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एग्ज़िट पोल्स के नतीजों से हमें क्या सबक मिल रहा है?

अगर एग्ज़िट पोल्स सच साबित होते हैं तो निश्चित तौर पर राजनीतिक रूप से इसके संकेत मोदी से ज़्यादा विपक्ष खासतौर पर राहुल गांधी के लिए अहम होंगे और कांग्रेस का गठबंधन बिखर सकता है।
Exit Polls

2019 के आम चुनावों के आखिरी चरण का मतदान रविवार शाम को समाप्त हो गया है। लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण के मतदान होने और चुनाव परिणाम से पहले एग्जिट पोल्स की शक्ल में पहले अनुमान सामने आए हैं। ज्यादातर चुनाव सर्वेक्षणों में एनडीए सरकार की वापसी का रास्ता साफ दिखाया जा रहा है। हालांकि कांग्रेस, ममता, चंद्रबाबू नायडू समेत तमाम  राजनीतिक विश्लेषकों ने पूरी तरह से इसे खारिज किया है। 
हमें 23 मई तक का इंतजार करना होगा। उस दिन हमें नई सरकार के बारे में पता चल जाएगा और यह भी पता चल जाएगा कि क्या ये एग्जिट पोल्स सही हैं या गलत। 
वैसे 2014 में ज्यादातर एग्जिट पोल्स के ट्रेंड सही थे लेकिन उस समय उन्होंने एनडीए की ताकत को कम करके आंका था। बीजेपी और उसके सहयोगी दलों की जीत ज्यादातर एग्जिट पोल्स के अनुमानों से कहीं ज्यादा बड़ी थी। ठीक इसी तरह से 2009 के ज्यादातर एग्जिट पोल्स में यूपीए के परफॉरमेंस को कम करके आंका गया था। 2004 का लोकसभा चुनाव तो ऐसा था कि ज्यादातर एग्जिट पोल्स गलत साबित हुए थे। किसी भी एग्जिट पोल्स में एनडीए के सत्ता से बाहर होने की चर्चा नहीं थी। 
इसके अलावा पिछले कई विधानसभा चुनावों में भी एग्जिट पोल्स गलत साबित हुए हैं। इस बार के एग्जिट पोल्स को लेकर ग्राउंड पर काम करने वाले पत्रकारों, तमाम राजनीतिक पंडितों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के एक बड़े वर्ग में यह चर्चा है कि ये गलत साबित होने वाले हैं।
2019 के एग्जिट पोल्स को लेकर कुछ लोगों की यही राय है कि शायद जितनी सीटें एनडीए को दी जा रही हैं वह संभव नहीं है लेकिन इसे हम ट्रेंड के तौर पर ले सकते हैं कि एनडीए सबसे बड़े गठबंधन के रूप में उभर रहा है। 
 और अगर एनडीए सबसे बड़े दल के रूप में सामने आ रहा है तो राजनीतिक रूप से इसका संकेत यह है कि 2014 से शुरू हुआ मोदी मैजिक अभी जारी है। निर्विवाद रूप से 2019 में भी नरेंद्र मोदी सबसे मजबूत नेता बने हुए हैं। और अगले एक दो साल तक विपक्ष का कोई भी नेता उन्हें चुनौती देता नजर नहीं आ रहा है।
मोदी और उनकी टीम ने एयर स्ट्राइक से उभरे राष्ट्रवाद को भुनाने, हिंदुत्व के सहारे ध्रुवीकरण करने और जातीय संतुलन को साधने में कामयाबी हासिल की है। उज्ज्वला योजना, आयुष्मान भारत योजना और आवास जैसी योजनाओं का भी उन्हें फायदा मिल रहा है। 
इसके विपरीत मोदी के खिलाफ विपक्ष एकजुट नहीं हो पाया। 2019 के चुनाव से पहले विपक्षी एकता की कई बार पुरजोर कोशिश कई नेताओं ने की थी, लेकिन चुनाव आते-आते यूपी के महागठबंधन से कांग्रेस को बाहर कर दिया गया, इससे विपक्षी एकता धराशायी हो गई। कर्नाटक चुनाव के बाद गुजरात, मध्य प्रदेश और बंगाल में तमाम मंचों पर ढेर सारे विपक्षी नेताओं ने साथ आकर उम्मीद तो जगाई लेकिन अंतत: सीटों को लेकर वो तालमेल बिठा पाने में असमर्थ साबित हुए। 
