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भाजपा का दूसरा तरीका: बिना चुनाव जीते सत्ता कब्जाने का

पिछले चार वर्षों में बीजेपी ने सत्ता हासिल करने के लिए कई तरीकों का इस्तेमाल किया है।
BJP

बीजेपी एक सत्ता की भूख के संगठन के सभी संकेत प्रदर्शित कर रही है जो अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए कुछ भी कर सकती है। 2014 के नतीजों के चलते मोदी ने पार्टी को लोकसभा में नाटकीय जीत दिलाने के बाद और फिर कई विधानसभा चुनाव जीतकर, इसके नेतृत्व और अनुयायियों - साथ ही इसके सलाहकार, आरएसएस - ने अपने भीतर भ्रम पाल लिया वे पवित्र और अजेय हैं। मोदी की बड़े पैमाने पर अपील के लिए और शाह की चुनाव प्रबंधन के लिए प्रशंसा की जाने लगी। कुछ भी उन्हें रोक नहीं सकता था, यह फैलाया गया कि उन्हें कोई नहीं रोक पायेगा।

फिर भी, वे लगातार अपनी ज़मीन खो रहे हैं। 2014 के बाद से, 27 विधानसभा चुनाव देश में हुए हैं। इनमें से, बीजेपी ने सात राज्यों में हरियाणा, हिमाचल, उत्तराखंड, त्रिपुरा, यूपी, असम, गुजरात में पूर्ण बहुमत हासिल किया। और अपने पूर्व चुनाव सहयोगियों के साथ, इसने चार राज्य में जीत हासिल की उनमें: एपी, झारखंड, मणिपुर, नागालैंड शामिल यहीं। यह कुल 11 राज्य है।

तो हम यह कैसे सुनते हैं कि भाजपा अब 21 राज्यों में शासन करती है और इसमें 15 मुख्य मंत्री उसके हैं। इसका जवाब इस तथ्य में निहित है कि उनकी योजना ए के अनुसार सामान्य रूप से चुनाव जीतने के लिए (और अभी भी है) (मोदी, पैसा, बाहुबल, सांप्रदायिक और जातिगत राजनीति, जुमले भरे वादे आदि का इस्तेमाल करते हैं) लेकिन उनकी एक योजना बी भी है।

यह योजना बी क्या है? कर्नाटक में हालिया घटनाएं दिखाती हैं, या फिर बिहार भी एक उद्धरण है वहां पिछले दरवाजे से कैसे सत्ता हासिल की गयी है, इससे पहले, अरुणाचल प्रदेश, गोवा, मेघालय इस के उदाहरण हैं। जैसे ही समय बीतता है, और मोदी सरकार की विफलताओं में का [पुलिंग बड़ा होता है , हम इस योजना बी की अचानक सक्रियता को बढ़ते देखते हैं।

अरुणाचल प्रदेश में, 2014 में विधानसभा चुनावों ने जो परिणाम दिया उसमें : बीजेपी 11; कांग्रेस 42; अरुणाचल की पीपुल्स पार्टी 5; निर्दलीय 2 थे. लेकिन इन दो अशांत वर्षों के दौरान, संख्याएं बदल गईं: बीजेपी की 48; कांग्रेस 1; पीपीए 9; निर्दलीय 2 हो गयी! इसे कहा जाता है थोक में की गयी तोड़-फोड़, फिर राष्ट्रपति शासन का जादू चला, पूर्व मुख्यमंत्री की मौत होती है, सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप होता है, बाद में एक अनिच्छुक गवर्नर और आदेश न मानने वाले को वापस बुला लिया जाता है और मुख्यमंत्रियों को और यहाँ इस तरह  भाजपा के पास सरकार आ जाती है!

अक्टूबर-नवंबर 2015 में आयोजित 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा चुनावों में बीजेपी को सिर्फ 53 सीटें मिलीं और 2 उनके सहयोगियों के पास गईं। यह आरजेडी-जेडी (यू)-कांग्रेस गठबंधन द्वारा विशाल जीत हासिल की गयी, जिसे चुनाव से पहले हुए गठबंधन की वजह से 178 सीटों हासिल हुयी। फिर भी, बीजेपी ने इस गठबंधन को तोड़ दिया, जेडी (यू) और उसके मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लुभाया, और जुलाई 2017 में गठबंधन सरकार बनाई। अमित शाह कर्नाटक में कांग्रेस और जेडी (एस) के बीच "अपवित्र गठबंधन" के बारे में शिकायत कर रहे हैं, लेकिन बीजेपी के गठबंधन और सरकार के बारे में क्या। बिहार में चोर दरवाजे से सरकार के गठन का क्या?

