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‘अभी हारे नहीं हैं हम…’ कोरोना और लॉकडाउन की मार झेलते हुए भी मज़दूरों ने दिखाई एकजुटता, देशभर में प्रदर्शन

केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा श्रम कानूनों को कमज़ोर किए जाने के ख़िलाफ़ 10 सेंट्रल ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच के आह्वान पर शुक्रवार को मज़दूरों ने देशभर में प्रदर्शन किया। कई राज्यों में किसानों और अन्य वर्गों के संगठनों ने भी इस संघर्ष का समर्थन किया।
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देश में लॉकडाउन के दौरान केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा श्रम कानूनों को कमज़ोर किए जाने के खिलाफ मज़दूरों ने शुक्रवार, 22 मई को देशव्यापी विरोध प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन का आह्वान 10 सेंट्रल ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच द्वारा किया गया था। इसके तहत पूरे देश में अलग अलग जगहों पर मज़दूरों ने अपना विरोध दर्ज किया। मज़दूरों ने प्रदर्शन के दौरान साफतौर पर कहा कि "श्रम क़ानूनों में मज़दूर विरोधी बदलाव नहीं चलेगा,श्रम कानूनों में बदलावों को वापस लो "  

हालांकि अब तक, कम से कम नौ राज्यों द्वारा कारखानों में मज़दूरों की दैनिक कामकाजी समय को आठ घंटे से बढ़ाकर बारह घंटे करने का फैसला किया जा चुका है। इसी के खिलाफ़ देश के विभिन्न राज्यों में फैक्ट्री एक्ट,कॉन्ट्रैक्ट लेबर एक्ट, इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट में बदलाव करने और 8 घंटे की ड्यूटी को 12 घंटे करने के खिलाफ ज़ोरदार प्रदर्शन हुए। इस दौरान कई राज्यों में पुलिस ने प्रदर्शन कर रहे नेताओ को हिरासत में भी लिया लेकिन इसके बावजूद प्रदर्शन में लाखों की संख्या में मज़दूरों ने पूरे देश में भाग लिया।

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इस संयुक्त मंच में जो दस केंद्रीय ट्रेड यूनियन शामिल है उसमे इंटक, एटक, एचएमएस, सीटू, ऐक्टू, सेवा, टीयूसीसी, एआईयूटीयूसी, एलपीएफ और यूटीयूसी हैं। इन सभी ट्रेड यूनियन के राष्ट्रीय नेताओ ने देशव्यापी विरोध प्रदर्शन के तहत दिल्ली के राजघाट पर एक दिन की भूख हड़ताल का आह्वान किया था, इसी का पालन करते हुए , ट्रेड यूनियनों के राष्ट्रीय स्तर के कई नेता दिल्ली के राजघाट पर एक दिन की भूख हड़ताल पर भी बैठे, लेकिन कुछ ही देर में सभी मज़दूर नेताओं को राजघाट से पुलिस ने हिरासत में ले लिया। हिरासत में लिए गए नेताओं में  सीटू महासचिव तपन सेनअध्यक्ष हेमलता, सचिव ऐ.आर.सिंधु और अमिताव गुहा, इंटक के नेता अशोक सिंह, एटक के विद्या सागर गिरी, हिन्द मज़दूर सभा के एच.एस. सिद्धू, , ऐक्टू के राजीव डिमरी, और सेवा की नेता लता समेत बड़ी संख्या में अन्य नेता शामिल थे।  

मज़दूर नेताओ ने कहा "हम लोग शांति पूर्वक अपना विरोध दर्ज करा रहे थे लेकिन सरकार उनके इस प्रदर्शन को रोकने और मज़दूरों की आवाज़ को दबाने के लिए पुलिस की मदद ले रही है। पहले तो करोड़ो मज़दूरों के अधिकारों को छीना और अब हमारे विरोध का अधिकार भी छीन रही है।"

