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पेगासस की जांच कराने से क्यों बच रही है सरकार, क्या इजराइल की NSO खुद ही कर देगी मामले का पर्दाफाश?

भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी के मुताबिक एनएसओ बहुत जल्द ही उन देशों के नामों की सूची भी जारी करने वाली है, जिनकी सरकारों ने पेगासस जासूसी सॉफ्टवेयर खरीदा है। उधर फ्रांस में भी इस बात की जांच हो रही है और खुद पेगासस ने भी अपने कई क्लांयट को इसके गलत इस्तेमाल के वजह से प्रतिबंधित कर दिया है।
पेगासस

पेगासस स्पाईवेयर से जासूसी के मामले में केंद्र सरकार यह बताने के लिए तैयार नहीं है कि उसने जासूसी कराई है या नहीं। वह यह भी नहीं बताना चाहती है उसने इजराइल की एजेंसी एनएसओ से पेगासस स्पाईवेयर खरीदा है या नहीं। उसने इन दोनों सवालों का संसद में भी कोई जवाब नहीं दिया है और अब सुप्रीम कोर्ट में भी वह राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ लेकर इस सवाल से बचने की कोशिश करती दिख रही है।

गौरतलब है कि संसद के मॉनसून सत्र में विपक्ष पूरे समय इस मामले पर बहस कराने की मांग करता रहा, लेकिन सरकार इसके लिए तैयार नहीं हुई। पूरा सत्र शोर-शराबे और हंगामे की भेंट चढ़ गया। लोकसभा में तो शोर-शराबे के बीच सरकार ने अपने सुविधाजनक बहुमत के जरिए तमाम विधेयकों को बिना बहस के ही पारित करा लिया। राज्यसभा में भी उसने ऐसा ही किया लेकिन जब बीमा क्षेत्र को निजी हाथों में सौंपने वाले विधेयक को पारित कराने में उसे दिक्कत आई तो उसने विपक्षी सदस्यों को चुप कराने और सदन से बाहर निकालने में मार्शलों और मार्शल की वर्दी में कथित तौर पर बाहरी तत्वों की मदद लेने से भी गुरेज नहीं किया।

बहरहाल सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने पेगासस स्पाईवेयर से जासूसी के मामले में आधा-अधूरा हलफनामा ही पेश किया है। इस पर पहले तो अदालत ने भी हैरानी जताई और प्रधान न्यायाधीश नाथुलापति वेंकट रमण ने कहा कि वे उम्मीद कर रहे थे कि सरकार विस्तृत हलफनामा देगी, लेकिन सरकार ने सीमित हलफनामा दिया। उसके बाद सरकार के कानूनी अधिकारियों ने कहा कि इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला जुड़ा है, लिहाजा विस्तृत हलफनामा नहीं दिया जा सकता। इस पर अगली सुनवाई में प्रधान न्यायाधीश की अगुवाई वाली तीन जजों की पीठ ने कहा है कि सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों की जानकारी देने की जरुरत नहीं है।

कुल मिलाकर सर्वोच्च अदालत में राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला ऐसा बन गया कि याचिका दायर करने वाले पत्रकारों एन. राम और शशि कुमार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने भी कहा कि सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी बातों की जानकारी देने की जरूरत नहीं है।

अब सवाल है कि पेगासस से राष्ट्रीय सुरक्षा का क्या मामला जुड़ा है? सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ पत्रकार एन. राम और शशि कुमार की याचिका सहित कुल नौ याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें इस मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के किसी मौजूदा या सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता में विशेष जांच समिति बनाने की मांग की गई है। किसी भी याचिका में राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े किसी मामले का खुलासा करने को नहीं कहा गया है।

अगर सुप्रीम कोर्ट का कोई मौजूदा या सेवानिवृत्त जज मामले की जांच करता है और जांच के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी कोई बात सामने आती है तो उसे सार्वजनिक करने से रोका जा सकता है। लेकिन पेगासस से जासूसी हुई या नहीं, इसकी जांच कराने में राष्ट्रीय सुरक्षा का क्या मामला है और अगर राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है, जैसा कि सरकार कह रही है तो यह भी अपने आप में इस बात का सबूत है कि सरकार ने जासूसी कराई है।