अगर एग्जिट पोल्स सच साबित होता है तो विपक्षी नेता नोटबंदी, जीएसटी, रोजगार, कृषि असंतोष, बदहाल अर्थव्यवस्था, भ्रष्टाचार और युवाओं के असंतोष जैसे मुद्दों को उठा पाने में नाकाम साबित हुए हैं। सबसे बड़ी नाकामी कांग्रेस की रही है। मुख्य विपक्षी दल के रूप में यह पार्टी जनता के मुद्दों को ठीक ढंग से नहीं उठा पाई। इसके विपरीत कांग्रेसी रणनीतिकार ज्यादातर समय बीजेपी द्वारा उठाए गए छद्म मुद्दों में उलझे रहे। वह न्याय जैसी अपनी योजनाओं का भी सही तरीके से प्रचार नहीं कर पाए। 
एक राजनेता के तौर पर राहुल के भीतर विपक्ष को एकजुट करने की क्षमता का अभी विकास होना बाकी है। वह राष्ट्रीय सुरक्षा के मसले को लेकर भी बीजेपी की काट निकालने में कमजोर साबित हुए है। साथ ही साथ प्रियंका गांधी भी सक्रिय राजनीति में खुलकर पदार्पण कर चुकी हैं इसलिए यूपी या पूर्वी यूपी में हार के कारण पूर्वी यूपी की प्रभारी प्रियंका गांधी पर भी सवाल उठेंगे कि उनके आने से भी कांग्रेस की सीटें नहीं बढ़ पाईं।
यदि एग्जिट पोल के जैसे ही वास्तविक नतीजे आते हैं तो हार के कारण कांग्रेस का गठबंधन बिखर सकता है। साथ ही कांग्रेस की ऐसी सरकारों पर संकट आ सकता है, जो कम बहुमत या फिर सहयोगी दलों के सहारे सत्ता में हैं। राजस्थान और मध्यप्रदेश में यही स्थिति हो सकती है। मध्यप्रदेश में तो कांग्रेस के पास अपना बहुमत ही नहीं है और बीजेपी ने वहां इसकी शुरुआत कर दी है। 
इसके अलावा अगर हम क्षेत्रीय दलों की बात करें तो सपा और बसपा का प्रयोग ठीक रहा है। अगले कुछ सालों में यह गठबंधन अगर बना रहता है तो बेहतर परिणाम की उम्मीद इससे की जा सकती है। सबसे ज्यादा चर्चा बंगाल की है। राष्ट्रीय से लेकर स्थानीय चैनलों तक सबने बंगाल में बीजेपी की बंपर कामयाबी का दावा किया है। निसंदेह ममता को आगामी चुनावों तक अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा। 
आंध्र, ओडिशा, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश विधान सभाओं के चुनाव भी हो रहे हैं। इनके परिणाम भी बहुत महत्वपूर्ण साबित होने वाले हैं। 
हालांकि ये सारे आंकलन एग्जिट पोल्स के आधार पर किए गए हैं। जबकि इससे इतर भी राष्ट्रीय राजनीति में बहुत कुछ घटित हो रहा है उस पर भी एक नजर डालनी होगी। 
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने शरद पवार, राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल, शरद यादव, अखिलेश यादव, मायावती समेत तमाम नेताओं से तो मुलाकात की है तो तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव ने डीएमके के एमके स्टालिन और केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन से मुलाकातें की हैं। सोनिया गांधी ने ममता बनर्जी, नवीन पटनायक, वाईएसआर कांग्रेस और यूपी के सपा-बसपा गठबंधन सभी के साथ सम्पर्क बनाया है। 
कांग्रेस समेत विपक्षी पार्टियां बीजेपी को किसी भी कीमत पर अपदस्थ करना चाहती हैं लेकिन ऐसा तभी संभव है जब एनडीए को200 से कम सीटें आएं. लेकिन क्या ऐसा होगा? असल सवाल है कि वोटर किसके हाथ सत्ता सौंपने वाला है, इसके जवाब के लिए 23मई तक का इंतजार करना होगा।

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