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मोदी का दौरा: न काशी रहा, न क्योटो बना, बनारस मांग रहा है सात साल का हिसाब

दीपावली से पहले सोमवार, 25 अक्टूबर को रैली करने मोदी फिर बनारस आ रहे हैं। वह रिंग रोड के किनारे मेहंदीगंज के कल्लीपुर में 5200 करोड़ की सौगात बांटेंगे। मोदी की रैली से पहले सवालों की गर्मी है, जिसका जवाब बनारस के लोगों को चाहिए।

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प्रधानमंत्री मोदी 25 अक्टूबर को अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के दौरे पर हैं। (फाइल फोटो)

साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जापान के दौरे पर गए तब वह क्योटो शहर से इतना प्रभावित हुए कि भारत लौटने पर बनारस की जनता से वादा किया कि उनका शहर भी क्योटो जैसा खूबसूरत हो जाएगा। तभी से बनारसियों की आंखें उस क्योटो को देखने के लिए तरस गई हैंजिसका वादा प्रधानमंत्री ने किया था। दीपावली से ठीक पहले रैली करने मोदी फिर बनारस आ रहे हैं। वह रिंग रोड के किनारे मेहंदीगंज के कल्लीपुर में 5200 करोड़ की सौगात बांटेंगे। मोदी की रैली से पहले सवालों की गर्मी है, जिसका जवाब बनारस के लोगों चाहिए। सबसे बड़ा सवाल यह है कि सौगातों की झड़ी में इस शहर के सांसद ने पिछले सात सालों में बनारस का कितना कायाकल्प किया? बेतरतीब चलने वाले शहर में आखिर कहां गुम हो गया इंटीग्रेटेड ट्रैफिक सिस्टम? नमामि गंगे मिशन से लेकर इनलैंड वाटरवेज परियोजनाएं बेअसर क्यों हैंसर्दियों में जाम का झाम, गर्मियों में पेयजपल के लिए मारपीट और बारिश के दिनों में ताल-तलैया बनती सड़कें देखकर हर कोई कह देता है, "यह मोदी का क्योटो है।" बनारसियों के लिए क्योटो दुनिया का कोई शहर नहीं, सिर्फ एक जुमला है। ऐसा जुमला जो शहर में आफत-विपत आने पर हर एक की जुबान पर तैरने लगता है।

मोदी की रैली के लिए निर्माणाधीन विशाल पंडाल

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बनारस में जगह-जगह खुदी हुई सड़कें, ऊबड़-खाबड़ गलियां, गंदगी का ढेर, आंखमिचौली करतीं स्ट्रीट लाइटें गंगा में गिरते मल-जल, मटियामेट हो चुकी गंगा की रेत में बनी नहर, तमाम पुरातन मदिरों और विग्रहों को तोड़कर किया जा रहा विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण और स्मार्ट सिटी जैसी योजनाओं पर टैक्सपेयर का अरबों रुपये बहाने का निहतार्थ बनारस के लोगों की समझ में नहीं आ रहा है। दशाश्वमेध इलाके के समाजसेवी विकास मल्होत्रा की तल्ख शब्दों में कहते हैं, "करोड़ों रुपये खर्च कर दशाश्वमेध इलाके का सुंदरीकरण किया गया। गोदौलिया चौराहे पर पार्किंग भी बना गई, लेकिन क्या पब्लिक को कोई फायदा हुआ? पिछले दिनों बारिश हुई तो सीवेज लाइनें क्रैश कर गई और सड़कें जलमग्न हो गईं। पानी से लबालब भरे शहर का रंग-रोगन धुल गया। यहां अर्थियों के साथ रामनाम सत्य है का उद्घोष पल भर के लिए अच्छा लग सकता है, लेकिन जाम में फंसे मरीजों और ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौतें नहीं रुक सकती हैं। मोदी दो सौ करोड़ के रुद्राक्ष कल्चरल कन्वेंशन सेंटर की जगह बनारसियों को पीने का साफ देते, जर्जर हो चुकी पुरानी सड़कों और गालियों को ठीक करते तो ज्यादा बेहतर होता।"

