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नए भारत में न्याय नहीं, अन्याय पर जश्न

जहां पहले हत्यारों को घृणा की दृष्टि से देखा जाता था वहीं ‘नए भारत’ में हत्या होने पर जश्न मनाया जाने लगा है।
नए भारत में न्याय नहीं, अन्याय पर जश्न

अगस्त 2017 में भारत के प्रधानमंत्री ने लोकसभा में कहा कि 2022 तक हम ‘नया भारत’ बनाने के लिए संकल्पबद्ध हैं जिसके लिए उन्होंने नारा दिया ‘हम करेंगे और करके रहेंगे’। प्रधानमंत्री के अनुसार हम नया भारत बनाने के लिए अग्रसर हैं। यह बात प्रधानमंत्री ने 2017 में कही, लेकिन हमें नये भारत की आग़ाज 2014 से ही दिखाया जाना लगे था।

2014 में जब बीजेपी का नारा था ‘‘बहुत हुआ नारी पर वार, अबकी बार मोदी सरकार’’, ‘‘बहुत हुआ भ्रष्टाचार अबकी बार मोदी सरकार’’, बहुत हुआ रोजगार का इंतजार अबकी बार मोदी सरकार’’, बहुत हुई महंगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार,’’ ‘‘बहुत हुआ किसान पर अत्याचार, अबकी बार मोदी सरकार,’’ यह सब ऐसी बातें थी जो कि सालों से मांग की जा रही थी। लेकिन हम देख रहे हैं कि ‘नये भारत’ में क्या हो रहा है!

भारत में महिलाओं पर होने वाले अत्याचार बढ़ते गये। 2011 में जहां देश भर में 2,28,650 केस दर्ज थे वहीं 2018 तक यह संख्या बढ़कर 3,78,277 हो गई यानी प्रति दिन 51.24 केस बढ़ गये (स्रोत: एनसीआरबी)। मोदी सरकार का जो नारा था वह फेल हो चुका है। मोदी सरकार बनने के बाद हेट क्राइम भी बढ़ा है जिसका रिकॉर्ड ही एनसीआरबी ने लाना बन्द कर दिया।

जहां पहले हत्यारों को घृणा की दृष्टि से देखा जाता था वहीं ‘नये भारत’ में हत्या होने पर जश्न मनाया जाने लगा जिसकी शुरुआत पुणे से होती है। जून, 2014 में आईटी प्रोफेशन मोहसिन शेख की हत्या कर दी जाती है उसके बाद मैसेज सर्कुलेट किया जाता है कि ‘‘पहला विकेट गिरा’’।

2014 से खुलेआम मौत पर जश्न मनाने का एक प्रचलन हो जाता है और 2017 में गौरी लंकेश की हत्या पर निखिल दधीचि ने तो यहां तक लिख दिया की ‘‘एक कुतिया कुत्ते की मौत क्या मरी सारे पिल्ले एक सुर में बिलबिला रहे हैं’’। निखील दधीचि को ट्वीटर पर प्रधानमंत्री के पद पर बैठे लोग फॉलोअप करते हैं। ऐसे लिखने वाले वे लोग हैं जो भारत की परम्परा को महान बताते हैं और उनके रक्षक बनते हैं। भारत में किसी की मौत पर क्या यही परम्परा रही है? भारतीय परम्परा यह है कि आपका दुश्मन भी मर जाता है तो आप उसके सामने सिर झुकाते हैं, उसको कंधा देने के लिए जाते हैं न कि खुशी मनाते हैं?

