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ज्ञानवापी मस्जिद विवाद : सुप्रीम कोर्ट ने कथित शिवलिंग के क्षेत्र को सुरक्षित रखने को कहा, नई याचिकाओं से गहराया विवाद

सुप्रीम कोर्ट में ज्ञानवापी मामले की सुनवाई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने की। कोर्ट ने कथित शिवलिंग क्षेत्र को सुरक्षित रखने और नमाज़ जारी रखने के आदेश दिये हैं।
ज्ञानवापी मस्जिद विवाद : सुप्रीम कोर्ट ने कथित शिवलिंग के क्षेत्र को सुरक्षित रखने को कहा, नई याचिकाओं से गहराया विवाद

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे खत्म होने के बाद विवाद और गहराता जा रहा है। हिंदू पक्ष की तरफ से दावा किया गया है कि मस्जिद परिसर के अंदर शिवलिंग मिला है, जबकि मुस्लिम पक्ष का कहना है कि वह शिवलिंग नहीं फव्वारा है। मस्जिद कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में सर्वे कराने पर ही सवाल उठाए हैं, जबकि हिन्दू पक्ष के अधिवक्ताओं ने ज्ञानवापी परिसर की कुछ दीवारों को गिराकर दोबारा सर्वे कराने की मांग उठाई है। उधर, मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हुई और अदालत ने कहा कि अगर मस्जिद में शिवलिंग मिला है तो हमें संतुलन बनाना होगा।

कोर्ट ने मस्जिद कमेटी की ओर से वाराणसी कोर्ट के आदेश से हो रहे सर्वे को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी कर मामले की सुनवाई गुरुवार 19 मई की रखी है।

सुप्रीम कोर्ट ने वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे कराने के वाराणसी कोर्ट के आदेश के खिलाफ मुस्लिम पक्ष की याचिका पर सुनवाई करते हुए एक बड़ा निर्देश जारी किया। कोर्ट ने कहा कि मस्जिद परिसर में जिस जगह शिवलिंग मिला है, उसे सुरक्षित रखा जाए। हालांकि अदालत ने यह भी कहा कि लोगों को नमाज़ अदा करने से रोका न जाए।

मुस्लिम पक्ष की ओर से पैरवी कर रहे हुफ़ैज़ा अहमदी से सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह याचिका पूजा-अर्चना के लिए है, न कि मालिकाना हक के लिए, ऐसे में वहां के हालात ही बदल जाएंगे। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने निर्देश दिया कि अगर शिवलिंग मिला है तो हमें संतुलन बनाना होगा। हम डीएम को निर्देश देंगे कि वह उस स्थान की सुरक्षा करें पर मुस्लिमों को नमाज़ से न रोकें। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि हम नोटिस जारी कर रहे हैं। निचली अदालत को निर्देश देना चाहते हैं कि जहां शिवलिंग मिला है, उस जगह को सुरक्षित रखे और किसी को नमाज़ अदा करने से न रोके। 

कोर्ट ने पूछा, क्या है सर्वे का स्टेटस

सुप्रीम कोर्ट में ज्ञानवापी मामले की सुनवाई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने की। कोर्ट ने पूछा कि सर्वे का स्टेटस क्या है?  इस पर मुस्लिम पक्ष ने कहा कि किसी परिसर को कैसे सील किया जा सकता है? बनारस में गैरकानूनी निर्देशों की झड़ी लगी हुई है। अगर आप परिसर को सील कर देंगे तो ये यथास्थिति बरकरार रखने के निर्देश का उल्लंघन होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने जब मुस्लिम पक्ष के पैरोकार अहमदी से कहा कि यह मामला मालिकाना हक का नहीं, बल्कि पूजा का है तो मुस्लिम पक्ष ने कहा कि इससे तो हालात ही बदल जाएंगे। अहमदी ने कहा कि इसी अदालत ने कहा था कि 15 अगस्त 1947 को जो धर्म स्थल जिस स्थिति में थे, उन्हें नहीं बदला जा सकता। इस तरह के ऑर्डर में साज़िश की बहुत आशंका है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम पूजा-अर्चना की याचिका खारिज करने के लिए ट्रायल कोर्ट को ऑर्डर दे सकते हैं। इस पर अहमदी ने कहा कि आप सभी निर्देशों को निरस्त करें, क्योंकि ये सब संसद के नियमों के खिलाफ हैं।

