेकिन यह तभी होती है जब अथॉरिटी की भूमिका में मौजूद सभी लोगों की स्वीकृति होती है। हरिद्वार में मुस्लिमों के खिलाफ उगली हुई अभिव्यक्ति इतनी गलत है कि इसे आतंकवादी अभिव्यक्ति भी कहा जाए तो अतिरेक नहीं होगा।

सरकार अगर ऐसी व्यवस्था का नाम है जिसकी जिम्मेदारी लोक व्यवस्था को बनाए रखने की है तो वह हरिद्वार में लगातार तीन दिन तक बोले गए जहरीले भाषणों पर चुप नहीं रह सकता। अगर वह चुप है, कुछ भी नहीं कर रहा, कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है तो इसका मतलब है कि देश सरकार विहीन हो चला है। देश को कोई मोदी सरकार नहीं चला रही। बल्कि मोदी गिरोह चला रहा है। 

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