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दिल्ली-एनसीआर में रेहड़ी-पटरी वाले संकट में, नई नीति से भी कोई हल नहीं

साग-सब्जी लेकर ढेर सारे सामान हम फुटपाथों और संडे-मंडे मार्केटों से ही लेते हैं। बहुत ही आसानी से हम राह चलते उनसे सामान खरीद कर चल देते हैं। लेकिन इस प्रक्रिया में हमारा ध्यान रेहड़ी-पटरी वालों के काम में दिन प्रतिदन आने वाली दुश्वारियों की तरफ नहीं जाता है।
footpath vendors
फोटो साभार : नवोदय टाइम्स

किसी भी शहर में सड़क के किनारे फुटपाथों पर लगने वाली दुकानें ही मुख्यत: लोगों की रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करती हैं। साग-सब्जी लेकर ढेर सारे सामान हम फुटपाथों और संडे-मंडे मार्केटों से ही लेते हैं। बहुत ही आसानी से हम राह चलते उनसे सामान खरीद कर चल देते हैं। लेकिन इस प्रक्रिया में हमारा ध्यान रेहड़ी-पटरी वालों के काम में दिन प्रतिदन आने वाली दुश्वारियों की तरफ नहीं जाता है। पुलिस, प्राधिकरण और स्थानीय गुंडों को हफ्ता देने के बावजूद उनका काम आसान नहीं है। पुलिस-प्रशासन की जब भी भौं टेढ़ी होती है तो उसका खामियाजा सबसे पहले रेहड़ी-पटरी वालों को ही उठाना पड़ता है। दिल्ली-एनसीआर में इस समय रेहड़ी-पटरी वाले ऐसे ही मुश्किलों का सामना कर रहे हैं।

दिल्ली में डीडीए और एनडीएमसी के नियम-कानूनों के दायरे में न आने के कारण ढेर सारे रेहड़ी-पटरी वालों को अपनी दुकाने बंद करनी पड़ रही हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या रेहड़ी-पटरी पर अपनी दुकानों को सजाने वाले नियम-कानून का उल्लंघन करते हैं?

2014 में यूपीए सरकार ने रेहड़ी-पटरी वालों के अधिकारों के लिए रेहड़ी पटरी कानून पूरे देश के लिए पास किया था। कानून के हिसाब से लाइसेंस लेकर रेहड़ी–पटरी पर व्यापार किया जा सकता है। एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि भारत ही नहीं विकसित देशों में भी सड़क के किनारे दुकानें देखी जाती हैं। इसलिए उन्हें उजाड़ने की बजाय नियमित करने का प्रयास किया जाना चाहिए। लेकिन विडंबना यह है कि दुकानों को नियमित करने के लिए स्थानीय निकाय लाइसेंस की संख्या तय कर देते हैं। और लाइसेंस के लिए नियम-कानून की पूर्ति करना सबके वश की बात नहीं होती है।

अभी कुछ महीने पहले केंद्रीय आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय ने राष्ट्रीय आजीविका मिशन (NULM) के तहत देश भर में सचल दुकानों की योजना बनाई है। इसके तहत देश के 2430 शहरों में 18 लाख रेहड़ी-पटरी वालों की पहचान की गई है। रेहड़ी-पटरी पर दुकान लगाकर जीविका चलाने वालों की यह बहुत छोटी संख्या है। सबसे बड़ी बात यह है कि पूरे देश तो क्या किसी एक शहर में कितने लोग रेहड़ी-पटरी पर दुकान लगाते हैं, इसका कोई अध्ययन नहीं हुआ है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने करीब18 महीने पहले वेंडर जोन पॉलिसी को मंजूरी दी थी। नोएडा अथॉरिटी ने इसके लिए 243 वेंडर जोन चिह्नित किए हैं। जिनमें 1100 दुकानें देने की व्यवस्था है। जबकि सच्चाई यह है कि नोएडा और ग्रेटर नोएडा में दसियों हजार लोग सड़कों के किनारे दुकानें लगाकर अपना भरण-पोषण करते हैं। ऐसे में अधिकांश लोगों को लाइसेंस नहीं मिल सकेगा। फिलहाल अभी तक एक भी लाइसेंस जारी नहीं हुआ है। 8 हजार लोगों ने इसके लिए आवेदन किए थे।

