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हरियाणा रोडवेज़: 365 कर्मचारियों को हटाने का तुग़लकी फ़रमान

23 मई को लोकसभा चुनाव परिणाम के साथ ही कर्मचारियों के भविष्य के रुझान भी आ रहे हैं। आउटसोर्सिंग पॉलिसी के तहत लगाए गए सभी ग्रुप डी के कर्मचारियों को दिनांक 24 मई से बाहर करने का आदेश जारी कर दिया गया है और इसमें साफ़ तौर पर लिखा है कि विभाग के पास पर्याप्त मात्रा में नियमित स्टाफ़ है इसलिए विभाग इनको नहीं रख सकता।
हरियाणा रोडवेज़

पिछले काफ़ी समय से स्टाफ़ की कमी से जूझ रहे हरयाणा रोडवेज़ विभाग ने नया आदेश दिया है जिसके बाद ये समस्या और बढ़ने वाली है। इसके साथ ही रोडवेज़ में नई भर्ती की आस लगाए जो नौजवान बैठे हैं वो नई भर्ती को भूल जाएँ। क्योंकि सरकार का मानना है :कि इस विभाग में पहले ही पूरी संख्या में कर्मचारी हैं परन्तु कर्मचारी युनियन के मुताबिक़ ये दावा सच्चाई से बिल्कुल विपरीत है। आज भी विभाग में कर्मचारियों की भरी कमी है। ऐसे में कर्मचारियों की भर्ती करने की जगह उन्हें निकालना ठीक नहीं है। 

23 मई को लोकसभा चुनाव परिणाम के साथ ही कर्मचारियों के भविष्य के रुझान भी आ रहे हैं। आउटसोर्सिंग पॉलिसी के तहत लगाए गए सभी ग्रुप डी के कर्मचारियों को दिनांक 24 मई से बाहर करने का आदेश जारी कर दिया गया है और इसमें साफ़ तौर पर लिखा है कि विभाग के पास पर्याप्त मात्रा में नियमित स्टाफ़ है इसलिए विभाग इनको नहीं रख सकता। 

परिवहन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव द्वारा शुक्रवार को जारी किए गए पत्र जिसमें आउटसोर्स पार्ट 1 व 2 पर भर्ती कर्मचारियों को हटाने के आदेश जारी किए गए थे, उसी को लेकर आज शनिवार को हरियाणा रोडवेज़ कर्मचारी तालमेल कमेटी की मीटिंग रोहतक में सम्पन्न हुई जिसमें सर्वसम्मति से ये निर्णय लिया गया कि दिनांक 28 मई को प्रातः 9 बजे से 11 बजे तक डिपो स्तर पर विरोध प्रदर्शन किया जाएगा। 22 जून को कुरुक्षेत्र में राज्य स्तरीय कन्वेन्शन की जाएगी। उम्मीद जताई गई है कि इसमें भारी संख्या में कर्मचारी शामिल होंगे और सरकार की कर्मचारी-विरोधी नीतियों का मुँह तोड़ जवाब देंगे।

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हरियाणा रोडवेज़ द्वारा जारी किया गया पत्र 

सरकार के इस निर्णय के बाद से हरियाणा रोडवेज़ में वर्ष 2016 से अनुबंध के आधार पर काम कर रहे 300 से अधिक कर्मचारियों की नौकरी छिन जाएगी। परिवहन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव के आदेश पर शुक्रवार को रोडवेज़ महाप्रबंधकों ने कई ज़िलों में इसे लागू करते हुए इन कर्मचारियों को नौकरी से हटाने के पत्र थमा दिए। मिल रही जानकारी के मुताबिक़ सोनीपत में 36 और नारनौल में 11 कर्मचारी निकाल दिए गए हैं। वहीं, विभाग की कार्रवाई से भड़की रोडवेज़ कर्मचारी तालमेल कमेटी ने कर्मचारियों को हटाने का आदेश वापस नहीं होने की स्थिति में आंदोलन छेड़ने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है।इसके साथ ही उन्होंने आपत्ति जताई है और कहा है कि वो किसी भी क़ीमत पर एक भी कर्मचारी को नहीं हटने देंगे। 

