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अध्ययन : किसानों का 31 हजार करोड़ रुपये का हक़ दबा गई बीजेपी सरकार

2018-19 में गेहूं की खरीदी 357.95 लाख टन और धान की खरीदी 435.68 लाख टन की गयी है, जिसके भुगतान में सरकार द्वारा किसानों को उनकी कुल लागत में, लागत का 50 प्रतिशत बढ़ाकर भी भुगतान नहीं किया गया है।
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नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में कहा था कि सभी किसानों को उनकी फ़सलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य फसल में आने वाली कुल लागत में 50 फीसदी बढ़ाकर दिया जायेगा लेकिन हक़ीक़त कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के आंकड़ों से साफ दिखाई देती है। हालांकि दूसरे कार्यकाल में कहना ये भी है कि 2022 तक किसानों की आय दोगुनी कर दी जाएगी, लेकिन जब हम बीजेपी सरकार के पिछले कार्यकाल में रबी खरीफ की दो बड़ी फ़सलों के दिए गए न्यूनतम समर्थन मूल्य को देखते हैं तो पता चलता हैं सरकार के द्वारा 2018-19 में मात्र गेहूं धान की फ़सलों का ही 31 हजार करोड़ रुपया दबाया गया है। 

2018-19 में गेहूं की खरीदी 357.95 लाख टन और धान की खरीदी 435.68 लाख टन की गयी है, जिसके भुगतान में सरकार द्वारा किसानों को उनकी कुल लागत में, लागत का 50 प्रतिशत बढ़ाकर भी भुगतान नहीं किया गया है।

गेहूं और धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य लागत में 50 फीसदी जोड़कर जो दाम होना चाहिए उसके बीच काफी बड़ा अंतर देखने को मिला है। 2018-19 में धान की फसल में आने वाली लागत 1560 रुपये प्रति क्विंटल थी जिसका लागत जमा 50 फ़ीसदी दाम जो सरकार ने वादा किया था वह 2340 रुपये प्रति क्विंटल होता है लेकिन सरकार द्वारा 1750 रुपये प्रति क्विंटल ही न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया गया है।

इसी प्रकार गेहूं की फसल में आने वाली लागत 1339 रुपये प्रति क्विंटल थी जिसका लागत जमा 50 फीसदी दाम 2008 रुपये प्रति क्विंटल होता है परन्तु सरकार द्वारा 1840 रुपये प्रति क्विंटल ही न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया गया है।

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स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट ने सरकार को अवगत कराया था कि किसानों को उनकी फ़सलों में आने वाली लागत का डेढ़ गुना दाम जोड़कर मिलना चाहिए जो किसानों को उनकी रोज़मर्रा की ज़रूरतों को पूरा करने में सहायक हो परन्तु अभी तक कोई भी सरकार किसानों को उनकी लागत जमा 50 फीसदी जोड़कर मूल्य नहीं दे पायी है जिसके कारण किसान की जो आमदनी होनी है और जो आमदनी हुई है उसके बीच बहुत बड़ा अंतर बना रहता है।

स्वामीनाथन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था किसानों को उनकी फ़सलों का समर्थन मूल्य, फ़सलों में आने वाली कुल लागत में किसान द्वारा किया गया वास्तविक भुगतान + परिवार के श्रम का मूल्य + स्वयं की भूमि पर लगाया गया किराया और पूँजी पर लगाया गया ब्याज़ सहित व्यापक किराया भी शामिल किया जाना चाहिए परन्तु सरकार वास्तविक भुगतान और परिवार के श्रम के मूल्य को जोड़कर उसमें 50 फीसदी वृद्धि की दर से मूल्य निर्धारित करती है जो किसानों के साथ एक तरह का धोखा है।

2018-19 में किसानों को धान की फसल से न्यूनतम समर्थन मूल्य द्वारा होने वाली आमदनी 76244 हजार करोड़ की है, परन्तु लागत जमा 50 फीसदी जोड़कर जो आमदनी होनी थी वह 101949 हजार करोड़ रुपये की है, जिसके कारण धान की फसल का 25705 हजार करोड़ रुपये का किसानों को नुकसान हुआ है।

