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2022 विधानसभा चुनाव से पहले दक्षिण गुजरात में  पटेलों को लुभाने पर आप-भाजपा का ज़ोर

फरवरी में हुए नगर निकाय चुनावों में आम आदमी पार्टी (आप) ने जिन 27 सीटों पर जीत हासिल की थी। यह नतीजे सूरत की 12 विधानसभा सीटों में से तीन पर पार्टी को बढ़त दे रही हैं।
2022 विधानसभा चुनाव से पहले दक्षिण गुजरात में  पटेलों को लुभाने पर आप-भाजपा का ज़ोर
Image credit: Scroll.in

गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी (जीपीसीसी) के पूर्व उपाध्यक्ष धीरू गजेरा 24 जुलाई को सूरत में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। पाटीदार (पटेल) समुदाय से आने वाले सूरत के व्यवसायी गजेरा ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत जनसंघ के साथ ही की थी। कभी दक्षिण गुजरात के सबसे बड़े पाटीदार नेता माने जाने वाले गजेरा ने साल 2007 में कांग्रेस का दामन थाम लिया था और इसके लिए भाजपा छोड़ दी थी। भाजपा के तीन बार के इस विधायक ने 30 अन्य विधायकों के साथ नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व के ख़िलाफ़ बग़ावत कर दी थी।

पार्टी अध्यक्ष सीआर पाटिल की मौजूदगी में भाजपा में वापसी करने वाले गजेरा ने एक कार्यक्रम में कहा, “11 जून, 2007 को, 30 विधायकों सहित 2 लाख से अधिक लोग नरेंद्र मोदी और अमित शाह के ख़िलाफ़ विद्रोह करने के लिए सूरत के वराछा में जेडी धारूकावाला कॉलेज में एकत्र हुए थे। राज्य में पार्टी दो गुटों में बंट गई थी। हमने नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी, लेकिन हम असफल रहे। जिन 30 विधायकों ने बीजेपी छोड़ दी थी, उन्हें कांग्रेस ने 2007 के विधानसभा चुनाव में टिकट दिया था।”   

गजेरा की भाजपा में इस वापसी को सूरत के पाटीदार वोट बैंक के बीच पार्टी के उस जनाधार पर फिर से काबिज होने के क़दम के रूप में देखा जा रहा है, जिसने हाल ही में स्थानीय और शहरी निकाय चुनावों में आम आदमी पार्टी (आप) के पक्ष में मतदान किया था। 

पिछले महीने गुजरात भाजपा को केंद्रीय मंत्रालयों में अपना सबसे अहम प्रतिनिधित्व मिला था। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अगले साल विधानसभा चुनावों से पहले जाति और क्षेत्रीय समीकरणों को साधते हुए अपने गृह राज्य के नेताओं के साथ अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल किया था। गुजरात से राज्य स्तर के तीन नए मंत्रियों को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है और राज्य स्तर के दो मंत्रियों को कैबिनेट स्तर का मंत्री बना दिया गया है।

इनमें से दो पाटीदार समुदाय के हैं और एक सूरत के रहने वाले हैं। इनमें से एक कडवा पाटीदार पुरुषोत्तम वाघेला हैं,जिन्हें पंचायती राज राज्य मंत्री, कृषि और किसान कल्याण मंत्री से केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय में पदोन्नत किया गया था, जबकि एक लेउवा पटेल और पूर्व राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बंदरगाह, नौवहन और जलमार्ग मनसुख मंडाविया हैं, जिनके पास रसायन और उर्वरक का पोर्टफोलियो भी था, उन्हें कैबिनेट रैंक में पदोन्नत किया गया और उन्हें स्वास्थ्य के साथ-साथ रसायन और उर्वरक का प्रभार भी दे दिया गया है। सूरत से पूर्व विधायक दर्शन जरदोश इस समय कपड़ा और रेलवे राज्यमंत्री हैं। 