2014 में मोहसिन शेख की हत्या से जो खुलेआम जश्न मनाने की परम्परा शुरू हुई वह अभी तक चलती रही है जिसके समर्थन में पीछे कथित रूप से शासन-प्रशासन खड़ा रहा। फरवरी में हुए दिल्ली दंगे में 53 लोग मारे गये जिसमें से 40 एक समुदाय से थे। पुलिस अपनी जांच में 40 मारे गये समुदाय को ही षड़यंत्रकारी की भूमिका मानने लगी और सीएए के विरोध कर रहे छात्र-छात्राओं, बुद्धिजीवियों को ही फंसाना शुरू किया।

यानी जो शासन-प्रशासन अभी तक छिपे हुए समर्थन कर रहा था वह खुलकर समर्थन देने लगा। सितम्बर आते-आते वह खुद ही इस तरह के क्रियाकलापों में शामिल हो गया। हाथरस में बीस साल की युवती की मौत के बाद उसके लाश को रात के करीब तीन बजे परिवार की गैर मौजूदगी में जला दिया गया और और मीडिया तक को जाने की अनुमति नहीं दी।

भारत में मृत शरीर की प्रति अपनी श्रद्धा होती है उसको अपनी रीति-रिवाज के तहत जलाने या दफनाने से पहले तैयार किया जाता है लेकिन यहां पीड़िता के साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ है। परिवार वाले गिड़गिड़ाते रहे कि वह हिन्दू रीति के अनुसार अपनी बेटी को सुबह में जलाना चाहते हैं लेकिन पुलिस अधिकारियों ने उन्हें खींचकर वहां से हटाया और लाश को ले जाकर पेट्रोल-किरोसीन छिड़कर उपले और लकड़ी से जला दिये।

क्या यही ‘नया भारत’ और इसी तरह का हिन्दू राष्ट्र बनने वाला है जिसमें कमजोर तबके की पीड़िता की लाश को भी सम्मान नहीं दिया जायेगा? अपराधियों को बचाने और सबूत मिटाने के लिए पीड़ित परिवार को ही मुजरिम बनाने की कोशिश की जायेगी जैसाकि भाजपा के पूर्व विधायक राजवीर सिंह पहलवान ने आरोप लगाया है कि लड़की को उसके भाई और मां ने ही मारा है, चारो युवक निर्दोष है।

आरोपियों के पक्ष में 12 गांव के लोग पंचायत करते हैं और कहते हैं कि निर्दोष को फंसाया जा रहा है। आखिर इन लोगों को पक्षपात करने का शह कहां से मिला?  पुलिस अधिकारियों ने लाश जलाने के बाद एक तरह से फैसला ही सुना दिया कि पीड़िता के साथ बलात्कार नहीं हुआ है और ना ही उसकी जीभ कटी थी!

दिन के उजाले में कानून की उड़ती धज्जियां

पुलिस प्रशासन जहां रात में पीड़िता के लाश को जला कर कानून की धज्जियां उड़ाई तो दिन में सीबीआई कोर्ट ने बाबरी मस्जिद विध्वंसकारियों को आरोप मुक्त कर कानून की धज्जियां उड़ाने की छूट दे दी। बलात्कार पीड़िता के पक्ष में न्याय मांगने वालों को प्रदर्शन करने से रोका जाता है उनको मारा-पीटा जाता है। यहां तक कि सांसदों के साथ भी पुलिस अधिकारी धक्का-मुक्की करते नजर आये। मीडिया वालों को जाने से रोका गया और 31 अक्टूबर तक धारा 144 लगा दी गई।

हाथरस के जिलाधिकारी द्वारा परिवार को धमकी दी जा रही है। मीडिया के कुछ लोग जब खेत के रास्ते से गांव में जाना चाहा तो उनसे मोबाईल छीना गया, धक्का-मुक्की की गई और कहा गया कि चोर रास्ते से आ रहे हो। एडीएम खुलेआम महिला वकील के साथ तू-तड़ाक करते हुए देखे गये। पीड़ित परिवार को ही एक तरह से बंधक बन गया वह किसी से मिल नहीं सकता, बात नहीं कर सकता, यहां तक की गांव के लोग भी गांव में तभी आ पायेंगे जब उनके पास आधार कार्ड हो।

