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ख़बरों के आगे-पीछे: सहयोगी दलों में भी भाजपा का ‘ऑपरेशन लोटस’!

अपने साप्ताहिक कॉलम में वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन राष्ट्रपति की चिंता, मोदी और अमेरिका, बीजेपी के ऑपरेशन लोटस समेत तमाम मुद्दों पर चर्चा कर रहे हैं।
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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मौका गंवा दिया!

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने महिलाओं के खिलाफ बलात्कार व अन्य अपराधों को लेकर राष्ट्रीय चिंता को अभिव्यक्त किया है। राष्ट्रपति की इस बात से पूरा देश सहमत होगा कि देश में महिलाओं को कमजोर मानने की मानसिकता बनी हुई है और कई लोग महिलाओं को वस्तु मानते हैं। उनके इस आह्वान में भी सारा देश अपना स्वर मिलाएगा कि 'बेटियों की स्वतंत्रता की राह से रुकावटों को हटाना हमारी जिम्मेदारी है।’ इसके बावजूद राष्ट्रपति के वक्तव्य पर जनमत के एक बड़े हिस्से में तीखी प्रतिक्रिया देखी गई, तो उसकी वजह है कि राष्ट्रपति ने अपनी इस व्यापक चिंता को कोलकाता के आरजी कर अस्पताल की बहुचर्चित घटना से जोड़ दिया। उन्होंने कहा- 'इस घटना से मैं निराश और भयभीत हूं।’ अब चूंकि राष्ट्रपति ने अपनी चिंता को सीधे कोलकाता की घटना से जोड़ा, तो लोगों का ध्यान सहज ही इस ओर चला गया कि राष्ट्रपति ने वक्तव्य उसी रोज जारी किया, जिस दिन भाजपा ने इस वारदात को लेकर पश्चिम बंगाल बंद की अपील की हुई थी। इसी का परिणाम हुआ कि विपक्षी दलों ने और सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में लोगों ने यह सवाल उठा दिया कि क्या राष्ट्रपति तक मणिपुर में महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाने और उनसे यौन हिंसा करने और उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, राजस्थान आदि राज्यों में आए दिन हो रहे बलात्कार की घटनाओं की खबरें नहीं पहुंच रही हैं? चूंकि राष्ट्रपति के लंबे वक्तव्य का शीर्षक है- 'महिला सुरक्षा: अब हद हो गई है’, तो यह सवाल भी उठा है कि यह हद आखिर कब हुई? राष्ट्रपति को किसी पार्टी का नहीं, बल्कि राष्ट्रीय विवेक का प्रतिनिधि माना जाता है। मगर भारत में सियासी और वैचारिक ध्रुवीकरण इतना तीखा हो चुका है कि अब राष्ट्रपति को दलगत संदर्भों में देखा जाने लगा है। द्रौपदी मुर्मू चाहतीं तो इस मौके पर ऐसी धारणा को तोड़ने में अपना योगदान दे सकती थीं, लेकिन पता नहीं किस दबाव में वे ऐसा नहीं कर सकीं।

अमेरिका में मोदी को ऐसे दिखाया जाएगा 'विश्व नेता’ 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महीने संयुक्त राष्ट्र महासभा की सालाना बैठक में हिस्सा लेने के लिए अमेरिका जा रहे है। वे 26 सितंबर को महासभा की बैठक को संबोधित करेंगे। उससे पहले 22 सितंबर को न्यूयॉर्क में प्रवासी भारतीयों को संबोधित करने का उनका कार्यक्रम तय है। जिस स्टेडियम में यह कार्यक्रम होना है उसकी क्षमता 22 हजार के करीब है लेकिन 30 अगस्त तक ही 25 हजार से ज्यादा लोग इसके लिए रजिस्ट्रेशन करा चुके हैं। जाहिर है कि स्टेडियम के बाहर भी भीड़ होगी। समझा जा सकता है कि भारत के मीडिया समूह किस तरह से इस इवेंट को कवर करते हुए मोदी को विश्व नेता के तौर पर प्रचारित करेंगे? सबसे हैरान करने वाला इस इवेंट का शीर्षक है- 'मोदी एंड यूएस प्रोग्रेस टुगेदर’। इसमें भारत और अमेरिका के एक साथ आगे बढ़ने की बात नहीं कही गई है, बल्कि मोदी और अमेरिका के एक साथ आगे बढ़ने की बात कही गई है। यानी आयोजक दिखाना चाहते हैं कि मोदी ही भारत हैं। मोदी और अमेरिका साथ-साथ आगे बढ़ रहे हैं, इसका मतलब है कि भारत और अमेरिका आगे बढ़ रहे हैं। आगे बढ़ने की यह थीम अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव प्रचार में भी इस्तेमाल हो सकती है। मोदी अमेरिका के पिछले चुनाव के समय यानी 2020 में भी अमेरिका गए थे और उन्होंने प्रवासी भारतीयों की सभा में 'अबकी बार ट्रंप सरकार’ का नारा लगाया था। यह अलग बात है कि ट्रंप चुनाव हार गए थे। इस बार मोदी और अमेरिका के आगे बढ़ने की थीम से किसका प्रचार होता यह मोदी के कार्यक्रम के समय ही पता चलेगा।

