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चुनाव 2019; झारखंड : कोडरमा सीट पर माले का मजबूत दावा

“कोडरमा सीट पर पूरे प्रदेश के वामपंथी और जनमुद्दों के आंदोलनकारी-लोकतान्त्रिक शक्तियों की आशाभरी निगाहें लगीं हुईं हैं।”
कोडरमा में माले की जनसभा

11 अप्रैल को झारखंड प्रदेश के गिरिडीह मुख्यालय स्थित झण्डा मैदान का पूरा परिसर भाकपा माले कार्यकर्ताओं-समर्थकों की भारी भीड़ से अंटा पड़ा था। दोपहर की चिलचिलाती धूप में भी लाल झंडे लहराकर जोशपूर्ण नारे लगा रहे युवा जत्थों का उत्साह देखने लायक था। ये सभी आगामी 6 मई को राज्य के कोडरमा संसदीय चुनाव में आपनी पार्टी प्रत्याशी के नामांकन कार्यक्रम में शामिल होने आए थे। इस सीट से क्षेत्र के लोकप्रिय जननेता व भाकपा माले विधायक कॉमरेड राज कुमार यादव को राज्य के सभी वामपंथी दलों के समर्थन से माले ने अपना प्रत्याशी बनाया है। राजकुमार ने 2014 के चुनाव में मोदी–लहर पर सवार भाजपा प्रत्याशी को कड़ी टक्कर दी थी और 6 में से चार विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त बनाकर दूसरे स्थान पर रहे थे। 

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नामांकन के बाद ..... “चेहरे बदले पार्टियां बदलीं, नहीं बदला तो उजाड़–पलायन और लूट का सिलसिला... आइये, हम जीतें विकास और रोजगार की अपनी जंग”  के आह्वान के साथ  ‘विकास संकल्प रैली’ का आयोजन किया गया। झारखंड विधानसभा में मार्क्सवादी समन्वय समिति के विधायक कॉ. अरूप चटर्जी ने अपनी पार्टी के सक्रिय समर्थन की घोषणा की। अपने सम्बोधन में कहा कि कोडरमा सीट पर पूरे प्रदेश के वामपंथी और जनमुद्दों के आंदोलनकार-लोकतान्त्रिक शक्तियों की आशाभरी निगाहें लगीं हुईं हैं। कॉमरेड राजकुमार यादव जिस प्रकार विधान सभा सदन से लेकर सड़कों के जन अभियानों में जनता के सवालों को बुलंदी से उठाते रहें हैं, वक़्त आ गया है कि जनता की इस आवाज़ को संसद में भी पूरी ताक़त के साथ पहुंचाई जाए। इनकी जीत से न केवल सभी लाल झंडे का मान बढ़ेगा बल्कि धर्मनिरपेक्ष शक्तियों को भी मजबूती मिलेगी।

सभा में आए साथियों का उत्साह बढ़ाते हुए राजकुमार यादव ने जोशभरे अंदाज़ में कहा कि व्यापक जनसंपर्क अभियानों के दौरान उन्होंने पाया कि लोगों में व्यापक चर्चा है कि इस बार देश के साथ साथ कोडरमा में भी बदलाव होगा। माले का एक एक वोट जनता के संघर्षों का है इसलिए सवाल सिर्फ जीत-हार मात्र का ही नहीं है बल्कि उससे भी बड़ा पहलू है कि इस चुनाव में झारखंड और इस देश से ‘लूट– झूठ का राज’ कैसे खत्म होगा।

सभा के कई वक्ताओं ने तथाकथित विपक्षी महागठबंधन द्वारा वाम दलों को किनारा कर ‘भाजपा हटाओ’ अभियान को कमजोर करने के लिए तीखी आलोचना भी की। कई मुस्लिवक्ताओं ने तो उनपर सीधे आरोप लगाते हुए कहा कि बगल के गोड्डा सीट में दूसरे स्थान पर रहे राज्य के एकमात्र मुस्लिम प्रत्याशी और कोडरमा में लाल झंडे की सीट छीनकर वैसे दल को टिकट दिया गया है जिसकी भूमिका हमेशा से संदिग्ध रही है।

