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"हमें 99 प्रतिशत नागरिकों का भारत चाहिये, 1 प्रतिशत का नहीं"

एआईपीएफ़ ने एक घोषणपत्र जारी किया है, जिसे "2019 चुनाव के लिये भारत की जनता का घोषणापत्र" का नाम दिया गया है। इस घोषणापत्र में बताया गया है कि 2019 का चुनाव इस देश के लिये क्यों ख़ास है।
AIPF

पिछले पांच सालों का 'मोदी राजबीजेपी के लिए भले ही बेहद सुखदायक रहा होलेकिन आम जनता की दिक़्क़तों का हल नहीं हुआ बल्कि इनमें इज़ाफा ही हुआ है। यही वजह है कि आज देश का विपक्ष बीजेपी की सरकार के ख़िलाफ़ एकजुट होने की कोशिश कर रहा है। इसी कड़ी में राजनीतिक विपक्ष के अलावा सिविल सोसायटी, छात्र-युवा संगठन, किसान-मज़दूर संगठन आगे आए हैं। इन्ही में महत्वपूर्ण है एआईपीएफ़ यानी ऑल इंडिया पीपल्स फ़ोरम। जैसा कि नाम से ही जाहिर है एआईपीएफ़ जनता के सवालों के लिये संघर्षरत विभिन्न धाराओं का मंच है जो आगामी चुनावों में जनता के मुद्दों को मुख्य एजेंडा मानकर काम करने की ओर अग्रसर है। इसका गठन 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद किया गया था। एआईपीएफ़ का दावा है कि वो चुनाव के बाद भी जनता के हक़ में काम करते रहेंगे।

अभी बीती 28 फ़रवरी को एआईपीएफ़ ने एक घोषणपत्र जारी किया हैजिसे "2019 चुनाव के लिये भारत की जनता का घोषणापत्रका नाम दिया गया है। इस घोषणापत्र में बताया गया है कि 2019 का चुनाव इस देश के लिये क्यों ख़ास है

एआईपीएफ़ संयोजक  गिरिजा पाठक कहते हैं, "आगामी लोकसभा चुनाव देश में अब तक हुए अन्य चुनावों की तरह के सामान्य चुनाव नहीं हैं। मोदी सरकार की नीतियों के कारण आज देश में बेरोज़गारी के हालात पिछले 45 सालों में सबसे बदतर हो चुके हैं। कृषि संकट चरम पर है। राजनीति में परिवारवाद का विरोध करने का नाटक करने वाली भाजपा और मोदी के राज में नेता-पुत्रों और कॉर्पोरेट घरानों की चांदी कट रही है। अम्बानी-अडानी को मुनाफ़ा पहुँचाने के लिये बड़े-बड़े घोटालों में ख़ुद प्रधानमंत्री संलिप्त हैं।"

घोषणापत्र में शामिल अहम बिंदू :

* मोदी सरकार के दस झूठे और टूटे वादे 2 करोड़ रोज़गार का वादापेट्रॉल के दाम घटाने का वादानारी सुरक्षा का वादाऔर अन्य टूटे वादों का ज़िक्र एआईपीएफ़ के इस घोषणापत्र में किया गया हैइसी के साथ रुपये की गिरती क़ीमतगंगा की गंदगी और "अच्छे दिनका ज़िक्र करते हुए प्रधानमंत्री के वादों पर कड़ा हमला किया गया है

लोकतंत्र और संविधान पर हुए बड़े हमले पिछले पांच सालों में जिस तरह से आम जनता परलोकतंत्र परऔर संविधान पर जो लगातार हमले हुए हैंउन हमलों का ज़िक्र और निंदा इस घोषणापत्र में की गई है दलितोंछात्रोंअल्पसंख्यकोंपत्रकारों पर लगातार हुए हमले और नेताओं द्वारा उन हमलों का समर्थन घोषणापत्र में शामिल किया गया है एआईपीएफ़ ने मीडिया की भूमिका पर सवाल उठाते हुए इस बात को दर्शाया है कि किस तरह से पिछले पांच सालों में मीडिया ने सरकार के प्रचार-प्रसार के लिए काम किया है फ़ेक न्यूज़ जिस तरह से लगातार फैलाई जा रही है, घोषणापत्र में उसका भी ज़िक्र शामिल है