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पत्रकार अमितेश पांडेय कहते हैं, " मोदी के बीते सात साल के सौगातों को जोड़ दिया जाए तो वह रकम 50 हजार करोड़ से ज्यादा ही निकलेगी। इतनी बड़ी धनराशि से एक नया बनारस बसाया जा सकता था। बनारस के हिस्से में जो कुछ आया, वह जनता के सामने है। विश्वनाथ कारिडोर की जांच-पड़ताल कराई जाए तो आधे से ज्यादा का घपला-घोटाला मिलेगा। जितनी सड़कें बन रही हैं, इस्टीमेट उससे सौ गुना ज्यादा बढ़ाकर बंदरबांट किया जा रहा है। बनारस को मोदी-योगी सरकार ने खूब बजट दिया है। अगर पैसे की कमी नहीं है फिर यह शहर बदहाल क्यों है?"

अमितेश यह भी कहते हैं, "गंगा मइया का बेटा बनकर उनकी दुहाई देते हुए बनारस आए मोदी को लोगों ने गले लगाया, लेकिन समूचा शहर देख रहा है कि बनारस की गंगा में सीवर की गंदगी बहनी बंद नहीं हुई है। यहां कोई ऐसा काम नहीं हुआ है जो बनारसियों की जिंदगी में कुछ खास फर्क डालता हो। मोदी के सत्ता में आने के बाद कारपोरेट घराने भले ही मालामाल हुए हों, पर मध्यम और गरीब तबके के लोगों के जीवन में कोई खास फर्क नहीं आया है।"

दशाश्मेध क्षेत्र के समाजसेवी गणेश शंकर पांडेय कहते हैं," मोदी की ज्यादातर परियोजनाएं ऐसी हैं, जहां इन्वेंट तो किया जा सकता है, उनका जनसरोकार से कोई लेना-देना नहीं है। बनारस में सबसे बड़ी समस्या है ट्रैफिक की, लेकिन पिछले सात सालों में स्थिति बद से बदतर हो गई। गोदौलिया पर पार्किंग बनी, पर गाड़ियां सड़कों के किनारे खड़ी होती हैं। इसी तरह बेनियाबाग, टाउनहाल और कचहरी पर बनी पार्किंग पर भी इतना किराया वसूला जाएगा कि वहां कोई गाड़ी खड़ी करने की हिम्मत ही नहीं जुटा सकेगा।" 

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मोदी और उनका दिवाली गिफ़्ट

पीएम मोदी हर साल की तरह दिवाली से पहले बनारस आ रहे हैं। यूपी में विधानसभा नजदीक है इसलिए रैली का आयोजन किया गया है। स्वास्थ्य सुविधाओं बेहतर बनाने के लिए वह यहीं से 65 हजार करोड़ की एक नई परियोजना का एलान करेंगे। वाराणसी के आराजीलाइन प्रखंड में मेहंदीगंज गांव के पास इनकी सभा होनी है, जिसमें बनारसियों के लिए करीब 5200 करोड़ की परियोजनाओं की सौगात बाटेंगे। इसमें गोबर और कचरे से सीएनजी-पीएनजी तैयार करने वाला अडानी ग्रुप का प्लांट भी शामिल है। शहर के कुंडों-तालाबों के सुंदरीकरण के अलावा राज मंदिर, दशाश्वमेध और जंगमबाड़ी वार्ड के पुनरोद्धार आदि विकास कार्यों को भी मोदी की सौगात हिस्सा बना दिया गया है।

धूपचंडी वार्ड के पार्षद रहे मनोज राय धूपचंडी कहते हैं, "जिस काम पर पार्षद का बोर्ड लगना चाहिए, उस पर प्रचार की भूखी भाजपा सरकार मोदी का नाम लिखवा रही है। जिन जगहों पर मोदी कभी गए नहीं, वहां नाली-खड़ंजे का काम भी मोदी के सौगात में जोड़ दिया गया है। गली-खड़ंजे के शिलापट पर प्रधानमंत्री का नाम लिखकर इस तरह से भाजपा की ब्रांडिंग कराई जा रही है जैसे इलाकाई पार्षदों ने कुछ किया ही नहीं। सच यह है कि मोदी के पास विकास का काम गिनाने के लिए कुछ है ही नहीं। तभी तो वह पार्षदों के कोटे के काम पर अपनी मुहर ठोंक रहे हैं।"  

मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट टीएफसी सेंटर में सुविधाएं बेजार

सन्नाटे में मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनारस में पहली बार चुनाव जीते तो उनका पहला ड्रीम प्रोजेक्ट बुनकर ट्रेड फैसिलिटी सेंटर (टीएफसी) था। करीब 200 करोड़ की लागत से बने ट्रेड फैसिलिटी सेंटर को साल 2017 में मोदी ने बुनकरों को यह कहकर सौगात दी थी उनके लिए विश्व बाजार के दरवाजे खुल जाएंगे और उनकी किस्मत बदल जाएगी। शहर से करीब 10 किलोमीटर दूर बड़ा लालपुर इलाके में बने ट्रेड फैसिलिटी सेंटर पूर्णतया वातानुकूलित और पावर बैकअप की सुविधा से लैस है। टीएफसी में बेसमेंट समेत चार फ्लोर बना है। ग्राउंड फ्लोर पर 2000 लोगों की क्षमता का कन्वेंशन सेंटरफूड कोर्ट14 दुकानेंप्रवेश प्लाजा है। फर्स्ट फ्लोर पर 13 मार्टप्रदर्शनी गैलरीदो रेस्तरां14 दुकानेंलाउंजसिल्क गैलरीकारपेट गैलरीइतिहास एवं संगीत गैलरी बनाई गई हैं। सेकेंड फ्लोर पर व्यापार केंद्र व सूचना का राष्ट्रीय केंद्रचार दुकानें15 डारमेट्रीकार्यालयलाइब्ररीरिकार्ड रूमचलचित्र हॉल और सबसे ऊपर व्यापार केंद्र के अतिरिक्त 18 गेस्ट हाउसकामन हॉलपैंट्री और दफ्तर खोला गया है। टीएफसी में 82 दुकानें हैं, जिनके जरिए हैंडलूम, हैंडीक्राफ्ट, कारपेटस, जरी और खादी उत्पादों का प्रमोशन, मार्केटिंग, ब्रांडिंग और एक्सपोर्ट का काम किया जाना था। बुनकरों को कच्चा माल, तकीनीक और प्रबंधन की सुविधाएं भी दी जानी थी।

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पूर्वांचल पॉवरलूम एसोसिएशन के सचिव अनवारुल हक अंसारी कहते हैं, " टीएफसी में साल में दो-चार सरकारी कार्यक्रम जरूर होते होंगे, लेकिन बुनकरों को उससे कोई फायदा नहीं। मोदी ने हमें सिर्फ झूठे सपने दिखाए। हमारी साड़ियां बंगलुरु, मुंबई, दिल्ली और विदेश तक अब भी पहुंचती हैं, लेकिन वही दाम मिलता है, जो पांच साल पहले मिलता था। हमारा हुनर तो पहुंच रहा है, लेकिन दाम सत्ता में रसूख वाले व्यापारियों के पास जा रहा है। "  

बिजली के लिए प्रदर्शन करते मोदी के गोद लिए गांव नागेपुर के लोग

उत्तर प्रदेश में कई मर्तबा मंत्री रहे वीरेंद्र सिंह कहते हैं"लालपुर में बुनकरों के लिए बनाया गया बुनकर ट्रेड फैसिलिटी सेंटर सत्तारूढ़ दल के नेताओं के लिए तारांकित होटलों जैसा आरामगाह और आरएसएस-भाजपा व उससे अनुषांगिक संगठनों की मीटिंग करने का महफूज स्थान है। पीएम की सभी परियोजनाओं का हाल टीएफसी जैसा ही है। आमतौर पर मोदी हर साल दिवाली से पहले आते हैं। वह जब आते हैं तो शहर का भेष, घाटों का भेष और गंगा का भेष बदल दिया जाता है ताकि नौकरशाही के एक्स्ट्रा करिकुलम पर वह मोहित हो जाएं और लूटने-खसोटने के लिए इनके लाइसेंस का रिन्युवल हो जाए। इस बार भी वही कहानी दोहराई जा रही है। हर बार की तरह पीएम आएंगे और वह न तो आसमान छूती महंगाई की चर्चा करेंगे, न रोजगार की और न ही किसानों की मुसीबतों पर। हर बार की तरह ही बनारसियों को जुमलों की सौगात बांटेंगें और नए सपने दिखाकर चले जाएंगे।"