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निस्संदेह ये सारी प्रतिक्रियाएं यूं ही नहीं हैं क्योंकि झारखंड में कोडरमा संसदीय क्षेत्र ही ऐसा रहा है जिसके अधिकांश इलाकों में पिछले कई वर्षों से भाकपा माले की मजबूत जमीनी प्रभाव है। लगभग तीन दशक पूर्व क्षेत्र के दलित–पिछड़े किसानों, अल्पसंख्यकों व ग्रामीण गरीबों पर होनेवाले सामंती उत्पीड़नों, पुलिस अत्याचार और बेगारी - सूदखोरी शोषण की अमानवीय स्थितियों के खिलाफ जुझारू वाम आंदोलन संगठित करके महेंद्र सिंह जी ने सूत्रपात किया था। इस कारण महेंद्र जी को लगातार राज्य दमन का सामना करते हुए अनेकों बार जेल में भी रहना पड़ा। सरकार व विरोधियों की गहरी साज़िश से उन्हें फांसी की सज़ा भी हो गयी थी लेकिन व्यापक जनप्रतिवाद के कारण कोर्ट ने उन्हें बाइज्जत बारी कर दिया। इलाके के वंचितों–उपेक्षितों के भारी जन समर्थन ने ही महेंद्र सिंह को बागोदर विधानसभा क्षेत्र से लगातार चार बार अपना विधायक चुना। दो बार कोडरमा संसदीय क्षेत्र से माले उम्मीदवार बनकर अच्छा खासा वोट हासिल किया । लेकिन 2005 में सुनियोजित राजनीतिक साजिश से उनकी हत्या किए जाने के बाद बाद कॉ. विनोद सिंह को भी लोगों ने दो बार माले का विधायक चुना। वहीं राजधानवार के इलाके में राजकुमार यादव ने भी महेंद्र सिंह द्वारा स्थापित माले की संघर्ष परंपरा को आगे बढ़ाते हुए पिछले विधानसभा चुनाव यहाँ से विधायक बने हैं। गौरतलब है कि झारखंड विधानसभा में विधायकों के वेतन–भत्ते इत्यादि बढ़ाने व उन्हें कीमती उपहार दिये जाने के खिलाफ महेंद्र सिंह द्वारा शुरू की गयी बहिष्कार परंपरा आज भी माले विधायक दृढ़ता से लागू करते हैं। इस बहिष्कार का तर्क है कि इस राशि का उपयोग विधायकों की बजाय जनहित में होना चाहिए। 

चुनाव जनता के अपने सवालों के वास्तविक समाधान का रास्ता तैयार करने का एक निर्णायक अवसर होता है। इन्हीं संदर्भों में कोडरमा सीट के मतदाताओं का बड़ा हिस्सा ( विशेषकर ग्रामीण ) इस बार बदलाव के मूड में है। क्योंकि वर्तमान भाजपा सांसद से लेकर इसके पूर्व दो-दो बार सांसद बने बाबूलाल मरांडी जी इत्यादि किसी ने भी इस क्षेत्र की बदहाली, मरणासन्न माइका उद्योग को उबारने, भयावह बेरोजगारी और रोजगार न मिलने से हो रहे भारी पलायान जैसी विकट समस्यों पर कोई ध्यान नहीं दिया। इसबार के चुनाव में बाबूलाल जी महागठबंधन प्रत्याशी बनकर उतरे हैं। वहीं 2014 के चुनाव में जनता से किए गए किसी भी वायदों को नहीं पूरा करने पर सवालों से घिरी भाजपा को अपने खिलाफ बन रहे सामाजिक समीकरण के मद्देनज़र दल बदलू नेता को अपना उम्मीदवार बनाना पड़ा है। वर्तमान स्थिति में माले प्रत्याशी को छोड़कर किसी भी उम्मीदवार के पास क्षेत्र के आम मतदाताओं से वोट मांगने का कोई ठोस और नया आधार नहीं दीख रहा, जबकि भाकपा माले द्वारा “....इस बार… बदलाव की आवाज़ कॉमरेड राज कुमार!” के चलाये जा रहे जन अभियान को मिल रहे व्यापक जनसमर्थन से .... संभव है कि इसबार बहे बदलाव की नयी बयार!

(लेखक सांस्कृतिक कार्यकर्ता हैं।)

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