कोर्ट के स्टे के बाद भी कर्मचारियों को हटाया जा रहा है 

पिछले साल मई में भी परिवहन विभाग ने आउटसोर्सिंग पॉलिसी-2 के तहत लगे कर्मचारियों को निकालने का आदेश दिया था, लेकिन कर्मचारी संगठनों के विरोध के बाद इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। इसके बाद दिसंबर में फिर से इन्हें निकालने के पत्र जारी किए गए, लेकिन 54 कर्मचारी हाई कोर्ट में चले गए।

हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस के आदेश पर तब परिवहन सचिव ने इन कर्मचारियों को हटाने की प्रक्रिया रोक दी थी। अब एक बार फिर सभी डिपो में स्टाफ़ पूरा बताते हुए सभी कच्चे कर्मचारियों को बाहर निकालने का आदेश दिया गया है। हालांकि हाई कोर्ट में केस लड़ रहे कर्मचारियों को अभी नहीं हटाया जा रहा है।

"आंदोलन के लिए उकसा रहे अफ़सर"

कर्मचारियों को निकालने के विरोध में रोडवेज़ कर्मचारी तालमेल कमेटी ने आक्रामक रवैया अपनाते हुए सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है। रोडवेज़ कर्मचारी यूनियन के नेताओं का कहना है, "निगम में बैठे अफ़सरों का कच्चे कर्मचारियों को हटाने का तुग़लकी फ़रमान कर्मचारियों को आंदोलन के लिए उकसाने वाला है।"

साथ ही उन्होंने आगे कहा, "हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद कर्मचारियों को निकालने का आदेश किसी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। विभाग के अफ़सर हर दिन नए तुग़लकी फ़रमान जारी कर रहे हैं। आम जन को परेशान करने वाले फ़ैसलों को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। आदेश वापस नहीं होने पर अंदोलन किया जाएगा।"

हरियाणा रोडवेज़ वर्कर्स युनियन के नेता जयकुंवर दहिया ने कहा है, "इन कच्चे कर्मचारियों को 2016 में कर्मचारियों की कमी के कारण रखा गया था और उन्होंने रोडवेज़ को सुचारु रूप से चलाने में मदद की है। अब इन्हें बिना किसी कारण के हटाना ग़लत है।" उन्होंने कहा, "हम एक भी कर्मचारी को हटने नहीं देंगे, जबकि परिवहन मंत्री कह रहे हैं कि वो किसी को रखेंगे नहीं। सरकार जो कह रही है कि कर्मचारी पूरे हैं वो पूरी तरह से ग़लत है।" 

उन्होंने बताया, "एक गाड़ी पर 7 कर्मचारियों की ज़रूरत होती है और अभी हमारे पास 3500 बसें हैं, इसके हिसाब से 24500 कर्मचारी चाहिए और अभी हमारे पास केवल 18 से 19 हज़ार कर्मचारी हैं। हमें अभी भी कम से कम 5 हज़ार कर्मचारियों की और ज़रूरत है। इसके अलावा सरकार ख़ुद मानती है कि कम से कम 14 हज़ार और बसों की ज़रूरत है। हम कहते हैं कि हमें 10 हज़ार बसें और दे दो तो इसकी वजह से भी 70 हज़ार नौजवानों को नौकरी मिल जाएगी। ऐसे में यह कहना कि रोडवेज़ में स्टाफ़ ज़्यादा है पूरी तरह से ग़लत है। क्योंकि सच्चाई यह है कि कर्मचारियों की भरी कमी है।"

जयकुंवर आगे कहते हैं, "ये सरकार का जब से आई तब से ही रोडवेज़ को तबाह करने में लगी है, इसके लिए उसने कई बार रोडवेज़ को निजी हाथों में बेचने का प्रयास किया लेकिन वो कर्मचारियों के प्रतिरोध के कारण नहीं कर पाई है। इससे पहले भी रोडवेज़ को बचाने के लिए कर्मचारियों ने इतिहास की सबसे बड़ी हड़ताल की थी जो कि बाद में कोर्ट की मध्यस्ता के बाद ख़त्म हुई थी। तब सरकार ने कोर्ट में लिखित आश्वासन दिया था कि वो हड़ताल के दौरान एस्मा(ईएसएमए) लगाए गए कर्मचारियों पर कोई कार्रवाई नहीं करेगी। साथ ही बसों की भारी कमी को देखते हुए नई बसें ख़रीदेगी लेकिन उसने बाद में इंकार कर दिया। सरकार ने न तो कर्मचारियों पर से मुक़दमे हटाए और ना ही कोई नई बस ख़रीदी।"

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