2014 में झारखंड के विधानसभा चुनावों में, बीजेपी ने 81 सदस्यीय विधानसभा में 35 सीटों और एजेएसयू ने 5 सीटें जीती थीं। वे बहुमत से दूर थे। इसलिए, फिर उन्होंने कुछ स्वतंत्र सदस्यों पर विजय प्राप्त की और बहुमत हासिल करने के लिए झारखंड विकास मोर्चा के 8 विधायकों में से 6 को अपने गठबंधन में ले लिया।

फिर, मार्च 2017 में, बीजेपी ने गोवा विधानसभा में 40 सीटों में से केवल 13 सीटें जीतीं। छोटे स्थानीय दलों के साथ परिणामों की घोषणा के बाद उन्होंने एक गठबंधन किया और सरकार बनाई। यहां तक कि सबसे बड़ी पार्टी के रूप में, कांग्रेस 17 सीटों के साथ विपक्ष में बैठी है।

मणिपुर में, बीजेपी ने 2017 के विधानसभा चुनावों में 60 में से 21 सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस को 28 सीटें मिली थी। लेकिन बीजेपी ने दो स्थानीय दलों एनपीपी और एनपीएफ और अकेले विधायक को अपने साथ मिलाकर सरकार बनाने का दावा थोक दिया। पूर्व भाजपा सांसद, राज्यपाल नज्मा हेपतुल्ला ने भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर दिया।

मेघालय में, भाजपा ने 60 सदस्यीय विधानसभा के लिए मार्च 2018 के चुनावों में सिर्फ दो सीटें जीतीं। लेकिन इसने सरकार का हिस्सा बनने के लिए एनपीपी के साथ एक पोस्ट पोल गठबंधन किया। फिर एक उपयोगी गवर्नर, बिहार के पूर्व भाजपा एमएलसी गंगा प्रसाद ने मदद की।

और, अंत में कर्नाटक के हालिया चुनाव में, 224 सदस्यीय विधानसभा में केवल 104 विधायकों (2 सीटों के चुनाव नहीं हुए) के बावजूद, गुजरात के पूर्व विधायक वाजूभाई वाला ने राज्य के राज्यपाल के रूप में अपनी नई भूमिका में भाजपा नेता बीएस येदियुरप्पा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया, और बड़े गठबंधन  कांग्रेस-जेडी (एस) को नजरअंदाज कर दिया। अगर सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप नहीं किया होता और अगले दिन बहुमत साबित करने के लिए नहीं कहा होता, तो बीजेपी कर्नाटक को भी अपनी सफलता की सीढ़ी के रूप में गिनवा रही होती। येदियुरप्पा ने हार का सामना करने से पहले ही इस्तीफ़ा दे दिया और एक नई कांग्रेस-जेडी (एस) सरकार का गठन होने का रास्ता प्रसस्त हुआ। जिसे 55 घंटे लंबे बीजेपी शासन के बाद स्थापित किया गया।

7 राज्यों में घटी ये घटनाएं क्या बताती हैं कि बीजेपी सरकार बनाने के लिए कुछ भी कर सकती है। यह विधायकों, यहां तक कि पार्टियों को विलय करने या उन्हें दल बदलने के लिए तैयार करती है, यह अपने गवर्नरों का उपयोग करती है, यह गठजोड़ तोड़ती है और नए गठजोड़ बनाती है, सत्ता के लिए यह अपने सहयोगियों को त्याग देगा या उनके साथ मिल जाएगा। एक शांत लहर सुप्रीम कोर्ट या अन्य अदालतों के हस्तक्षेप और राजनीतिक दलों की तरफ से चल रही है, किसी भी तरह से भाजपा की लोकतंत्र को तबाह करने वाली  टीम से लोकतांत्रिक मानदंडों और कानूनों को बचाने की कोशिश कर रही है। सबसे महत्वपूर्ण 2019 का लोकसभा चुनाव बस एक वर्ष से भी कम की दुरी पर है और तीन महत्वपूर्ण विधानसभा चुनाव (राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़) भी आने वाले हैं, यह देखना होगा की शाह-मोदी टीम और आरएसएस का झुण्ड इन चुनावों का प्रबंधन कैसे करता है।

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