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दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में क्या होने वाला है?

हम आपको बता रहे हैं कि इस बार के डूसू चुनाव में अहम् मुद्दे और वहां की राजनीतिक स्थिति क्या है! इसके अलावा हम यह भी देखेंगे कि किस तरह से लगातार डूसू का चुनाव हिंसक होता जा रहा है।
dusu 2019

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) के चुनाव के लिए गुरुवार, 12 सितंबर को वोट डाले जाएंगे। इसके लिए चुनाव प्रचार कल यानी 10 सितंबर को ख़त्म हो गया है। डूसू चुनाव की मतगणना 13 सिंतबर को की जाएगी।

इस बार डूसू चुनाव प्रचार के शुरुआती दौर में लगा कि ये चुनाव कई मायनों में पिछले चुनावों से अलग है लेकिन अंत होते होते एक बार फिर पिछले वर्षों की तरह धनबल और बाहुबल का प्रदर्शन होता नज़र आया। 

हम आपको बता रहे हैं कि इस बार के डूसू चुनाव में अहम् मुद्दे और वहां की राजनीतिक स्थिति क्या है! इसके अलावा हम यह भी देखेंगे कि किस तरह से लगातार डूसू का चुनाव हिंसक होता जा रहा है।

डूसू चुनाव की राजनीतिक स्थिति

छात्र संघ में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव और संयुक्त सचिव के पदों के लिये 12 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं।

आरएसएस से संबद्ध ABVP ने डूसू अध्यक्ष पद के लिये अक्षत दहिया को, उपाध्यक्ष पद के लिये प्रदीप तनवर, महासचिव पद के लिये योगित राठी और संयुक्त सचिव के पद के लिये शिवांगी खेरवाल को मैदान में उतारा है।

कांग्रेस छात्र इकाई NSUI ने अध्यक्ष पद के लिए चेतना त्यागी, उपाध्यक्ष पद के लिए अंकित भारती, सेक्रेटरी पद के लिए आशीष लाम्बा और जॉइंट सेक्रेटरी पद के लिए अभिषेक को मैदान में उतारा है।

इसके अलावा वामपंथी छात्र संगठन AISA ने ABVP और NSUI का मुक़ाबला करने के लिए अध्यक्ष पद के लिए दामिनी , उपाध्यक्ष पद के लिए आफ़ताब, सेक्रेटरी पद के लिए विकास और जॉइंट सेक्रेटरी पद के लिए चेतना को मैदान में उतारा है।

लेफ़्ट यूनिटी के तहत एक पैनल है जिसमें SFI और AISF चुनाव लड़ रहे हैं। इनकी ओर से केवल उपाध्यक्ष पद के लिए उम्मीद्वार मैदान में हैं। बाक़ी पदों पर उनके उम्मीदवार अपना नामांकन ही दाख़िल नहीं कर सके और इसका आरोप ABVP पर लगाया था। इसके ख़िलाफ़ SFI दिल्ली हाई कोर्ट गया था। जिसने इन की रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए, विश्वविद्यालय को पूरे मामले की छानबीन के लिए एक कमेटी के गठन का आदेश दिया है।

अब जब लेफ़्ट यूनिटी का पैनल सिर्फ़ एक पद पर चुनाव लड़ रहा है तो उसने एक खुली अपील जारी की है छात्रों के नाम और कैंपस को भय और हिंसा से मुक्त करने के लिए प्रगतिशील छात्र संगठनों को वोट करें। साथ ही ABVP को हराने की भी अपील की है।

इस बार क्या हैं छात्र संगठनों के मुद्दे?

ABVP ने एक बार फिर से देशभक्ति और राष्ट्रवाद के नाम पर वोट मांगे हैं। इसके अलावा कई अन्य मुद्दे हैं जो लगातार उनके मैनिफ़ेस्टो में बने हुए हैं जैसे मेट्रो में सस्ते पास, सबके लिए हॉस्टल आदि।

NSUI ने डीयू में सबको समान अवसर उपलब्ध कराने के मुद्दे पर छात्रों से वोट मांगा है। NSUI ने छात्रों को एबीवीपी की गुंडागर्दी की राजनीति से लेकर, उनकी तरफ़ से 22 लाख रुपये चाय पर ख़र्च करने के बारे में बात की है। देश के विभिन्न हिस्सों व जाति समूह से आए छात्रों को डीयू में समान अवसर दिलाने का भी वादा किया है।

AISA ने छात्रावास में सीट बढ़ाने, जेंडर सेल गठित करने, रियायती मूल्यों में मेट्रो पास उपलब्ध कराने जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर छात्रों का साथ मांगा। इसके साथ ही ABVP के द्वारा बढ़ती हिंसा और धनबल के ख़िलाफ़ भी AISA प्रचार कर रही है।

डूसू चुनाव में ईवीएम के माध्यम से छात्र अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकेंगे। वैसे कई छात्र बैलेट पेपर से मतदान कराने की मांग कर रहे हैं। क्योंकि पिछली बार ईवीएम में कई तरह की गड़बड़ियाँ सामने आई थीं, मतगणना के परिणाम आने में रात के दस बज गए थे जो आम तौर पर दोपहर तक आ जाते हैं। अगर बैलेट पेपर का इस्तेमाल नहीं होता है तो कम से कम वीवीपैट मशीन का प्रयोग करने की मांग की गई है।

