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“हाउडी मोदी”- क्या इसमें देश का कुछ भला है?

टेक्सास का संगठन, जिसने हाउडी मोदी का आयोजन किया, वो संघ परिवार को  काफ़ी महंगा साबित हुआ होगा। ये मोदी को बिगड़ती अर्थव्यवस्था और कश्मीर में पनपे हालात से पलायन करने में मदद करने का काम करता प्रतीत होता है, लेकिन इसका कोई फ़ायदा नज़र नहीं आ रहा है।
Howdy Modi’ a Win-Win
ह्यूस्टन टेक्सस फुटबॉल स्टेडियम जहां प्रधानमंत्री मोदी 22 सितंबर, 2019 को एक रैली को संबोधित करेंगे 

पीएम मोदी टेक्सास के ह्यूस्टन के एनआरजी स्टेडियम में रविवार को एक कार्यक्रम में भाग लेने जा रहे हैं, एक कार्यक्रम जिसे हाउडी मोदी  नाम दिया गया है और "सैकड़ों भारतीय-अमेरिकी समूहों" द्वारा प्रायोजित किया गया है। 2 साल और तीन महीने के लंबे अंतराल के बाद मोदी के अमेरिका लौटने के थीम पर इस कार्यक्रम की कोरियोग्राफ़ी की गई है।

मोदी और राष्ट्रपति ट्रम्प के राजनीतिक प्रबंधकों के बीच हुई एक बातचीत के बाद एक सौदे के तहत तय पाया कि हाउडी मोदी में ट्रम्प एक अतिथि के रूप में मौजूद होंगे। वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार, "ट्रम्प के लिए, यह रैली भारतीय अमेरिकियों के मतदाताओं के बड़े हिस्से को लुभाने का मंच प्रदान करेगी जिन्हें वे अगले साल के राष्ट्रपति चुनावों में भुनाने की फ़िराक़ में हैं, भले ही इस समुदाय का झुकाव व्यापक तौर पर डेमोक्रेटस की तरफ़ है।"

मोदी सरकार ज़ाहिर तौर पर अमेरिका के लिए कुछ व्यापार रियायत करने के लिए तैयार हैं और अगर वेपो रिपोर्ट से उद्धृत से किया जाए तो इसके ज़रिये "ट्रम्प इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर अपनी जीत का दावा करेंगे।" विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मंगलवार को संवाददाताओं से बात करते हुए इशारा किया वे अमेरिका-भारत के संबंधों में कुछ "तेज़ तर्रार" बढ़ते रिश्तों को देखने की उम्मीद कर रहे हैं, जो अब बहुत दूर नहीं हैं।" ट्रंप ने हाउडी मोदी के दौरान कुछ बड़ी घोषणा करने का इशारा किया है।

2016 में हुए अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में टेक्सास सबसे बड़ा मतों को "स्विंग करने वाला राज्य" था, जहां ट्रम्प ने हिलेरी क्लिंटन पर 9 प्रतिशत मतों के अंतर से जीत दर्ज की थी। (टेक्सास से डेमोक्रेटिक पार्टी से राष्ट्रपति का चुनाव जीतने वाले उम्मीदवार जिमी कार्टर थे जिसे 1976 में जीता गया था।) लेकिन अब यहां ट्रम्प के पैरों तले ज़मीन खिसकने लगी है।

प्रतिनिधि सभा (अमरिकी संसद) से रिपब्लिकन रिटायर हो रही है जिससे डेमोक्रेट्स को अगले साल टेक्सास में लाभ मिलने की उम्मीद दी है, जहां उपनगरों में बदलती जनसांख्यिकी ने कुछ ज़िलों में मतदाताओं के प्रोफ़ाइल को फिर से बदल दिया है। 2020 के चुनाव में टेक्सास एक युद्ध के मैदान के रूप में उभर सकता है और राज्य में मौजूद विविधता से भरे उपनगर हैं जहां विकास सिर्फ़ हिस्पैनिक्स के आस-पास केंद्रित नहीं है, बल्कि उसमें एशियाई अमेरिकी लोग भी शामिल हैं। एक बड़ी संख्या में मौजूद अप्रवासी समुदाय टेक्सास में ट्रम्प के जीतने की संभावनाओं को तय करेगा।

