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क्यों मेवालाल के इस्तीफ़े के बाद भी खुश नहीं हैं भर्ती घोटाले के पीड़ित?

बिहार की नई सरकार में शिक्षा मंत्री बनाए गए मेवालाल चौधरी ने गुरुवार को पदभार ग्रहण करने के कुछ ही देर बाद अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है।
मेवालाल
Image Courtesy: BBC

“मेवालाल जी को तो मंत्री बनाना ही बड़ी गलती थी। क्या नीतीश जी को मालूम नहीं था कि वे सबौर कृषि विवि में हुए भर्ती घोटाले के आरोपी हैं। उनके खिलाफ राजभवन के आदेश पर न्यायिक जांच हुई थी और उसमें उन्हें दोषी भी पाया गया था। फिर उन पर एफआईआर हुआ। छह महीने तक वे फरार रहे। तब जाकर उन्हें जमानत मिली। अभी भी उनके खिलाफ चार्जशीट दायर करने का भागलपुर पुलिस का अनुरोध बिहार सरकार के गृह विभाग के पास पड़ा है। गृह विभाग कौन देखता है, मुख्यमंत्री ही न। फिर उन्होंने कैसे ऐसे व्यक्ति को शिक्षा मंत्री बना दिया था?”

यह टिप्पणी उस व्यक्ति की है, जिसका बेहतरीन एकेडमिक रिकॉर्ड के बावजूद सबौर कृषि विवि के पूर्व कुलपति मेवालाल चौधरी की वजह से कैरियर खराब हो गया। वही मेवालाल चौधरी जिन्होंने बिहार सरकार के शिक्षा विभाग का पद संभालने के तुरंत बाद आज इस्तीफा दे दिया है। जदयू के नेता इस बात को कुछ इस तरह प्रचारित कर रहे हैं कि यह नीतीश जी के क्राइम, करप्शन और कम्यूनलिज्म के साथ समझौता नहीं करने के स्टैंड का कमाल है।

इस भर्ती घोटाले की वजह से बेरोजगार रह जाने वाले एक अन्य अभ्यर्थी जो अभी एक छोटी सी कांट्रैक्ट की नौकरी कर रहे हैं, अपना नाम उजागर नहीं करना चाहते। वे कहते हैं-

“अपनी कैटोगरी में एकेडमिक्स में मुझे 80 में 60 नंबर मिले थे। मेरे सिलेक्शन तय था। मगर जब रिजल्ट आया तो पता चला कि अनुभव प्रमाणपत्र नहीं देने की वजह से मेरे 8 नंबर कट गये हैं और इंटरव्यू और पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन में मुझे 20 में सिर्फ दो नंबर मिले और मेरे सिलेक्शन नहीं हुआ। जबकि जिन लोगों को एकेडमिक्स में 37.57 नंबर आये थे, उनका सिलेक्शन हो गया, क्योंकि उन्हें इंटरव्यू और पावरप्वाइंट प्रेजेंटेशन में 20 में 20 नंबर मिले थे। यह सरासर धांधली थी। ऐसा कई आवेदकों के साथ हुआ था। हम सबने इसका विरोध किया। राजभवन से शिकायत की और उसके बाद सबौर कृषि विवि के उस वक्त के कुलपति मेवालाल चौधरी के खिलाफ जांच हुए, उन्हें दोषी भी पाया गया। हम उनके खिलाफ कार्रवाई और खुद को न्याय मिलने का इंतजार कर रहे थे। मगर पता चला कि मेवालाल जी को सजा के बदले इनाम मिल गया, वे हमारे राज्य के नये शिक्षामंत्री बन गये।”

वे जब इस रिपोर्टर को यह सब बता रहे थे तो उनकी आवाज में गुस्सा भरा था। वे कह रहे थे कि मीडिया में तो तब भी खूब बवाल मचा था, जब यह मामला सामने आया था। मगर क्या नतीजा निकला। क्या मुख्यमंत्री को मेवालाल जी के बारे में मालूम नहीं है? उस जांच रिपोर्ट में पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी और जीतनराम मांझी तक का जिक्र है, जिन्होंने तब विपक्ष में होने के कारण इस मामले को जोर-शोर से उठाया था। सबको असलियत मालूम है, इसके बावजूद हमलोगों का कैरियर तबाह करने के दोषी व्यक्ति को सजा के बदले पुरस्कार दे दिया गया। उस विभाग का मंत्री बना दिया गया, जिस पर पूरे राज्य की शिक्षा का, नयी पीढ़ी को आकार देने का दायित्व था।