बनारस के रामनगर में बंदरगाह बन गयाजहाजों का अता-पता नहीं

जहाज का पता नहीं, बंदरगाह बन गया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2018 में वाराणसी के रामनगर में बने देश के पहले मल्टी मॉडल टर्मिनल को राष्ट्र के नाम समर्पित था। वाराणसी-हल्दिया जलमार्ग का उद्घाटन करते हुए वाराणसी को पहला कंटेनर डिपो भी सौंपा। करीब 206 करोड़ की लागत के बने इस टर्मिनल के बारे में दावा किया गया था कि यहां से दक्षिण एशियाई देशों में सामान सीधे भेजा जा सकेगा, लेकिन अभी तक जहाज का कहीं अता-पता नहीं है। वाराणसी से हल्दिया तक बने इस पूरे जलमार्ग की लंबाई 1400 किलोमीटर है, जिस पर लगातार टैक्सपेयर का पैसा लुटाया जा रहा है।

बनारस में जंग खा रही हैं ये सरकारी नावें

बंदरगाह के ठीक सामने स्थित रमना गांव की नेशनल बाक्सर ज्योति पांडेय कहती हैं," बंदरगाह के बारे में कहा गया था कि इससे बांग्लादेश तक व्यापार करने में सहूलियत होगी। भदोही की कालीन और मिर्जापुर दरी के निर्यात में यह बंदरगाह मील का पत्थर साबित होगा। मोदी और उनके नुमाइंदों का यह दावा सिर्फ बयान तक सीमित रहा। सिर्फ उद्घाटन के समय पानी का जहाज एक मर्तबा आया था। दोबारा उसके दर्शन ही नहीं हुए। जल परिवहन और पर्यटन को  बढ़ावा देने के लिए गंगा में कई स्थानों पर जेटी लगाई गई है। कई कीमती नौकाएं भी भेजी गईं, लेकिन शो-पीस बनकर रह गईं। यहां गंगा में अलकनंदा जलयान भी चलाया गया, लेकिन पर्यटन को रफ्तार नहीं मिली। अलबत्ता कछुआ सेंचुरी हटाए जाने से गंगा में जलीय जीवों पर बड़ा खतरा जरूर मंडराने लगा है।"

बनारस में जुलाई में रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर के उद्घाटन के मौके पर पौधरोपण करते प्रधानमंत्री मोदी

सफेद हाथी बनाता जा रहा रुद्राक्ष

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी साल 15 जुलाई 2021 को बनारस आए थे तब उन्होंने बीएचयू के खेल मैदान में उन 280 परियोजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास किया था। इन परियोजनाओं की लागत करीब 1500 करोड़ बताई गई थी। इसके बाद सिगरा में करीब 186 करोड़ से बने रूद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर का लोकार्पण किया था, जिसे जापान-भारत की दोस्ती का है प्रतीक बताया गया था। इसके जरिए काशी की कलासाहित्यसंस्कृति और सभ्यता को नया मंच मिलने दावा किया गया था। रुद्राक्ष के संचालन की जिम्मेदारी स्मार्ट सिटी के मार्फत इंडियन सैनिटेशन वार्ड ब्वाय एंड हार्टिकल्चर कांट्रैक्टर को सौंपी गई। यह वही संस्था है जो लालपुर में टीएफसी का संचालन कर रही है। यहां एक्जीबिशन के लिए गैलरी, लॉबीओपेन स्पेसलैंड स्केपिंगपार्किंग आदि की सुविधा है।

नगर निगम के जिस प्रेक्षागृह को तोड़कर रुद्राक्ष बनाया गया है वहां पहले यहां आम आदमी भी जा सकता था और शादी-विवाह भी कर सकता था। गरीबों के लिए रुद्राक्ष में प्रवेश प्रतिबंधित है। आमदनी की बात की जाए तो उद्घाटन के बाद से यह आडोटोरियम आयोजकों और दर्शकों की बाट जोह रहा है।

