“गुप्कर घोषणा” कश्मीर में राजनीति के भविष्य की आधारशिला साबित हो सकती है!
एक ऐसे समय में जब तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों सहित राज्य के शीर्ष नेतृत्व को हिरासत में रखा गया है, एक बदलाव की जड़ें अपना स्वरूप ग्रहण कर रही हैं जिसे मुख्यधारा के राजनीतिज्ञ ‘गुप्कर घोषणा’ के रूप में उधृत कर रहे हैं और जिससे यह उम्मीद की जा रही है कि यह कश्मीर के भविष्य की राजनीति की दिशा को तय करेगी।
चूँकि केंद्र सरकार ने 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर में भीषण पाबंदी लागू कर दी, सैंकड़ों नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया, जिनमें से कुछ को उनके घरों में नज़रबंद किया गया है, जबकि कईयों को होटल से जेल में तब्दील स्थानों पर स्थानांतरित कर दिया गया है। हिरासत में रखे गए लोगों में राज्य के भूतपूर्व मुख्यमंत्री- फ़ारूक़ अब्दुल्ला, अमर अब्दुल्ला और मेहबूबा मुफ़्ती शामिल हैं। वरिष्ठ नेताओं में सिर्फ़ फ़ारूक़ अब्दुल्ला ही हैं जिन्हें पब्लिक सेफ़्टी एक्ट (पीएसए) के तहत घर में नज़रबंद किया गया है।
जहाँ एक ओर कई नेताओं और कार्यकर्ताओं को 24 अक्टूबर को होने वाले खंड विकास परिषद चुनावों (बीडीसी) को ध्यान में रखते हुए रिहा कर दिया गया है, वहीं उनमें से कुछ को अपने चुनाव क्षेत्रों का दौरा करने तक की इजाज़त नहीं है। दोनों दलों नेशनल कॉन्फ़्रेंस (एनसी) और पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के सदस्यों के अनुसार, अभी भी राजनीतिक स्थान “दमघोंटू” बना हुआ है और नेताओं की हालत ‘पस्त’ है।
जैसा कि पर्यवेक्षकों ने मौजूदा संकट का जायज़ा लिया है, उसके अनुसार इसने धुर विरोधी पीडीपी और नेशनल कॉन्फ़्रेंस को ‘एकजुट’ करने का काम किया है। अनंतनाग से पूर्व सांसद हसनैन मसूदी का कहना है कि उन्हें उम्मीद है 5 अगस्त को विभिन्न पार्टियों के नेताओं की गुप्कर मीटिंग की प्रष्ठभूमि में भविष्य की राजनीति का ख़ाका अपना स्वरूप ग्रहण करेगा।
न्यूज़क्लिक से बात करते हुए मसूदी का कहना है, “अगस्त में सभी राजनैतिक दलों के नेता एक घोषणा के साथ सामने आए थे, जिसमें उन्होंने विशेष दर्जे की लड़ाई को लड़ने का संकल्प लिया था। उसके बाद हालात बदल गए, लेकिन जैसे ही ये लोग रिहा होते हैं, मेरा विश्वास है कि गुप्कर से निकले संदेश की निरंतरता में विचार-विमर्श आगे जारी रहेगा।”
मसूदी 31 अक्टूबर तक अपने वरिष्ठ पार्टी नेतृत्व की रिहाई को लेकर आश्वस्त हैं। उनके अनुसार इस प्रकार की किसी भी गतिविधि के लिए ज़मीनी आधार नेताओं की रिहाई के बाद ही बनना शुरू होगा।
सरकार द्वारा सर्वसम्मति से अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित राज्यों में तब्दील कर उसके अस्तित्व को छोटा करने से एक दिन पूर्व 4 अगस्त को, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को छोड़कर सभी राजनैतिक दलों के नेताओं ने डॉ फ़ारूक़ अब्दुल्ला के गुप्कर आवास पर मुलाक़ात की और सुरक्षा बलों की भारी संख्या में तैनाती से पैदा हुई दहशत, केंद्र सरकार की ओर से जारी तमाम एडवाइज़री के साथ अमरनाथ यात्रा पर रोक और घाटी से पर्यटकों को ख़ाली किये जाने पर चर्चा की।
