एशिया-प्रशांत में अमेरिकी ख़तरे के मद्देनज़र चीन-रूस ने सैन्य सहयोग पर चर्चा की

चीनी स्टेट काउंसिलर और रक्षा मंत्री जनरल ली शांगफू की 16-19 अप्रैल की रूस की आधिकारिक यात्रा ने दोनों देशों के बीच सैन्य भरोसे को मजबूत किया और बिगड़ते भू-राजनीतिक तनाव की पृष्ठभूमि के चलते आपसी तालमेल और वैश्विक रणनीतिक संतुलन बनाए रखने की अनिवार्यता को रेखांकित किया है।
यह यात्रा, 20-21 मार्च तक मॉस्को में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई गहन चर्चा में लिए गए निर्णायक फैसलों को आगे बढ़ाने के लिए की गई है। क्रेमलिन के प्रवक्ता दमित्री पेस्कोव के मुताबिक, सारे प्रोटोकॉल को तोड़ते हुए जनरल ली की 4 दिन की यात्रा में पुतिन के साथ हुई "वर्किंग मीटिंग" पहले की प्रक्रिया का हिस्सा था।
ली, मास्को के लिए कोई अजनबी नहीं हैं, वे पहले भी केंद्रीय सैन्य आयोग के उपकरण विकास विभाग का प्रभार संभाल चुके हैं, जिन्हें 2018 में अमेरिका ने एसयू-35 लड़ाकू विमान और एस-400 सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल सिस्टम सहित रूसी हथियार खरीदने के लिए प्रतिबंध का सामना करना पड़ा था।
प्रमुख चीनी सैन्य विशेषज्ञ और टीवी टिप्पणीकार सोंग झोंगपिंग ने भविष्यवाणी की है कि ली की यात्रा रूस के साथ उच्च स्तर के द्विपक्षीय सैन्य संबंधों का संकेत देती है, और इससे "रक्षा प्रौद्योगिकियों और सैन्य अभ्यासों सहित कई क्षेत्रों में अधिक पारस्परिक रूप से लाभप्रद आदान-प्रदान" होने की उम्मीद है।
पिछले बुधवार को, अमेरिकी वाणिज्य विभाग ने उन दर्जन भर चीनी कंपनियों पर निर्यात नियंत्रण लगाने की घोषणा की थी जो "रूस के सैन्य और रक्षा उद्योगों का समर्थन कर" रही थीं। ग्लोबल टाइम्स ने पलटवार करते हुए कहा कि "जितना चीन एक आज़ाद और प्रमुख शक्ति है, उतना ही रूस भी है। यह तय करना हमारा अधिकार है कि हम किसके साथ सामान्य आर्थिक और व्यापारिक सहयोग करेंगे। हम अमेरिका की ओर से उंगली उठाने या यहां तक कि आर्थिक दबाव को भी स्वीकार नहीं करेंगे।”
पुतिन ने ईस्टर रविवार को ली के साथ बैठक में कहा कि रूस-चीन संबंधों में सैन्य सहयोग महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। चीनी विश्लेषकों ने कहा कि ली की यात्रा चीन और रूस का संयुक्त इशारा है कि अमेरिकी दबाव से उनका सैन्य सहयोग प्रभावित नहीं होगा।
पुतिन ने अक्टूबर 2019 में खुलासा किया था कि रूस चीन को एक प्रारंभिक मिसाइल चेतावनी प्रणाली विकसित करने में मदद कर रहा है जो चीन की रक्षात्मक क्षमता को काफी बढ़ा देगी। चीनी पर्यवेक्षकों ने नोट किया कि रूस ऐसी प्रणाली के विकास और संचालन में अधिक अनुभवी था, जो अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल लॉन्च होने के तुरंत बाद पहचान करने और चेतावनी देने में सक्षम है।
ये प्रणालियां रक्षा प्रौद्योगिकी की सबसे बेहतरीन और संवेदनशील प्रणाली हैं। अमेरिका और रूस ही ऐसे देश हैं जो ऐसी प्रणालियों का विकास, निर्माण और रखरखाव कर सकते हैं। निश्चित रूप से, रूस और चीन, दो परमाणु-सशस्त्र शक्तियों के बीच घनिष्ठ समन्वय और सहयोग, वर्तमान परिस्थितियों में अमेरिकी दादागिरी को रोक कर विश्व शांति में गहरा योगदान देगा।
यह कोई संयोग नहीं है कि मास्को ने 14-18 अप्रैल को अपने प्रशांत सागर के बेड़े में मौजूद बलों की अचानक जांच का आदेश दिया, जिसने ली की यात्रा को ओवरलैप किया था। जांच ताइवान के आसपास की स्थिति के बिगड़ने के कारण हुई है।
दरअसल, अप्रैल की शुरुआत में, यह पता चल गया था कि अमेरिकी विमानवाहक पोत यूएसएस निमित्ज़ ने ताइवान के संपर्क में है; 11 अप्रैल को, अमेरिका ने फिलीपींस में 12,000 से अधिक सैनिकों के साथ 17-दिवसीय सैन्य अभ्यास शुरू किया; फिर 17 अप्रैल को ताइवान में 200 अमेरिकी सैन्य सलाहकारों को भेजने का समाचार सामने आया।
नॉर्थ डकोटा में मिनोट एयर बेस (जो यूएस एयर फ़ोर्स ग्लोबल स्ट्राइक्स कमांड है) में यूएस ग्लोबल थंडर-23 रणनीतिक अभ्यास पिछले सप्ताह शुरू हुआ, जहां बमवर्षकों पर परमाणु हथियारों के साथ क्रूज मिसाइलों को लोड करने का एक प्रशिक्षण किया गया था। छवियों में बी-52एच स्ट्रैटोफ़ोर्ट्रेस रणनीतिक बमवर्षकों को बेस से उड़ाने के लिए तकनीकी कर्मियों द्वारा एजीएम-86बी क्रूज मिसाइलों से लैस किया जा रहा है जो अंडरविंग ढांचे पर परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम हैं!