रुद्राक्ष आडोटोरियाम के पास रहने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अनिल श्रीवास्तव कहते हैं" यह आडोटोरियम एक शो-पीस भर है जो पूरी तरह अनुपयोगी है। कुछ सालों में वह ढह जाएगा। इसका भी वही हाल होगा जो लालपुर के टीएफसी का हुआ है। टैक्सपेयर का पैसा चाहे जितना भी लुटा दीजिए, लेकिन जुमलेबाजी को विकास नहीं कहा जा सकता।"

बनारस में मटियामेट हो चुकी गंगा की रेत पर बनी मोदी नहर

मिट गया मोदी नहर का वजूद

बनारस में गंगा की रेत पर 1,195 लाख रुपये की लागत से खोदी गई जिस नहर को बनारसियों ने मोदी नहर नाम दिया था, उसे गंगा ने पूरी तरह पाट दिया है। यह वही नहर थी जिसकी जानलेवा भंवरों ने उन मछुआरों और माझियों के पसीने छुड़ा दिए थेजो गंगा को अपना घर समझते थे। बनारस के राजघाट पर सैकड़ों लोगों को नदी से डूबने से बचाने वाले गोताखोर दुर्गा माझी कहते हैं, "मोदी नहर का वजूद भले ही मिट गयापर बालू का धंधा करने वाले और जिले के कई अफसर जरूर मालामाल हो गए।"

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बनारस के दशाश्वमेध घाट के सामने रेत के पार बसे कटेसर गांव राम दुलारेबृजमोहनराम बाबूविजयरविंद्र यादव कहते हैं"मोदी नहर हमारे लिए आफत और अपशगुन की तरह थी। गंगा मैया ने उसका वजूद मिटकर अच्छा किया। मोदी नहर बच गई होती तो हमारे अपनों के साथ मवेशियों की बलि लेती रहती।"

कटेसर के नंदलाल कहते हैं"ग्रामीण युवक पहले गंगा किनारे जुगाड़ से दुकान लगाया करते थे और दाल-रोटी का इंतजाम हो जाया करता था। मोदी नहर बनी तो न तो खेती बचीन रोजगार। हमारी गुहार खुद गंगा मैया ने सुन ली।"

वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कुमार कहते हैं, " देश में रेत पर बनी शायद पहली और बहुचर्चित नहर के फेर में 11.95 करोड़ रुपये डूब गए। इसे सनक नहीं तो क्या कहेंगे लगता हैकुछ लोगों को नए जमाने का भगीरथ बनने का भूत सवार हो गया है। देश के जिन हिस्सों में नदियों के साथ क्रूर मजाक किया गयावहां उसका खामियाजा निर्दोष जनता को उठाना पड़ा। बनारस में धरोहर और सभ्यताओं के साथ भद्दा मजाक करने का जो दौर शुरू हुआ हैवह गंगा को पूरी तरह खंडहर बनाने की साजिश नजर आती है। मोदी नहर को मटियामेट करके गंगा ने यह बता दिया है कि नव-निर्माण के नाम पर इस ऐतिहासिक शहर की बुनियाद न खोखली की जाए और न झूठ की इमारत खड़ी की जाए। अब से पहले किसी भी हुकूमत ने इस तरह का घटिया काम नहीं किया। मोदी की सौगातें और लोक-लुभावनी बातें जुमले की तरह ही हैं। जरूरी चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं और मोदी महंगाई के "" पर भी बात करने के लिए तैयार नहीं हैं। बनारस में हर आदमी का गला सूख रहा है। मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। प्रियंका की बड़ी रैली को छोटी करने के बजाय वह डीजल-पेट्रोल और खाद्य तेलों के दाम कम करते तो उसकी रोशनी ज्यादा होती।"

