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गर्म जलवायु में मिट्टी व वायुमंडलीय शुष्कता में वृद्धि से सूखे की संभावना बढ़ेगी

नए अध्ययन से पता चलता है कि मौजूदा मृदा शुष्कता और वायुमंडलीय शुष्कता भूमि-वायुमंडल प्रक्रियाओं और फ़ीडबैक (प्रतिक्रिया) लूप की श्रृंखलाबद्ध घटना से बढ़ रही है।
गर्म जलवायु

ये विश्व उस दिशा की ओर बढ़ रहा है जहां आने वाले समय में यह पहले की तुलना में निरंतर और सबसे ज़्यादा सूखे और वायुमंडलीय शुष्कता की मार झेलेगा। और यह जलवायु परिवर्तन और गतिकी से और बढ़ेगा जो भूमि तथा वायुमंडल में निहित है। पीएनएएस जर्नल में एक नए अध्ययन के ज़रिए इसके निष्कर्षों को लेकर रिपोर्ट प्रकाशित हुई है।

इस अध्ययन से पता चलता है कि मौजूदा मृदा शुष्कता और वायुमंडलीय शुष्कता भूमि-वायुमंडल प्रक्रियाओं और फ़ीडबैक (प्रतिक्रिया) लूप की श्रृंखलाबद्ध घटना से बढ़ रही है। वास्तव में ये फ़ीडबैक उष्ण जलवायु में मौजूदा मृदा शुष्कता और वायुमंडलीय शुष्कता को पहले से और अधिक तेज़ कर देगी।

मृदा शुष्कता को मृदा में बहुत कम नमी द्वारा दर्शाया जाता है जबकि वायुमंडलीय शुष्कता को वाष्प दबाव में बहुत अधिक गिरावट द्वारा दर्शाया जाता है। उच्च तापमान और निम्न आर्द्रता के संयोजन के दो कारक हैं जो बड़े पैमाने पर वनस्पति के नाश करते है और पृथ्वी संबंधी कार्बन वृद्धि को कम करते है। पहले के अध्ययनों ने वायुमंडलीय और महासागरीय प्रक्रियाओं तथा गहराते जलवायु परिवर्तनों पर उनके प्रभाव पर ध्यान केंद्रित किया है।

इस अध्ययन के सह-लेखक पियरे जेंटाइन कहते हैं, “मौजूद मृदा शुष्कता और वायुमंडलीय शुष्कता का प्राकृतिक वनस्पति, कृषि, उद्योग और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर प्रभावशाली प्रभाव पड़ता है। मौजूद मृदा शुष्कता और वायुमंडलीय शुष्कता की भविष्य में प्रचंडता पारिस्थितिकी तंत्र के लिए विनाशकारी होगा और हमारे जीवन के सभी पहलुओं को काफी प्रभावित करेगा।"

अपने विश्लेषण में शोधकर्ताओं ने भूमि-वायुमंडल प्रक्रियाओं का पता लगाने के लिए पुनर्विश्लेषण (रीएनालिसिस) डेटासेट और मॉडल प्रयोगों को मिश्रित किया जो मौजूदा मृदा शुष्कता और वायुमंडलीय शुष्कता का कारण बना। उन्होंने तब जलवायु मॉडल और सांख्यिकीय तरीकों का इस्तेमाल किया ताकि यह अनुमान लगाया जा सके कि भविष्य की जलवायु संबंधी परिस्थितियों में भूमि-वायुमंडल प्रक्रियाएं किस तरह अधिक निरंतर और तीव्र मृदा शुष्कता और वायुमंडलीय शुष्कता को बढ़ाएगी। भविष्य की जलवायु की परिस्थिति कुछ और नहीं बल्कि एक गर्म वातावरण है। और जैसे जलवायु की उष्णता बढ़ेगी वायुमंडलीय शुष्कता में और अधिक उतार-चढ़ाव होगा। भूमि-वायुमंडलीय प्रक्रियाएं प्रक्रियाओं को और तेज करेंगी और निरंतर शुष्कता उत्पन्न करेंगी।

शोधकर्ता सूमह के सामने जो मुख्य चुनौती थी वह ये कि मौजूदा मृदा शुष्कता और वायुमंडलीय शुष्कता को लेकर भूमि-वायुमंडल के फ़ीडबैक के प्रभाव को अलग कैसे किया जाए। काफ़ी माथापच्ची करने के बाद उन्होंने सीएलएसीई-सीएमआईपी5 (CLACE-CMIP5: ग्लोबल लैंड एटमॉस्फियर कपलिंग एक्सपेरिमेंट - कपल़्ड मॉडल इंटरकम्पेरिज़न प्रोजेक्ट) पाया।

इस घटना को अलग करके दिखाने वाला और प्रभावशाली निष्कर्षों को पाने वाला जेंटाइन समूह अपने-आप में पहला समूह है।

इस अध्ययन के अग्रणी लेखक शा ज़ोऊ कहते हैं, “ज़्यादातर समूहों ने मौजूद शुष्कता और उष्ण तरंगों का आकलन करने पर ध्यान केंद्रित किया है लेकिन हम शुष्कता और उष्ण तरंगों के बीच की तुलना में मृदा शुष्कता और वायुमंडलीय शुष्कता के बीच मज़बूत कपलिंग का निष्कर्ष निकाल रहे हैं। मौजूदा मृदा शुष्कता और वायुमंडलीय शुष्कता का भी कार्बन चक्र पर अधिक प्रभाव पड़ता है और इसलिए हमें लगा कि यह अध्ययन का महत्वपूर्ण बिंदु है।”

इस टीम ने पाया कि वायुमंडल में मृदा की शुष्कता का फीडबैक वायुमंडलीय शुष्कता की निरंतरता और तीव्रता में वृद्धि के लिए काफ़ी हद तक ज़िम्मेदार है। इसके अलावा उनके निष्कर्षों से पता चला कि कई क्षेत्रों में मृदा की नमी और वर्षा का फीडबैक उच्च आवृत्ति वाली कम वर्षा और मिट्टी की नमी की स्थिति में योगदान करती है। बदले में इन फ़ीडबैक प्रक्रियाओं से मौजूदा मृदा शु्ष्कता और अत्यधिक वायुमंडलीय शुष्कता की संभावना बढ़ जाएगी।

जेंटाइन कहते हैं, "यह महत्वपूर्ण है कि हम अपने जलवायु मॉडल में इन प्रक्रियाओं का बेहतर परिमाण निर्धारित करें और मूल्यांकन करें। अगर हम आवृत्ति, अवधि और मृदा शुष्कता तथा वायुमंडलीय शुष्कता की समस्त घटनाओं की तीव्रता और उष्ण जलवायु में उनके परिवर्तनों की विश्वसनीय अनुरूपता प्रदान करते हैं तो मृदा नमी परिवर्तनशीलता और इससे संबंधित फीडबैक दोनों का सटीक मॉडल महत्वपूर्ण है। अंतत: यह हमें इन घटनाओं से जुड़े भविष्य के जोखिमों को कम करने में मदद करेगा।”

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