सिविल कोर्ट में फिर नई याचिका

इधर, बनारस के सिविल जज (सीनियर डिवीजन) की अदालत में मंगलवार को रेखा पाठक, मंजू व्यास और सीता साहू की ओर से एक और याचिका दायर की गई, जिसमें ज्ञानवापी परिसर की कुछ दीवारों को गिराकर सर्वे कराने की मांग की गई है। इनके अधिवक्ता का कहना है कि ज्ञानवापी मस्जिद के वज़ूखाने के ठीक नीचे मौजूद शिवलिंग तक पहुंचने के लिए एक दरवाजा है। 16 मई को मलबे से मिले शिवलिंग के चारों तरफ की दीवार हटाई जाए, क्योंकि शक है कि शिवलिंग के सामने पूर्वी दीवार में नीचे से शिवलिंग को सीमेंट और पत्थरों से जोड़ दिया गया है। इन महिलाओं ने ज्ञानवापी की पश्चिमी दीवार में बने एक बंद दरवाजे को भी खोलने की मांग की है जिसका रास्ता श्रृंगार गौरी की ओर जाता है। इस मामले में कोर्ट ने मस्जिद कमेटी को नोटिस भेजा है, जिस पर बुधवार को सुनवाई होगी।

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दूसरी याचिका यूपी सरकार की ओर से वाराणसी के डीजीसी (सिविल) महेंद्र प्रसाद पांडेय दायर की है। उन्होंने सिविल जज सीनियर डिवीजन रवि कुमार दिवाकर की अदालत में एक प्रार्थना पत्र दिया है, जिसमें उन्होंने तीन मांग उठाई है।

पहली, ज्ञानवापी मस्जिद स्थित जिस तीन फीट गहरे मानव निर्मित तालाब को सीज किया गया है, उसके चारों तरफ पाइप लाइन और नल हैं। उस नल का उपयोग नमाज़ी वज़ू के लिए करते हैं। तालाब परिसर सील होने के कारण नमाज़ियों के वज़ू के लिए बाहर व्यवस्था की जाए। दूसरी मांग यह है कि ज्ञानवापी के सील क्षेत्र में शौचालय भी हैं, उनका उपयोग नमाज़ी करते हैं। अब उन्हें वहां नहीं जानें दिया जा रहा है, ऐसे में उनकी व्यवस्था की जाए। तीसरी मांग, सील किए गए तालाब में कुछ मछलियां भी हैं। ऐसे में उन्हें खाने की चीजें नहीं मिल पा रही हैं। उन मछलियों को अब कहीं और पानी में छोड़ा जाए।

तीसरी याचिका एडवोकेट आयुक्त विशाल सिंह की ओर से डाली गई है जिसमें उन्होंने कोर्ट को बताया है कि सर्वे रिपोर्ट अभी तैयार नहीं हुई है। उनके साथी अधिवक्ता आयुक्त अजय कुमार मिश्रा और सहायक अधिवक्ता आयुक्त अजय प्रताप सिंह पर कमीशन की कार्रवाई में सहयोग नहीं कर रहे हैं। कोर्ट दोनों से स्पष्टीकरण मांगा और बाद में अजय कुमार मिश्र को सर्वे की कार्यवाई से हटा दिया। सिविल जज (सीनियर डिवीजन) रवि कुमार दिवाकर की अदालत ने 12 मई को अधिवक्ता आयुक्त अजय कुमार मिश्र के सहयोग के लिए विशेष अधिवक्ता आयुक्त विशाल सिंह और सहायक अधिवक्ता आयुक्त अजय प्रताप सिंह को नियुक्त किया था। इसके बाद 14 मई से कमीशन की कार्रवाई शुरू हुई और 16 मई को पूरी हुई थी। 

कैसे लीक हो गईं सर्वे की सूचनाएं?

ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे का काम पूरा होने के साथ ही कथित शिवलिंग को लेकर अनर्गल बयानबाजी का दौर शुरू हो गया है। यह स्थिति तब है जब कोर्ट ने साफ-साफ निर्देश दिया था कि किसी भी हालत में सर्वे की कोई सूचना लीक नहीं होनी चाहिए। सर्वे टीम में शामिल कई वकीलों ने बाहर आते ही जिस तरह की बयानबाजी शुरू की उससे शहर में भूचाल सा आ गया। इन सबके बीच ट्वीटर पर ज्ञानवापी मंदिर नाम से हैश टैग चलना शुरू हो गया। दूसरी ओर, सोशल मीडिया पर दोनों पक्ष परस्पर विरोधी दावे कर रहे हैं। इस बीच पक्षकार जितेंद्र सिंह विसेन ने प्रेस कांफ्रेंस कर कहा है, "मस्जिद में भव्य मंदिर बनेगा। आदि विश्वेश्वर के मंदिर का मडल तैयार कर लिया गया है। इसके लिए हम 50 साल इंतज़ार नहीं कर सकते हैं। विश्व वैदिक सनातन संघ सनातन धर्म पर लगे हर कलंक को हटाने के लिए प्रतिबद्ध है। आदि विश्वेश्वर का मंदिर वहीं बनेगा जहां पर ज्योतिर्लिंग था।"

दिल्ली में भाजपा के एक बड़े नेता कपिल मिश्र ने अपने फेसबुक अकाउंट पर यह जानकारी शेयर कर सनसनी फैला दी कि ज्ञानवापी में मिला शिवलिंग पन्ना धातु का है। बनारस के वरिष्ठ पत्रकार अमित मौर्य कहते हैं, "भाजपा के विवादित बयान और अटकलबाजियों से स्पष्ट हो रहा है कि शिवलिंग के बरामद होने से पहले ही इस पार्टी के लोगों ने संभवतः किसी काबिल जौहरी से धातु की पहचान करा ली थी। साथ ही मंदिर का माडल भी बनवा लिया था। मतलब सब कुछ पूर्व नियोजित था।"

ज्ञानवापी मस्जिद के जिस तालाब में शिवलिंग होने की बात कही जा रही है उसे सील कर दिया गया है। मौके पर आरपीएफ के जवान तैनात कर दिए गए हैं। साथ ही वज़ू करने पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गई है। मस्जिद में नमाज़ अदा करने वालों की तादाद घटाकर सिर्फ बीस कर दी गई है। अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के सेक्रेटरी मोहम्मद यासीन न्यूजक्लिक से कहते हैं, "सिविल कोर्ट ने अप्रत्याशित फैसले से गंगा-जमुनी तहजीब में यकीन रखने वाले लोग आहत हैं। सबसे बडी बात यह है कि अदालत ने हमारे पक्ष को सुना ही नहीं और फैसला सुना दिया। हमारे अधिवक्ता तक को इन्वाइट करने की जरूरत ही नहीं समझी गई। जिस पत्थर को वादी पक्ष शिवलिंग बता रहा है वह फब्बारे का एक हिस्सा है। मीडिया ने शुरू में इसे पहले 12 इंच का बताया और बाद में उसे 12 फुट का बताना शुरू कर दिया है। सिविल कोर्ट के ताजातरीन फैसले से समाज में नफरत का जहर घुल रहा है। इस शहर में कभी भी और कुछ भी हो सकता है। समाज में आखिर कितना जहर घोला जाएगा? जहर का असर तो होगा ही।"

जानिए पूरा मामला : ज्ञानवापी विवाद: क्या और क्यों?

