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गुजरात चुनाव: कांग्रेस की निगाहें जहां ओबीसी, आदिवासी वोट बैंक पर टिकी हैं, वहीं भाजपा पटेलों और आदिवासियों को लुभाने में जुटी 

गुजरात की चुनावी राजनीति में एआईएमआईएम और आप के आगमन ने कांग्रेस और भाजपा दोनों को ही अपने-अपने पारंपरिक वोट बैंक से परे जाकर भी देखने के लिए मजबूर कर दिया है।
Gujarat Polls
प्रतीकात्मक चित्र। साभार: डीएनए.इंडिया 

अहमदाबाद: गुजरात कांग्रेस के दो शीर्षस्थ पदों के रिक्त बने रहने के लगभग नौ महीने बाद, पार्टी नेतृत्व ने पूर्व सांसद जगदीश ठाकोर को गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी (जीपीसीसी) का अध्यक्ष और विधायक सुखराम राठवा को राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष (एलओपी) के तौर पर नियुक्त किया है।

राज्य में चुनाव की तारीख में महज एक वर्ष बचा है, जिसे देखते हुए भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही अपने-अपने पारंपरिक वोट बैंक को मजबूत करने की ओर ध्यान देना शुरू कर दिया है। भाजपा ने जहां अपने मुख्यमंत्री (विजय रूपाणी) की जगह पाटीदार भूपेन्द्र पटेल को मंत्रिमंडल में नए चेहरों के साथ बदल दिया है, वहीं कांग्रेस ने ओबीसी नेता जगदीश ठाकोर को अपने राज्य प्रमुख और आदिवासी नेता सुखराम राठवा को विधानसभा में अपने नेता के तौर पर पेश किया है।

बनासकांठा के कांकरेज तालुका से ताल्लुक रखने वाले ठाकोर फिलहाल अहमदाबाद में रहते हैं, जिन्होंने 2009 के लोकसभा चुनाव में पाटन निर्वाचन क्षेत्र से 2.8 लाख से अधिक मतों से जीत हासिल की थी। वे दाहेगाम निर्वाचन क्षेत्र से दो बार के विधायक भी रहे हैं। राठवा, जो कि वर्तमान में जेतपुर से विधायक हैं, ने 2017 में 60,000 से अधिक मतों के अंतर से अपनी सीट जीती थी।

यह कदम एक ऐसे समय में उठाया गया है जब कांग्रेस स्थनीय निकाय, नगर निकाय चुनावों और उपचुनावों में लगातार हार के साथ अपने सबसे निचले मनोबल के स्तर पर है। ऐसा जान पड़ता है कि जिस पार्टी ने गुजरात 2017 के विधानसभा चुनावों में अधिकांशतः ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन किया था, ने अपने निर्वाचन क्षेत्रों पर अपनी पकड़ खो दी है। इस वर्ष की शुरुआत में हुए स्थानीय निकाय चुनावों में, कांग्रेस 8,470 सीटों में से महज 1,805 सीट ही जीत पाने में सफल रही थी।

इसके अलावा, 2017 के बाद से कांग्रेस के दर्जन भर विधायक भाजपा में पलायन कर चुके हैं और उसने अपने दिग्गज नेता अहमद पटेल को 2020 में कोविड-19 में खो दिया है।

हालांकि, एक शक्ति प्रदर्शन में, 64 वर्षीय ठाकोर और राठवा द्वारा अहमदाबाद स्थित पार्टी मुख्यालय पर समर्थकों, सदस्यों और नेताओं की भारी भीड़ के बीच अपने-अपने कार्यभार को संभालने के बावजूद चुनावी दिशा का रुख कर लिया गया।

जहां एक तरफ कांग्रेस के नेताओं ने भाजपा सरकार की यह कह कर आलोचना की कि 2022 में हार को भांपते हुए भाजपा द्वारा “रबर स्टाम्प विजय रूपाणी” और उनके मंत्रियों के समूह को बर्खास्त कर दिया गया, वहीं ठाकोर ने अपने भाषण में, कृषि मुद्दों पर ध्यान केंद्रित रखा और चुनावी अभियान की शुरुआत करते हुए एक “रोडमैप” बनाये जाने के बारे में बात की।