सहयोगी दलों में भाजपा का ऑपरेशन लोटस

लगता है कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने मान लिया है कि चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा के हाथों कुछ नहीं लगना है और नतीजे आने के बाद केंद्र में उनके सहयोगी बैसाखियों के सहारे चल रही उनकी सरकार के लिए परेशानी खड़ी कर सकते हैं। इसीलिए उन्होंने अभी से उस स्थिति से निबटने के तैयारियां शुरू कर दी हैं। इस सिलसिले में उन्होंने अपने ही सहयोगी और पूर्व में अनौपचारिक तौर पर सहयोगी रहे दलों को तोड़ने के लिए ऑपरेशन लोटस शुरू कर दिया है। उनका लक्ष्य संसद के दोनों सदनों में भाजपा का बहुमत कायम करने का है। इस समय लोकसभा में भाजपा को बहुमत के लिए 32 और राज्यसभा में 15 सांसदों की जरूरत है। गौरतलब है कि एनडीए का हिस्सा बने बगैर भाजपा को हर मौके पर संसद में समर्थन देते रहे बीजू जनता दल और वाईएसआर कांग्रेस के राज्यसभा में क्रमश: 8 और 11 सदस्य हैं। बीजू जनता दल की एक राज्यसभा सदस्य हाल ही में भाजपा में शामिल हो गई हैं। इसी पार्टी के कुछ और सांसद भी भाजपा के संपर्क में हैं। उधर वाईएसआर कांग्रेस के भी कुछ सांसदों को भाजपा अपने साथ लाने की कोशिश में है। लोकसभा में बहुमत का आंकड़ा छूने के भाजपा के ऐसे ही प्रयास जनता दल (यू) और चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी को तोड़ने के चल रहे हैं। बताया जा रहा है कि चिराग की पार्टी के पांच में से तीन सांसद भाजपा में शामिल हो सकते हैं। भाजपा की योजना महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद एकनाथ शिंदे की शिव सेना को तोड़ने की भी है जिसके लोकसभा में सात सांसद हैं।

बांग्लादेश जैसा होने का डर क्यों दिखाना?

यह हैरानी की बात है कि भारत में आजकल भाजपा का लगभग हर नेता यह डर दिखा रहा है कि बांग्लादेश जैसा हो जाएग या बांग्लादेश जैसा हो जाता अगर देश मे मजबूत सरकार नहीं होती। यह बात उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कही है। उन्होंने बीते सोमवार को एक कार्यक्रम में हिंदुओं से एकजुट रहने की अपील की। उनके शब्द थे, 'बटेंगे तो कटेंगे।’ फिर उन्होंने कहा कि बांग्लादेश जैसी स्थिति हो सकती है। इसी तरह भाजपा की सांसद कंगना रनौत ने कहा कि किसान आंदोलन के समय अगर मजबूत सरकार नहीं होती तो बांग्लादेश जैसी स्थिति हो जाती। दरअसल इन नेताओं को अगर ठीक से मालूम होता कि बांग्लादेश में क्या हुआ है तो ये भारत में वैसा होने की बात नहीं करते। बांग्लादेश में बहुसंख्यक आबादी ने सरकार के खिलाफ आंदोलन छेड़ा और तख्तापलट कर दिया। उसके बाद बहुसंख्यक आबादी के कुछ कट्टरपंथी लोग अल्पसंख्यकों पर हमले कर रहे हैं। अगर ऐसा कुछ भारत में होगा तो क्या होगा? यहां बहुसंख्यक कौन हैं और उसमें भी कट्टरपंथी कौन हैं? और बांग्लादेश जैसा कुछ हुआ तो कट्टरपंथी बहुसंख्यक किसके ऊपर अत्याचार करेंगे? लेकिन चूंकि ऐसी तार्किक बातों से भाजपा नेताओं का नाता नहीं है, इसलिए वे यह भय दिखा रहे हैं कि बांग्लादेश में बहुसंख्यकों ने जो किया वही काम भारत में अल्पसंख्यक कर सकते हैं। इसके लिए बांग्लादेश का नाम लाने की क्या जरुरत है? भाजपा नेताओं की बड़ी जमात तो पहले से ही सभी तरह के अल्पसंख्यकों की देशभक्ति को कठघरे में खड़ा किए हुए है।

