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अयोध्या में लड़ा जा रहा है ‘हिन्दुत्व’ का चुनावी युद्ध

1992 के बाद एक बार फिर से भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सभी अनुषांगिक संगठन फिर से मोर्चे पर तैनात हो गये हैं, उनका लक्ष्य राम मंदिर निर्माण नहीं, हिन्दू-मुसलमान का ध्रुवीकरण करना हैI
Ayodhaya Ram Mandir
Newsclick Image by Sumit Kumar

अयोध्या फिर सुर्खियों में है। 24-25 नवम्बर को शिवसेना और विश्व हिन्दू परिषद के कार्यक्रमों ने एकाएक अयोध्या में सरगर्मी पैदा कर दी थी। 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस और उसके बाद मची मार-काट की घटनाओं को देखते हुए अयोध्यावासियों के चेहरों पर चिन्ता की लकीरें खींच दी थीं। इन दोनों ही संगठनों के कार्यक्रमों की समाप्ति के बाद अयोध्यावासियों ने राहत की सांस ली है।

1992 के बाद एक बार फिर से भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सभी अनुषांगिक संगठन फिर से मोर्चे पर तैनात हो गये हैं, उनका लक्ष्य राममंदिर निर्माण नहीं, हिन्दू-मुसलमान का ध्रुवीकरण करना और उसके लिए माहौल बनाना है। जिससे इस स्थिति का लाभ चुनाव में उठाया जा सके। 2014 की चुनावी बिसात में भारतीय जनता पार्टी ने राममंदिर के जिस मुद्दे को अपने विकास के मुद्दे में अहमियत नहीं दी थी और इसे चुका हुआ मान लिया गया था, उसे फिर से चुनावी मोड में लाने की जुगत में लगी हुयी है।

भारतीय जनता पार्टी के नेता नरेन्द्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में अपने पूरे प्रचार अभियान में न तो मंदिर का नाम लिया था और न ही ऐसा कोई वादा किया था। यहां तक कि जब फैजाबाद की रैली में आये, तब भी नहीं। चुनावी घोषणा पत्र में भी वह परम्परागत तरीके से ही रखा गया था। ऐसी स्थिति में भाजपा के पास एक बार फिर से ‘राम’ और ‘मंदिर’ के पास जाने की जरूरत पड़ रही है। क्योंकि जो सपने 2014 में बेंचे गये थे उनकी हकीकत सामने आ गयी है। भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद, संघ और उसके विभिन्न संगठनों के सभी नेता बड़बोले ढ़ंग से इसे किसी न किसी रूप में ज़िन्दा रखने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगाये हुए हैं। अयोध्या में विश्व हिन्दू परिषद की धर्मसभा और शिवसेना का अयोध्या में आशीर्वाद और सम्मान समारोह भी इसी का एक हिस्सा रहा। शिवसेना का लक्ष्य जहां नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार को राममंदिर के बहाने घेरने तथा उत्तर प्रदेश में भी अपनी पार्टी की एन्ट्री करवाने का रहा, वहीं विश्व हिन्दू परिषद की धर्मसभा शिवसेना के हाथ में मुद्दा न जा सके तथा अदालत को अरदब में लेने की रही।

शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने बिना नाम लिए हुए नरेन्द्र मोदी को अपने निशाने पर रखा ‘ मंदिर निर्माण के लिए दिल चाहिए, सीना कितना बड़ा है इससे नहीं होगा।’ उन्होंने कहा कि मैं यहां कुम्भकर्ण को जगाने आया हूं जो साढ़े चार साल से सो गया है। विश्व हिन्दू परिषद और भारतीय जनता पार्टी पर भी उन्होंने तंज कसा कि वे कहते हैं कि ‘मंदिर यहीं बनायेंगे, तारीख नहीं बनायेंगे।’ उद्धव ठाकरे यहां तक कहते हैं कि यदि राममंदिर निर्माण नहीं हुआ तो 2019 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार की वापसी नहीं होगी।

वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश की जनसभाओं में राममंदिर को लेकर प्रचार करने में लगे हैं कि ‘रामकाज कीन्हें बिना मोहि कहां विश्राम।’ इन राज्यों में भी मुख्यमंत्रियों के काम-काज और विकास के बजाय हिन्दुत्व और राममंदिर का राग अलापा जा रहा है। विश्व हिन्दू परिषद की धर्मसभा की पूर्व सन्ध्या पर योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या में राममंदिर की प्रतिमा का विवरण जारी कर दिया कि लगने वाली दर्शनीय राम की मूर्ति किस प्रकार की होगी। यह मूर्ति नरेन्द्र मोदी द्वारा गुजरात में लगायी गयी सरदार पटेल की प्रतिमा से भी ऊंची 221 मीटर की होगी। इस प्रकार पूरा वातावरण ही राममय बनाने की कोशिशें जारी हैं जिससे दूसरे मुद्दे इन्हीं के बीच खो जायें और जनता सरकारों से हिसाब न मांगे। जनता हिन्दू मुसलमान बन जाये और उसी में उलझती रहे।

अयोध्या की स्थानीय जनता ने 1984 से लेकर अब तक राममंदिर के नाम पर बहुत कुछ देख चुकी है। 1984-85 में सीखचों में कैद राम को मुक्त कराने के लिए निकाली गयी विश्व हिन्दू परिषद की रथयात्रा तथा 1986 में अदालती आदेश से ताला खुलने के बाद रामजानकी विजय यात्रा से लेकर 1989 में शिलान्यास, 1990 में कारसेवा और 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस जैसी घटनाओं को अपनी आंखों के सामने देखने वाली अयोध्या की जनता अब इन कार्यक्रमां को महज ड्रामा मान रही है। वह चाहती तो है कि राममंदिर का निर्माण हो जाये लेकिन अब इस प्रकार के नाटकों के लिए वह अपने को तैयार नहीं कर पा रही है। 1992 के बाद अयोध्या ने राहत की सांस भी ली थी कि रोज होने वाले हंगामें से कमसेकम मुक्ति मिलेगी। जब सारे मुद्दे हवा-हवाई हो गये तब फिर से अयोध्या की याद भारतीय जनता पार्टी को आयी है। अब उसे लगता है कि इससे एक पंत दो काज हो जायेंगे।

विश्व हिन्दू परिषद, अयोध्या के रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवादित स्थल एवं अधिग्रहीत भूमि का कोई बंटवारा नहीं चाहती। वह सम्पूर्ण भूमि राममंदिर के लिए चाहती है। विश्व हिन्दू परिषद की धर्मसभा में परिषद के अंतर्राष्ट्रीय उपाध्यक्ष चम्पत राय ने कहा धर्मसभा का अन्तिम संकल्प है कि देश में कहीं भी बाबरी मस्जिद न बनें, अयोध्या में सिर्फ मंदिर ही बने बाबर आक्रमणकारी था, विदेशी था। आक्रमणकारियों के कलंक को सीने से न लगायें। उसी स्थान पर जहां मूर्ति है रत्तीभर भी हिले-डुले राममंदिर का निर्माण हो।’यह मंदिर उन्ही पत्थरों का बने जो तराशे गये हैं तथा निर्माण भी संतो द्वारा हो। यह लाइन धर्मसभा में चम्पतराय ने खींच दी। उन्होंने कहा कि वहां पर मंदिर था और मंदिर ही रहेगा, वहां मस्जिद नहीं हो सकती है। न्यायालय चालाकी से मामले को टालता रहा है। यदि अदालत नहीं करती है तो समाज की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार को आगे आना चाहिए। केन्द्र और उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। विश्व हिन्दू परिषद की धर्मसभा में 48 जिलों से लोग बुलाये गये थे जो आये और चले गये। विश्व हिन्दू परिषद ने 18 दिसम्बर तक देश भर में तहसीलस्तर से लेकर राज्यस्तर तक पांच हजार सभा करने का निर्णय किया है अयोध्या के बाद अगली धर्मसभा दिल्ली में नौ दिसम्बर को होगी। इसी बीच अयोध्या में  चित्रकूट के जगदगुरू शंकराचार्य रामभद्राचार्य ने खुलासा किया है कि एक केन्द्रीय मंत्री ने उन्हें आश्वस्त किया है कि 11 दिसम्बर से चलने वाले शीतकालीन सत्र के दौरान सरकार राममंदिर पर बड़ा फैसला ले सकती है। इस अवसर पर अयोध्या के साधु-महन्त तथा रामजन्मभूमि न्यास के महन्त नृत्यगोपाल दास भी मौजूद थे। अयोध्या के सामान्य नागरिकों के बजाय दूर-दराज से आये हुए लोगों ने ही कार्यक्रम में भागीदारी की और चलते बने।

रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद अयोध्या की एक स्थानीय समस्या के तौर पर देश के आजाद होने के बाद 1949 में आचार्य नरेन्द्रदेव और बाबा राघवदास के उपचुनाव अभियान में उभरकर सामने आयी थी। यह उपचुनाव आचार्य नरेन्द्रदेव द्वारा कांग्रेस से इस्तीफा देने के कारण हो रहा था। तब इसका प्रयोग कांग्रेस ने किया था और आचार्य नरेन्द्रदेव को नास्तिक बताते हुए उस चुनाव में उन्हें खूब खरी खोटी सुनायी गयी थी। 22/23दिसम्बर 1949 को बाबरी मस्जिद में मूर्ति रखे जाने के पहले भी तत्कालीन गोविन्द बल्लभ पंत की कांग्रेस सरकार ने रामचबूतरे से मंदिर बनाने की एक योजना बनानी उसी प्रकार शुरू कर दी थी जिस प्रकार सोमनाथ में मंदिर निर्माण के लिए कांग्रेस के अन्दर ही मतभिन्नता दिखायी पड़ रही थी और देश का स्वरूप क्या हो, इस पर भी मंथन चल रहा था। वहीं अयोध्या में भी देश के विभाजन का प्रभाव साफ दिख रहा था।

1885 में महन्त रघुवरदास रामचबूतरे पर मंदिर निर्माण का मुकदमा हार चुके थे। 1885 के बाद 1949 में इसे मुद्दे के तौर पर चुनाव में उठाना मायने रखता है। बाबा राघवदास ने विधायक निर्वाचित होने के बाद नवान्ह पाठ कराने की घोषणा मस्जिद में मूर्ति रखे जाने के बाद की थी। उस समय भी कांग्रेस में इस प्रश्न पर दो फाड़ दिख रहा था। जिला कांग्रेस के महामंत्री और वैष्णव साधू अक्षय ब्रहम्चारी ने मूर्ति रखे जाने के खिलाफ अयोध्या से लेकर राजधानी लखनऊ तक कांग्रेस के अन्दर से लेकर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू तक को पत्र लिखे। प्रधानमंत्री नेहरू के टेलीग्राम के बाद भी एक जिलाधिकारी के के के नायर जो इन सब साजिशों के एक अंग थे, ने यह कहकर हाथ खडे़ कर दिये कि मूर्ति हटाने पर ऐसी स्थिति हो जायेगी कि सम्भलेगी नही,मूर्ति नहीं हटायी जा सकी। तीन गुम्बदमय इमारत जिसे बाबरी मस्जिद कहा जाता था, कुर्क हो गयी और रखी गयी मूर्तियां का पूजा-पाठ अदालती आदेशों से जारी है मुकदमा सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है। आज भी जो कुछ उस स्थल पर 1949 से हो रहा है वह अदालती आदेशों के तहत हो रहा है। जो लोगां मूर्ति रखे जाने के आरोपित थे पहले वे जमानत पर रहे और बाद में चार्जशीट अदालत में प्रस्तुत की गयी कि इन लोगों ने पुराना मंदिर जानकर मूर्ति रख दी। इस प्रकार मुकदमें की स्थिति ही बदल गयी। इस मामले में जिसमें जिलाधिकारी ने हलफनामा दिया था कि मूर्ति रखे जाने के एक सप्ताह पूर्व तक उस स्थल पर नमाज पढ़ी गयी थी।

1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद केन्द्र सरकार ने 1993 में विवादित स्थल के आस-पास की लगभग 70 एकड़ भूमि का अधिग्रहण अध्यादेश के माध्यम से साम्प्रदायिक सौहार्द स्थापित करने के उद्देश्य से किया था जो आज भी अयोध्या निश्चित क्षेत्र अधिग्रहण कानून के रूप में जाना जाता है अधिग्रहीत समस्त भूमि का अधिकार केन्द्र सरकार में निहित है। जहां बिना अदालती आदेश के कुछ भी विधिक रूप से किया जाना सम्भव नहीं है।

लेखिका से [email protected] पर संपर्क किया जा सकता हैI

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