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‘दमदार’ नेता लोकतंत्र कमजोर करते हैं!

हम यहां लोकतंत्र की स्थिति को दमदार नेता के संदर्भ में समझ रहे हैं। सवाल ये उठता है कि क्या दमदार नेता के शासनकाल में देश और लोकतंत्र भी दमदार हुआ है? इसे समझने के लिए हमें वी-डेम संस्थान की लोकतंत्र रिपोर्ट 2022 को देखना होगा।
Modi

यूक्रेन और रूस के मामले में अतिरिक्त चटकारे लेने वाले, भारत के अंदरुनी हालात क्या हैं इसे देखना तक गवारा नहीं समझ रहे। रूस और यूक्रेन मामले में भी इनकी दिलचस्पी भारतीय नागरिकों की वापसी, विश्व शांति, मानवता आदि नहीं है बल्कि देश के दमदार प्रधानमंत्री की दमदार छवि को बरकरार रखने में है या फिर युद्ध की तस्वीरों का उपभोग करने में। तथाकथित दमदार नेताओं का जयघोष और युद्ध का रसास्वादन करने वाले लोगों की ये मानसिकता क्या देश के लिए हितकारी है या ये लोकतंत्र को कमजोर करती है?

वर्ष 2014 में दमदार नेता और कथित तौर पर 56 इंच के सीने वाले प्रधानमंत्री की छवि को खूब प्रचारित किया गया। मोदी प्रधानमंत्री बन भी गये। लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या दमदार नेता के शासनकाल में देश और लोकतंत्र भी दमदार हुआ है? क्या हिंदू राष्ट्रवाद के एजेंडा को आक्रामकता के साथ देश की बहुलता और विविधता पर थोप देने से ही नेता दमदार बनते हैं?

क्या ये नेता सच में दमदार हैं या जबरदस्त प्रोपगेंडा और झूठ के जरिये ये छवि बनाई गई है? आपने बाल नरेंद्र की कहानी पढ़ी होगी जो बचपन में कमर पर मगरमच्छ बांधकर घर ले आया था। हमें समझना होगा कि दमदार नेता और लोकतंत्र के बीच किस तरह का समीकरण होता है? पहले ये देखते हैं कि तथाकथित दमदार नेता के शासनकाल में देश में लोकतंत्र का क्या हाल हुआ है?

विश्व लोकतंत्र इंडेक्स में भारत की स्थिति

हम यहां लोकतंत्र की स्थिति को दमदार नेता के संदर्भ में समझ रहे हैं। गौरतलब है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी का प्रचार एक मजबूत और दमदार नेता के तौर पर किया गया। उन्हें 56 इंच के सीने वाला नेता बताया गया। इस छवि को भारत की जनता में इंजेक्ट किया गया और लुभाया गया। अब देखने की बात ये है कि 2014 से अब तक देश में लोकतंत्र की स्थिति क्या है? क्या दमदार नेता के शासनकाल में लोकतंत्र भी दमदार हुआ है?

वर्ष 2014 विश्व लोकतंत्र इंडेक्स के अनुसार 167 देशों में भारत की रैंक 27 थी और स्कोर 7.92 था। वर्ष 2021 में भारत का रैंक 46 है और स्कोर घटकर 6.91 हो गया है। यानी पिछले सात सालों में भारत लोकतंत्र के इंडेक्स पर 19 पायदान नीचे लुढका है।

रिपोर्ट में भारत को एक त्रुटिपूर्ण और बाधित लोकतंत्र की श्रेणी में रखा गया है। वर्ष 2019 में भारत की रैंक 51 और वर्ष 2020 में 53 थी। वर्ष 2021 में कुछ सुधार हुआ है। जिसका मुख्य कारण किसान आंदोलन और भारत सरकार का तीनों कानून वापस लेना हो सकता है। जिसने पूरे विश्व में जन प्रतिरोध और सत्याग्रह की एक मिसाल पेश की है और सरकार को पारदर्शिता और कानून वापसी के लिए बाध्य किया है।

लोकतंत्र मापने का पैमाना क्या है?