हिरासत में लिए जाने से पहले सीटू महासचिव तपन सेन ने कहा कि हम आज यहां इसलिए बैठे हैं क्योंकि सरकार सभी मज़दूरों के हक में बने कानूनों को खत्म करने का कार्य कर रही है वहीं दूसरी ओर मज़दूरों को सड़क पर भूखा मरने के लिए छोड़ दिया है। इसके साथ ही सरकार आर्थिक पैकज के नाम पर सभी सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों को निजी हाथों में बेच रही है, जबकि ये सभी कंपनियां हमारी अर्थव्यवथा की रीढ़ की हड्डी है। इससे सीधे सीधे विदेशी कंपनियों का फ़ायदा होगा जोकि देश की सुरक्षा के लिए भी ख़तरनाक है। "
दिल्ली के अन्य औद्योगिक इलाकों में भी मज़दूरों द्वारा प्रदर्शन किया गया।

उत्तर प्रदेश में भी मज़दूरो का प्रतिरोध

उत्तर प्रदेश में कई जगह मज़दूरों ने अपना विरोध प्रदर्शन किया। सरकार ने 1000 दिनों की अवधि के लिए लगभग सभी श्रम कानूनों से मालिकों को छूट दी। गाजियाबाद जिले में विभिन्न स्थानों पर योगी आदित्यनाथ के फैसले के खिलाफ श्रमिकों द्वारा प्रदर्शन किए गए।
केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के नेतृत्व में मज़दूरों ने अध्यादेश को वापस लेने की मांग की। साहिबाबाद औद्योगिक क्षेत्र सहित क्षेत्रों में विरोध प्रदर्शन करते हुए, सामाजिक दूरी के मानदंडों का पालन किया गया।

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इससे पहले आज यानी शुक्रवार सुबह, उत्तर प्रदेश की नोएडा पुलिस ने ट्रेड यूनियनों के तीन नेताओं को हिरासत में लिया। इनमें से सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू) दिल्ली एनसीआर के उपाध्यक्ष, गंगेश्वर और हिंद मज़दूर सभा (एचएमएस) के अन्य नेता शामिल हैं।

इस बात की पुष्टि करते हुए, दिल्ली के सीटू के महासचिव, अनुराग सक्सेना ने कहा, “तीनों को देशव्यापी विरोध के आगे अपने घर से गिरफ्तार किया गया। वर्तमान में उन्हें विरोध करने से रोकने के लिए यूपी पुलिस द्वारा हिरासत में लिया गया है।”

 हिमाचल प्रदेश: ट्रेड यूनियनों ने मुख्यमंत्री को सौंपा ज्ञापन
 
केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच के आह्वान पर, हिमाचल प्रदेश में सैकड़ों मज़दूरों ने फैक्ट्री अधिनियम, अनुबंध श्रम अधिनियम, औद्योगिक विवाद अधिनियम, सहित अन्य में किए गए बदलावों का विरोध किया। राज्य के विभिन्न शहरों में जिला मुख्यालयों पर उपायुक्तों के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपे गए।

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हिमाचल प्रदेश संयुक्त मंच के राज्य संयोजक डॉ. कश्मीर ठाकुर, इंटक प्रदेशाध्यक्ष बावा हरदीप सिंह,एटक प्रदेशाध्यक्ष जगदीश चंद्र भारद्वाज,सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा, इंटक महामंत्री सीता राम सैनी, एटक महामंत्री देवक़ीनन्द चौहान व सीटू महासचिव प्रेम गौतम ने प्रदेश सरकार द्वारा फैक्ट्री एक्ट,कॉन्ट्रैक्ट लेबर एक्ट,इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट में बदलाव करने व 8 घण्टे की डयूटी को 12 घण्टे करने के निर्णय की कड़ी निंदा की है। उन्होंने इसे मज़दूरों के अधिकारों पर कठोर प्रहार करने वाला कदम बताया है।

उन्होंने कहा है कि मज़दूर कोरोना महामारी व लॉकडाउन के दौर में मज़दूर सबसे ज्यादा प्रभावित व पीड़ित हैं। ऐसे समय में प्रदेश की भाजपा सरकार ने उनके जख्मों पर मरहम लगाने के बजाए श्रम कानूनों में मज़दूर विरोधी परिवर्तन करके उनके ज़ख्मों पर नमक छिड़क दिया है। ये मज़दूर विरोधी कदम पूरी तरह से मानवता विरोधी हैं।

