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पत्रकार नेहा दीक्षित को मिलने वाली धमकियों का मतलब क्या है?

पिछले चार महीनों से उनका पीछा किया जा रहा है। अलग-अलग नंबरों से कुछ लोग उन्हें फोन कर परेशान कर रहे हैं, धमकियां दे रहे हैं।
नेहा दीक्षित

राजनीतिसामाजिक न्याय और लैंगिक समानता जैसे गंभीर मुद्दों पर बेबाक रिपोर्टिंग करने वाली स्वतंत्र पत्रकार नेहा दीक्षित को बीते कुछ समय से प्रताड़ित किया जा रहा है। नेहा के मुताबिक उन्हें फोन पर रेपएसिड अटैक और हत्या की धमकी मिल रही है। नेहा ने इसे लेकर वसंत कुंज पुलिस थाने में एक एफआईआर भी दर्ज करवाई है। फिलहाल पुलिस मामले की जांच कर रही है।

क्या है पूरा मामला?

नेहा दीक्षित पिछले एक दशक से ज्यादा समय से प्रिंटटीवी और ऑनलाइन मीडिया प्लेटफॉर्म्स के लिए रिपोर्टिंग करती रही हैं। उन्होंने 26 जनवरी के दिन एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिये बताया है कि पिछले चार महीनों से उनका पीछा किया जा रहा है। अलग-अलग नंबरों से कुछ लोग उन्हें फोन कर परेशान कर रहे हैं, धमकियां दे रहे हैं। नेहा के मुताबिक इन लोगों को ये तक पता होता है कि नेहा और उनके पार्टनर कहां हैं और क्या कर रहे हैं।

नेहा ने अपने फेसबुक पोस्ट पर लिखा, “सितंबर 2020 से मुझे फिजिकली स्टॉक किया जा रहा है। स्टॉकर मुझे रेपएसिड अटैक और मर्डर की धमकी देता है। दर्जनभर से ज्यादा फोन नंबरों से मेरे पास कॉल आ रहे हैं। तीन-चार अलग-अलग आवाज में मुझसे बात करते हैं। वो लोग मुझे और मेरे पार्टनर को जान से मारने की धमकी देते हैं। 25 जनवरी की रात करीब 9 बजे किसी ने मेरे घर में घुसने की कोशिश की। जब मैं चिल्लाई तो वो भाग गया। मैंने इसे लेकर पुलिस में शिकायत भी दर्ज करवाई है। पुलिस मामले की जांच कर रही है। ये बात मुझे यहां रखना जरूरी लगाक्योंकि एक तरफ हम ऑनलाइन ट्रोलिंग पर इतनी बात करते हैंजो होनी भी चाहिएवहीं दूसरी तरफ इस तरह की स्टॉकिंगफोन पर मिलने वाली धमकियों और हमलों पर बात होनी चाहिए।

नेहा ट्विटर पर अपने साथ हुए इस घटना का जिक्र करते हुए लिखती हैं, “हमें यानी पत्रकारों को अपने काम की वजह से ऑनलाइन मिलने वाली धमकियों से ज्यादा शारीरिक तौर पर मिलने वाली धमकियों के बारे में ध्यान देना चाहिए। हाल के दिनों में पत्रकारोंकलाकारोंफिल्ममेकर्स और अकैडमिशियन को भी उनके काम के लिए धमकी दी जा रही है।

वह आगे कहती हैं, “यह जानकारी जाहिर कर मैं यह नहीं बताना चाहती हूं कि यह सिर्फ मेरे साथ हुआ बल्कि इसके माध्यम से मैं सबको ध्यान में लाना चाहती हूं कि पत्रकारों के खिलाफ बढ़ती हिंसा के प्रति हम सब को सजग होने की जरूरत है और ऐसा करने वालों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।

कौन हैं नेहा दीक्षित?

नेहा दीक्षित अपने 13 साल के करियर में कई जाने-माने मीडिया संगठनों जैसे – अल-जज़ीराआउटलुक पत्रिकास्मिथसोनियन पत्रिकाविदेश नीतिद कारवांद वायर, द न्यू यॉर्क टाइम्स के साथ बतौर इंडीपेंडेंट जर्नलिस्ट काम करती रही हैं।

अपने अब तक के करियर में उन्होंने कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारिता पुरस्कार भी जीते हैं। हाल ही में उन्हें साल 2020 का वन यंग वर्ल्ड की जर्नलिस्ट ऑफ द ईयर अवॉर्ड मिला है। साल 2016 में नेहा को चमेली देवी जैन अवॉर्ड फॉर आउटस्टैंडिंग वुमन जर्नलिस्ट और साल 2019 में सीपीजे इंटरनेशनल प्रेस फ्रीडम अवॉर्ड भी मिल चुका है।

नेहा ने उत्तर प्रदेश और हरियाणा में हुई गैर-न्यायिक हत्याओं और गैर-क़ानूनी हिरासत, उत्तर प्रदेश में ‘एनकाउंटर राज’ पर कई खबरें लिखी हैं। वहीं इसके अलावा नेहा ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के कथित दुरुपयोग के बारे में भी रिपोर्टिंग की है। उनकी रिपोर्ट में बताया गया था कि किस तरह एक सियासी उद्देश्य के तहत सांप्रदायिक झड़पों के बाद गिरफ्तार किए गए लोगों में से मुस्लिमों पर रासुका लगाया गयाजबकि हिंदुओं के साथ ऐसा नहीं हुआ।

नेहा दीक्षित को अपने काम के लिए अवॉर्ड के साथ-साथ धमकियां भी मिली हैं। यहां तक का उनका पत्रकारिय सफर आसान नहीं रहा है। बकौल नेहाजब उन्होंने “2013 में मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा के दौरान यौन हिंसा और सामूहिक बलात्कार” नामक स्टोरी की थी तो उन्हें मारने और बलात्कार की धमकियों का भी सामना करना पड़ा था।

पत्रकारों पर बढ़ते हमले और रिपोर्टिंग का खतरा

गौरतलब है कि पत्रकारों को मिलने वाली धमकियां, स्टॉकिंग या उनके साथ हो रही हिंसा पर हमारा ध्यान तब तक नहीं जाता जब तक कोई बड़ी घटना सामने न आ जाए। कई बार खुद सरकारी तंत्र को भी पत्रकारों के खिलाफ खड़ा पाया जाता है।

गेटिंग अवे विद मर्डर’ रिपोर्ट के मुताबिकपत्रकारिता के पेशे से जुड़े लोगों के लिए अपना काम करना बीते पांच सालों में मुश्किल हुआ है। 2014 से 2019 के बीच पत्रकारों पर हुए हमलों के 198 गंभीर मामले दर्ज किए गए। इनमें 36 मामले तो सिर्फ 2019 में ही दर्ज किए गए।

2014 से 2019 के बीच 40 पत्रकारों की मौत हुईजिनमें से 21 पत्रकारों की हत्या उनकी पत्रकारिता की वजह से हुई। 2010 से लेकर अब तक 30 से अधिक पत्रकारों की मौत के मामले में सिर्फ तीन को दोषी ठहराया गया है। 

यूएन की सांस्कृतिक एजेंसी यूनेस्को के अनुसार वर्ष 2020 में पत्रकारों पर बल प्रयोग बहुत तेज़ी से बढ़ा और इस साल दुनिया भर में 21 ऐसे प्रदर्शन हुए जिनमें सरकारी सुरक्षा बलों ने पत्रकारों के अधिकारों का उल्लंघन किया। 

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