वैसे सरकार भले ही अपने हलफनामे में यह न बताए कि उसने जासूसी कराई है या नहीं, वह यह भी न बताए कि उसने इजराइल की एजेंसी एनएसओ से पेगासस स्पाईवेयर खरीदा है या नहीं, इससे अब कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला है। यह बात तो देर-सवेर वैसे भी आधिकारिक तौर पर जाहिर होनी ही है क्योंकि इजराइल की सरकार इस बात की जांच कर रही है कि इजराइली प्रौद्योगिकी कंपनी एनएसओ ने किन-किन देशों को पेगासस स्पाईवेयर बेचा है। भारतीय जनता पार्टी के सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी के मुताबिक एनएसओ बहुत जल्द ही उन देशों के नामों की सूची भी जारी करने वाली है, जिनकी सरकारों ने पेगासस जासूसी सॉफ्टवेयर खरीदा है। उधर फ्रांस में भी इस बात की जांच हो रही है और खुद पेगासस ने भी अपने कई क्लांयट को इसके गलत इस्तेमाल के वजह से प्रतिबंधित कर दिया है।

बहरहाल, अगर सरकार ने पेगासस नहीं खरीदा है और उससे किसी की जासूसी नहीं कराई है तो यह कहने में उसे कोई हिचक नहीं होनी चाहिए। जैसे रक्षा मंत्रालय ने संसद में कह दिया कि उसने एनएसओ के साथ कोई लेन-देन नहीं किया है। जैसे रक्षा मंत्रालय ने सफाई दी है, इसी तरह बाकी सभी खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों से जानकारी लेकर केंद्र सरकार को भी स्पष्ट कर देना चाहिए कि उसने पेगासस स्पाईवेयर नहीं खरीदा है।

लेकिन इतनी सी कवायद करने के बजाय अगर सरकार कह रही है कि इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है तो इसका मतलब साफ है कि सरकार कुछ छिपाना चाह रही है। फिर भी सरकार इतना तो बताना ही चाहिए कि उसने राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कुछ लोगों की जासूसी कराई है, लेकिन वह यह भी नहीं बता रही है। उसके यह स्वीकार करने में मुश्किल यह है कि फिर विपक्ष के नेताओं, अपने कुछ मंत्रियों, अधिकारियों, सुप्रीम कोर्ट के जजों, पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से देश की सुरक्षा को कैसा खतरा था, जो उनके फोन की जासूसी कराई गई? जाहिर है कि सरकार एक सच को छिपाने के लिए नए-नए झूठ और बहाने गढ़ रही है।

सरकार की ओर से अभी इस सवाल का भी कोई जवाब नहीं आया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार परिषद के सचिवालय का जो बजट 2014-15 में 44 करोड़ रुपए और 2015-16 में 33 करोड़ रुपए था, वह 2017-18 में बढा कर 333 करोड़ रुपए क्यों कर दिया गया और यह पैसा कहां खर्च किया गया?

सुब्रमण्यम स्वामी के मुताबिक इस बजट में 300 करोड़ रुपए का यह आबंटन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने साइबर सिक्योरिटी के लिए कराया था। उन्होंने सरकार से सवाल किया है कि वह बताए कि ये 300 करोड़ रुपए कहां खर्च हुए? गौरतलब है कि 2018-19 के साल में ही भारत में पेगासस से जासूसी कराने का खुलासा हुआ था।

केंद्र सरकार की ओर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए गए हलफनामे में कहा गया है कि कुछ निहित स्वार्थों द्वारा इस मामले में शुरू किए गए किसी भी गलत विमर्श पर विराम लगाने और सभी पहलुओं की जांच करने के उद्देश्य से विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया जाएगा। सवाल है कि जब सरकार ने जांच कराने की बात सुप्रीम कोर्ट में कह रही है तो उसने यही बात संसद में क्यों नहीं कही? संसद में विपक्ष भी तो यही मांग कर रहा था।

जाहिर है कि सरकार चाहती ही नहीं थी कि संसद सुचारू रूप से चले। वह चाहती थी कि संसद में हंगामा होता रहे ताकि वह अपनी मनमानी के विधेयकों को बिना बहस के पारित कराने की औपचारिकता पूरी कर सके। संसद में वह इस मामले में किसी भी तरह के सवालों से बचना चाहती थी और सुप्रीम कोर्ट में भी बचना चाहती है, इसलिए वह विशेषज्ञों की टीम से जांच कराने की बात कर रही है। ऐसे में साफ है कि अगर वह अब किसी तरह की जांच कराती भी है तो वह जांच पूरे मामले पर लीपा-पोती कर उसे रफा-दफा करने की कवायद भर होगी।

उपरोक्त लेख में निहित विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं

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