ABVP का लगातार हिंसक होता प्रचार

इस बार चुनाव की शुरुआत भी पिछले साल की तरह ही चुनावी हिंसा से हुई, वामपंथी छात्र संगठन SFI और AISF जो हर बार की तरह लेफ़्ट यूनिटी गठबंधन के तहत चुनाव लड़ रहे थे, उनके अध्यक्ष पद के उम्मीदवार सहित सभी पदों के उम्मीदिवारों पर नामांकन करने के दौरान हमले किए गए। इस दौरान लेफ़्ट यूनिटी के उपाध्यक्ष पद के उम्मीदवार को छोड़कर कोई भी अन्य उम्मीदवार अपना नामांकन दाख़िल नहीं कर सका था क्योंकि उन सभी के नामांकन पत्र को ABVP के लोगों ने फाड़ दिया था।

इसके अलावा चुनाव प्रचार के दौरान वामपंथी छात्र संगठन AISA के उपाध्यक्ष पद के उम्मीदवार आफ़ताब को देशबंधु कॉलेज में प्रचार करने से रोक दिया गया और उनको देशद्रोही कह कर हाथापाई भी की गई। इसका भी आरोप ABVP पर लगा।

इसके बाद कांग्रेस की छात्र इकाई NSUI के उपाध्यक्ष प्रत्याशी अंकित भारती पर कुछ लोगों ने हमला कर दिया। अंकित भारती ने ABVP पर उनके साथ मारपीट करने और हिंसा का आरोप लगाया है।

ये घटनाएँ सिर्फ़ इसी बार नहीं हो रही हैं। पिछले वर्षों में देखा गया है कि डीयू में किस प्रकार से छात्र संघ चुनावों में हिंसा होती है।

बीते वर्षों में भी एबीवीपी पर आरोप लगा था कि उसने स्वतंत्र उम्मीदवार राजा चौधरी का अपहरण किया था और उससे बीते वर्ष भी PGDAV कॉलेज में प्रचार के दौरान NSUI के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार पर CYSS और ABVP पर जानलेवा हमला करने का आरोप लगा था।

पूर्वांचल सेंटिमेंट का प्रयोग

डूसू में हमेशा ही जाट और गुर्जर के नाम पर मतदान होता रहा है क्योंकि दिल्ली ज़्यादातर जाट और गुर्जर समुदाय के गांवों से घिरी हुई है। इसलिए, उनकी भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। बाहरी लोग कॉलेज की अधिकांश राजनीति को नियंत्रित करते हैं और भीड़ के लिए लोग हरियाणा और राजधानी के ग्रामीण बेल्ट से बुलाए जाते रहे हैं।

परन्तु पिछली बार इस समीकरण को तोड़ते हुए ABVP ने पूर्वांचल कार्ड खेला और जाट और गुर्जर बाहुबलियों के मध्य एक पर्वांचल के बाहुबली को लड़ाने का निर्णय लिया जिसमें उसे सफ़लता भी मिली और उसके उपाध्यक्ष पद के उम्मीदवार यूपी के बलिया से शक्ति सिंह को खड़ा किया जो तकरीबन 7000 के ऐतिहासिक अंतर से विजयी हुए।

एक बार फिर से इस पर्वांचल सेंटीमेंट को भुनाने के लिए ABVP ने पूरा ज़ोर लगाया है। कोई उम्मीदवार तो नहीं है लेकिन पूर्वांचल वोटों को अपनी तरफ़ करने के लिए पूर्वांचल मिलन समारोह आयोजित किया गया है। जिसमें यूपी सरकार के मंत्री सतीश द्विवेदी, आम आदमी पार्टी छोड़कर बीजेपी से जुड़ने वाले विधायक कपिल मिश्रा, ने भाग लिया। यह कार्यक्रम मेयर हाउस दिल्ली विश्वविद्यालय मेट्रो के पीछे सोमवार को हुआ। कार्यक्रम के लिए जारी आमंत्रण पत्र में उत्तर-पूर्वी दिल्ली से सांसद मनोज तिवारी को अभिभावक बताया गया था।

CYSS और AISA गठबंधन ख़त्म, CYSS ने चुनावों से किया किनारा

पिछले चुनावों में माना जा रहा था कि AISA और आम आदमी पार्टी के छात्र संगठन CYSS का गठबंधन इस चुनाव में एबीवीपी और एनएसयूआई के सामने कड़ी चुनौती पेश करेगा। मगर ऐसा नहीं हुआ। AISA-CYSS गठबंधन तो नोटा से ही मुक़ाबला करता रह गया। आलम यह रहा कि आम आदमी पार्टी के छात्र संगठन CYSS के दो प्रत्याशियों को मिले कुल मत नोटा को मिले वोटों से भी कम रहे थे। इस नए गठबंधन को उम्मीद थी कि एबीवीपी और एनएसयूआई से नाराज़ विद्यार्थी नोटा की जगह गठबंधन को वोट देंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। और इस बार CYSS ने चुनाव नहीं लड़ने का फ़ैसला लिया है।

NOTA की बढ़ती भूमिका

पिछले चुनावों में चार पदों पर नोटा को कुल 27739 वोट मिले जो ABVP और NSUI के बाद सबसे अधिक वोट लेने वाला पैनल बनकर उभरा है। इससे साफ़ देखा जा रहा है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों में नोटा के प्रति रुझान स्थायी रूप से बना हुआ है। इसलिए सभी संगठनों की नज़र इस वोट पर है। इसके लिए सभी संगठनों ने रणनीति बनाया है। देखना ये है कि इस बार इस ट्रेंड में बदलाव आता है या स्थति वही रहती है।

 

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