सूरत जिले के 16 विधानसभा क्षेत्रों में विशेष रूप से छह में पाटीदारों का वर्चस्व है। फरवरी में हुए नगर निकाय चुनावों में आम आदमी को जिन 27 सीटों पर जीत हासिल हुई थी, वे सूरत की 12 विधानसभा सीटों में से तीन पर पार्टी को बढ़त दिलाती हैं। इस साल फरवरी में हुए निकाय चुनावों में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरने के बाद से आम आदमी पार्टी ने सूरत के पाटीदार वोटों पर अपनी नज़र गड़ा दी है। जून महीने में आम आदमी पार्टी सूरत के एक व्यवसायी, समाजसेवी और प्रभावशाली पाटीदार महेश सवानी को अपनी पार्टी में लाने में कामयाब रही। हीरा व्यापारी से ज़मीन की ख़रीद-फ़रोख़्त करने वाले व्यापारी बने सवानी को 2019 के लोकसभा चुनाव तक कथित तौर पर भाजपा का करीबी बताया जाता था। लेकिन, टिकट नहीं मिलने के बाद उन्होंने पार्टी से दूरी बना ली थी।

पाटीदार समुदाय मोटे तौर पर दो मुख्य उप-जातियों- कडवा और लेउवा में विभाजित है। मेहसाणा और बनासकांठा जैसे उत्तर गुजरात के जिलों में कडवा पटेलों का वर्चस्व है। राज्य में इनकी बड़ी संख्या है। लेउवा पटेल और दो छोटी उपजातियां-चौधरी और अंजना अधिकतर सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात के इलाकों में रहते हैं। इसके अलावा, राज्य में इनकी संख्या कुल मतदाताओं का लगभग 14% से 15% है। यह समुदाय 1984-85 से ही भाजपा के पारंपरिक समर्थन का आधार रहा है। 

चार बार गुजरात के मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस के माधवसिंह सोलंकी   1980 के दशक में अपने समर्थन के जनाधार और खम (KHAM)- क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम के साथ बने गठबंधन के आधार पर सत्ता में आए थे। इसकी प्रतिक्रिया में राज्य के पटेल अलग-थलग कर दिये गये थे। इस दौरान दो प्रमुख आरक्षण विरोधी आंदोलन हुए, पहला आंदोलन 1976-80 के बीच हुआ और दूसरा आंदोलन 1985 में हुआ, जिसने उस भाजपा के लिए आगे का रास्ता खोल दिया , जिसने पहले से ही सभी उच्च जातियों को इसके तहत एकजुट करना शुरू कर दिया था।

हालांकि, 2015 के अंत में हार्दिक पटेल के नेतृत्व में हुए पाटीदार आंदोलन के ठीक बाद 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने पाटीदारों के बीच अपना समर्थन आधार काफ़ी हद तक खो दिया। सौराष्ट्र क्षेत्र को प्रभावित करने वाले तीव्र कृषि संकट के साथ ही भाजपा 99 सीटों तक सिमट गई, जो कि गुजरात राज्य चुनावों के इतिहास में सबसे कम सीटें थीं।

हालांकि, भाजपा ने पिछले कुछ सालों में विधानसभा में अपनी संख्या हासिल कर ली है और इसकी वजह कांग्रेस विधायकों का टूटकर बीजेपी में आना जारी है, लेकिन पाटीदार समुदाय का समर्थन अब भी 2022 के विधानसभा चुनाव जीतने के लिहाज से एक अहम कारक है।

साल 2015 के पाटीदार आंदोलन के बाद हुए 2017 के विधानसभा चुनावों में पटेलों के वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब रही कांग्रेस का सूरत स्थानीय निकाय चुनावों में पाटीदार समुदाय के युवा नेताओं को टिकट देने से इनकार करने के बाद इस समुदाय को अपने साथ रख पाने में नाकाम रही। इसका नतीजा यह हुआ कि कई पाटीदार नेता आम आदमी पार्टी में शामिल हो गये।

