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दिल्ली :निगम के 6 लाख छात्रों अबतक क्यों नहीं मिली नोटबुक?

हमारी सरकार का नारा है ‘सब पढ़े, सब बढ़े’ परन्तु बिना नोटबुक कैसे पढ़ें, जब नहीं पढ़ें तो कैसे बढ़ें?
mcd school education
Image Courtesy: amarujala.com

शाहाबाद डेरी के एक निगम स्कूल की चौथी कक्षा में पढ़ने वाली छात्रा ने बतया कि शैक्षिक सत्र 2018-19 के शुरू हुए तीन माह बीत जाने के बाद भी उसे स्कूल से कोई नोटबुक नहीं मिली है| वो खुद ही नोटबुक खरीदकर पढ़ाई कर रही है।

सोनिया विहार के निगम स्कूल की तीसरी कक्षा की छात्र की कहानी बहुत ही झकझोरने वाली थी| उसे भी अबतक स्कूल की तरफ से मिलने वाली नोटबुक नहीं मिली है, उसके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत ही खरब है| उसके पास नोटबुक के लिए पैसे नहीं है, अभी वो किसी की दी हुई पुरानी नोटबुक को लेकर स्कूल जाती है|

दिल्ली में निगम विद्यालयों का शैक्षिक सत्र अप्रैल में शुरू हुआ था, उत्तरी नगर निगम और पूर्वी दिल्ली नगर निगम (ईडीएमसी) द्वारा संचालित स्कूलों में पढ़ रहे लगभग छह लाख छात्रों को गर्मी की छुट्टियों के समाप्त होने के बाद भी नोटबुक नहीं मिले हैं। इन विद्यालयों में पढ़ रहे अधिकांश बच्चे समाज के निचले स्तर से आते हैं और इन सुविधाओं में देरी उन्हें बहुत प्रभावित करती है।

2009 में लागू शिक्षा के अधिकार (आरटीई) अधिनियम के अनुच्छेद 8 के अनुसार, निगम द्वारा संचालित प्राथमिक विद्यालयों के लिए छात्रों को स्टेशनरी, किताबें, नोटबुक और अन्य सुविधाएँ प्रदान करना अनिवार्य है। ये हर सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वो सभी छात्रों को प्रथमिक सुविधाएँ प्रदान करें|

अप्रैल में शुरू हुए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत में बच्चों को केवल पाठ्यपुस्तकें दी गईं, नोटबुक नहीं। स्कूल वर्दी और बैग जैसी अन्य सुविधाओं के लिए जो धन सीधे माता-पिता के बैंक खातों में स्थानांतरित कर दिया जाता है। वो भी अभी तक कई स्कूलों के बच्चों को नहीं मिला है|

निगम की एक महिला शिक्षक ने न्यूज़क्लिक को नाम न ज़ाहिर किए जाने की शर्त पर बताया कि यह समस्या निगम के स्कूलों के लिए कोई नई बात नही हैं| इस तरह की समस्या का सामना निगम के शिक्षकों और छात्रों के लिए आमबात है। इन सब के कारण छात्रों को पढने में बहुत परेशानी होती है|

 उन्होंने आगे कहा कि, “आप सोच के देखिए कि बिना किताब और नोटबुक कैसे पढ़ाई होगी। क्योंकि निगम के स्कूल में अधिकतर गरीब और आर्थिक रूप से पिछड़े परिवार के बच्चे आते हैं, इनमें से अधिकांश के लिए अपने बच्चों को स्टेशनरी खरीदकर देना संभव नहीं होता है| उनके लिए स्कूल से मिलने वाले ये सुविधाएँ ही सहारा होता, वो भी सरकार की सुस्ती के कारण समय पर नहीं मिल पाती हैं”|

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निगम की एक महिला शिक्षक ने कहा कि उन्हें यानि शिक्षकों को भी कई–कई महीने मासिक वेतन नही मिलता| उन्होंने एक घटना का ज़िक्र करते हुए बताया कि कई माह वेतन न मिलने से आर्थिक तंगी के कारण पूर्वी दिल्ली के एक निगम स्कूल के शिक्षक ने आत्महत्या कर ली थी| अभी भी उनके स्कूल में शिक्षकों को मई और जून का वेतन नहीं मिला हैं”|  

अंत में उन्होंने कहा कि प्रधानचार्य कह रहे की नोटबुक का भंडार आने वाला है और जल्दी ही छात्रों को मिल जाएगा।

 ये समस्या कोई पहली बार नहीं हुई, पिछले शैक्षणिक सत्र में भी बच्चों को नोटबुक अगस्त में मिले थे| मीडिया रिपोर्ट के अनुसार जब इन बच्चों के माता-पिता सुविधाओं की कमी को लेकर अपनी याचिका लेकर उच्च न्यायालय चले गए तो पूर्वी निगम के स्कूलों ने देरी के लिए निविदा प्रक्रिया में बदलावों को दोषी ठहराया।

ये तब है जबकी भाजपा निगम में काफ़ी लंम्बे समय से सत्ता में है जो की भारत को विश्व गुरु बनाने का रोज़ ऐलान करती है | परन्तु उनसे पूछना चाहिए कि बिना किताब और नोटबुक के बिना कैसे भारत विश्वगुरु बनेगा? 

 

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