यासीन यह भी कहते हैं, "बनारस के सिविल कोर्ट के हालिया आदेश से सिर्फ अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी ही नहीं है, दी सेंट्रल बार एसोसिएशन बनारस और दी बार एसोसिएशन भी हैरान है। अधिवक्ताओं के दोनों संगठनों की संयुक्त बैठक में 16 मई की सुबह निर्णय लिया गया था कि बुद्ध पूर्णिमा के चलते कलेक्ट्रेट न्यायालय में अवकाश घोषित किया गया है, जिससे असमंजश की स्थिति पैदा हो गई है। अधिकांश अधिवक्ता और वादकारी पूजा-पाठ में सम्मिलत होने की वजह से समय से कोर्ट नहीं पहुंच पाए हैं। इस वजह से 16 मई 2022 को किसी भी मुकदमें में किसी प्रकार का कोई प्रतिकूल आर्डर (नो एडवर्स) पारित न किया जाए। दोनों संगठनों ने नो एडवर्स आदेश पारित न किए जाने के बाबत जिला न्यायाधीश को भी चिट्ठी भेजी थी, इसके बावज़ूद ज्ञानवापी मामले में "नो एडवर्स आर्डर" पास कर दिया गया।"

क्या है पूरा मामला?

बनारस के सिविल कोर्ट (सीनियर डिविजन) रवि कुमार दिवाकर ने पिछले महीने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर की पश्चिमी दीवार के पीछे एक हिंदू मंदिर में साल भर पूजा-प्रार्थना करने की अनुमति की मांग करने वाली याचिकाओं की सुनवाई के दौरान समूचे परिसर के निरीक्षण का आदेश दिया था। कोर्ट ने पांच हिंदू महिलाओं की अपील पर सुनवाई करते हुए एडवोकेट कमिश्नर की तैनाती की और 10 मई तक एक रिपोर्ट सौंपने का आदेश पारित किया। छह मई 2022 को मस्जिद कमेटी ने जब वीडियोग्राफी का विरोध किया तो ज्ञानवापी परिसर के बाहर हंगामा खड़ा हो गया। बाद में मस्जिद कमेटी ने सिविल कोर्ट से एडवोकेट कमिश्नर अजय कुमार मिश्रा को हटाने की मांग की।

लगातार तीन दिन तक बहस के बाद सिविल कोर्ट ने आदेश दिया कि परिसर का सर्वे जारी रहेगा। कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे के लिए नियुक्त एडवोकेट कमिश्नर अजय कुमार मिश्रा को हटाने से इनकार करते हुए दो अन्य अधिवक्ता विशाल कुमार सिंह और अजय सिंह को भी कोर्ट कमिश्नर की टीम में शामिल कर दिया। विरोधी पक्ष मांग कर रहे थे कि कोर्ट कमिश्नर को बदला जाए, क्योंकि वह याचिकाकर्ताओं के दबाव में काम कर रहे हैं। सिविल कोर्ट ने मस्जिद कमेटी के प्रार्थना-पत्र को आधारहीन पाया।

सिविल जज सिविल जज रवि कुमार दिवाकर ने आदेश में अपने और अपने परिवार की सुरक्षा की पर चिंता भी व्यक्त और अपनी टिप्पणी में लिखा "इस साधारण से दीवानी मामले को असाधारण मामला बनाकर भय का माहौल बना दिया गया। डर इतना है कि मेरा परिवार हमेशा मेरी सुरक्षा के बारे में चिंतित है और मुझे उनकी सुरक्षा की चिंता है। जब मैं घर से बाहर जाता हूं, मेरी पत्नी मेरी सुरक्षा के बारे में बहुत चिंतित रहती है। कल मेरी मां (लखनऊ में) ने हमारी बातचीत के दौरान भी मेरी सुरक्षा को लेकर चिंता जताई और मीडिया को मिली खबरों से उन्हें पता चला कि शायद मैं भी कमिश्नर के तौर पर मौके पर जा रहा हूं और मेरी मां ने मुझसे कहा कि मुझे मौके पर नहीं जाना चाहिए, क्योंकि इससे मेरी सुरक्षा को खतरा हो सकता है।" 

