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यूपी से एमपी तक महिलाओं के शोषण-उत्पीड़न की कहानी एक सी क्यों लगती है?

बीते समय से कई फैसलों में सीएम शिवराज, सीएम योगी की कॉपी करते नज़र आ रहे हैं। हालांकि दोनों राज्यों में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है साथ ही ‘पीड़ित को प्रताड़ित’ करने का नया ट्रेंड भी नज़र आ रहा है।
महिलाओं के शोषण
Image courtesy: Feminism In India

“भोपाल रेप पीड़िता एक महीने बाद भी न्याय से कोसों दूर है क्योंकि भाजपा हमेशा पीड़िता को ही रेप का ज़िम्मेदार ठहराती है और कार्यवाही में ढील देती है जिससे अपराधियों का फ़ायदा होता है। यही है सरकार के ‘बेटी बचाओ’ का सच!”

ये ट्वीट कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और वायनाड से सांसद राहुल गांधी का है। राहुल ने जिस भोपाल पीड़िता का उल्लेख किया है उस घटना में पुलिस का रोल सुनकर आपको ना सिर्फ हैरानी होगी बल्कि यूपी पुलिस की भी याद आ जाएगी। यूपी से लेकर एमपी तक महिलाओँ के खिलाफ़ हिंसा का ग्राफ तो लगातार बढ़ ही रहा है साथ ही पीड़ित को प्रताड़ित करने का नया ट्रेंड भी उभरता नज़र आ रहा है।

क्या है पूरा मामला?

दैनिक भास्कर  की खबर के मुताबिक भोपाल में 24 साल की छात्रा से दुष्कर्म और हत्या के प्रयास करने के मामले में एक महीने बाद कोलार ट्रैफिक इंस्पेक्टर (टीआई) सुधीर अरजरिया पर कार्यवाही हुई। टीआई सुधीर पर आरोप है कि उन्होंने इस संगीन अपराध को मामूली छेड़छाड़ का मामला बताकर एफआईआर दर्ज की। मामले के तूल पकड़ने के बाद डीआईजी इरशाद वली ने टीआई की गलती मानते हुए उन्हें नोटिस जारी किया। डीआईजी ने एक पत्र में कहा कि थाना प्रभारी की ओर से लापरवाही बरती गई है। इसके अलावा जांच के लिए SIT यानी विशेष जांच दल भी गठित कर दिया गया है।

दुष्कर्म और हत्या की कोशिश, पुलिस ने केवल छेड़छाड़ और मारपीट बताया!

हैरानी की बात ये है की इस पूरे मामले में पीड़िता द्वारा शिकायत करने के बावजूद पुलिस ने आरोपी के खिलाफ केवल छेड़छाड़ और मारपीट की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया। जब मीडिया में खबर सामने आई तब जाकर एक महीने बाद हत्या के प्रयास और दुष्कर्म की धारा बढ़ाई गई।

“तू रेप कर ले...लेकिन पत्थर मत मार!”

पीड़िता ने अपनी आपबीती सुनाते हुए कहा, “एक पल लगा कि ये मुझे जिंदा नहीं छोड़ेगा, इसलिए जान बचाने के लिए गिड़गिड़ाई- तू रेप कर ले, नहीं चिल्लाऊंगी, न किसी को फोन करूंगी। लेकिन पत्थर मत मारो। थोड़ी सांस तो लेने दो। उसने पत्थर मारना बंद कर दिया, पांच मिनट तक शरीर से बदसलूकी करता रहा।”

पीड़िता आगे बताती है कि उनकी रीढ़ की हड्‌डी टूट चुकी थी। सिर में गहरी चोट थी, कई टाकें भी आए। डॉक्टरों ने रीढ़ में रॉड लगाई है। ऑपरेशन तो हो गया, लेकिन वो अब अपनी मर्जी से एक इंच भी नहीं हिल पाती। कमर के नीचे का बायां हिस्सा पेरेसिस बीमारी से सुन्न हो गया है। बायां पैर बिना रुके हिलता रहता है। कम से कम अगले छह महीने का हर एक सेकंड बिस्तर पर ही गुजारना है।

जितना दर्द उस दरिंदे ने दिया, उतना ही अब पुलिस गुमराह कर रही है!

इस मामले में पीड़िता ने पुलिस को लेकर जो बातें कहीं वो शायद उसके दर्द को दोगुना करने जैसा है। पीड़िता के मुताबिक 16 जनवरी को हुई इस घटना के बाद कोलार पुलिस 17 जनवरी को एम्स पहुंची। जानलेवा हमला और रेप की कोशिश को पुलिस सामान्य मारपीट का केस बताने लगी। अभी तक पुलिस न तो गिरफ्तार आरोपी का फोटो दिखा रही है, न ही आमना-सामना करा रही है।

पीड़िता के मुताबिक, “जितना दर्द उस दरिंदे ने दिया, उतना ही अब पुलिस गुमराह कर रही है। उसने दानिशकुंज चौराहे के पास एक जूस सेंटर पर लगे कैमरे से CCTV रिकॉर्ड जब्त किया, जिसमें वो दरिंदा सामने से धक्का देते हुए दिख रहा है।”

