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डीयू सफाईकर्मी आंदोलन : प्रधानमंत्री जी, हमें पैर धुलाने की नहीं नौकरी की ज़रूरत है

सफाई कर्मचारी अपने लिए सम्मान की जगह पक्का रोज़गार चाहते हैं जिससे कि उनके जीवन में बदलाव आये और उनको सही सम्मान मिले।
डीयू सफाईकर्मी आंदोलन

24 फरवरी, 2019 को भारत के प्रधानमंत्री ने कुंभ मेले में प्यारेलालचौबी देवीज्योतिहोरीलालनरेश कुमार नामक पांच सफाईकर्मियों के पैर धोकर सम्मानित किया और कहा कि ‘‘आज जिन सफाईकर्मी भाईयों-बहनों के चरण धुलकर मैंने वंदना की हैवह पल मेरे साथ जीवनभर रहेगा। उनका आशीर्वादस्नेहआप सभी का आशीर्वादआप सभी का स्नेह मुझपर ऐसे ही बना रहेऐसे ही मैं आपकी सेवा करता रहूंयही मेरी कामना है।’’

होरी का कहना है कि ‘‘बड़े आदमी’’ से पैर धुलवाना उनके लिए शर्मनाक थाउस दिन वह अच्छे से स्नान किया था। वे कहते हैं कि सम्मान के लिए आभारी हैं लेकिन इससे हमारे जीवन में कोई अंतर नहीं आया है। हम पहले भी सफाई का काम कर रहे थे और अब भी कर रहे हैंयह काम मुझे बिलकुल पसंद नहीं है। काम कुछ भी हो पक्का होना चाहिए। होरी चाहते हैं कि प्रधानमंत्री पैर धोने की जगह नौकरी देते तो अच्छा होता।

40 वर्षीय प्यारे लाल कहते हैं कि वह हमसे एक मिनट के लिए मुश्किल से मिलेहमें ठीक से बात करने का मौका नहीं मिला। प्यारे लाल के तीन बच्चे दिहाड़ी पर काम करते हैं और वह चाहते हैं कि वेतन वृद्धि होनी चाहिए। ज्योति भी चाहती है कि कम से कम 500 रुपये एक दिन का दिहाड़ी मिले। ज्योति कहती हैं कि सम्मान से काम नहीं चलताहमें बात करने का मौका मिलता तो हम प्रधानमंत्री से नौकरी मांगते। वह प्रधानमंत्री से हाथ से मैला उठाने के काम (मैनुअल स्कैवेंजिंग) को खत्म करने के लिए बात करना चाहती थी।

सफाई कर्मचारी अपने लिए सम्मान की जगह पक्क रोज़गार चाहते हैं जिससे कि उनके जीवन में बदलाव आये और उनको सही सम्मान मिले। होरीज्योतिप्यारे लाल जिस तरह सम्मान से जीने के लिए पक्की नौकरी चाहते हैं उसी तरह दिल्ली विश्वविद्यालय की सफाई कर्मचारी मुन्नी और फुलवती चाहती हैं। मुन्नी और फूलवती कहती हैं कि मोदी जी सफाई कर्मचारियों के पैर धोने का नाटक करते हैंअगर वह सच में सफाई कर्मचारी की बात सुनते तो हम लोगों को नौकरी पर रखवा देतेहमें पैर धुलाने की नहीं नौकरी की जरूरत है।

मुन्नी और फूलवती 2002, 2008 से सफाई कर्मचारी का काम करती हैं। मुन्नीअलीगढ़यूपी की रहने वाली है। 20 साल के उम्र में वह पति के पास दिल्ली आ गई कि बच्चों को पढ़ा लिखा कर अच्छा बनायेंगे। दिल्ली आने के बाद वह 84 लेन बस्ती (मालरोड) में पति और चार बच्चों के साथ रहने लगी। पति सेंट स्टेफन्स अस्पताल में सफाई कर्मचारी का काम करते थे जहां से 20 साल बाद उनका काम छूट गया। मुन्नी परिवार को आगे ले जाने के लिए इन्दिरा विहार के घरों में सफाई का काम करने लगी। घरों में पैसा कम मिलने के कारण वह 2002 से दिल्ली विश्वविद्यालय में 1500 रुपये पर सफाई कर्मचारी का काम करने लगी। मुन्नी का परिवार ठीक चल रहा था एक बेटी दिल्ली विश्वविद्यालय में ही ग्रेजुएशन कर रही है। तभी अचानक 1 अगस्त् 20019 को मुन्नी और उनके 5 साथी (3 महिला और दो पुरुष) को काम से निकाल दिया गया।