ऊपर से पिछले महीने तक युवा कांग्रेस के पूर्व उपाध्यक्ष रहे युवा पाटीदार नेता निखिल सवानी को बर्खास्त करने के पार्टी के फैसले ने पाटीदार समुदाय को पार्टी से और दूर कर दिया। कांग्रेस नेता हार्दिक पटेल के करीबी सहयोगी सवानी कांग्रेस छोड़ने के कुछ ही हफ्तों के भीतर आप में शामिल हो गए। 2015 के आंदोलन के दौरान पाटीदार अनामत आंदोलन समिति (PAAS) के सह-संयोजक, सवानी, गुजरात में पाटीदार आरक्षण आंदोलन के उस समय पोस्टर बॉय बन गए थे, जब हार्दिक और उनके अन्य करीबी सहयोगियों के साथ उनके खिलाफ कई कानूनी मामले दर्ज कर लिए गए थे।

सवानी ने सूरत में आम आदमी पार्टी में शामिल होने के बाद मीडिया से कहा, "आप में शामिल होने का मेरा उद्देश्य राज्य में युवाओं, महिलाओं और पुरुषों के लिए काम करना है और उन्हें इंसाफ दिलाना है। कांग्रेस में गुटबाजी की एक बड़ी समस्या है, जिसका शिकार मैं भी हुआ हूं।”

सवानी के कांग्रेस से बाहर होने के कुछ ही दिनों बाद हार्दिक पटेल ने एक साक्षात्कार के दौरान कहा था कि वह पार्टी के भीतर अलग-थलग महसूस करते हैं।

इसी बीच 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक रूप से असरदार पाटीदार समुदाय ने पाटीदार नेताओं के लिए शीर्ष भूमिकाओं और यहां तक कि समुदाय से एक मुख्यमंत्री बनाये जाने की मांग करना भी शुरू कर दिया है।

इस साल जून में इस समुदाय के सामाजिक नेता सौराष्ट्र इलाके के राजकोट शहर के पास कागवाड़ में स्थित लेउवा पटेलों के एक पूजा स्थल खोडलधाम मंदिर में मिले थे। उस बैठक का उद्देश्य मुख्य रूप से लेउवा और कडवा पाटीदार उपजातियों को एक साथ लाना था।

खोडलधाम ट्रस्ट के अध्यक्ष नरेश पटेल ने उस बैठक के बाद मीडिया से कहा था, 'केशुभाई पटेल (गुजरात के पूर्व भाजपा मुख्यमंत्री) के बाद पाटीदार समुदाय ने राज्य में अपना प्रभुत्व खो दिया है। यह बैठक इस बात पर चर्चा करने के लिए आयोजित की गई थी कि राज्य में हमारा समुदाय फिर से अपना राजनीतिक प्रभाव कैसे हासिल करे।”  

नरेश पटेल ने सवाल करते हुए कहा, “हम चाहते हैं कि राजनीतिक दलों में हमारे पाटीदार नेताओं को गुजरात में मुख्य जिम्मेदारी दी जाए। भाजपा हो या कांग्रेस, पाटीदारों को शीर्ष पद मिलना चाहिए। कांग्रेस की राज्य इकाई का अगला अध्यक्ष या मुख्यमंत्री भी हमारे समुदाय से क्यों नहीं होना चाहिए ?” 

उल्लेखनीय है कि गुजरात के मौजूदा मुख्यमंत्री विजय रूपाणी जैन समुदाय से हैं। इस समुदाय की संख्या राज्य की कुल आबादी का लगभग एक प्रतिशत है और भाजपा अध्यक्ष सीआर पाटिल उस मराठी समुदाय से आते हैं, जो दक्षिण गुजरात में एक छोटी आबादी का हिस्सा है।

अंग्रेजी में मूल रूप से प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

AAP, BJP Focus on Wooing Patels in South Gujarat Ahead of 2022 Assembly Polls

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