“पुलिस तीन दिन तक कहती रही कि आरोपी कोई परिचित ही होगा। लेकिन 20 दिन बाद अचानक उन्होंने बताया कि महाबली नगर के एक युवक ने गुनाह कबूल कर लिया है। उसे गिरफ्तार कर लिया, लेकिन आज तक उस शख्स को मुझे नहीं दिखाया। मैंने आरोपी की आवाज का ऑडियो मांगा, ताकि उसकी पहचान कर सकूं, लेकिन पुलिस ने ये भी नहीं दिया। ये जानलेवा हमला था, रेप की कोशिश थी, फिर भी पुलिस इसे सामान्य मारपीट का केस मान रही है।”

पहले भी उठ चुके हैं पुलिस-प्रशासन पर सवाल

ये सिर्फ एक मामला नहीं है, इससे पहले भी कई कई मामलों में एमपी पुलिस और प्रशासन सवालों के घेरे में रहा है। हाल ही में प्यारे मियां मामले में पीड़ित नाबालिग की मौत और फिर अंतिम संस्कार करने को लेकर हाथरस जैसी दूसरी घटना कहा गया।

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गौरतलब है कि बीजेपी में अभी योगी आदित्यनाथ सबसे तेज़ तर्रार और आला कमान की पहली पसंद वाले सीएम माने जा रहे है, उनकी हिंदुत्व के फायर ब्रांड नेता की छवि है। उनके काम करने का स्टाइल अलग माना जाता है। अब एमपी के सीएम शिवराज सिंह चौहान भी उन्हीं के रास्ते पर चल पड़े हैं। बीते समय से कई फैसलों में वे सीएम योगी की कॉपी करते नज़र आ रहे हैं। इन फैसलों से वह अपनी एक नई इमेज गढ़ रहे हैं। साथ ही अपनी पहचान के एक हिंदूवादी नेता के रूप में स्थापित कर रहे हैं।

योगी सरकार को फॉलो कर रहे हैं शिवराज मामा!

कथित लव जिहाद के खिलाफ कानून हो या पत्थरबाजों को सबक सिखाने की बात या फिर शहरों के नाम बदलने की कवायद सीएम शिवराज अब यही संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि वो सीएम योगी के नक्शे कदम पर चल पड़े हैं।

हालांकि महिलाओं की सुरक्षा को प्राथमिकता बताने वाली बीजेपी की योगी आदित्यनाथ सरकार और शिवराज सिंह चौहान सरकार में महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों का ग्राफ तेज़ी से बढ़ता जा रहा है। बीते दिनों एक के बाद एक बलात्कार और हत्या की घटनाओं ने दोनों राज्यों के कानून व्यवस्था पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

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आए दिन कोई न कोई बलात्कार या हत्या का मामला सुर्खियों में होता ही है, भले ही तुलनात्मक आंकड़ों के जरिए सरकार इसे बेहतर दिखाने की जुगत में लगी हो लेकिन जमीनी हालात कुछ और ही कहानी बयां करती है।

महिला शोषण–उत्पीड़न के भयावह आंकड़ें

अगर मध्यप्रदेश की बात करें, तो बलात्कार के मामलों में बीते कई सालों से एमपी देश के अव्वल राज्यों में बना रहा है, वहीं नाबालिग़ दलित लड़कियों के मामलों में भी इसका स्थान पहला है। ऐसे में सीएम शिवराज और उनकी कानून व्यवस्था पर सवाल उठना लाज़मी है।

एनसीआरबी यानी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की “भारत में अपराध-2019" रिपोर्ट बताती है कि दलित बच्चियों से रेप, छेड़छाड़ के मामले में मध्य प्रदेश देश में पहले नंबर पर है। इस साल राज्य में दलित बच्चियों के साथ रेप की 214 घटनाएं दर्ज हुई हैँ।

वहीं एनसीआरबी के अनुसार वर्ष 2018 के आकड़ों के मुताबिक़ प्रदेश में बलात्कार के 6,480 मामले दर्ज हुए थे जिनमें से 3,887 नाबालिग़ लड़कियों के थे। इनमें से छह साल से कम उम्र की 54 बच्चियां, छह से 12 साल की 142 बच्चियां, 12 से 16 साल की उम्र की 1,143 बालिकाएं और 16 से 18 साल की 1,502 लड़कियां शामिल हैं।

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उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के आंकड़े भी कम भयावह नहीं हैं। एनसीआरबी की बीते साल जनवरी में आई सालाना रिपोर्ट कहती है कि उत्तर प्रदेश में महिलाओं के प्रति अपराध पूरे देश में सबसे ज़्यादा हैं। पुलिस हर दो घंटे में बलात्कार का एक मामला दर्ज करती है, जबकि राज्य में हर 90 मिनट में एक बच्ची के ख़िलाफ़ अपराध की सूचना दी जाती है। देश में महिलाओं के ख़िलाफ़ 2018 में कुल 378,277 मामले हुए और अकेले यूपी में 59,445 मामले दर्ज किए गए। यानी देश के कुल महिलाओं के साथ किए गए अपराध का लगभग 15.8%।

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इसके अलावा प्रदेश में कुल रेप के 4,322 केस हुए। यानी हर दिन 11 से 12 रेप केस दर्ज हुए। ध्यान देने वाली बात ये है कि ये उन अपराधों पर तैयार की गई रिपोर्ट है जो थानों में दर्ज होते हैं। इन रिपोर्ट से कई ऐसे केस रह जाते हैं जिनकी थाने में कभी शिकायत ही दर्ज नहीं हो सकी। वहीं यूपी में दलितों के खिलाफ अपराधों में वर्ष 2014 से 2018 तक 47 प्रतिशत की भारी बढ़ोत्तरी हुई है। एनसीआरबी देश के गृह मंत्रालय के अंतर्गत आता है।

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