फिर से, रूसी सीमाओं के आसपास या उन इलाकों में जहां रूस के भू-राजनीतिक हित हैं, अमेरिकी विमानन और बेड़े के सैनिकों के अभ्यास में काफी तेजी देखी जा रही है। 5 अप्रैल को, बी-52 स्ट्रैटोफ़ोर्ट्रेस ने कथित तौर पर "उत्तर कोरिया से परमाणु और मिसाइल खतरों के जवाब में" कोरियाई प्रायद्वीप के ऊपर परिक्रमा की। उसी समय, दक्षिण कोरिया, अमेरिका और जापान ने विमानवाहक पोत यूएसएस निमित्ज़ की भागीदारी के साथ जापान सागर में त्रिपक्षीय नौसैनिक अभ्यास किया।
रूसी सुरक्षा परिषद के सचिव निकोलाई पेत्रुशेव ने हाल ही में हमलावर ऑपरेशन के लिए जापान की बढ़ती क्षमता पर ध्यान दिया, और कहा कि, "यह द्वितीय विश्व युद्ध के सबसे महत्वपूर्ण परिणामों में से एक का घोर उल्लंघन है।" जापान अमेरिका से लगभग 500 टॉमहॉक क्रूज मिसाइलें खरीदने की योजना बना रहा है, जो रूसी सुदूर पूर्व के अधिकांश इलाकों के लिए सीधा खतरा बन सकता है। मित्सुबिशी हेवी इंडस्ट्रीज "जापान के दूरस्थ द्वीपों की सुरक्षा" में टाइप 12 भूमि-आधारित एंटी-शिप मिसाइल विकसित करने पर काम कर रही है।
जापान "सुदूर द्वीपों पर" युद्ध ऑपरेशन के लिए डिज़ाइन किए गए हाइपरसोनिक हथियार भी विकसित कर रहा है, जिसे रूसी, जापान द्वारा दक्षिणी कुरीलों संभावित जब्ती के विकल्प के रूप में देखते हैं। 2023 में, जापान का सैन्य बजट 51 बिलियन डॉलर (रूस के बराबर) से अधिक होगा, जिसके बढ़ाकर 73 बिलियन डॉलर होने की उम्मीद है।
दरअसल, ताजा जांच के दौरान रूस के पैसिफिक फ्लीट के जहाजों और पनडुब्बियों ने अपने ठिकानों से जापानी, ओखोटस्क और बेरिंग सागर की तरफ रुख किया है। रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगू ने कहा, "व्यावहारिक रूप से, प्रशांत महासागर के सक्रिय रूप से महत्वपूर्ण इलाके- ओखोटस्क सागर के दक्षिणी भाग में दुश्मन सेना की तैनाती को रोकने के तरीकों पर काम करना जरूरी है और दक्षिणी में कुरील द्वीप और सखालिन द्वीप पर अपनी लैंडिंग को पीछे हटाना जरूरी है।
'जोर से पर चुपचाप…क्षेत्रीय गठजोड़ का सर्वेक्षण करते हुए, रूसी सैन्य विशेषज्ञ और सैन्य-औद्योगिक गठजोड़ के एक प्रमुख थिंक टैंक सेंटर फॉर एनालिसिस ऑफ़ स्ट्रैटेजीज़ एंड टेक्नोलॉजीज के सीनियर फेलो, यूरी ल्यामिन ने इज़वेस्टिया अखबार को बताया:
"यह देखते हुए कि हम क्षेत्रीय मुद्दों का समाधान नहीं कर पाए हैं, जापान हमारे दक्षिण कुरीलों पर दावा कर सकता है। ऐसे में जांच बेहद जरूरी है। सुदूर पूर्व में हमारी सेना की तैयारी को बढ़ाना जरूरी है…
"वर्तमान हालात के संदर्भ में, हमें चीन के साथ रक्षा सहयोग को और मजबूत करने की जरूरत है। वास्तव में, रूस, उत्तर कोरिया और चीन के खिलाफ एक धुरी बन रही है: संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान और ऑस्ट्रेलिया इस धुरी में शामिल है। ब्रिटेन भी सक्रिय रूप से भाग लेने की कोशिश कर रहा है... इन सभी को ध्यान में रखा जाना चाहिए और चीन व उत्तर कोरिया के साथ सहयोग स्थापित किया जाना चाहिए, जो हमारे घनिष्ठ सहयोगी हैं।