"नया अयोध्या बनाने की तैयारी"

बनारस के वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक प्रदीप कुमार ने मौजूदा हालात पर त्वरित टिप्पणी करते हुए कहा है, "आजादी के बाद साल 1993 तक ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर कोई बवाल खड़ा नहीं हुआ था। बाबरी मस्जिद तोड़े जाने के बाद से ही इस मामले को हवा दी जा रही है। सियासी लाभ उठाने के लिए कुछ लोग इस मामले को जानबूझकर तूल दे रहे हैं। वह जो नेरेटिव खड़ा करना चाहते थे उसमें फिलहाल वह कामयाब होते नजर आ रहे हैं। यह मामला कानूनी कम, सियासी ज्यादा है। सियासी एजेंडे को पूरा करने के मकसद से यह कवायद शुरू की गई थी। शर्मनाक बात यह है कि कुछ मीडिया समूह इस मसले को पूरे मुल्क में अपने मन मुताबिक परोश रहे हैं। इनकी कारगुजारी देश और समाज के व्यापाक हित में नहीं है। यह वही मीडिया है जिसने बाबरी मस्जिद तोड़े जाने के बाद हुई पुलिस फायरिंग में हिन्दुओं के खून से सरयू नदी के लाल होने के किस्से-कहानियां गढ़ डाली थी। गंगा-जमुनी तहजीब के शहर में बेवजह बितंडा खड़ा किए जाने से समाज का नुकसान होगा और दुनिया भर में भारत की इमेज प्रभावित हो सकती है। बेहतर होगा कि सर्वोच्च न्यायलय इस मामले में त्वरित सुनवाई करे और देश व दुनिया के सामने स्थिति को स्पष्ट करे।"

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प्रदीप कहते हैं, "ज्ञानवापी विवाद के बाद देश भर में इससे मिलते-जुलते विवादों की लंबी श्रृंखला खड़ी हो गई है। सर्वे रिपोर्ट पहले अदालत में जानी चाहिए थी, लेकिन इससे पहले ही बढ़ा-चढ़कर बयान जारी किए जाने लगे। विवादित बयान जारी करने में वह लोग भी शामिल हैं जिन्हें सर्वे की रिपोर्ट गोपनीय रखने की हिदायत दी गई थी। इससे देश भर में अनावश्यक अविश्वास का माहौल बन रहा है और अफवाहों को पंख लग रहे हैं। गौरतलब बात यह भी है कि जब अदालत ने हिदायत दी थी कि कमीशन की कार्रवाई बाहर नहीं जानी चाहिए कि जो बातें बाहर आ रही हैं वो कौन लोग लीक कर रहे हैं? इस मामले में दोषियों के खिलाफ क्या कोई कार्रवाई की गई? अदालत और प्रशासन को इस मामले में अभी तक कोई सख्त कदम क्यों नहीं उठाया?  

"ज्ञानवापी प्रकरण में एक पक्ष जिस तरह से विजेता भाव के साथ चीजों को बाहर रख रहा है वह गंभीर चिंता की बात है। इस मामले में कोर्ट को गौर करना चाहिए। हाल के सालों में काशी विश्वनाथ कारिडोर के निर्माण के बहाने आस्था के केंद्र रहे तमाम ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व के स्थानों को तोड़ दिया गया। काशी विश्वनाथ की कचहरी समेत काशी खंड के दर्जनों मंदिरों का वज़ूद मिटा दिया गया और अनगितन विग्रहों को नेस्तनाबूत कर दिया गया। इस मनमानी पर तब न किसी चिंता जताई और न किसी ने आंसू बहाए। ज्ञानवापी में जो पत्थर मिला है वह क्या है, इसकी पुरातात्विक जांच-पड़ताल नहीं हुई है। ऐसे में इस मामले को बेवजह तूल दिया जाना ठीक नहीं है। बनारस के अमनपसंद लोग और गंगा-जमुनी संस्कृति के हिमायती नहीं चाहते कि काशी में कोई ऐसा जलजला उठे जिससे लोगों के सामने भूख से मरने की नौबत आ जाए। दौर कोई भी रहा हो, भूख बड़ी न कोई आस्था रही है, न ही कोई धर्म।"

