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क्यों मज़दूरों और डॉक्टरों के मौत संबंधी आंकड़े छिपाना लोकतांत्रिक देश के लिए शर्मनाक है?

सरकार ने संसद में कहा है कि उसके पास लॉकडाउन के दौरान मारे गए मज़दूरों का आंकड़ा नहीं है। साथ ही कोरोना के चलते जान गंवाने वालों या इस वायरस से संक्रमित होने वाले डॉक्टरों व अन्य मेडिकल स्टाफ का डाटा भी नहीं है।
कोरोना वायरस

देश की नरेंद्र मोदी सरकार इस समय कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई लड़ने का दावा कर रही है, लेकिन यह लड़ाई कितनी अक्षम तरीके से लड़ी जा रही है इसका भी सबूत वह दे रही है। सरकार का कहना है कि उसके पास लॉकडाउन के दौरान मारे गए मज़दूरों का आंकड़ा नहीं है। साथ ही कोरोना के चलते जान गंवाने वालों या इस वायरस से संक्रमित होने वाले अपने डॉक्टरों व अन्य मेडिकल स्टाफ का डाटा भी नहीं है।

गौरतलब है कि जिस दौर में देश का मज़दूर तबका सबसे ज्यादा लाचारी और जोखिम की स्थिति में हो उस समय उनकी समस्याओं को लेकर गैरजिम्मेदार और संवेदनहीन रवैया रखना एक परिपक्व और न्याय पर आधारित लोकतंत्र की पहचान नहीं हो सकती है।

इसी तरह हमें यह याद रखना होगा कि स्वास्थ्यकर्मी ही कोरोना से लड़ने वाले असली योद्धा हैं। इस महामारी से हमारी लड़ाई का अंतिम नतीजा उनके मनोबल और कौशल से ही निकलेगा। लेकिन हमारी सरकार उनका ही मनोबल गिराने का काम कर रही है।

साथ ही आपको बता दें कि यह पूरा मसला किसी प्रेस कांफ्रेंस या टीवी डिबेट में नही उठा है। लॉकडाउन के बहुचर्चित फैसले के बाद आयोजित संसद के पहले सत्र में प्रवासी मज़दूरों और स्वास्थ्यकर्मियों का यह मसला स्वाभाविक रूप से उठा।

लेकिन सरकार का जवाब चौंकाने वाला और शर्मनाक रहा। लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में श्रम एवं रोजगार मंत्री संतोष गंगवार ने कहा है कि लॉकडाउन के दौरान मारे गए मज़दूरों के संदर्भ में आंकड़ा सरकार के पास उपलब्ध नहीं है। संगीता कुमारी सिंह देव, भोला सिंह, कलानिधि वीरस्वामी तथा कुछ अन्य सदस्यों ने सवाल किया था कि क्या लॉकडाउन के दौरान हजारों मज़दूरों की मौत हो गई और अगर ऐसा है तो उसका विवरण दें।

हालांकि लिखित जवाब में सरकार ने माना कि उस दौरान एक करोड़ से ज्यादा मज़दूर देश के अलग-अलग हिस्सों से बदहवासी के आलम में अपने अपने गांवों की ओर चल पड़े थे। मगर इसके साथ ही उसका कहना है कि इस यात्रा में जान गंवाने वाले मज़दूरों का कोई आंकड़ा उसके पास नहीं है, इसलिए उन मृतकों के परिजनों को मुआवजा देने का सवाल ही नहीं उठता।

यह भी गौर करने की बात है कि सरकार ने अचानक शुरू हुए उस पलायन के लिए फेक न्यूज को जिम्मेदार ठहराया है। यानी सरकार बिना किसी तैयारी और पूर्वसूचना के अचानक देश भर में पूर्ण लॉकडाउन लागू करने के अपने तुगलगी फैसले का बचाव करना बंद नहीं कर रही है। जिस फैसले के चलते ही ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति पैदा हुई कि करोड़ों मज़दूर सड़क पर भूखे और प्यासे निकल पड़े।  

बाद में नैतिक दबाव की स्थिति में जो श्रमिक स्पेशल ट्रेनें सरकार ने चलवाईं वे भी कुव्यवस्थाओं की शिकार रहीं। बहुत सी मौतें ट्रेन में भूख-प्यास और असह्य गर्मी के चलते हुईं जबकि कई मौतें सड़क और ट्रेन दुर्घटनाओं में हुईं। बड़ी संख्या में ये मौतें अखबारों और न्यूज़ चैनलों में रिपोर्ट हुई लेकिन सरकार ने इन्हें इकट्ठा करना जरूरी नहीं समझा।

इसके अलावा सरकार की मंशा पर भी सवाल उठ रहे हैं। वेबसाइट द वायर के मुताबिक लॉकडाउन में श्रमिकों के मौत का आंकड़ा सरकार ने इकट्ठा किया, फ़िर भी संसद को बताने से इनकार कर दिया है। द वायर द्वारा भारतीय रेल के 18 ज़ोन में दायर आरटीआई आवेदनों के तहत पता चला है कि श्रमिक ट्रेनों से यात्रा करने वाले कम से कम 80 प्रवासी मज़दूरों की मौत हुई है।

आपको बता दें कि इससे पहले स्वतंत्र शोधकर्ताओं के समूह द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक 19 मार्च से लेकर 04 जुलाई तक मौत के 971 ऐसे मामले सामने आए हैं, जो प्रत्यक्ष तौर पर कोरोना वायरस संक्रमण से जुड़े नहीं हैं, लेकिन इससे जुड़ीं अन्य समस्याएं इनका कारण है। इस समूह में पब्लिक इंटरेस्ट टेक्नोलॉजिस्ट थेजेश जीएन, सामाजिक कार्यकर्ता और रिसर्चर कनिका शर्मा और जिंदल ग्लोबल स्कूल ऑफ लॉ में सहायक प्रोफेसर अमन शामिल हैं।