3 महीने पहले अथॉरिटी ने इनके लाइसेंस जारी करने की तैयारी कर दी थी लेकिन एक महीने पहले पुरानी प्लानिंग को बीच में रोककर अचानक रेहड़ी-पटरी वालों को हटाने का अभियान शुरू कर दिया। नोएडा अथॉरिटी की नवनियुक्त सीईओ रितु माहेश्वरी ने शहर की सड़कों पर लगने वाले जाम और अव्यवस्था के लिए रेहड़ी पटरी वालों को जिम्मेदार ठहराया है।

फरवरी माह में उत्तर प्रदेश शासन ने रेहड़ी-पटरी वालों के लिए नई नीति घोषित की थी। यह नीति नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना प्राधिकरण क्षेत्र में भी लागू की गई है। प्राधिकरण के अपर मुख्य कार्यपालक अधिकारी आरके मिश्रा का कहना है कि पूरे शहर में वेडिंग जोन तय कर लिए हैं। नए नियमों के तहत सड़कों, फुटपाथ, ओवरब्रिज, फ्लाई ओवर और दूसरे रास्तों पर रेहड़ी पटरी नहीं लगेंगी। प्राधिकरण का शुरुआती आकलन है कि शहर में करीब1,000 लोगों को लाइसेंस जारी किए जाएंगे। तीन वर्ष बाद लाइसेंस का नवीनीकरण होगा। नियमों के तहत लाइसेंस उसी व्यक्ति को मिलेगा जिसके पास आजीविका कोई अन्य साधन नहीं है।

वेंडर जोन पॉलिसी के तहत अथॉरिटी पिछले एक महीने से रेहड़ी-पटरी को हटा रही है। जिसके चलते करीब25 हजार से भी ज्यादा लोगों के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है। इनमें सब्जी से लेकर रोजमर्रा की जरूरत से जुड़े अन्य सामान बेचने वाले लोग भी शामिल हैं।
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रेहड़ी-पटरी एसोसिएशन के गंगेश्वर दत्त शर्मा ने कहा कि अथॉरिटी ने वेंडर जोन नहीं बनाया, न ही सर्वे हुआ, फिर भी रेहड़ी-पटरी को उजाड़ा जा रहा है। अथॉरिटी अतिक्रमण के नाम पर रेहड़ी-पटरी वालों को उजाड़ रही है। ऐसी खराब स्थिति पिछले 30 साल में कभी नहीं हुई।

बिना वेंडर जोन पॉलिसी लागू किए अतिक्रमण हटाने के नाम पर हो रहे शोषण के खिलाफ10 हजार से अधिक रेहड़ी-पटरी वालों ने नोएडा अथॉरिटी के कार्यालय पर प्रदर्शन भी किया। अथॉरिटी के अधिकारियों के साथ प्रदर्शनकारियों की मीटिंग भी हुई लेकिन कोई हल नहीं निकला।

नोएडा अथॉरिटी के ओएसडी एमपी सिंह कहते हैं कि “हमने रेहड़ी-पटरी वालों का ज्ञापन ले लिया है। उनसे कहा है कि जहां-जहां कोर्ट का स्टे है, वहां हम रेहड़ी वालों को नहीं हटाएंगे। बाकी जगह अभियान जारी रहेगा। एक महीने के अंदर वेंडर जोन पॉलिसी के लिए लोगों को लाइसेंस जारी करने का प्रयास किया जाएगा।”
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दिल्ली में भी आए दिन रेहड़ी-पटरी वालों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। दिल्ली कांग्रेस के नेता देवेन्द्र यादव ने केजरीवाल सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि यदि दिल्ली सरकार एक सप्ताह में रेहड़ी पटरी अधिनियम के तहत टाउन वेंडिग कमेटी की मान्यता को मंजूर नहीं दिया तो दिल्ली के टाउन वेंडिग कमेटी के सभी सदस्यों के साथ लाखों रेहड़ी पटरी वाले 15 सितंबर को विशाल धरना देंगे।

कांग्रेस से जुड़े मुकेश गोयल कहते हैं कि दिल्ली में रेहड़ी पटरीवालों के साथ अन्याय हो रहा है। रेहड़ी पटरी वाले सम्मानपूर्वक अपना व्यापार करके अपनी जीविका चलाने में व्यवधान डाला जा रहा है। दिल्ली सरकार यदि 2014 में पारित रेहड़ी पटरी अधिनियम को लागू कर दे तो इसका सीधा फायदा दिल्ली के 5 लाख रेहड़ी पटरी के परिवार वालो को मिलता, जो आज के दौर में चल रही आर्थिक मंदी के शिकार हैं।

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