मोदी ह्यूस्टन में ऊर्जा क्षेत्र जुड़ी कंपनियों के सीईओ के साथ भी बैठकें करेंगे, जिसमें एक्सॉन मोबिल और चेनियर एनर्जी प्रमुख रूप से शामिल हैं। मोदी ने ट्रम्प को सूचित कर दिया है कि भारत अमेरिकी ऊर्जा का ख़रीदार बना रहना चाहता है और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि उनकी शेल उद्योग में निवेश करने की बड़ी योजना है। ऊर्जा "अमेरिका फ़र्स्ट" का एक मुख्य टेम्प्लेट है। ट्रम्प ने बड़े सहज रूप से यह सुनिश्चित करने की कोशिश की है ताकि अमेरिकी शीर्ष ऊर्जा अधिकारी ह्यूस्टन में उपस्थिति रहें।

संक्षेप में कहा जाए तो, दिल्ली ने ट्रम्प को एक प्रस्ताव दिया, जिसे वे संभवतः मना नहीं कर पाएंगे। यह कहते हुए कि, हाउडी मोदी भी एक जीत ही है। मोदी के लिए भी यह कार्यक्रम एक सौगात लेकर आया है।

यह आयोजन दिखावटी रूप से ही सही लेकिन मोदी की छवि को बढ़ावा देने की उम्मीद करता है, जिनकी हाल ही में कश्मीर और आर्थिक मोर्चे पर विफलता से छवी पूरी तरह से ख़राब हो गयी थी।

मोदी ने अपनी विरासत बनाने के नाम पर ऐसे "प्रथम भारतीय प्रधान मंत्री" की छवी बनाई है जिसने कुछ बहुत कुछ किया है या एक्स-वाई-ज़ेड देशों का दौरा किया है। और हाउडी मोदी जैसा आयोजन पहली बार होगा जब किसी अमेरिकी राष्ट्रपति और भारतीय प्रधानमंत्री ने एक साथ सार्वजनिक रैली को संबोधित किया होगा। यह मोदी के लिए एक बड़ी बात है।

मोदी ने अनुमान लगा लिया है कि रैली में ट्रम्प की मौजूदगी अमेरिका के उनके साथ 'परिचित' होने का संकेत देगी कि दिल्ली ने जम्मू-कश्मीर में जो किया है वह सही है। दरअसल, ट्रम्प ख़ुद इस तरह की संभावना के प्रति सचेत दिख रहे हैं। किसी भी क़ीमत पर, हाउडी मोदी के बाद, न्यूयॉर्क में इमरान ख़ान के साथ द्विपक्षीय बैठक होगी।

ट्रम्प ने तालिबान के साथ पुन: वार्ता की बहाली के लिए रास्ते खुले रखे हैं और इमरान खान ने खुले तौर पर कहा है कि अफगान शांति प्रक्रिया में कोई देरी नहीं हुई है।

हालांकि ट्रम्प इसमें कोई मदद नहीं कर सकते हैं, अगर भारतीय कश्मीर के मामले में उनकी उपस्थिति को दिल्ली की दादागिरी की नीतियों के लिए एक कूटनीतिक विजय के रूप में हाउडी मोदी  का हवाला देते हैं, तो ट्रम्प भी यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि इमरान ख़ान के साथ उनकी जो समझ है, उस पर आंच न आए।

ट्रम्प ने पाकिस्तान के रुख पर खुले तौर पर सहानुभूति व्यक्त की है कि कश्मीर एक "मुस्लिम मुद्दा" है और हर समय वे मध्यस्थता करने की पेशकश करते रहे हैं, लेकिन यह रुख उन्हें भारतियों के प्रति अपनी पसंद जताने के लिए हाउडी इंडिया  से दूर नहीं कर रहा है।