किसी देश में लोकतंत्र की स्थिति को जांचने के लिए और विश्व लोकतंत्र सूचकांक की रिपोर्ट तैयार करने  के लिए पैमाने के तौर पर पांच क्षेत्रों पर गौर किया जाता है।

1. चुनावी प्रक्रिया और बहुलतावाद। यानी क्या चुनाव की प्रक्रिया में देश की समूची विविधता का प्रतिनिधत्व है और सक्रिय भागेदारी है? क्या चुनाव सुरक्षित और निष्पक्ष होते हैं? आदि बातों का मूल्यांकन किया जाता है।

2. सरकार की कार्यप्रणाली। क्या सरकारी कार्यप्रणाली दबावों से मुक्त है और उसमें पारदर्शिता है? क्या कुछ खास आर्थिक वर्ग, धार्मिक या अन्य शक्तिशाली समूह कार्यप्रणाली को प्रभावित करते हैं? आदि का मूल्यांकन किया जाता है।

3. राजनीतिक भागीदारी। इसमें देखा जाता है कि देश का मतदान प्रतिशत क्या है? क्या सभी धार्मिक, भाषायी और अन्य अल्पसंख्यक लोगों का उचित प्रतिनिधित्व है? संसद में महिलओं की कितनी भागीदारी है? आदि बातों पर गौर किया जाता है।

4. लोकतांत्रिक राजनीतिक संस्कृति। राजनीति की संस्कृति क्या है? लोगों की मिलिट्री रूल के बारे में क्या राय है? कितने प्रतिशत लोग मिलिट्री रूल का समर्थन करते हैं? कितने लोग विशेषज्ञों द्वारा शासन को वरीयता देते हैं? कितने लोग हैं जो मानते हैं कि लोकतंत्र कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए ठीक नहीं है? आदि और भी बातों पर गौर किया जाता है।

5. नागरिक स्वतंत्रता। क्या देश का मीडिया आज़ाद है? क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है? क्या प्रतिरोध करने की स्वतंत्रता है? क्या मुद्दों पर खुली चर्चा होती है? क्या इंटरनेट पर राजनीतिक पाबंदियां लगाई जाती हैं? इस तरह की और भी अनेक बातों का मूल्यांकन किया जाता है। जिसके आधार पर विश्व लोकतंत्र सूचकांक की रिपोर्ट तैयार की जाती है।

दमदार नेता लोकतंत्र लाता है या तानाशाही?

दमदार नेता देश में लोकतंत्र को मज़बूत करते हैं या देश को तानाशाही की तरफ झोंक देते हैं? इसे समझने के लिए हमें वी-डेम संस्थान की लोकतंत्र रिपोर्ट 2022 को देखना होगा। रिपोर्ट में विश्व में किस तरह से तानाशाही की स्थितियां बदल रही है, इस बारे बताया गया है। रिपोर्ट के अनुसार विश्व के दस शीर्ष तानाशाह देशों की सूची में भारत का नाम भी शामिल हो गया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि इन देशों में से 6 देशों में वे दल शासन कर रहे हैं जो विविधता और बहुलतावाद के खिलाफ है। ये देश हैं ब्राजील, हंगरी, भारत, पोलैंड, सर्बिया और तुर्की।

वर्ष 2014 से लेकर 2022 तक मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के कार्यकाल में लगातार लोकतंत्र कमजोर हुआ है और देश में अधिनायकवाद की स्थिति बदतर हुई है। मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने आक्रामक ढंग से हिंदू राष्ट्रवाद को देश की जनता पर थोपा है। अल्पसंख्यकों और वंचित तबकों के मौलिक अधिकारों के प्रति सम्मान की भावना नहीं है उन्हों कुचला गया है। सरकार का विरोध करने वालों और राजनीतिक विरोधियों को सत्ता के सहारे दबाया जाता है। लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के प्रति प्रतिबद्धता का अभाव है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे दल राष्ट्रवादी-प्रतिक्रियावादी होते हैं जो तानाशाही के एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए सरकारी तंत्र और सरकारी शक्तियों का इस्तेमाल करते हैं।

हमें समझना होगा कि जिस दमदार नेता, बुलडोजर और हिंदू राष्ट्रवाद की घुट्टी जनता को पिलायी जा रही है उसके नतीज़े क्या आ रहे हैं? हमें गंभीरता से सोचना होगा कि तथाकतित दमदार नेता चाहिये या दमदार लोकतंत्र?

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। आप सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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