अब जब मेवालाल चौधरी के इस्तीफे की खबर आये तो उन्होंने राहत की सांस ली है। मगर वे कहते हैं कि अभी लंबी लड़ाई है। उनके साथियों को मेवालाल जी का अपराध साबित करना है और अपने लिए लड़कर उस नौकरी को हासिल करना है, जिसे मेवालाल जी की वजह से उन्हें गंवाना पड़ा था। इसके लिए सबसे जरूरी कदम यह है कि बिहार सरकार पर उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने की इजाजत देने का दवाब डाला जाये।

उसी परीक्षा में शामिल राकेश कुमार अपना नाम उजागर करने से नहीं डर रहे। वे कहते हैं, क्या होगा, ज्यादा से ज्यादा जान चली जायेगी। दरअसल राकेश कुमार द्वारा मांगी गयी आरटीआई सूचना से ही यह मामला सामने आया था। तभी सबौर कृषि विवि में सहायक प्राध्यापक सह कनीय वैज्ञानिकों की भर्ती में हुई अनियमितता का मामला सामने आया था। फिर राजभवन के आदेश पर पूर्व जज जस्टिस सैयद मोहम्मद महफूज आलम द्वारा इस मामले की जांच की गयी।

राकेश कुमार ने अन्य आठ आवेदकों के साथ राजभवन को जानकारी दी थी कि 161 पदों पर हुई इस नियुक्ति में 26 अभ्यर्थी ऐसे थे, जिनके पास न नेट की डिग्री थी, न पीएचडी, न पब्लिकेशन, न कोई पूर्व अनुभव लिहाजा उन्हें एकेडमिक्स में बहुत कम नंबर आये थे। मगर उन्हें इंटरव्यू और पावरप्वाइंट प्रेजेंटेशन में 20 में 20 नंबर दिये गये और उनकी नियुक्ति हो गयी। जबकि जिन लोगों को एकेडमिक्स में अच्छे नंबर आये थे, उन्हें इंटरव्यू में 0.2 से 2 नंबर तक दिये गये और वे स्पर्धा से बाहर हो गये।

आरटीआई के जरिये उन्हें तमाम दस्तावेज उपलब्ध हो गये थे। वे दस्तावेज उन्होंने इस रिपोर्टर को भी उपलब्ध कराये हैं। आरटीआई के जरिये ही उन्हें यह जानकारी भी मिली कि सामान्य वर्ग के जिन 101 लोगों को इस भर्ती के तहत नियुक्त किया गया उनमें से सिर्फ 18 बिहार के मूल निवासी थे।

अपनी जांच रिपोर्ट के आखिरी पेज पर कंक्लूजन में जस्टिस महफूज आलम ने लिखा था कि तमाम संबंधित लोगों से बातचीत करने और संबंधित दस्तावेजों को देखने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि इस नियुक्ति में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी, पक्षपात, अंकों में फेर-बदल, ओवरराइटिंग आदि घपले हुए हैं। चूंकि उस वक्त डॉ मेवालाल चौधरी कुलपति भी थे और नियुक्ति बोर्ड के अध्यक्ष भी इसलिए मैं उन्हें इन तमाम गड़बड़ियों के लिए जिम्मेदार मानता हूं।

इस रिपोर्ट के 20 नवबंर, 2016 को सबमिट होने के बाद ऐसा लगने लगा था कि अब मेवालाल चौधरी के खिलाफ कार्रवाई होकर रहेगी। तत्कालीन राज्यपाल रामनाथ कोविद के आदेश पर उनके खिलाफ 21 फरवरी, 2017 को भागलपुर के सबौर थाने में एफआईआर दर्ज करायी गयी। उनके खिलाफ धारा 409, 420, 467, 468, 471 और 120 बी लगा था। उस वक्त मेवालाल तारापुर के विधायक थे, एफआईआर होने पर वे फरार हो गये। उनकी गिरफ्तारी के लिए पुलिस टीम ने छापेमारी शुरू कर दी थी। छह महीने बाद उनके वकील ने अग्रिम जमानत की याचिका दाखिल की और उन्हें जमानत मिल भी गयी।