फूलवतीओडिशा के सुन्दरगढ़ जिले से हैं और करीब दो दशक पहले वह काम की तलाश में दिल्ली आ गईं थी। फुलवती बताती हैं कि उनके पास थोड़ी बहुत ज़मीन है लेकिन खेती बारिश पर निर्भर रहती है वहां खाने को नहीं मिलता है बहुत गरीबी है। फूलवती भी मुन्नी के तरह पहले घरों में सफाई का काम किया और 2008 से नॉर्थ ईस्टर्न हॉस्टल में काम पर लग गईकाम पर लगने के बाद वह अपनी बेटी नीलू को भी गांव से बुलाकर अपने हॉस्टल में सफाई कर्मचारी काम पर लगा दिया।

मुन्नी के साथ ही फूलवती और उनकी बेटी नीलू को भी काम से निकाल दिया गया जो कि 2008 और 2010 से हॉस्टल में सफाई कर्मचारी थी। इन कर्मचारियों को दिसम्बर, 2018 से  पहले 15070 रुपये मिलते थे उसके बाद इनको 13350 रुपये दिए जाने लगे। अपने वेतन कटौती के बारे में बात करना ही इनका गुनाह हो गया और इनको 1 अगस्त् 2019  को नेक्सन जेन मैनपावर कम्पनी और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रशासनिक अधिकारी की मिलीभगत से काम से निकाल दिया गया। 

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7 अगस्त को दिल्ली के सफाई कर्मचारियों के समर्थन में दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संगठनों और निकाले गए सफाई कर्मचारियों ने प्रदर्शन किया और मांग रखी कि निकाले गये सफाई कर्मचारियों को काम पर रखा जाये। दिल्ली सरकार ने 2018 में सरकुलर जारी कर कहा था कि ठेकेदार बदलने पर कर्मचारियों को नहीं हटाया जायेगा लेकिन उसके बाद दिल्ली में लगातार दिल्ली सरकार के सरकुलर का उल्लंघन हो रहा है और दिल्ली के श्रम मंत्री हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं।

दिल्ली विश्वविद्यालय में सफाई कर्मचारियों को निकालने की यह पहली घटना नहीं है इससे पहले मई, 2018 को नेक्स जेन मेनपावर ने 120 कर्मचारियों को निकाल दिया। दिल्ली विश्वविद्यालय के विभिन्न छात्र संगठनों ने सफाई कर्मचारियों के साथ मिलकर लम्बा संघर्ष चलाया उसके बाद कुछ मजदूरों को काम पर रखा गया और अभी भी कई मजदूरों को काम पर नहीं रखा गया है जबकि लगातार निकाले गए मजदूर श्रम मंत्री के चक्कर काटते रहे।

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नॉर्थ ईस्टर्न हॉस्टल से निकाले गए मजदूर 7 अगस्त 2019 को दिल्ली सरकार के श्रम मंत्री से मिलने गए जहां पर उनके पीए मिले और कह दिया कि यह काम दिल्ली सरकार के अन्दर नहीं आता। यह केन्द्र का माममला है। नेक्स जेन मेनपावर कम्पनी दिल्ली में पंजीकृत है लेकिन श्रममंत्री के पीए इसको केन्द्र का मामला बताते हुए सफाई कर्मचारियों की मद्द करने से इन्कार दिया।

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जून, 2019 में अम्बेडकर विश्वविद्यालय में सफाई कर्मचारियों को काम से निकाला गया था जिसके प्रतिरोध में सफाई कर्मचारी और प्रोग्रेसिव और डेमोक्रेटिक स्टूडेंट कम्युनिटी (PDSC) ने आन्दोलन किया जिसके बाद दिल्ली के श्रम मंत्री ने जाकर ठेका रद्द कर कर्मचारियों को काम पर रखवाया था। इस सफलता का गुणगान श्रम मंत्री ने प्रेस में किया लेकिन जहां पर वह अपनी जिम्मेवारियों से बच रहे हैं वह न्यूज नहीं बन पाती। कब तक समाज के हाशिये पर जी रहे लोगों के साथ इस तरह की गैरबराबरी होती रहेगी?

 

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