बिहार में मज़दूरों का प्रदर्शन मज़दूरों को 500 रुपये दैनिक मजदूरी देने की मांग

श्रम कानून में हुए संशोधन के खिलाफ, मज़दूरों को काम और 500 रुपये दैनिक मजदूरी देने, किसानों का कर्ज़ माफ करने सहित अन्य मांगों को लेकर मज़दूरों ने किया प्रदर्शन । इस प्रदर्शन को वाम दलों ने भी दिया अपना समर्थन।

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इस दौरान पटना में पुलिस से मज़दूर नेताओ की नोक झोंक भी हुई ,जिसके बाद  ऐक्टू नेता आर.एन. ठाकुर को गिरफ्तार कर लिया गया था, उनको छुड़ाते हुए हाईकोर्ट के पास अम्बेडकर मूर्ति से जुलूस निकाल कर श्रम कार्यालय पर मज़दूर विरोधी आदेश की प्रति जलाई गई।

जम्मू-कश्मीर में भी मज़दूरों का प्रदर्शन, कहा- बाहर फंसे मज़दूरों को सुरक्षित घर पहुंचाया जाए

सोशल डिस्टेंसिंग के मानदंडों को बनाए रखते हुए, सीटू ने सेंट्रल ट्रेड यूनियनों द्वारा दिए गए कॉल पर जम्मू-कश्मीर में 22 मई को 'मांग दिवस' के रूप में मनाया गया। राज्य के अलग अलग हिस्सों में जम्मू-कश्मीर में सीटू और उसके संबद्ध यूनियनों ने विरोध प्रदर्शन किया । मज़दूरों ने श्रम सुधारो को वापस लेने के साथ ही दूसरे राज्यों में फंसे प्रवासी मज़दूरों को सुरक्षित वापिस लाने की मांग की।

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जम्मू कश्मीर के पूर्व विधायक यूसफ़ तारिगामी ने कहा कि आज पूरी दुनिया एक महामारी से गुज़र रही है, इसका सबसे बुरा असर किसी पर पड़ा है तो वो है मज़दूर। संयुक्त राष्ट्र ने भी कहा कि करोड़ों मज़दूरों की नौकरी चली गई है और करोड़ों की जाने वाली है। इन सबके बीच सबसे दुखद है कि हमारी सरकार कोरोना महामारी और लॉकडाउन के आड़ में मज़दूरों के हक में बने कानूनों को खत्म कर रही है।

आगे उन्होंने कहा कि "हमारे  देश में सरकारों को मज़दूरों की चिंता नहीं बल्कि उन्हें भी मालिकों की ही चिंता है कैसे उनका मुनाफा कम न हों। जबकि मालिकों का रवैया ऐसा है कि वो मज़दूरों के शरीर का खून निचोड़ लेना ही उनका मज़दूरों के प्रति सेवा रही हैं, इसलिए हमारे देश में अमीर और अमीर हो रहे हैं और गरीब आज भी मुफ़लिसी की जिंदगी जीने को मज़बूर हैं। लेकिन सरकार मज़दूरों को राहत देने के बजाय उल्टा उन पर और बोझ डाल रही है।"

बंगाल :सिलीगुड़ी में पुलिस ने यूनियन नेताओं को हिरासत में लिया
 
पश्चिम बंगाल पुलिस ने स्थानीय यूनियन नेताओं को हिरासत में लिया है, जिन्होंने सिलीगुड़ी में चाय श्रमिकों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन का नेतृत्व किया था।

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श्रम कानूनों को कमज़ोर करने के खिलाफ देशव्यापी विरोध के मद्देनजर, सिलीगुड़ी एसडीओ कार्यालय में संयुक्त विरोध प्रदर्शन किया गया था। राज्य में चाय श्रमिक कोरोनोवायरस-प्रेरित लॉकडाउन और अम्फैन चक्रवात की दोहरी मार झेल रहे हैं।