इस बीच इस नियुक्ति घोटाले की जांच कर रही स्पेशल इन्वेस्टिगेटिंग टीम ने विवि के प्रोफेसर राजभवन वर्मा, अमित कुमार और मेवालाल चौधरी के भतीजे रमेश कुमार को गिरफ्तार भी कर लिया। एसआईटी ने कई नवनियुक्त प्रोफेसरों से पूछताछ भी की और फिर सितंबर, 2019 को भागलपुर के तत्कालीन एसएसपी आशीष भारती ने मेवालाल चौधरी के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने के लिए गृह विभाग से स्वीकृति मांगी, जो अभी तक नहीं मिल पायी है। इस मामले पर भागलपुर से लगातार नजर रखने वाले सीनियर रिपोर्टर आदित्यनाथ कहते हैं कि लगता है, यह मामला राजनीतिक दवाब का शिकार हो गया।

मेवालाल चौधरी के शिक्षा मंत्री बनने के एक बार फिर से यह मामला खबरों में आ गया। राजद के प्रमुख तेजस्वी यादव ने कहा कि मेवालाल को मंत्री बनाकर सरकार ने उन्हें भ्रष्टाचार का इनाम और लूट की खुली छूट दे दी है। कांग्रेस प्रवक्ता प्रेमचंद्र मिश्र ने पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी से पूछा कि क्या उनके मेवालाल के खिलाफ आक्रमक तेवर अभी भी जारी रहेंगे। क्या अब भी वे मेवालाल चौधरी को गिरफ्तार करने की मांग करेंगे? सीपीआई एमएल ने इस मुद्दे पर आंदोलन करने की भी बात कही।

इस बीच मेवालाल चौधरी एक और विवाद में फंसते नजर आये। पूर्व आइपीएस अमिताभ दास ने बिहार के डीजीपी को पत्र लिखकर उनके खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की। उन्होंने आरोप लगाया कि मेवालाल चौधरी की पत्नी नीता चौधरी जो पहले तारापुर की विधायक थीं, पिछले साल मई महीने में उनकी आग से जलने से संदिग्ध मौत हो गयी। इस मामले के तार भी सबौर कृषि विवि के नियुक्ति घोटाले से जुड़े हैं। इस मामले में भी अलग से जांच की जरूरत है।

लगातार आरोपों में घिरे नवनियुक्त शिक्षा मंत्री मेवालाल चौधरी की बचाव में मुख्यमंत्री या जदयू सामने नहीं आ रहा था। बुधवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जरूर उन्हें मिलने के लिए बुलाया। उसके बाद ऐसी खबरें आने लगी थीं कि शायद उनसे इस्तीफा मांगा गया है। मगर बाद में उन्होंने खुद कहा कि वे गुरुवार को पदभार ग्रहण करने वाले हैं और इस अफवाह पर विराम लग गया। आज गुरुवार को आखिरकार बढ़ते दबाव के बीच उन्होंने इस्तीफा दे दिया है। हालांकि इस इस्तीफे के बाद भी लोगों की नाराजगी कम नहीं हो रही, उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने की मांग की जा रही है।

दूसरी ओर उनके खिलाफ इन आरोपों की जांच कहां अटकी है, अभियोजन की इजाजत क्यों नहीं मिल रही, इस बारे में कोई खुलकर बोलने के लिए तैयार नहीं है। पिछले दिनों एक बड़े अखबार के रिपोर्टर ने जब पुलिस थाने से इस बारे में पूछताछ की तो उसके पास 22 मिनट के अंदर खुद को मंत्री जी के पीए कहने वाले एक व्यक्ति का फोन आ गया। अब इस इस्तीफे के बाद जहां जदयू चाहता है कि इसका क्रेडिट नीतीश कुमार को मिले और इस पूरे मामले का पटाक्षेप हो जाये। मगर विपक्ष इस मुद्दे को आसानी से छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। राजद नेता तेजस्वी यादव ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि नीतीश जी असली गुनहगार आप हैं, आपने मंत्री क्यों बनाया। आपका दोहरापन और नौटंकी अब नहीं चलेगी। 

(बिहार निवासी पुष्यमित्र स्वतंत्र लेखक और पत्रकार हैं। ) 

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