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CAA-NRC के खिलाफ लखनऊ के उजरियांव गांव की महिलाओं ने भी एकजुट होकर सरकार को दी चुनौती

लखनऊ के उजरियांव गांव की महिलायें CAA-NRC के विरोध में खुले आसमान के नीचे बीस जनवरी से डटी हुई हैं। हाथों में बाबा साहेब आंबेडकर, सुभाषचंद्र बोस, गौतम बुद्ध, ए पी जे अब्दुल कलाम के पोस्टर उनके हौसलों को बुलंद बनाए हुए हैं। पुलिस द्वारा महिलाओं को धरना प्रदर्शन की साफ़- सफाई से रोका जा रहा है ताकि गंदगी जमा हो और वे खुद ही धरना-स्थल छोड़कर चली जाएं।  
CAA protest

एक आंसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है
तुमने देखा नहीं आंखों का समुंदर होना


NRC और CAA के विरुद्ध धरने पर बैठी उजरियांव गांव की महिलाओं के बीच जब रुबीना ने मुनव्वर राणा साहब का यह शेर दोहराया तो सचमुच समुंदर उमड़ पड़ा। भले ही यह समंदर आंसुओं का न हो पर जज्बातों का जरूर था। लखनऊ घंटाघर के आंदोलन ने अभी प्रशासन की नींद उड़ाई ही थी कि लखनऊ के ही उजरियांव गांव की महिलाओं ने भी सरकार को चुनौती दे डाली।

शाहीनबाग की तर्ज पर यहां भी महिलाएं खुले आसमान के नीचे बीस जनवरी से डटी हुई हैं। हाथों में गाँधी , बाबा साहेब आंबेडकर, सुभाषचंद्र बोस, गौतम बुद्ध, ए पी जे अब्दुल कलाम के पोस्टर शायद उनके हौसलों को बुलंद बनाए हुए हैं। साथ में लहराता हुआ तिरंगा उनकी हिम्मत बढ़ा रहा है।  यहां भी महिलाएं रोज संविधान की प्रस्तावना का पाठ करती हैं।और जैसा हमेशा होता आया है, पुलिस द्वारा धरना रोकने की कोशिश, वही इनके साथ भी हुआ।

कोशिश तो योगी की पुलिस ने बहुत की पर इन महिलाओं के हौसलों के आगे उसे भी पीछे हटना पड़ा।हद तो तब हो गई जब महिलाओं को उनके धरना स्थल तक की साफ-सफाई से रोका गया। सुनकर कुछ अजीब सा लगा कि आख़िर साफ सफाई से कैसी दिक्कत? इस पर रुखसाना ने बताया कि इसके पीछे पुलिस की यही मंशा है कि गंदगी के अंबार के बीच आख़िर हम प्रदर्शनकारी कैसे बैठ पाएंगे और खुद ही इस जगह को छोड़ देंगे।
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धरने में मौजूद ज़ेबा ने कहा कि रोकने के बावजूद हम हर रोज सफाई कर रहे हैं और अब एक इंच भी पीछे हटने वाले नहीं तो वहीं रात- दिन धरने में डटी रहने वाली नुज़हत ने बताया कि धरना शुरू करते ही कैसे पुलिसिया दमन भी शुरू हो गया ? कभी दरी उठाकर ले गई कभी जलते अलाव को बुझा दिया तो कभी एफ आई आर का खौफ दिखाने लगी।

उन्होंने कहा कि बेटी बचाओ बेटी बढ़ाओ का नारा देने वाली यह सरकार आज आंदोलनरत बेटियों की ही आवाज़ कुचलने का प्रयास कर रही है। नुजहत   ने कहा कि कभी प्रधानमंत्री जी हमारी इतनी चिंता करते हैं कि तीन तलाक़ मुद्दे के बल पर मुस्लिम महिलाओं के लिए फिक्रमंद दिखते नजर आते हैं और आज हमारी आवाज़ तक सुनने के लिए तैयार नहीं।