भाजपा को चम्पई से कुछ हासिल नहीं होगा

भाजपा नेतृत्व ने लंबी ऊहापोह के बाद झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चम्पई सोरेन को पार्टी में शामिल तो कर लिया लेकिन राज्य की राजनीतिक स्थिति को देख कर ऐसा लग रहा है कि चम्पई सोरेन के जरिए रणनीतिक बढ़त हासिल करने का मौका उसने गंवा दिया है। पिछले दिनों चंपई तीन दिन दिल्ली में रह कर जब लौटे थे तब उन्होंने कहा था कि वे अपना संगठन बना कर राजनीति करेंगे लेकिन अचानक वे फिर दिल्ली पहुंचे और तय हुआ कि वे भाजपा में शामिल होंगे। सवाल है कि भाजपा में शामिल होने से उनको क्या मिलेगा और भाजपा को क्या फायदा होगा? गौरतलब है कि झारखंड में आदिवासी भाजपा से नाराज हैं। 2014 में गैर आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने के बाद ही यह हुआ कि संथालपरगना, छोटानागपुर और कोल्हान तीनों इलाकों के आदिवासी एक साथ झारखंड मुक्ति मोर्चा जेएमएम को वोट देने लगे। पूरे राज्य में आदिवासियों के लिए आरक्षित 28 विधानसभा सीटों में से भाजपा सिर्फ दो सीट जीत पाई। हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद भाजपा के विरोध में आदिवासी वोटों का एकीकरण और मजबूत हुआ। अगर अपने सम्मान का मुद्दा बना कर चम्पई अलग पार्टी बनाते तो कुछ आदिवासी वोट उनको मिल सकता था लेकिन भाजपा के साथ जाने को गद्दारी की तरह देखा जा रहा है। कोल्हान क्षेत्र की 15 सीटों में से भाजपा चम्पई के सहारे कुछ सीटें जीतने की उम्मीद कर रही है। लेकिन ऐस तब होता, जब चम्पई अकेले लड़ते। भाजपा से लड़ने पर उनकी पारंपरिक सरायकेला सीट भी खतरे में पड़ सकती है। 

नई पार्टी बना सकते हैं यशवंत सिन्हा 

भाजपा के दिग्गज नेता रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा झारखंड में भाजपा की संभावनाओं को पलीता लगा सकते हैं। पिछले दिनों उन्होंने अपने गृहनगर हजारीबाग में अपने समर्थकों के साथ एक बैठक में यह संकेत दिया है कि वे एक राजनीतिक पार्टी बना सकते हैं। कहा जा रहा है कि वे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर एक नई पार्टी बना कर झारखंड विधानसभा चुनाव में कुछ सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार सकते हैं। गौरतलब है कि झारखंड में इसी साल के अंत तक विधानसभा का चुनाव होना है। अगर यशवंत सिन्हा इस चुनाव में किसी भी रूप में उतरते हैं तो उसमें लोगों की दिलचस्पी होगी। लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने परदे के पीछे से भाजपा के खिलाफ अभियान चलाया था। हालांकि उनकी अपनी पारंपरिक हजारीबाग सीट पर भाजपा जीत गई लेकिन अगर पूरे राज्य की बात करें तो भाजपा को झटका लगा। वह आदिवासियों के लिए आरक्षित सभी पांच सीटों पर चुनाव हार गई। इस बार भी आदिवासी गोलबंदी झारखंड मुक्ति मोर्चा के समर्थन में दिख रही है। ऐसे में अगर अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर कोई पार्टी या संगठन बना कर यशवंत सिन्हा भाजपा विरोधी अभियान चलाते हैं तो भाजपा के कोर वोट का कुछ नुकसान जरूर कर सकते है। इसीलिए उनके अगले कदम पर सबकी नजर होगी। हालांकि राजनीतिक दल का पंजीयन करा कर चुनाव में उतरने के लिहाज से अब बहुत कम समय रह गया है। फिर भी उनकी सक्रियता 'इंडिया’ ब्लॉक को फायदा पहुंचा सकती है।

