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पश्चिम बंगाल की मत्स्य-पालन सहकारी समितियां झेल रही हैं मौसम और ‘प्रभावशाली व्यक्तियों’ की दोहरी मार

यूनियन के नेताओं का कहना है कि 27 लाख से अधिक मछुआरों को, जिनमें से कई छोटे-मोटे काम-धंधे वाले हैं, गंभीर आजीविका के खतरे से जूझ रहे हैं क्योंकि पश्चिम बंगाल मत्स्य अधिनियम, 1984 का उल्लंघन कर सहकारी कानूनों को आसान बनाया जा रहा है।
पश्चिम बंगाल की मत्स्य-पालन सहकारी समितियां झेल रही हैं मौसम और ‘प्रभावशाली व्यक्तियों’ की दोहरी मार

कोलकाता: 14 जुलाई को तड़के सुबह के वक्त, एमवी हैमाबती नामक एक मछली पकड़ने वाली जाल नौका बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में मछली पकड़ने के बाद फ्रेजरगंज बंदरगाह पर वापस लौट रही थी। लेकिन जम्बूद्वीप द्वीप के समीप ख़राब मौसम के चलते जाल नौका पलट गई। नौका पर सवार 12 मछुआरों में से सिर्फ दो ही बच पाए, जिन्हें अन्य जाल नौकाओं के लोगों द्वारा बचा लिया गया। नौ मछुआरे जो नाव के निचले भाग में सो रहे थे उनकी मौत हो गई, जबकि एक अभी भी लापता है।

एक मछुआरे, सुकुमार दान ने न्यूज़क्लिक को बताया कि खाड़ी क्षेत्र में इस प्रकार की यात्रायें खतरे से खाली नहीं हैं, लेकिन लॉकडाउन के चलते अंतर्देशीय मछली पकड़ने पर लगाये गए प्रतिबंधों को देखते हुए यह राह काफी लुभाती है। मछली पकड़ने की यात्रा संपन्न होने पर जाल नौका के मालिक को आमतौर पर 40% हिस्सा मिलता है, जबकि 60% हिस्से को जाल नौका के 10-12 कर्मचारियों के बीच में विभाजित किया जाता है।

चक्रवात यास के बाद की स्थिति

मई 2021 में तट से टकराने वाले चक्रवात यास के बाद से इस क्षेत्र के मछुआरा समुदाय की आजीविका बुरी तरह से प्रभावित हुई है।

पश्चिम बंगाल मछुआरा संघ के महासचिव, देबाशीष बर्मन के अनुसार, चक्रवात और उसके फलस्वरूप निरंतर उच्च ज्वार की स्थिति बने रहने के कारण चार जिलों (पूर्वी मेदिनीपुर, दक्षिण 24 परगना, उत्तर 24 परगना और हावड़ा) में, कुलमिलाकर 31 प्रखण्ड प्रभावित हैं और एक लाख बीघे से भी अधिक जलाशयों में प्रचलित मछलीपालन का काम बाधित हुआ है।

बर्मन ने बताया कि चक्रवात के साथ करीब 300-400 करोड़ रूपये मूल्य की मछलियाँ बह गईं। 50,000 बीघे में फैले जलाशयों में खारे पानी के प्रवेश ने मछुआरा समुदाय की दुर्दशा को और भी अधिक बिगाड़कर रख दिया है। चक्रवात द्वारा पैदा की गई इस तबाही में लगभग 3,500 छोटी मछली पकड़ने वाली नावें नष्ट हो गईं और पांच जाल नौकाओं के साथ-साथ 400 से अधिक की संख्या में बड़े मछली पकड़ने वाले जाल बह गए थे।
पिछले एक साल में, जाल नौकाओं के पलटने की कम से कम छह घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें 32 मछुआरों की जान जा चुकी है। क्षेत्र में बाघों द्वारा मारे जाने सहित अन्य घटनाओं में बारह मछुआरों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है।

मत्स्य पालन क्षेत्र

कई विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले 10 वर्षों में, पश्चिम बंगाल में निचली जातियों के मछुआरों को मछली पकड़ने के विभिन्न निकायों से निकाल बाहर कर दिया गया है। वाम मोर्चे के 34 वर्षों के शासनकाल के तहत, अंतर्देशीय मछली पकड़ने के मामले में राज्य को सर्वोच्च स्थान हासिल था। हालाँकि, बंगाल में पारंपरिक मछुआरा समुदायों को इससे बाहर करने के साथ ही, महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने मछली उत्पादन के मामले में अपनी बढत हासिल कर ली है।

विशेषज्ञों का कहना है कि पश्चिम बंगाल में 27 लाख 67 हजार से अधिक मछुआरे आज अपनी आजीविका के खतरे से बेहद चिंतित हैं क्योंकि पश्चिम बंगाल मत्स्य अधिनियम, 1984 का उल्लंघन कर सहकारी कानूनों में ढील दी जा रही है। मछुआरों का आरोप है कि यह सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) से जुड़े “अनुभवहीन” व्यक्तियों के लिए इस क्षेत्र को खोलने का एक प्रयास है। उन्हें लगता है कि शायद इस क्षेत्र को कॉरपोरेट्स के लिए भी खोलने का प्रयास किया जा रहा है।

