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बिल्किस बानो मामला : गुजरात सरकार को 50 लाख मुआवजा, नौकरी और मकान देने का आदेश

गुजरात में 2002 के दंगों के दौरान अहमदाबाद के पास हिंसक भीड़ ने हमला कर गर्भवती बिल्किस बानो से सामूहिक बलात्कार किया और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी थी।
Bilkis Bano Case
Image Courtesy: The Hans India

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात में 2002 के दंगों के दौरान सामूहिक बलात्कार का शिकार हुईं बिल्किस बानो को 50 लाख रुपये बतौर मुआवजा, नौकरी और आवास देने का निर्देश राज्य सरकार को दिया है।

आपको बता दें कि 2002 में अहमदाबाद के पास हिंसक भीड़ के एक हमले के दौरान दंगाईयों ने गर्भवती बिल्किस बानो से सामूहिक बलात्कार किया और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी थी।

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ को गुजरात सरकार ने सूचित किया कि इस मामले में दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जा चुकी है। पीठ को यह भी बताया गया कि पुलिस अधिकारियों के पेंशन लाभ रोक दिये गये हैं और बंबई उच्च न्यायालय द्वारा दोषी आईपीएस अधिकारी की दो रैंक पदावनति कर दी गयी है।

बिल्किस बानो ने इससे पहले शीर्ष अदालत के समक्ष एक याचिका पर उन्हें पांच लाख रुपए मुआवजा देने की राज्य सरकार की पेशकश ठुकराते हुये ऐसा मुआवजा मांगा था जो दूसरों के लिये नज़ीर बने।

शीर्ष अदालत ने इससे पहले 29 मार्च को गुजरात सरकार से कहा था कि बंबई उच्च न्यायालय द्वारा दोषी ठहराये गये आईपीएस अधिकारी सहित सभी दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ दो सप्ताह के भीतर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाये।

बानो की वकील शोभा गुप्ता ने इससे पहले न्यायालय से कहा था कि राज्य सरकार ने दोषी ठहराये गये पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है। उन्होंने यह भी कहा था कि गुजरात में सेवारत एक आईपीएस अधिकारी इस साल सेवानिवृत्त होने वाला है जबकि चार अन्य पहले ही सेवानिवृत्त हो चुके हैं और उनकी पेंशन तथा सेवानिवृत्ति संबंधी लाभ रोकने जैसी कार्रवाई भी नही की गयी है।

राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता तुषार मेहता ने कहा था कि इन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्यवाही की जा रही है। बिल्किस बानो को मुआवजे के बारे में मेहता ने कहा था कि इस तरह की घटनाओं में पांच लाख रुपये मुआवजा देने की राज्य सरकार की नीति है।

अभियोजन के अनुसार अहमदाबाद के पास रणधीकपुर गांव में उग्र भीड़ ने तीन मार्च 2002 को बिल्किस बानो के परिवार पर हमला बोला था। इस हमले के समय बिल्किस बानो पांच महीने की गर्भवती थी और उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गयी थी।

इस मामले में विशेष अदालत ने 21 जनवरी, 2008 को 11 आरोपियों को उम्र कैद की सजा सुनाई थी जबकि पुलिसकर्मियों और चिकित्सकों सहित सात आरोपियों को बरी कर दिया था।

उच्च न्यायालय ने चार मई, 2017 को पांच पुलिसकर्मियों और दो डाक्टरों को ठीक से अपनी ड्यूटी का निर्वहन नहीं करने और साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ करने के अपराध में भारतीय दंड संहिता की धारा 218 और धारा 201 के तहत दोषी ठहराया था। पीड़िता की वकील के मुताबिक ट्रायल के दौरान जेल में काटे वक्त को ही ही इन लोगों की सज़ा मान लिया गया था। और इन लोगों को फिर से सेवा में रख लिया गया।
शीर्ष अदालत ने 10 जुलाई, 2017 को दोनों डाक्टरों और आईपीएस अधिकारी आर एस भगोड़ा सहित चार पुलिसकर्मियों की अपील खारिज कर दी थी। इन सभी ने उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी।

मंगलवार को फैसला सुनाते हुए सीजेआई ने गुजरात सरकार की वकील हेमंतिका वाही से कहा, "आप खुद को भाग्यशाली समझिए कि हम अपने आदेश में सरकार के खिलाफ कुछ नहीं कह रहे हैं।"
 

(समाचार एजेंसी भाषा और livelaw.in के इनपुट के साथ)

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