मीटिंग में, पार्टी नेतृत्व ने “राज्य की पहचान, स्वायत्तता और विशेष राज्य के दर्जे” की रक्षा के लिए “एकजुट होने और एकजुट खड़े रहने” का संकल्प लिया जिसे गुप्कर घोषणा का नाम दिया गया है।
उसके बाद से सभी राजनेता हिरासत में ही हैं।
राजनीतिज्ञों की रिहाई के सवाल पर पीडीपी के एक वरिष्ठ नेता जो हाल तक घर में नज़रबंद थे, मसूदी की तरह आशान्वित नहीं हैं, लेकिन मसूदी की तरह मानते हैं कि भविष्य का राजनीतिक ख़ाका 4 अगस्त की गुप्कर मीटिंग में खींचा जा चुका है।
अपना नाम न बताने की शर्त पर पीडीपी नेता कहते हैं कि “यह उन सभी लोगों के लिए एक नैतिक बंधन है जो गुप्कर में इकट्ठा हुए थे और एक घोषणा के साथ सामने आए थे। समय की मांग है कि वे एक साथ जुड़ें और इसे निर्मित करें। अगर वे ऐसा नहीं करते हैं, तो यह विश्वासघात होगा।
मुख्यधारा के राजनीतिक दलों के नेता चुनावी राजनीति में भाग लेंगे या नहीं, यह देखना अभी बाक़ी है, लेकिन पीडीपी में पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने न्यूज़क्लिक को बताया कि कई लोगों ने पहले ही अपनी इच्छा ज़ाहिर कर दी है कि वे अब इसका हिस्सा नहीं बनेंगे।
एक राजनीतिक कार्यकर्ता, जिनकी शेर-ए-कश्मीर इंटरनेशनल कॉन्फ़्रेंस सेंटर (SKICC) तक पहुंच थी, जहां 30 से अधिक नेताओं को हिरासत में रखा गया है के अनुसार, पहले से ही पीडीपी, नेशनल कॉन्फ़्रेंस और पीपल्स कॉन्फ़्रेंस जैसे सभी राजनीतिक दलों के बीच से एक नया 'संयुक्त मोर्चा' उभर रहा है। नेशनल कॉन्फ़्रेंस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा है कि उन्हें तब तक रिहा न किया जाए, जब तक पीडीपी के एक अन्य वरिष्ठ नेता की भी रिहाई नहीं होती।
SKICC में पार्टी के वरिष्ठ सदस्यों और नेताओं की तरह, मसूदी के अनुसार, नेशनल कॉन्फ़्रेंस के शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व, ख़ास तौर पर उमर अब्दुल्ला ने उनसे कहा है कि जब तक सभी को रिहा नहीं किया जाता, तब तक वे अपने लिए किसी क़िस्म के क़ानूनी उपायों की तलाश नहीं करेंगे।
मसूदी कहते हैं, “वे किसी क़िस्म का क़ानूनी उपचार लेने के पक्ष में नहीं हैं; उनकी चिंता सभी नेताओं को लेकर है चाहे वे किसी भी दल से हों और उनकी माँग है कि एक साथ सभी की रिहाई हो।
मसूदी के अनुसार, “जहाँ हमें SKICC के भीतर तमाम राजनीतिक पार्टियों के नेतृत्व के बीच एकजुटता दिखाई देती है वहीं इन दलों के भीतर एक दोषपूर्ण लकीर भी खिंचती नज़र आती है।”
कई लोगों का मानना है कि सबसे बड़ी ग़लती यह है कि नेताओं में इस बात को लेकर मत भिन्नता है कि भविष्य में चुनावी राजनीति में हिस्सा लिया जाना चाहिए या नहीं।
हालाँकि मसूदी कहते हैं कि असल मुद्दा चुनावी राजनीति में भाग लेने के सवाल से काफ़ी बड़ा है। वे आगे जोड़ते हैं, “यह चुनावी राजनीति का आसान प्रश्न नहीं है, बल्कि वर्तमान परिस्थति के मद्देनज़र किस प्रकार का रुख इख़्तियार करें, यह सबसे बड़ा सवाल है।”
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