2020 तक, राज्य में 1,292 मछुआरा सहकारी समितियां थीं, जिनमें पारंपरिक मछुआरा समुदायों के साथ-साथ मछुआरों की 20 केंद्रीय सहकारी समितियां शामिल थीं, जो अब बेहद गंभीर संकट की स्थिति में हैं।

जहाँ तक राज्य-स्तरीय सहकारी समितियों का प्रश्न है, तो ऐसे आरोप हैं कि परंपरागत सहकारी समितियों को ठेका देने के बजाय सहकारी समितियों के रूप में खुद को पेश करने वाले लोगों को इन्हें आवंटित किया जा रहा है।

एक अंतर्देशीय मछुआरे मंगल प्रमाणिक के मुताबिक, राज्य में  “संघर्ष” लगातार जारी है, जिसमें माझी, मालो, बाउरी और प्रमाणिक जैसे पारंपरिक मछुआरा समुदाय, प्रभावशाली बाहरी लोगों के आगे लड़ाई हारते जा रहे हैं, जो असल में “सारे सत्तारूढ़ पार्टी के गुंडे” हैं।

विशेषज्ञ टीएमसी सरकार के साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्ववाली केंद्र सरकार द्वारा पारंपरिक मछुआरा समुदायों को इस क्षेत्र से बाहर निकाले जाने का मार्ग प्रशस्त करने वाली नवउदारवादी नीतियों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। इसके परिणामस्वरूप, मछली पालन से जुड़े लोगों को कृषि या निर्माण श्रमिकों के तौर पर काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है, और कुछ लोग तो केरल जैसे अन्य राज्यों में रोजगार की तलाश में पलायन करने के लिए मजबूर कर दिए गए हैं।

मछुआरा संघ और अखिल भारतीय मछुआरा एवं मत्स्यपालन श्रमिक संघ (एआईएफएफडबल्यूएफ), दक्षिण 24 परगना के अध्यक्ष राम दास का आरोप था: “जाल नौकाओं को समुद्री लुटेरों और राज्य के सत्तारूढ़ पार्टी के गुंडों की आपसी सांठगांठ के तहत नियमित रूप से लूटा जा रहा है। इनमें से अधिकाँश मवालियों ने उत्तरी और दक्षिण 24 परगना के दोनों जिलों और सुंदरबन के विशाल क्षेत्र में अपने संचालन के लिए अपने-अपने मुक्त क्षेत्र स्थापित कर रखे हैं।

दास ने कहा कि हाल के दिनों में लागू किये गए नियमों के कारण भी मछुआरा समुदाय को नुकसान पहुंचा है और इसके साथ ही पुराने मछुआरों और छोटी नावों के मालिकों के साथ कृषि योग्य भूमि का तटीय मत्स्यपालन के रूप में जलमग्न हो जाने से वे अब इन मत्स्यपालन खेतों में श्रमिकों के तौर पर काम करने के लिए मजबूर हैं, जिसने मामले को और भी जटिल बना दिया है।

उनका दावा है कि इनमें से अधिकाँश मत्स्यपालन खेतों को टीएमसी के बाहुबलियों द्वारा शुरू किया गया है, जिसमें मेदिनीपुर के तटीय इलाके और दक्षिण 24 परगना के मिनाखान क्षेत्र विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। एआईएफएफडबल्यूएफ ने मछुआरा समुदाय को उनके संघर्ष में समर्थन देने के लिए ‘जल निकायों को मछलीजाल मालिकों के लिए’ का नारा दिया है।

न्यूज़क्लिक के साथ अपनी बातचीत में, एआईएफएफडबल्यूएफ के प्रदेश अध्यक्ष तुषार घोष ने आरोप लगाया कि केंद्र और राज्य में क्रमशः भाजपा और टीएमसी सरकारें “मछुआरा विरोधी” नीतियों को बढ़ावा दे रही हैं और अपनी ही खुद की पार्टी के बाहुबलियों को जल निकायों के पुनर्वितरण के साथ-साथ सहकारी समितियों को भंग करने के लिए दोषी हैं।

कई मछुआरों और मत्स्यपालन से जुड़े श्रमिकों ने इंगित किया है कि सरकार की नीतियों की वजह से राज्य में मछली उत्पादन बेहद तेजी से गिरता जा रहा है। उनका कहना था कि जब कभी भी मछुआरों ने जल निकायों के अनुचित पुनर्वितरण के खिलाफ अपनी आवाज उठाने की कोशिश की है, प्रशासन और पुलिस ने एकजुट होकर मछुआरों के खिलाफ काम किया है और उनके खिलाफ “झूठी शिकायतें” दर्ज की गई हैं।

इस लेख को अंग्रेजी में इस लिंक के जरिय पढ़ा जा सकता है:

West Bengal: Once Top in Output, State Fishing Coops Face Twin Onslaught from Weather, ‘Influential Individuals’

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