इसके अलावा मोदी सरकार के कई जुमलों पर एआईपीएफ़ ने बड़े सवाल खड़े किए हैं :

हर बैंक अकाउंट में 15 लाख लाने का वादा

नोटबंदी से काले धन को ख़त्म करने का दावा

* स्वच्छ भारत

बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ

मुद्रा योजना की विफ़लता

हर घर में बिजली का वादा

* "मेक इन इंडियाका मज़ाक़

घोषणपत्र के अंत में एआईपीएफ़ ने उन तमाम घोटालों का ज़िक्र किया है जो पिछले पांच सालों में हुए हैं सबसे हालिया "रफ़ाल डीलजियो यूनिवर्सिटी का मामला अमित शाह के बेटे जय शाह का मामलापीयूष गोयल के मामले पर सवाल खड़े किए गए हैं और इनपर मोदी सरकार से जवाब मांगा गया है। जो भ्रष्टाचार के सवाल पर हमेशा से पिछली सरकार पर हमले करती रही है

"पुलवामा और युद्धोन्माद के नाम पर वोट मांगना बन्द करो!"

एआईपीएफ़ ने भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव को लेकर चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा है कि दो परमाणु अस्त्रों से लैस देशों के बीच युद्ध पूरे एशिया और दुनिया के लिये ख़तरनाक है। एआईपीएफ़ ने कहा है कि युद्ध से कभी किसी मसले का हल नहीं निकल सकता। एआईपीएफ़ ने अपील की है दोनों देश कूटनीतिक तरीक़ों से इस मसले का हल निकालें।

एआईपीएफ़ सैनिकों के अधिकार की सुरक्षा की मांग कर रहा है और कहा है कि वो सैनिकों के परिवारों के साथ मज़बूती से खड़े हैं।

सरकार की पांच साल की विफ़लताओं को मद्देनज़र रखते हुए एआईपीएफ़ अंत में उन मांगों की बात कर रहा है जो आम जन के मुद्दे हैं

"भारत की जनता के घोषणापत्रमें शामिल आम जन की मांगें

जनता को सुविधाएं प्रदान करने के लिए सबसे अमीर लोगों पर टैक्स लगाया जाये।

एक भ्रष्टाचार मुक्त भारत का निर्माण हो

लोगों के हक़ों की बात हो।

किसानोंमज़दूरों को सुरक्षा और समृद्धि प्रदान की जाए।

शिक्षा और रोज़गार के मुद्दों को सबसे ज़्यादा अहमियत दी जाए

LGBTQI  के सुरक्षाअधिकार सुरक्षित किये जाएं और उनपर हो रही हिंसा को रोका जाये।

पर्यावरण सुरक्षा और सेवा।

नाबालिगों और बच्चों को अधिकार प्रदान किये जाएं।

जनता के इन तमाम मुद्दों को बताते हुए एआईपीएफ़ का कहना है कि इन सब सवालों पर कोई फ़ैसला तभी लिया जा सकता है जब मौजूदा सरकार सत्ता से हटेगी और जनता के हक़ों की बात करने वाली सरकार सत्ता में आएगी। संगठन का मानना है कि इस बार एक ऐसी सरकार के चुनाव की ज़िम्मेदारी है जो देश के संविधान और धर्मनिरपेक्ष ढांचे को सुरक्षित रखने के साथ आम जनता के बुनियादी सवालों को हल कर सके।

एआईपीएफ़ ने सभी विपक्षी दलों से इन मुद्दों पर जनता के हक में एकजुटता दिखाने और इस मुहिम में शामिल होने की अपील की है। एआईपीएफ का कहना है कि जनता खुद इन सवालों पर गौर करे और आने वाले चुनाव में इन मुद्दों को आगे रखकर ही नई सरकार का चुनाव करे।

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