ट्रम्प को इससे कोई फ़र्क़ नही पड़ता है क्योंकि वह भावनाओं के मामले में विलक्षण हैं। हाल ही में सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और इज़रायल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू ने इसका स्वाद चखा था।

बहुत पहले की बात नहीं है, ट्रम्प सऊदी अरब के किंग सलमान के साथ अल-अर्ध में शामिल हुए थे, यह बेडॉइन के पारंपरिक पुरुषों का तलवार नृत्य है, मंत्रमुग्ध करने वाला पूर्व में लदी गई वीरता से भरी लड़ाइयों का अनुस्मारक, जो कालनिरपेक्ष की जीत और सऊदी इतिहास के गौरव में जीवन भर देता है। लेकिन जब सऊदी अरब पर शनिवार को वास्तव में हमला हुआ, तो ट्रम्प पीछे हट गए। क्योंकि उन्हे लगता है कि सऊदी अरब की रक्षा पूरी ज़िम्मेदारी उनकी ख़ुद की है, न कि अमेरिका की - और अगर अमेरिका को सऊदी अरब की रक्षा करनी है, तो सऊदी को युएस का आर्थिक समर्थन करना चाहिए।

नेतन्याहू भी इसका प्रचार करते थे कि ट्रम्प उनके हाथों से खाना खा रहे हैं यानी उनके आपस में काफ़ी घनिष्ठ संबंध हैं ऐसा जताते थे, लेकिन जब उन्हें इस सप्ताह हुए चुनावों में ट्रम्प की ज़रूरत पड़ी, तो भाईसाहब चुपचाप खिसक गए।

नेतन्याहू द्वारा जॉर्डन घाटी को हड़पने के निर्णय को व्हाइट हाउस से समर्थन के रिकॉर्ड की पुष्टि नहीं हुई है, और न ही नेतन्याहू द्वारा अमेरिका से रक्षा समझौते पर की गई मांग को ही हासिल किया है, जब वे उनसे अगली बार मिलने पर इस बारे में बोलने के लिए ट्रम्प से एक अस्पष्ट वादे की इच्छा व्यक्त कर रहे थे।

जेरुसलेम पोस्ट ने चुनावी नतीजे आने पर सधे हुए ढंग से टिप्पणी की, "शायद संभावित मतदाताओं ने सोचा:  'अगर बीबी ट्रम्प के साथ उतने क़रीब नहीं हैं जितने कि वह हुआ करते थे, तो शायद वे उनके लिए इतने अनिवार्य नहीं हैं।'"

मुद्दा यह है कि अमेरिका में  बेशक भारतीय प्रवासी भ्रम पाल सकते हैं लेकिन मोदी ख़ुद ट्रम्प को अब तक जान गए होंगे। टेक्सास में ऐसा ढकोसला क्यों, जो संघ परिवार को काफ़ी महंगा पड़ रहा हो?

वर्ष 2016 में, मोदी सरकार ने हिलेरी क्लिंटन का समर्थन किया था -  जबकि जीत ट्रम्प ने दर्ज की थी। क्या होगा अगर बिडेन 2020 में जीत जाते हैं? पामर रिपोर्ट कहती है कि वर्तमान में बिडेन ट्रम्प से दोहरे अंकों की बढ़त बनाए हुए हैं।

राहुल गांधी के पास एक मुद्दा है जब उन्होंने ट्वीट किया, " 'हाउडी' अर्थव्यवस्था के क्या हाल हैं, श्री मोदी जी! लगता नहीं है कि अच्छे हाल हैं!"

हाउडी मोदी’ अर्थव्यवस्था और कश्मीर में पनपे हालात से पलायनवाद करने का एक ज़रिया है, लेकिन इससे कुछ हासिल होने वाला नहीं है।

Courtesy: INDIAN PUNCHLINE

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