इन्होंने विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स के जरिये इकट्ठा की गईं सूचनाओं के हवाले से बताया है कि 19 मार्च से लेकर 4 जुलाई के बीच 971 मौतें हुईं, जो लॉकडाउन से जुड़ी हैं। इसमें सबसे ज्यादा 216 मौतें भुखमरी और वित्तीय संकट के कारण हुई हैं। वहीं, लॉकडाउन के दौरान जब लोग पैदल अपने घरों को लौट रहे थे तो विभिन्न सड़क दुर्घटनाओं में 209 प्रवासी मज़दूरों की मौत हो गई। यानी प्रवासी मज़दूरों के बारे में जानकारी जुटाना कोई कठिन काम नहीं माना जा सकता। लेकिन सरकार ने श्रमिकों के प्रति अपनी जवाबदेही और जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लिया है।

वैसे ऐसा भी नहीं है कि आंकड़े अब नहीं जुटाए जा सकते हैं। अखबारों में खबरें मौजूद हैं। रेलवे के पास उसके रिकॉर्ड हैं। अस्पताल, पुलिस के पास जानकारी है। ग्राम पंचायतों और स्थानीय निकायों की मदद ली जा सकती है। कारखाना मालिकों, व्यवसायियों से विवरण मांगे जा सकते हैं।

दरअसल सरकार को अपनी जिम्मेदारी से भागना नहीं चाहिए। गैरजिम्मेदाराना तरीके से लगाए गए लॉकडाउन के दौरान मारे गए मज़दूरों के परिवार वालों का हक है कि सरकार उन्हें सहायता दे। उन्होंने अपने परिवार के कमाने वाले सदस्यों की जान गंवाई है। मुआवजा मिलने से भी उनका दुख कम नहीं होगा। लेकिन यह आगे के जीवन में उनकी सहायता करेगा। इसके लिए आंकड़े नहीं होने जैसे बहाने सरकार को नहीं बनाने चाहिए।

वैसे इस मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी का कटाक्ष बिल्कुल सटीक है कि श्रमिकों की मौत होना सभी ने देखा, लेकिन सरकार को इसकी खबर नहीं हुई। कांग्रेस नेता ने शायराना अंदाज में तंज किया है, ‘तुमने ना गिना तो क्या मौत ना हुई? हां मगर दुख है सरकार पे असर ना हुआ, उनका मरना देखा ज़माने ने, एक मोदी सरकार है जिसे ख़बर ना हुई।’

जान गंवाने वाले ‘कोरोना वॉरियर्स’ का भी डाटा नहीं

इसी तरह राज्यसभा में 15 सितंबर को केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने कहा था कि उसके पास कोरोना के चलते जान गंवाने वालों या इस वायरस से संक्रमित होने वाले डॉक्टरों व अन्य मेडिकल स्टाफ का डाटा नहीं है।

अब इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने केंद्र सरकार के इस बयान पर नाराजगी जताई है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने उन 382 डॉक्टर की लिस्ट जारी की जिनकी जान कोरोना के चलते गई। जबकि इस बीमारी से अब तक 2,238 डॉक्टर संक्रमित हो चुके हैं।

साथ ही इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने प्रेस रिलीज जारी की और कहा, 'अगर सरकार कोरोना संक्रमित होने वाले डॉक्टर और हेल्थ केयर वर्कर का डेटा नहीं रखती और यह आंकड़े नहीं रखती कि उनमें से कितनों ने अपनी जान इस वैश्विक महामारी के चलते कुर्बान की तो वह महामारी एक्ट 1897 और डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट लागू करने का नैतिक अधिकार खो देती है। इससे इस पाखंड का का भी पर्दाफाश होता है कि एक तरफ इनको कोरोना वॉरियर कहा जाता है और दूसरी तरफ इनके और इनके परिवार को शहीद का दर्जा और फायदे देने से मना किया जाता है।'

एसोसिएशन ने आगे कहा, 'बॉर्डर पर लड़ने वाले हमारे बहादुर सैनिक अपनी जान खतरे में डालकर दुश्मन से लड़ते हैं लेकिन कोई भी गोली अपने घर नहीं लाता और अपने परिवार के साथ साझा करता, लेकिन डॉक्टर्स और हेल्थ केयर वर्कर राष्ट्रीय कर्तव्य का पालन करते हुए न सिर्फ खुद संक्रमित होते हैं बल्कि संक्रमण अपने घर लाकर परिवार और बच्चों को देते हैं।'

एसोसिएशन आगे कहती है, 'केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने कहा कि पब्लिक हेल्थ और हॉस्पिटल राज्यों के तहत आते हैं इसलिए इंश्योरेंस कंपनसेशन का डाटा केंद्र सरकार के पास नहीं है। यह कर्तव्य का त्याग और राष्ट्रीय नायकों का अपमान है जो अपने लोगों के साथ खड़े रहे।'

आईएमए ने कहा कि किसी भी देश में कोरोना संक्रमण से इतने डॉक्टरों की जान नहीं गई, जितने डॉक्टरों की भारत में गई है। आपको बता दें कि भारत में कोरोना वायरस संक्रमण तेजी से फैल रहा है और कुल संक्रमितों की संख्‍या 50 लाख के पार पहुंच गई है।

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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