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कई एनजीओ ने राष्ट्रपति से एफसीआरए संशोधन विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं करने का अनुरोध क्यों किया है?

संसद ने विदेशी अंशदान विनियमन (एफसीआरए) संशोधन विधेयक को बुधवार को पारित कर दिया है। इसमें प्रस्ताव है कि किसी भी एनजीओ के पदाधिकारियों को एफसीआरए लाइसेंस के रजिस्ट्रेशन के लिए आधार नंबर देना अनिवार्य होगा। साथ ही सरकारी कर्मचारियों के विदेश से धन हासिल करने पर रोक होगी।
कई एनजीओ ने राष्ट्रपति से एफसीआरए संशोधन विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं करने का अनुरोध क्यों किया है?

दिल्ली: कई गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) ने बृहस्पतिवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से अपील की कि वह विदेशी अंशदान विनियमन (एफसीआरए) संशोधन विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं करें और विचार विमर्श के लिए इसे संसदीय समिति के पास भेज दें।

गौरतलब है कि संसद ने एफसीआरए में संशोधन के लिए बुधवार को विधेयक पारित किया था जिसमें पंजीकरण के लिए गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) के पदाधिकारियों की आधार संख्या जमा करना अनिवार्य किया गया है।

सरकार का कहना है कि प्रस्तावित कानून एनजीओ के विरोध में नहीं है और इसका उद्देश्य पारदर्शिता लाना है। आपको बता दें कि यह कानून 2010 में बना था और तब से इसमें तीन बार 2012, 2015 और 2019 में बदलाव लाया जा चुका है।

गौरतलब कि संसद ने बुधवार को विदेशी अंशदान विनियमन संशोधन विधेयक 2020 को मंजूरी दे दी। राज्यसभा में यह विधेयक विपक्षी सांसदों की गैरमौजूदगी में पारित हुआ है। जबकि लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी थी।

इस विधेयक के प्रावधान के अनुसार किसी एनजीओ के पंजीकरण के लिए उसके पदाधिकारियों का आधार देना होगा। साथ ही सरकारी कर्मचारियों के विदेश से धन हासिल करने पर रोक होगी। इस संशोधन विधेयक में एनजीओ के प्रशासनिक खर्च को मौजूदा 50 प्रतिशत से घटाकर 20 प्रतिशत करने का प्रस्ताव किया गया है।

विपक्षी दल और एनजीओ कर रहे हैं विरोध

लोकसभा में कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने इस बिल का विरोध किया। उन्होंने कहा कि एफसीआरए के प्रावधानों को सख्त बनाने की बजाय लचीला बनाया जाना चाहिए। उनका कहना था कि पिछले 6 साल में इसका इस्तेमाल उन गैर सरकारी संगठनों के खिलाफ किया जा रहा है जो सरकार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं।

मनीष तिवारी ने कहा कि 2010-2019 के दौरान 19,000 से अधिक एफसीआरए कैसिंल किए गए लेकिन सरकार जवाब देने में विफल रही कि कितने मामले अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचे।

तृणमूल कांग्रेस के सौगत राय ने कहा कि यह कुछ संगठनों को एफसीआरए की प्राप्ति रोकने का प्रयास है। कुछ लोग ही विदेशी अनुदान ले सकें, ऐसा प्रयास है। यह अल्पसंख्यकों के लिये ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि इसे विनियमित करने की बजाए नियमन से मुक्त करना चाहिए।

कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि कभी-कभी ऐसा लगता है कि सत्तापक्ष की बजाय विपक्ष से सवाल किया जाता है। उन्होंने कहा कि यह विधेयक विपक्ष और विरोधियों की आवाज दबाने का प्रयास है।

भारतीय एनजीओ की शीर्ष इकाई ‘वॉलंटरी एक्शन नेटवर्क इंडिया’  (वानी) से जुड़े संगठनों ने एक बयान में राष्ट्रपति से विधेयक पर हस्ताक्षर न करने तथा इसे विचार के लिए संसदीय समिति को वापस भेजने का आग्रह किया है।

वानी ने इसे देश भर में विकास, राहत, वैज्ञानिक शोध और जनसेवा जैसे कामकाज में लगे एनजीओ को खत्म करने वाला कदम बताते हुए कहा कि इस बिल से एनजीओ समुदाय के लिए काम करना मुश्किल हो जाएगा। एनजीओ का कहना है कि बिल में मान लिया गया है कि जो भी एनजीओ विदेश से पैसा ले रहे हैं वे गलत हैं, जबतक वे खुद को सही साबित न कर दें।

एनजीओ पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएफआई) की कार्यकारी निदेशक पूनम मुटरेजा ने कहा, ‘हम राष्ट्रपति से अनुरोध करते हैं वह इस संशोधन विधेयक को वापस भेज दें और इसपर विचार के लिए विशेष समिति बनाई जाए।’

इम्पल्स एनजीओ नेटवर्क की संस्थापक हसीना खारबीह ने कहा, ‘लोकतांत्रिक भारत में, एफसीआरए विधेयक, 2020 गैर सरकारी संगठनों के लिए अनुकूल नहीं है। यह संशोधन उनकी स्वतंत्रता को बाधित करेगा और उसके जमीनी काम पर नियंत्रण लगाएगा।’

बता दें कि एफसीआरए के तहत पंजीकृत एनजीओ को 2016-17 और 2018-19 के बीच 58,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का विदेशी कोष मिला है। देश में अभी करीब 22,400 एनजीओ एफसीआरए के तहत पंजीकृत हैं।

क्या कहना है सरकार का?

राज्यसभा में विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा कि यह विधेयक किसी गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) के खिलाफ नहीं है बल्कि उन एनजीओ के हित में है जो पूरी पारदर्शिता के साथ अपना काम अच्छे तरीके से कर रहे हैं।

उन्होंने इस आशंका को भी दूर करने का प्रयास किया कि यह किसी भी संगठन को भयभीत करने के लिए है। उन्होंने कहा कि यह विधेयक विदेशों से मिलने वाले अंशदान के दुरूपयोग और विचलन को रोकने के लिये है।

उन्होंने कहा कि विदेशी अंशदान विनियमन कानून (एफसीआरए) एक राष्ट्रीय और आंतरिक सुरक्षा कानून है और यह सुनिश्चित करने के लिये है कि विदेशी धन भारत के सार्वजनिक, राजनीतिक एवं सामाजिक विमर्श पर हावी नहीं हो।

नित्यानंद राय ने कहा कि विदेशी अंशदान में पूरी पारदर्शिता जरूरी है। एनजीओ को जिस कार्य के लिये पैसा मिले, वह उसी कार्य में खर्च होना चाहिए। उन्होंने इस विधेयक को देश की आंतरिक सुरक्षा के लिहाज से अहम बताया।

उन्होंने कहा कि ऐसे उदाहरण हैं जिनमें एनजीओ ने अपने खर्च का ब्यौरा ठीक तरीके से नहीं दिया। उन्होंने कहा कि इसके तहत एनजीओ को विदेशी अनुदान के संबंध में दिल्ली में भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) में खाता खोलना होगा। हालांकि इसके लिए उन्हें दिल्ली आने की जरूरत नहीं होगी और अपने आसपास की किसी भी शाखा के जरिए यह खाता खोला जा सकता है।

समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ 

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