हाड़ मांस गला देने वाली इस ठंड में कुछ सत्तर से अस्सी साल की महिलाएं भी दिखीं। उजरियांव की इन्हीं महिलाओं के बीच अस्सी साल की राबिया खातून पहले दिन से ही धरने पर जमी हुई हैं और किसी भी सूरत में वहां से हटने को तैयार नहीं। राबिया खातून ने कहा कि इसी मुल्क में जिए मरे मैं अपने सात पुश्तों का नाम बता सकती हूं कि मैं यहीं पैदा हुई और यहीं मेरी कब्र भी होगी, राबिया ने यह भी कहा कि मोदी और शाह उनके बेटे जैसे हैं तो भला बेटे अपनी मां को कैसे बेसहरा कर सकते हैं। जब उनसे पूछा गया कि आप कब तक धरने पर बैठी रहेंगी उनका एक ही जवाब था जब तक उनके बच्चे (मोदी और अमित शाह) उनकी आवाज़ नहीं सुनेंगे तब तक बैठी रहेंगी।
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क्या सचमुच यह पूरा आंदोलन केवल और केवल मुस्लिम समाज तक ही सीमित है,जैसा कि प्रचारित किया जा रहा है तो इसके जवाब में महजबीं ने कहा कि  जो मीडिया सरकार की ही भाषा बोलती है वो तो ऐसा ही प्रचार करेगी लेकिन ऐसा नहीं है इस आंदोलन में हर जाति धर्म के लोग जुड़े हैं क्यूंकि यह सबका मसला है।

चौबीस जनवरी को लखनऊ के घंटाघर में हर धर्म की महिलाएं माथे पर काली पट्टी बांधकर और हाथों में NO CAA, NO NRC, SAVE CONSTITUTION, SAVE HUMANITY के पोस्टर्स के साथ पहुंची। तो वहीं उजरियांव में भी हर धर्म के लोगों का आना हो रहा है।

पत्रकार और एक्टिविस्ट नाइश हसन की माने तो इस आंदोलन की एक सबसे बड़ी खूबसूरती यह उभर कर सामने आ रही है कि हुक़ूमत जितना लड़वाने की कोशिश कर रही है उतना ही हर जाति हर मज़हब के  लोग इस आंदोलन के साझीदार बनकर एकजुटता की मिशाल पेश कर रहे हैं। अभी अभी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का एक बयान आया जिसमें उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा कि मर्द रजाई में दुबके पड़े हैं और औरतें चौराहों पर हैं। सचमुच ऐसी अभद्र भाषा क्या किसी मुख्यमंत्री को शोभा देती है। पर इसका जवाब भी उजरियांव की जुझारू महिलाओं ने यह कहते हुए दिया कि आज हम औरतों को तो मोदी जी ने ही ताकत दी है।  जब वह बार- बार यह कहते हैं कि 'बेटी बचाओ बेटी बढ़ाओ', हर जगह वे महिला सशक्तिकरण की बात कहते हैं और अब तो काफी समय से वे मुस्लिम महिलाओं को और सशक्त करने की बात कहते हैं तो अब जब हम सशक्त होकर घर से बाहर अपनी आवाज पहुंचाने के लिए निकली हैं तो वही लोग तंज भी कस रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब पुरुष रजाई में दुबके हैं तब भी पूरे यूपी में सबसे ज्यादा उन्हीं पर केस दर्ज हुआ है अगर वे धरनों में शामिल हो जाएं तो शायद ही कोई घर बचे जहां के पुरुष को पुलिस जेल में न ठूस दे।

उजरियांव की महिलाओं ने बताया कि हमारे घर के पुरुष धरना स्थल पर इसलिए सामने नहीं आ रहे क्यूंकि पुलिस उन्हें गिरफ़्तार करके झूठी धाराओं में फसा देगी। हालांकि शांतिपूर्वक धरना देने के बावजूद पांच महिलाओं पर पुलिस एफ आई आर कर चुकी है, बावजूद इसके उनके हौसले बुलंद हैं और उजरियांव की हर महिला की जबां यही कह रही है।

"ज़ुल्मी जब जब ज़ुल्म करेगा सत्ता के गलियारों से
ज़र्रा ज़र्रा कांप उठेगा इंकलाब के नारों से"

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