सच जानना चाहती है दुनिया 

ज्ञानवापी प्रकरण में राष्ट्रीय सेवक संघ ने मुखर होकर अपनी बात रखी है। वरिष्ठ संघ प्रचारक इंद्रेश कुमार ने मेरठ में मीडिया से बातचीत में कहा, "ऐसे स्थानों का सच क्या है, ये भारत ही नहीं समूचा विश्व जानना चाहता है। देश के हर नागरिक को सच जानने का अधिकार है। ऐसे विवादों को हल करने के लिए एक बेसिक फाउंडेशन बनाया जाना चाहिए। यह समय कट्टरता, वैमनस्यता अथवा क्रोध का नहीं है। भारत की संस्कृति गलत को गलत कहती है। जब औरंगजेब, गजनी, गौरी और बाबर विदेशी आक्रांता थे तो उन्हें आक्रांता कहने में संकोच कैसा? आखिर सज्जनों की हिस्ट्री क्यों नहीं बनाई जाती? "

विश्व हिन्दू परिषद के अंतरराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा है कि 11 और 12 जून को साधु-संत हरिद्वार में बैठक करेंगे। इसी बैठक में ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग मिलने के बाद की स्थिति पर मंथन किया जाएगा। सर्वे के दौरान मिले इस साक्ष्य को देश के लोग स्वीकार करेंगे और इसका आदर भी करेंगे। इसकी जो स्वाभाविक परिणतियां हैं, देश उस  तरफ आगे बढ़ेगा। शिवलिंग वाले हिस्से को संरक्षित किया गया और यह विषय अपने नतीजे तक जरूर पहुंचेगा।

"पूजित शिवलिंग ही असली विश्वनाथ"

काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत राजेंद्र तिवारी भी इस बात से बेहद आहत हैं कि काशी खंड के तमाम पुरातन मंदिरों के ध्वस्तीकरण पर चुप्पी साधकर बैठे लोगों को अब मजहबी पंख लग गया है। जिन्हें पुरातन और ऐतिहासिक मंदिरों को बुल्डोजर लगाकर तोड़े जाने पर कोई एजराज नहीं था, वह लोग अब ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में पत्थर पाए जाने पर सीना कूट रहे हैं। यह स्थिति तब है जब यह अभी प्रमाणित ही नहीं हुआ है कि वह शिवलिंग है या फब्बारे का पत्थर?  राजेंद्र तिवारी "न्यूजक्लिक" से कहते हैं, "आखिर कौन बताएगा कि यह वही शिवलिंग है जिसकी चार-पांच सौ साल पहले पूजा होती थी? हमें लगता है कि न्याय व्यवस्था संदिग्ध स्थिति में है। बेवजह अनर्गल बितंडा खड़ा किया जा रहा है। हम मानते हैं कि औरंगजेब के समय काशी विश्वनाथ का मंदिर तोड़ा गया था और वहां मस्जिद बनाई गई थी, लेकिन उससे पहले बाबा के शिवलिंग को हटा लिया गया था। सच तो यह है कि पूजित शिवलिंग ही काशी विश्वनाथ का असली शिवलिंग है।"