प्रदीप यह भी कहते हैं"पूर्वांचल के कौशांबी में टैक्सपेयर के पैसे से निर्मित अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट की सौगात देकर लौटे मोदी इस एयरपोर्ट को अगले साल तक अडानी के हवाले करने जा रहे हैं। क्या यही दिवाली गिफ्ट है? सौगात तब मानी जाती जब वह महंगाई घटाते। बनारस में ऐसा कोई नहीं है जिसके जानने वालों ने कोरोनाकाल में इलाज के अभाव में तड़पकर दम न तोड़ा हो। मोदी की सभा में शायद इन पर शोक व्यक्त नहीं होगा, लेकिन हर-हर मोदी के जयकारे जरूर लगाए जाएंगे। बिजली, पानी, सड़क आदि का काम तो सभी सरकारें करती हैं, लेकिन मोदी की तरह इन्वेंट आर्गनाइज करके नहीं करतीं।"

मोदी की रैली के लिए तैयारियों को अंतिम रूप देते कर्मचारी

रैली के लिए रौंद दी 50 बीघा फसल

पीएम मोदी की रैली के जुनून में कल्लीपुर और आसपास के गांवों के किसानों की करीब 50 बीघा जमीन पर बोई गई धान की फसल सत्ता के पावरतले रौद दी गई हैं। किसानों का आरोप है कि उनके खेतों से करीब चार-पांच इंच उपजाऊ मिट्टी निकालकर उर्वरता नष्ट की गई है। इनमें ज्यादातर जमीनें पटेल और यादव समुदाय के लोगों की हैं। दया और दूधनाथ पटेल कहते हैं"पहले 50 हजार रुपये प्रति बीघे की दर से मुआवजा देने का के लिए प्रशासन ने वादा किया था, लेकिन मौके पर 25 कंपनी पीएसी और 15 कंपनी सीआरपीएफ भेजने के बाद मुआवजा घटाकर 19 हजार 400 रुपये प्रति बीघा कर दिया गया। हमने जब प्रतिरोध किया तो प्रशासन गुंडों की तरह धमकाने पर उतारू उतर आया।"

किसानों का दुखड़ा सुनने के बाद पत्रकार राजीव सिंह बताते हैं"पीएम की रैली में सौगात बांटने की बातें अखबारों में कई दिनों से बढ़ा-चढ़ाकर प्रचारित की जा रही हैं। तहकीकात करने पर पता चल रहा है कि रुपये, लंच पैकेट आदि का लालच देकर भीड़ जुटाई जा रही है। रैली में भीड़ दिखाने के लिए जिले भर शिक्षकों, लेखपालों, पंचायत सचिवों, आगनबाड़ी कार्यकत्रियों, गांवों में तैनात सफाई कर्मियों को ड्यूटी के बहाने रैली में बुलाया गया है। दरोगाओं और सिपाहियों को भी भीड़ जुटाने के टारगेट दिए गए हैं। रैली के लिए होटल और स्कूल वालों की गाड़ियों पकड़ी जा रही हैं। खेत और फसलों का जो हाल किया गया है वह बेहद चिंताजनक है। धान की फसलें न पशुओं के खाने लायक बची है, न इंसानों के लिए। एक तरफ मोदी की रैली के लिए ताकत झोंकी जा रही है और दूसरी ओर, विपक्षी दलों को रैली व सभाओं की अनुमति नहीं दी जा रही है। बनारस में सत्ता के दुरुपयोग का यह खेल महीनों से अनवरत जारी है।"