इसी प्रकार गेहूं की फसल से न्यूनतम समर्थन मूल्य द्वारा किसानों की आमदनी 65863 हजार करोड़ रुपये की है, लेकिन लागत जमा 50 फीसदी जोड़कर जो मूल्य बनता है उसके हिसाब से जो आमदनी होनी थी वह 71894 हजार करोड़ की है यानी 6031 हजार करोड़ रुपये का किसानों को हक़ नहीं दिया गया है।

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2018-19 में धान और गेहूं की फसल का मिलकर 31737 हजार करोड़ रुपया सरकार द्वारा किसानों का हक़ मारा गया है।

खरीफ की फसलें  तथा प्रति क्विंटल किसान का घाटा

खरीफ की फसल जून और जुलाई के माह में बोई जाती है। इन फ़सलों को बोते समय अधिक तापमान और आर्द्रता की जरूरत होती है तथा फसल को काटते समय शुष्क मौसम चाहिए होता है। खरीफ में मुख्य फसल धान, ज्वार, बाजरा, रागी, मक्का, अरहर, उड़द और कपास आदि हैं।

अगर 2018-19 की बात की जाए तो सरकार द्वारा दिया गया समर्थन मूल्य उसमे आने वाली कुल लागत और लागत का 50 फीसदी अतिरिक्त जोड़कर जो मूल्य बनता हैं उससे बहुत कम है, जिसके कारण किसान का प्रति क्विंटल घाटा काफी बड़ा है। 2018-19 में धान की फसल में 590 रुपये प्रति क्विंटल किसान का घाटा रहा है। ज्वार की फसल में 844 रुपये प्रति क्विंटल घाटा, बाजरा में 36 रुपये रुपये प्रति क्विंटल घाटा, रागी में 658 रुपये प्रति क्विंटल घाटा, मक्का में 520 रुपये प्रति क्विंटल घाटा, अरहर या तूर की दाल में 1796 रुपये प्रति क्विंटल घाटा तथा उड़द की दाल में 1883 रुपये प्रति क्विंटल किसान का घाटा रहा है।

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रबी की फसलें  तथा प्रति क्विंटल किसान का घाटा

रबी की फसलों की बुआई के समय कम तापमान तथा पकते समय शुष्क और गर्म वातावरण की आवश्यकता होती है। ये फसलें सामान्यतः अक्टूबर-नवम्बर के महीनों में बोई जाती हैं। रबी की फसलें मुख्यतः गेहूं, जौं, चना, मसूर, तथा रेपसीड/ सरसों आदि हैं।

2018-19 में रबी की फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य, फ़सलों में आने वाली कुल लागत, लागत का 50 फीसदी जोड़कर जो मूल्य बनता है उससे बहुत कम है। गेहूं की फसल में किसानों को सरकार द्वारा मिला न्यूनतम समर्थन मूल्य 1840 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि लागत में लागत का 50 फीसदी अतिरिक्त मूल्य जोड़कर 2008 रुपये प्रति क्विंटल होता है, जिसमें 168 रुपये प्रति क्विंटल किसान को घाटे का सामना करना पड़ा है। इसी प्रकार जौं की फसल में 430 रुपये प्रति क्विंटल किसान का घाटा रहा है। चने की फसल में 1137 रुपये प्रति क्विंटल घाटा रहा, मसूर की फसल में 1847 रुपये प्रति क्विंटल घाटा, तथा सरसों की फसल में 695 रुपये प्रति क्विंटल किसान का घाटा रहा है।

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आकड़ों द्वारा पता चलता है कि किसानों को उनका हक़ नहीं मिल पा रहा है। लाखों किसान कर्ज़ के कारण आत्महत्या करने को मजबूर हैं  परन्तु  भारतीय जनता पार्टी की दृष्टि से देखा जाए तो सबका विकास हो रहा है!

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