कांग्रेस की ओर से हार्दिक पटेल को अपने पाले में लाकर पाटीदार वोटों अपने पास बनाये रखने और अल्पेश ठाकोर को लाकर ओबीसी वोटों को अपने पाले में लाने का प्रयोग तब विफल हो गया जब ठाकोर ने पार्टी छोड़ दी और भाजपा में शामिल हो गये। इस बीच, हार्दिक के कांग्रेस में शामिल होने के कदम से लगता है उन्होंने खुद को अपने समुदाय से अलग-थलग कर लिया है।

विशेष रूप से, जगदीश ठाकोर ने 2016 में सभी पार्टी पदों से इस्तीफ़ा दे दिया था और यह तय किया था कि वे एक साधारण कार्यकर्त्ता के बतौर काम करते रहेंगे जब कांग्रेस ने ओबीसी समुदाय के बीच में से अल्पेश ठाकोर को अपने चेहरे के तौर पर चुना था।

2017 के राज्य चुनावों में पार्टी को 182 में से 77 सीटें जीतने में कामयाबी मिली थी, जो कि 1995 के बाद से कांग्रेस का सर्वोच्च प्रदर्शन था। इस प्रदर्शन के पीछे भाजपा के खिलाफ सत्ता-विरोधी कारकों में, 2015 के पाटीदार आंदोलन से उपजा गुस्सा, और कृषि क्षेत्र में मंडराता संकट था, जिसने ग्रामीण मतदाताओं के बीच में सत्तारूढ़ दल से मोहभंग की स्थिति उत्पन्न कर दी था।

2017 के राज्य चुनावों में भाजपा को 99 सीटें हासिल हुई थीं, जो कि इस सदी के गुजरात विधानसभा चुनावों के इतिहास में इसका सबसे खराब प्रदर्शन रहा है। पार्टी पिछले विधानसभा चुनावों के बाद से ही राज्य में अपने पारंपरिक वोट आधार पाटीदारों को लुभाने की कोशिशों में लगी हुई है। 2019 में हुए लोकसभा चुनावों से पहले, गुजरात में भाजपा सरकार में एक विस्तार देखा गया जिसमें छह पाटीदार नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल कराया गया था। इस साल की शुरुआत में, केंद्रीय मंत्रिमंडल का विस्तार करते समय गुजरात से सात पाटीदार नेताओं को इसमें शामिल किया गया था।

इस वर्ष पूर्व में स्थानीय एवं नगर निकाय के चुनावों में अपने बेहतर प्रदर्शन के बावजूद, पार्टी आदिवासियों को लुभाने के लिए भी कदम उठा रही है, क्योंकि राज्य में महामारी से निपटने में कुप्रबंधन के चलते, विशेषकर दूसरी लहर के दौरान, उसे पलटवार की आशंका है। इसके अलावा, विशेषकर ग्रामीण इलाकों में किसानों के मुद्दे भी भाजपा के लिए एक रोड़ा बने हुए हैं।

जीपीसीसी प्रमुख के तौर पर पदभार संभालने के बाद अपनी पहली प्रेस वार्ता में जगदीश ठाकोर ने कोविड-19 कुप्रबंधन को लेकर सत्तारूढ़ दल पर निशाना साधा और दावा किया कि, “गुजरात में महामारी के दौरान आवश्यक सुविधाओं, ऑक्सीजन और दवाओं की कमी की वजह से लाखों लोग मारे गये। इसके बावजूद, सत्तारूढ़ सरकार मौतों या परीक्षणों की सही संख्या का खुलासा नहीं करना चाहती है। पार्टी द्वारा आयोजित न्याय यात्रा के दौरान, हमारे पार्टी कार्यकर्ताओं ने लगभग एक लाख परिवारों से मुलाकात की है, जिन्होंने अपने परिवार में कोविड-19 लहर में कम से कम एक व्यक्ति को खो दिया था। हमारी जानकारी के मुताबिक, गुजरात में कोविड-19 की वजह से तीन लाख से अधिक लोग मारे गए, जबकि सरकार लगातार दावा कर रही है कि सिर्फ 10,000 मौतें हुई हैं। अभी तक अनुग्रह राशि के लिए 22,000 दावे स्वीकृत किये जा चुके हैं, और अभी कई और भी प्रतीक्षा में हैं।”