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हमलावर बना विपक्ष

मोदी की प्रस्तावित सभा में बनारस के लोगों को सौगात बांटे के ऐलान को लेकर विपक्ष हमलावर की मुद्रा में है। सपा और कांग्रेस ने मोदी की रैली पर सवाल खड़ा कर दिया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय राय ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर पीएम मोदी से कई ज्वलंत सवाल पूछा है। मसलन" क्या काशी को क्योटो बना दिया गया? क्या गंगा की गंदगी साफ़ हो गई? साल 2013-14 में 32 गंदे नाले गंगा में गिरते थे और अब 34 गंदे नाले क्यों गिर रहे हैं? पहले एसटीपी चलती थी और अब पूरी तरह बंद क्यों है? क्या काशी स्मार्ट सिटी बन गई। सीवरजल भराव और सड़कों पर फैले कूड़े-करकट से जनता को क्या निजात मिल गई। पिछले सात सालों में बनारस में कितने नए उद्योग लगे? पांच लाख परिवारों को रोज़गार देने वाला बनारस साड़ी उद्योग बंद होने की कगार पर क्यों है बनारस का हैंडलूम और पावरलूम की तबाही क्यों नहीं रोकी जा रही है? विश्वनाथ कोरिडोर के नाम पर दर्जनों पौराणिक काल के मंदिरों को क्यों तुड़वाया दिया गया300 साल पुरानी 250 बिल्डिंग को क्यों तोड़ा गया? क्या काशी के पुरातन वैभव पर यह हमला उचित है? गंगा के अर्धचंद्राकार स्वरूप को क्यों बिगाड़ा जा रहा है? जलपोत चलाकर छोटी नावें चलाने वाले निषाद समाज की आजीविका क्यों छीनी जा रही है? क्या वे काशी की ऐतिहासिक धरोहर के हिस्सा नहीं हैं?"

बदहाल क्यों हैं मोदी के गांव?

अजय राय ने पीएम से यह भी सवाल किया है" उनके गोद लिए गए गए गांव जयापुर और नगेपुर बदहाली के शिकार क्यों हैं? दोनों गांवों की सैकड़ों महिलाओं को रोजगार के नाम पर फर्जी लोन देकर उन्हें लाखों का कर्जदार क्यों बना दिया गयाकाशी के सबसे बड़े श्री हनुमान प्रसाद अंध विद्यालय के दृष्टिबाधित बच्चों की कक्षा 9 से 12 तक अनुदान राशि बंदकर उन्हें शिक्षा के अधिकार से क्यों वंचित कर दिया? पूर्वांचल की तरक़्क़ी और रोज़गार का इंतज़ार कब ख़त्म होगा? "

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बनारस के जाने-माने अधिवक्ता संजीव वर्मा को इस बात पर अचरज है कि न जाने कैसे-कैसे लोग मोदी के सलाहकार हैंवह कहते हैं, " विश्वनाथ कारिडोर में न जाने कितने लोग बेघर हो गए। कारिडोर बनाने से पहले मिस्र जैसे देश को देख आते कि उन्होंने अपनी धरोहरों को किस तरह से सहेजकर रखा हैबनारस को क्योटो बनाने का सपना दिखाने वालों की बोलती तब बंद हो जाती है जब बारिश के दिनों में गलियों-सड़कों पर नाव चलने की नौबत आ जाती है।"  

संजीव यहीं नहीं रुकते। वह कहते हैं, " हजारों साल की मिल्कियत का मालिक रहे बनारस के लोगों ने गंगा के साथ ऐसा खिलवाड़ कभी नहीं देखा था। पिछले दिनों मणिकर्णिका घाट पर विख्यात श्मशाननाथ मंदिर में सीवर का गंदा पानी काफी दिनों तक भरा रहा। यह काशी की सनातन संस्कृति और धर्म के साथ धोखा नहीं है तो और क्या है कम से कम गंगा की सौगंध खाने को तो यह देखना चाहिए कि वो जिस देवी-देवता की पूजा करते हैं उनका वजूद मिट गया तब क्या होगा?  अनियोजित विकास की सनक के चलते हम गंगा और बनारस के मंदिरों को सहेज नहीं पाएंगे तो हमारे पास कुछ बचेगा ही नहीं।"

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कौन काट रहा विकास की मलाई?