रेलवे बोर्ड के पहले दलित चेयरमैन

विपक्ष के दबाव में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को प्रतीकात्मक रूप से ही सही लेकिन कुछ ऐसे काम करना पड़ रहे हैं, जो पहले नहीं हुए। जैसे रेलवे बोर्ड मे जया सिन्हा के रूप में पहली महिला अध्यक्ष बनाने के बाद अब सरकार ने पहला दलित अध्यक्ष बनाया है। रेलवे सेवा के 1986 बैच के अधिकारी सतीश कुमार को रेलवे बोर्ड का चेयरमैन और सीईओ बनाया गया है। वे मैकेनिकल इंजीनियर हैं और उनका करियर शानदार रहा है। रेलवे सुरक्षा को लेकर उन्होंने बेहतरीन काम किए हैं। इस समय जब रेलवे की सुरक्षा को लेकर सबसे ज्यादा सवाल उठ रहे है तब उनको अध्यक्ष बना कर केंद्र सरकार ने एक मैसेज दिया है। मैसेज राजनीतिक रूप से भी दिया गया है। इस समय दलित विमर्श भारतीय राजनीति के केंद्र में है। एससी, एसटी के आरक्षण के वर्गीकरण से लेकर लैटरल एंट्री तक के मामले में आरक्षण का मुद्दा चर्चा में है। इसीलिए रेलवे बोर्ड के दलित चेयरमैन के जरिए बड़ा संदेश दिया गया है। यह भी संयोग है कि सतीश कुमार की नियुक्ति हरियाणा विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हुई है। हरियाणा में दलित वोट को लेकर खूब चर्चा छिड़ी है। भाजपा ने कांग्रेस के आंतरिक मामले में दखल देते हुए कहा है कि कांग्रेस कुमारी शैलजा को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित करके बताए कि वह दलितों की हितैषी है। शैलजा खुद भी इसके लिए पूरा जोर लगा रही है। लेकिन कांग्रेस अभी भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर सबसे ज्यादा भरोसा किए हुए है, इसलिए अभी शैलजा को शांत करा दिया गया है।

'आप’ का नया अभियान 'आएंगे केजरीवाल’

दिल्ली में सरकार चला रही आम आदमी पार्टी को उम्मीद है कि अब मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी जमानत मिल जाएगी। ईडी के मामले में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को, फिर ईडी और सीबीआई दोनों के मामले में मनीष सिसोदिया और के. कविता को जमानत मिलने के बाद अब अगला नंबर केजरीवाल का हो सकता है। उन्हें भी ईडी के मामले में तो जमानत मिल चुकी है सीबीआई के मामले में भी जमानत मिलना समय की बात है। इसीलिए पार्टी ने एक नया अभियान शुरू किया है-'केजरीवाल आएंगे’। यह सिर्फ केजरीवाल के जेल से छूटने के लिए नहीं है, बल्कि दिल्ली में वापसी के लिए भी है। गौरतलब है कि दिल्ली विधानसभा के चुनाव अगले साल फरवरी में होना है। पांच साल सरकार चलाने के बाद 2020 में जब आम आदमी पार्टी चुनाव लड़ने उतरी थी तब उसने 'लगे रहो केजरीवाल’ कैम्पेन चलाया था। इस अभियान का मकसद था कि केजरीवाल के राज की निरंतरता की जरुरत दिखाई जाए। इसका पार्टी को लाभ मिला। अब निरंतरता से ज्यादा यह नैरेटिव बनाया जा रहा है कि केजरीवाल को ताकत के दम पर रोकने और रास्ते से हटाने की कोशिश की जा रही है लेकिन वे ज्यादा मजबूत हैं और वापस आएंगे। इसलिए 'केजरीवाल आएंगे’ का अभियान शुरू हुआ है। 'लगे रहो केजरीवाल’ का स्लोगन हिंदी की सुपरहिट फिल्म 'लगे रहो मुन्नाभाई’ से लिया गया था तो 'केजरीवाल आएंगे’ का स्लोगन एक दूसरी हिट फिल्म 'करण अर्जुन’ से लिया गया है।

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