न केवल रात के अंधेरे में अंधेरगर्दी मचाई गई बल्कि ‘नए भारत’ में दिन में कैमरे के सामने मीडियाकर्मी से लेकर जनप्रतिनिधियों के साथ बदसूलकी की गई है। यह सब उस दिन भी हुआ जब अहिंसा के पुजारी कहे जाने वाले महात्मा गांधी की जयंती मनाई जा रही थी। प्रधानमंत्री 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छता अभियान चलाया था लेकिन हम देख रहे हैं कि 2020 तक शासन-प्रशासन के दिमाग में कितना कचड़ा भर चुका है।

यह ‘नया भारत’ है जो की आने वाले समय में और खतरनाक रूप में देखा जायेगा। जिस उत्तर प्रदेश में यह घटना घटित हुई है उसी प्रदेश के 2017 के चुनाव में प्रधानमंत्री ने कहा था कि यह प्रदेश ऐसा है कि लड़कियां डर से स्कूल नहीं जा पाती हैं उन पर लड़के तरह तरह के छींटाकशी करते हैं। लेकिन हाथरस की पीड़िता तो स्कूल नहीं अपने खेत पर मजदूरी करने गई थी वह भी मां-भाई के साथ फिर भी उसके साथ इस तरह की घटना घटी इसके बाद दर्जनों बलात्कार की घटनाएं हुई लेकिन 2017 में बोलने वाले प्रधानमंत्री जी मौनव्रत रख लिए हैं। 2016 में उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ 49,262 मामले दर्ज हुए थे वहीं 2018 में इनकी संख्या 59,445 हो गई।

भंवरी देवी केस का याद दिलाता हाथरस

भंवरी देवी के केस में कोर्ट ने कहा था कि अगड़ी जाति का कोई पुरुष किसी पिछड़ी जाति की महिला का रेप नहीं कर सकता क्योंकि वह अशुद्ध होती है। एक पुरुष अपने किसी रिश्तेदार के सामने रेप नहीं कर सकता। यही बात हाथरस में सुनने को मिला है जब बीबीसी संवाददाता ने बताया कि एक ही संयुक्त परिवार में तीन अभियुक्त रहते हैं।

बीबीसी संवाददाता ने अभियुक्त के परिवार जनों से बात की तो एक आरोपित के नाबालिग भाई ने कहा की- ‘‘हम गहलोत ठाकुर हैं, हमारी जाति इनसे बहुत ऊपर है, हम इन्हें हाथ लगाएंगे, इनके पास जाएंगे’’। एक अभियुक्त की मां का कहना था की- ‘‘हम ठाकुर हैं, वो हरिजन, हमसे उनका क्या मतलब। वो रास्तें में दिखते हैं तो हम उनसे वहां दूरी बना लेते हैं। उन्हें छुएंगे क्यों, उनके यहां जाएंगे क्यों?’’

इसी गांव के दलित बुजुर्ग का कहना है कि ‘‘यह पहली बार नहीं है कि हम पर इस तरह का हमला किया गया है। हमारी बहू-बेटी अकेले खेत पर नहीं जा सकती है और ये बेटी तो मां-भाई के साथ गई थी तब भी उसके साथ ये हो गया। इन लोगों ने हमारी जिन्दगी को नर्क बना दिया है। हम ही जानते हैं इस नर्क में हम कैसे रह रहे हैं।’’

अभियुक्त के ही जाति की कुछ महिलाओं का कहना है कि एक अभियुक्त तो पहले से ही ऐसा था। सड़क चलती लड़कियों को छेड़ता था। अपने खेत पर काम कर रहे अभियुक्त के जाति के युवक का कहना है ‘‘ये परिवार ऐसा ही है, लड़ाई-झगड़े करते रहते हैं। बड़ा परिवार है, तो इनके डर से कोई कुछ बोलता नहीं है। सभी एकजुट हो जाते हैं, इनका दबदबा है। गांव में इनके खिलाफ कोई कुछ नहीं बोलेगा।’’

