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भारत जोड़ो यात्रा का समर्थन क्यों किया जाये

यह यात्रा भारत को फिर से हासिल करने, भारत को नये सिरे से बनाने की कोशिश है। इसमें कितनी क़ामयाबी मिलती है, इसे अभी देखना है।
Bharat Jodo Yatra
तस्वीर राहुल गांधी के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से साभार

 

चीन लोक गणराज्य ने जिस तरह अमेरिकी साम्राज्यवाद की दादागिरी और धौंसपट्टी को गंभीर—और—सही चुनौती दी है, उसी तरह कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने फ़ासिस्ट आरएसएस-भाजपा-नरेंद्र मोदी की विघटनकारी नफ़रती ब्रिगेड को गंभीर—और—सही चुनौती दी है।

इसलिए भारत जोड़ो यात्रा का समर्थन किया जाना चाहिए

यह यात्रा भारत को फिर से हासिल करने, भारत को नये सिरे से बनाने की कोशिश है। इसमें कितनी क़ामयाबी मिलती है, इसे अभी देखना है।

लेकिन इस यात्रा में नये भारत का सपना झिलमिलाता है, जिसे केंद्र में सत्तारूढ़ हिंदुत्ववादी गिरोह ने बड़ी बेरहमी से कुचल दिया है। इस गिरोह के क़ब्ज़े से भारत को कैसे मुक्त कराया जाये, यह भारत जोड़ा यात्रा का मक़सद दिखायी देता है। यह वक़्त की ज़रूरी पुकार है।

यह यात्रा देश के संविधान की प्रस्तावना—‘हम, भारत के लोग,...’—पर फिर से ज़ोर देने और उसका पुनर्पाठ करने के लिए है, जिसके तहत लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के खंभों पर हमारा गणराज्य टिका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अब तक के आठ सालों के शासनकाल में इन्हीं खंभों पर सबसे ज्यादा निशाना साधा गया।

एक लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष भारत फिर से बने—भारत जोड़ो यात्रा की इस अपील ने जनसमुदाय के साथ प्रबुद्ध जनों पर भी असर डाला है और वे यात्रा के समर्थन में आगे आये हैं।

गायक और लेखक टीएम कृष्णा, नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता नर्मदा पाटकर, फ़िल्मकार आनंद पटवर्धन, वामपंथी नेता अखिलेंद्र प्रताप सिंह, अकादमीशियन सीमांतिनी धुरु, लेखक तुषार गांधी, और फ़िल्म कलाकार स्वरा भास्कर, अमोल पालेकर व कमल हासन और अन्य ने यात्रा का समर्थन किया है। कई प्रबुद्ध जनों ने यात्रा में हिस्सेदारी भी की है।

भारत जोड़ो यात्रा का समर्थन करने के लिए हमारा कांग्रेसी होना, या कांग्रेस परस्त होना, या कांग्रेस-समर्थक होना क़तई ज़रूरी नहीं। हम अपने विचार और संगठन की स्वतंत्रता व स्वायत्तता बनाये रख कर—और कांग्रेस के प्रति आलोचनात्मक रुख़ रख कर—यात्रा का समर्थन कर सकते हैं, जो लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष, समावेशी भारत का निर्माण करने की दिशा में है।

ऊपर जिन लोगों के नाम दिये गये हैं, जिन्होंने भारत जोड़ो यात्रा का समर्थन किया है, उनमें शायद ही कोई कांग्रेसी या कांग्रेस पार्टी का मेंबर हो। ज़्यादातर लोग कांग्रेस की नीतियों के गंभीर आलोचक रहे हैं और कुछ के तो कांग्रेस सरकार के साथ (जब वह केंद्र में सत्ता में थी) दो-दो हाथ भी हो चुके हैं।

इसके बावजूद अगर वे भारत जोड़ो यात्रा का समर्थन कर रहे हैं, तो इसका मतलब है, उन्हें इसमें ‘सौ फूलों को खिलने दो’ का रास्ता खुलने की उम्मीद नज़र आ रही है।

वे समझ रहे हैं कि आज हमारा एकमात्र ज़रूरी राजनीतिक कार्यभार हैः आरएसएस-भाजपा को हराना और उसे केंद्र की सत्ता से बेदख़ल करना। आजाद भारत के इतिहास में इस कदर भारत-तोड़क और विध्वंसकारी राजनीतिक सत्ता कभी भी नहीं देखी गयी, जैसी इस समय नरेंद्र मोदी सरकार है।

एक बात और समझ लेनी चाहिए कि ऐसे ख़ौफ़नाक समय में ‘कांग्रेस-मुक्त भारत’ बनाने की बात करने का मतलब है, फ़ासीवाद को सीधे-सीधे न्योता देना। इस तथ्य से कैसे इनकार किया जा सकता है कि कांग्रेस आज भी मुख्य विपक्षी पार्टी है और उसका अखिल-भारतीय अस्तित्व है। कांग्रेस के प्रति आलोचनात्मक रुख़ रखना और कांग्रेस को नष्ट कर देने की बात करना—ये दोनों एकदम अलग-अलग चीज़ें हैं।

सड़कों पर लड़ी गयी लड़ाइयां इतिहास में परिवर्तनकारी भूमिकाएं निभाती रही है। भारत जोड़ो यात्रा इस संभावना की ओर संकेत देती है।

(लेखक कवि व राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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