हरियाणा: सरकारी और निजी क्षेत्रों के कर्मचारियों ने किया प्रदर्शन
 
हरियाणा में रतिया जिले में बिजली विभाग में कर्मचारियों  ने श्रम कानूनों में सुधार लाने के राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। हरियाणा उन राज्यों में शामिल है, जिन्होंने आठ घंटे से बारह घंटे तक स्थापित मानदंडों से काम के घंटे बढ़ाए हैं। हरियाणा में बड़ी संख्या में आंगनवाड़ी के कर्मचारियों ने भी इस प्रदर्शन में भाग लिया।

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इसी तरह गुड़गांव डीसी ऑफिस पर ट्रेड यूनियनों का प्रदर्शन हुआ। इस दौरन वहां मौजूद मज़दूर नेता सतबीर ने कहा आज पूरे देश और प्रदेश के मज़दूर संगठन ,फेडरेशन और सरकारी पीएसयू के कर्मचारी प्रदर्शन कर रहे है। उन्होंने सरकार पर आरोप लगते हुए कहा कि केंद्र कि मोदी सरकार अपनी पार्टी द्वारा शासित राज्यों के द्वारा श्रम कानूनों को कमजोर करा रही है।  

पंजाब: लुधियाना में मिनी सचिवालय में विरोध प्रदर्शन

आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, जो भारत के रूप में सीओवीआईडी -19 से लड़ रहे हैं, अपनी नौकरी नियमित करने की मांग करते हुए प्रदर्शन किया। पंजाब में आंगनवाड़ी महिला श्रमिकों ने केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा बुलाए गए देशव्यापी विरोध प्रदर्शन में भाग लिया लिया। इस दौरान सभी ने अपने मुँह को कपड़े से ढका हुआ था।

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लुधियाना में मिनी सचिवालय में विरोध प्रदर्शन किया गया वहां मज़दूर संगठन एटक की महसचिव अमरजीत कौर शमिल हुई ,उन्होंने सरकार के इस निर्णय की निंदा करते हुए ,इसे तत्काल वापस लेने की मांग की हैं।

इस तरह का विरोध प्रदर्शन कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, उत्तराखंड, झारखंड, असम और देश के अन्य राज्यों में भी दिखा।

इस प्रदर्शन में विभिन्न क्षेत्रों जैसे रेलवे, बिजली,  एचएएल, बंदरगाह आदि और बीड़ी, वृक्षारोपण, मनरेगा, सफाई कर्मचारी , स्कीम वर्कर और घरेलू कार्यकर्ताओं ने भी भाग लिया। इसके अलावा कई कार्यकर्ता और परिवार के सदस्य अपने घर से विरोध में शामिल हुए।  

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दस सेंट्रल ट्रेड यूनियनों ने 22 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखा कि सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों और सरकारी विभागों के "निजीकरण" को रोकने सहित अपनी अन्य मांगों को दोहराया है। इनमें प्रमुख माँगें हैं : फंसे हुए प्रवासी मज़दूरों को सुरक्षित उनके घर पहुंचाने के लिए उचित कदम उठाए जाएं, सभी के लिए भोजन, सभी के लिए राशन, लॉकडाउन की अवधि में वेतन भुगतान को सुनिश्चित करना, असंगठित क्षेत्र के तमाम श्रमिकों (पंजीकृत, गैर पंजीकृत और स्वरोजगार में लगे हुए) के लिए कैश ट्रांसफर, केंद्र सरकार व केन्द्र सरकार के उपक्रमों के कर्मचारियों की डीए तथा पेंशनरों की डीआर पर लगी रोक को हटाना, खाली पदों के लिए घोषित भर्तियों पर रोक को हटाना।

ट्रेड यूनियनों ने अपने संयुक्त बयान में कहा कि कई राज्यों में पुलिस द्वारा रोके जाने और नेताओ के हिरासत में लिए जाने के बाद भी बड़े पैमाने पर मज़दूरों ने इस विरोध प्रदर्शन में भाग लिया। कई राज्यों में किसानों और अन्य वर्गों के संगठनों ने भी संघर्ष का समर्थन किया।

ट्रेड यूनियनों का कहना है कि सेंट्रल ट्रेड यूनियन जल्द ही अपने आंदोलन को और तेज़ करेगा और इस आंदोलन के भविष्य की योजना बनाने के लिए जल्द ही सभी नेता बैठक करेंगे। 

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