दिलचस्प बात यह है कि केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने जो इज ऑफ लिविंग इंडेक्स जारी की है उसमें बनारस की रैंकिंग को 27वें स्थान पर रखा है। दावा किया गया है कि काशी की तरक्की पहले की तुलना में ज्यादा बेहतर हुई हैं। गंगा के किनारे जल्द ही एक्सप्रेस-वे बनेगा जो प्रयागराज से वाराणसी के बीच 150 किमी का नया रूट होगा और वह तरक्की की नई गाथा लिखेगा। बनारस जाने-माने साहित्यकार रामजी यादव इस पर तल्ख टिप्पणी करते हैं। वह कहते हैं"भुखमरी के मामले में 116 देशों के इंडेक्स जो देश 101वें स्थान पर पहुंच गया है उसकी लिविंग इंडेक्स अच्छी कैसे हो सकती हैयह भी एक तरह का जुमला ही है। साल 2014 से पहले भारत भुखमरी के मामले में 54वें स्थान पर था, वह अब लगभग आखिरी पायदान पर है। नंगा सच यह है कि मोदी सिर्फ अंबानी-अडानी झोली में भरने में जुटे हैं। बनारस के सांसद को इस सवाल का जवाब तो देना ही चाहिए कि सात सालों में देश का कर्ज कितना बढ़ाकितने सरकारी संस्थानों को बेचा गयायूपी को अपराधमुक्त कराने का दावा करने वाले गुंडों की भाषा क्यों रहे हैं?  किसानों की बातें क्यों अनसुनी की जा रही हैं? क्या मुआवजे से लखीमपुर खीरी के किसानों को न्याय मिल जाएगा? बनारस शहर बदहाल है और तमाम जिंदगियां तबाही की कगाह पर हैं फिर सौगात की रेवड़ियां किसके हिस्से में जाएंगी मोदी ने बनारस की तरक्की के नाम पर जो धन खर्च किया है उस पर वह श्वेत-पत्र क्यों नहीं जारी करते? "

रामजी कहते हैं"कितने शर्म की बात है कि सत्तारूढ़ दल की नंगई साफ दिख रही है और मेन स्टीम की मीडिया चुप है। जो सवाल मोदी-योगी सरकार से पूछा जाना चाहिए, बनारस का मीडिया विपक्ष से पूछ रहा है। देश भर के किसान आंसू बहा रहे हैं। छुट्टा और आवारा पशुओं के चलते खेती-किसानी बंद हो रही है। सरकार दावा करने में जुटी है कि हमारे जिंदगी की गुणवत्ता सुधर रही है। भाजपा की चर्चित नेत्री बेबी रानी मौर्य बनारस आकर कह गई कि महिलाएं अंधेरा हो जाने पर थाने पर न जाएं। भाजपा नेता सत्यपाल मलिक भी कुबूल कर चुके हैं कि 15 फीसदी कमीशन एडवांस लेने के बाद ही शासन से बजट अलाट किया जा रहा। बनारसियों के लिविंग इंडेक्स की गुणवत्ता अच्छी बताने वालों के पास ऐसा कौन का स्केल है जिन्हें इस शहर का भीड़-भड़क्का, धक्का-मुक्की और भिखमंगई दिखती ही नहीं है।"

बनारस की बदहाली पर वरिष्ठ पत्रकार विनय मौर्य काफी नाराज दिखते हैं। असमानता का सवाल उठाते हुए कहते हैं, "काशी के विकास का मतलब बनारस से बाबतपुर तक की सड़क भर नहीं है। जहाज से तो पैसे वाले जाएंगे। इन्हें सुविधाएं तो मिल गईं, लेकिन गरीब और मध्यम तबके के हिस्से में क्या आयाबनारस में बसट्रेन और तांगा से चलने वाले आम आदमी के लिए सुविधाएं नदारद हैं। अच्छी सड़कें सिर्फ भाजपा के दफ्तर और इस पार्टी के नेताओं के घरों के आसपास ही हैं। दूसरी गालियों में जाएंगे तो गंदगी के ढेर मिलेंगे, जल-जमाव मिलेगा, बजबजाती नालियां मिलेंगी और उफनता हुआ सीवर दिखेगा। सिर्फ सौगात बांटने से कोई विकास नहीं होता है। बनारस का विकास, पीएम का हप्पू मॉडल है। इस शहर को जितना फायदा होना था, उससे ज्यादा नुकसान हुआ है। पिछले सात सालों में बनारस की संस्कृति और उसकी पौराणिकता को तहस-नहस किया गया है। विश्वनाथ कारिडोर बहाने करीब 200 पुरातन और ऐतिहासिक मंदिर तोड़ दिए गए। स्मार्ट सिटी के नाम पर गलियां तहस-नहस कर दी गईं। बनारस के हाल को देखकर तो यही लगता है कि यहां विकास किसी सनक का नाम है या फिर कोई जुमला।"

(विजय विनीत बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)  

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