विशेष रूप से, आम आदमी पार्टी द्वारा सूरत नगर निकाय चुनावों में बड़ी जीत हासिल करने के बाद से ही कांग्रेस और भाजपा दोनों ही आगामी 2022 विधानसभा चुनावों के लिए हरकत में आ चुकी हैं। एआईएमआईएम भी राज्य में मुस्लिम मतदाताओं के बीच में अपनी पैठ बनाकर गुजरात की राजनीति में अपनी जगह बनाने की कोशिश में लगी हुई है। 

ओवैसी की आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने इस वर्ष की शुरुआत में अहमदाबाद के नगर निकाय में सात सीटों पर जीत हासिल कर गुजरात चुनावों में अपनी शुरुआत कर दी थी। इसके अलावा, 2002 दंगों के मुख्य केंद्र, गोधरा नगरपालिका में 17 निर्दलीय उम्मीदवारों के एक समूह को एआईएमआईएम के समर्थन ने 44 में से 18 सीटों पर जीत हासिल करने के बावजूद भाजपा को सत्ता में वापस आने से रोक दिया है।

वहीं दूसरी ओर आम आदमी पार्टी ने सूरत निकाय चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करने और मुख्य विपक्षी दल के तौर पर उभरने के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों से जुड़े पाटीदार युवाओं के असंतोष को अपना आधार बना रखा था।

14 दिसंबर को, गुजरात पुलिस ने आप पार्टी की युवा ईकाई द्वारा पर्चा लीक के दावे की जांच शुरू की है। गुजरात अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड (जीएसएसएसबी) के द्वारा 12 दिसंबर को 186 रिक्तियों के लिए भर्ती परीक्षा आयोजित की गई थी। इसके अगले दिन, गुजरात आम आदमी पार्टी (आप) की युवा ईकाई के उपाध्यक्ष, युवराज सिंह जड़ेजा ने दावा किया कि परीक्षा से एक रात पहले ही प्रश्न पत्र लीक हो गया था और सारे प्रदेश में इसे 6-12 लाख रूपये में बेचा गया है। गुजरात की चुनावी राजनीति में एआईएमआईएम और आप के आगमन ने भाजपा और कांग्रेस दोनों को ही अपने-अपने पारंपरिक वोट बैंक को आकर्षित करने से परे जाकर भी कुछ अतिरिक्त मेहनत करने के लिए मजबूर कर दिया है।

भाजपा जहां आदिवासियों को लुभाने की कोशिश में लगी हुई है, वहीं कांग्रेस अपने पारंपरिक ओबीसी, आदिवासी और मुस्लिम मतदाताओं के अलावा दलित वोट बैंक पर भी नजरें गडाये हुए है। पिछले महीने, वडगाम से निर्दलीय दलित विधायक जिग्नेश मेवाणी पार्टी में शामिल हुए थे। 2017 चुनावों में, कांग्रेस ने उत्तरी गुजरात के अपने विजयी उम्मीदवार और दिग्गज दलित नेता, मणिभाई वाघेला की उम्मीदवारी को वापस लेकर मेवाणी को अपना समर्थन दिया था। हालांकि, मेवाणी के कांग्रेस में शामिल हो जाने के बाद वाघेला ने पार्टी से त्यागपत्र दे दिया है और ऐसी खबर है कि भाजपा के साथ उनकी बातचीत चल रही है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Gujarat Polls: Congress Looks to OBC, Tribal Vote Bank While BJP Woos Patels and Tribals

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