17 अप्रैल को जब ली मॉस्को में थे तो शोइगू के साथ क्रेमलिन की बैठक में अत्यधिक महत्वपूर्ण टिप्पणी में पुतिन ने कहा कि रूस की सशस्त्र बलों की वर्तमान प्राथमिकताएं "मुख्य रूप से यूक्रेन पर नज़र रखने की है... (लेकिन) ऑपरेशन का प्रशांत हिस्सा भी प्रासंगिक है" और यह ध्यान रखना होगा कि "इसके व्यक्तिगत घटकों में (प्रशांत) बेड़े की ताकतों को निश्चित रूप से किसी भी दिशा में संघर्षों में इस्तेमाल किया जा सकता है।"
रूस के रक्षा मंत्रालय के बयान के मुताबिक, शोइगु ने जनरल ली से कहा, "राष्ट्रों, लोगों और चीन और रूस के सशस्त्र बलों के बीच अटूट दोस्ती के मद्देनज़र, मैं आपके साथ नजदीकी और सबसे सफल सहयोग की आशा करता हूं...।"
"सर्गेई शोइगू ने जोर देकर कहा कि रूस और चीन वैश्विक हालात को स्थिर कर सकते हैं और वैश्विक मंच पर अपने कार्यों का समन्वय करके युद्ध की संभावना को कम कर सकते हैं। 'यह महत्वपूर्ण है कि हमारे देश वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य के चल रहे बदलावों पर समान विचार साझा करें... आज की हमारी बैठक, मेरी राय में, रक्षा क्षेत्र में रूस-चीन रणनीतिक साझेदारी को और क्षेत्रीय और खुले माहौल में वैश्विक सुरक्षा मुद्दों पर चर्चा को मजबूत करने में मदद करेगी।
बीजिंग और मास्को का मानना है कि अमेरिका, रूस को "मिटाने" में विफल रहा है और अब वह एशिया-प्रशांत पर ध्यान दे रहा है। यह कहना काफी होगा कि ली की यात्रा बताती है कि रूस-चीन रक्षा सहयोग की वास्तविकता जटिल है। रूस-चीन सैन्य-तकनीकी सहयोग हमेशा गुप्त रहा है, और गोपनीयता का स्तर बढ़ गया है क्योंकि दोनों देशों का अमेरिका के साथ सीधा टकराव बढ़ रहा है।
संयुक्त रूप से एक बैलिस्टिक मिसाइल प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली विकसित करने पर पुतिन के 2019 के बयान का राजनीतिक अर्थ इसके तकनीकी और सैन्य महत्व से कहीं अधिक है। इसने दुनिया को दिखा दिया है कि रूस और चीन एक औपचारिक सैन्य गठबंधन के कगार पर हैं, जो अधिक अमेरिकी दबाव के कारण जल्द ही शुरू हो सकता है।
अक्टूबर 2020 में, पुतिन ने चीन के साथ सैन्य गठबंधन की संभावना की तरफ इशारा किया था। चीनी विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया सकारात्मक थी, हालांकि बीजिंग ने "गठबंधन" शब्द का इस्तेमाल करने से परहेज किया था।
जरूरत पड़ने पर एक कार्यशील और प्रभावी सैन्य गठबंधन बन सकता है लेकिन उनकी संबंधित विदेश नीति की रणनीतियों ने इस तरह के कदम की संभावना को कम कर दिया है। हालांकि, अमेरिका के साथ सैन्य संघर्ष का वास्तविक और उभरता खतरा हालात को तेजी से बदल सकता है।
एम॰के॰ भद्रकुमार पूर्व राजनयिक हैं। वे उज्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। व्यक्त विचार निजी हैं।
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