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राजेंद्र तिवारी यह भी कहते हैं, "युगों-युगों के इतिहास को समेटने वाली काशी शिवलिंगों से पटी हुई है। बनारस का कंकड़ भी शंकर के समान है। विश्वनाथ में काशी है। समूची काशी ही विश्वनाथ है। अविनाशी काशी के किसी भी प्रांगण को खोदिएगा तो कोई न कोई शिवलिंग जरूर मिल जाएगा। प्रलय से पूर्व और प्रलय के बाद भी बनारस नहीं हिला। जिसे बाबा का शिवलिंग बताया जा रहा है वह सचमुच फब्बारा का गोल पत्थर है। सियासी फायदे के लिए जानबूझकर झूठ बोला जा रहा है। जिस तरह का झूठ कनाडा से लाई गई मूर्ति के समय बोला गया था, उसी तरह का झूठ इस बार भी परोशा जा रहा है। फर्जी कहानी गढ़ी गई है। जितने मुंह उतनी बातें हो रही हैं। इस खेल में जितने लोग शामिल हैं उनके पास मनगढ़ंत कहानियों की भरमार है। ऐसी कहानियां जिसका कोई ओर-छोर नहीं। कोई सत्यापन नहीं और प्रमाण भी नहीं। न्यायविद चाहे जो कहें, लेकिन सच तो सच ही रहेगा। हम हर समुदाय से सब्र करने और अमन-ओ-चैन बनाए रखने की अपील कर रहे हैं। इस मामले में कानूनी लड़ाई जारी है। ऐसे में किसी अफवाह अथवा किसी बहकावे में आने की जरूरत नहीं है।"

"इन्हें मस्जिद में ही मिलते हैं भगवान" 

ज्ञानवापी मस्जिद प्रकरण को लेकर देश भर में जो बितंडा खड़ा हुआ है उसमें कई सियासी दल, उनके अनुसांगिक संगठन और धार्मिक सस्थाओं के लोग कूद पड़े हैं। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने ज्ञानवापी सर्वे को लेकर केंद्र सरकार पर हमला बोला है। उन्होंने कहा है, "बुनियादी जरूरतों से ध्यान भटकाने के लिए यह नई साजिश का एक बड़ा हिस्सा है। इनको भगवान मस्जिद में ही मिलते हैं। भाजपा को उन सभी मस्जिदों की सूची सौंप देनी चाहिए जिन्हें वह लेना चाहती है। बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया और अब वे वहां कुछ और बनाना चाहते हैं। मस्जिदों पर ये दावे सिर्फ नफरत को भड़काने के लिए हैं।"

"बड़ा सवाल यह है कि क्या मस्जिदों को सौंपे जाने के बाद भाजपा सरकार विकास के एजेंडे पर ध्यान केंद्रित करेगी? क्या दो करोड़ लोगों को नौकरियां और ईधन की कीमत 2014 से पहले के स्तर पर आ जाएगा? हम मुसलमानों के लिए तो अल्लाह वहीं हैं जहां हम सजदा करते हैं। भाजपा और दक्षिणपंथी संगठन आखिर मुगल शासन में बनवाई गई संपत्ति के पीछे क्यें पड़े हैं। क्या वह सभी गिराए जाएंगे? ताजमहल, कुतुब मिनार, लालकिला...इन सभी को मुगलों ने ही बनवाया था। भारत में आधे विदेशी पर्यटक इन्हीं ऐतिहासिक इमारतों के देखने के लिए आते हैं।"

ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग मिलने के हिन्दू पक्ष के दावों के बीच एआईएमआईएम नेता और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने अदालत के उस आदेश की निंदा की है जिसमें सर्वेक्षण में कथित शिवलिंग को खोजे जाने के स्थान को सील करने का निर्देश दिया है। ओबैसी ने ट्वीट में कहा है, "यह बाबरी मस्जिद में दिसंबर 1949 में हुए वाकये का दोहराव है। यह आदेश ही मस्जिद के धार्मिक स्वरूप को बदल देता है। यह 1991 के उपासना अधिनियम का उल्लंघन है। ऐसी मेरी आशंका थी और अब यह सच हो गया। ज्ञानवापी मस्जिद थी और रहेगी। फैसले के दिन तक रहेगी।"

कोर्ट ने मस्जिद कमेटी की ओर से वाराणसी कोर्ट के आदेश से हो रहे सर्वे को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी कर मामले की सुनवाई गुरुवार 19 मई की रखी है।

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(विजय विनीत वाराणसी स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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