कश्मीर पर सुप्रीम कोर्ट कब सुनवाई करेगा
ऐसा दिखायी दे रहा है कि भारत के सुप्रीम कोर्ट और उसके चीफ़ जस्टिस को भारत के हिस्से वाले कश्मीर के बारे में न तो चिंता है, न यह उनकी प्राथमिकता सूची में है। जितनी दिलचस्पी और सक्रियता सुप्रीम कोर्ट अन्य मुद्दों पर दिखाता है, उसका सौवां हिस्सा भी कश्मीर के खाते में नहीं है।
क्या इसकी वजह यह है कि कश्मीर के हालात से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई करने से भारत सरकार को परेशानी हो सकती है? क्या इस वजह से सुप्रीम कोर्ट इन कश्मीर याचिकाओं पर ख़ामोश व निष्क्रिय बना हुआ है और केंद्र सरकार को बचा रहा है?
सुप्रीम कोर्ट में कश्मीर याचिकाएं अगस्त 2019 से धूल फ़ांक रही हैं। उनकी सुनवाई होना तो दूर, उन्हें सुनवाई के लिए अभी तक सूचीबद्ध भी नहीं किया गया है। शायद भारत सरकार की रज़ामंदी का इंतज़ार हो रहा है!
संदर्भ के लिए बता दिया जाये कि यह मुद्दा पिछले साल भारत के राष्ट्रपति पद के चुनाव में विपक्ष के साझा उम्मीदवार यशवंत सिन्हा ने भी उठाया था।
जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में 9 जुलाई 2022 को प्रेस कांफ्रेंस में यशवंत सिन्हा ने कहा था कि यह गहरे अफ़सोस और चिंता की बात है कि क़रीब तीन साल बीत जाने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट ने अभी तक इन याचिकाओं पर सुनवाई भी नहीं शुरू की। उनका कहना था कि संवैधानिक मामलों को लंबे समय तक लटकाये रखने और उनका निपटारा न किये जाने से अदालत की साख ख़त्म हो जाती है।
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सुप्रीम कोर्ट को जिस मामले में यशवंत सिन्हा कठघरे में खड़ा कर रहे थे, उसका संबंध संविधान के अनुच्छेद 370 को रद्द करने और इसे चुनौती देनेवाली याचिकाओं से है, जो सुप्रीम कोर्ट में अगस्त 2019 से सुनवाई का इंतज़ार कर रही हैं।
केंद्र की भाजपा सरकार ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को अगस्त 2019 में ख़त्म कर दिया और राज्य के रूप में जम्मू-कश्मीर के अस्तित्व को समाप्त करते हुए उसे दो केंद्र-शासित क्षेत्रों में बांट दिया। इन अलोकतांत्रिक, दमनकारी कार्रवाइयों को चुनौती देनेवाली याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल की गयीं, लेकिन सुनवाई के लिए उनका नंबर भी अभी तक नहीं आया है।
कश्मीर से जुड़ी याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की सायास ख़ामोशी और निष्क्रियता की तुलना अन्य मुद्दों पर उसकी बेहद मुखरता और सक्रियता से करिये। अभी 11 मई 2023 को दिल्ली सरकार व महाराष्ट्र सरकार से जुड़े मामलों पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आ गया। सप्रीम कोर्ट ने एक-डेढ़ साल के अंदर इन दोनों मामलों का निपटारा कर दिया।
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समयौन विवाह संबंध (same sex marriage) को क़ानूनी वैधता दिलाने के लिए दायर की गयी याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट बड़ी तेज़ी से, फटाफट तरीक़े से, सुनवाई कर रहा है। (यह स्वागतयोग्य तेज़ी कश्मीर पर नदारद है!)
ध्यान देने की बात है कि समयौन विवाह संबंध को क़ानूनी वैधता दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में पहली याचिका नवंबर 2022 में दाख़िल की गयी। इस पर और इसी से जुड़ी अन्य याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने 18 अप्रैल 2023 से सुनवाई भी शुरू कर दी। सिर्फ़ पांच महीने के अंदर!
सुप्रीम कोर्ट से पूछा जाना चाहिए कि अगस्त 2019 से सुनवाई का इंतजार कर रही कश्मीर याचिकाओं का नंबर कब आयेगा!
ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार का मूड भांप कर सुप्रीम कोर्ट सक्रिय और निष्क्रिय होता है।
(लेखक कवि और राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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