गांव के महिलाओं का कहना है कि एक अभियुक्त आदतन बदमाश था फिर भी 12 गांवों की पंचायत होती है, क्योंकि यह न्यू इंडिया है यहां फैसला ताकत और जाति से होगी।

इंसाफ का सवाल
 
लोग सड़कों पर उतर कर आज पीड़िता के लिए इंसाफ मांग रहे हैं इससे पहले भी 2012 में देश भर में लोग सड़कों पर उतरे थे और बलात्कार पीड़िता के लिए इंसाफ की मांग की थी। इसमें अधिकांश का मत होता है कि ‘चौराहे पर मार दो’, ‘फांसी दो’। क्या फांसी देने से बलात्कार रुक जायेगी? निर्भया कांड अभियुक्तों को फांसी दे दिया गया उसके बाद देश भर में कितने बलात्कार हुए? 1982 में रंगा-बिल्ला को बलात्कार और हत्या के जुर्म में फांसी दी गई थी तो क्या बलात्कार रुक गया? इससे ‘न्यू इंडिया’ और क्रूर होगा उसके हाथों में और असीम शक्ति आ जाती है किसी को भी उठाओ और अपराधी बता कर मार दो।

आपको याद होगा कि इसी तरह की मांग का नतीजा है कि प्रियंका रेड्डी के ‘अभियुक्तों’ को क्राइम सीन के नाम पर ले जाकर एनकांउटर कर दिया गया। वह सच्चाई जनता के सामने तक नहीं आ पाई कि वह अभियुक्त थे भी या नहीं क्योंकि उनका परिवार अत्यंत गरीब था वह मामले को आगे नहीं ले जा सकता था। ताकतवर लोगों पर तो केस दर्ज करने में पुलिस के हाथ-पांव कांप जाते हैं जैसा कि आप चिन्मयानन्द और उन्नाव बालात्कार केस में देख चुके हैं।

बलात्कार या अपराध के जो कारण है उसको बिना खत्म किए हम किसी निर्भया को नही बचा सकते। इसके उल्ट आप कठुआ के बकरवाल समुदाय के नबालिग बलात्कार कांड का उदाहरण ले सकते हैं अभियुक्तों के साथ मिलकर जांच अधिकारी बलात्कार करता है मन्दिर के अन्दर। ‘नये भारत’ में बलात्कारियों को बचाने के लिए तिरंगे हाथ में लेकर ‘भारत माता की जय’ के साथ प्रदर्शन किया जाता है। पुलिस को चार्जसीट दाखिल करने से रोका जाता है।

बलात्कार पितृसत्ता की उपज है जब तक पितृसत्ता को ध्वस्त नहीं किया जायेगा हजारों लाखों महिलाएं निर्भया बनती रहेंगी। हो सकता है कि जनता की नाराजगी को देखते हुए योगी सरकार आने वाले समय मे इन अभियुक्तों का एनकांउटर कर दे या गाड़ी पलट जाये (जैसा की मध्यप्रदेश के कैलाश विजयवर्गीय ने कहा है कि गाड़ी कभी भी पलट सकती है) और कहे कि हम पीड़िता को न्याय दे दिये। क्या ऐसी न्याय बलात्कार पीड़िता को न्याय दिला सकती है?

निकम्मी सरकारें इस तरह कि मांग को जानबूझकर को बढ़ाती है ताकि उसके पास और ज्यादा ताकत आये। बलात्कार अमानवीय है उसी तरह फांसी की सजा भी सभ्य समाज के लिए अमानवीय है। ‘नए भारत’ के नाम पर जो अन्याय हो रहा है उसके लिए एक होना होगा चाहे वह किसी जाति, धर्म, समुदाय के खिलाफ हो, हमें शासक वर्ग के बढते खूनी पंजे को एक होकर रोकना होगा।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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