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पटना में जल-जमाव से फ़ैल रही हैं बीमारियां लेकिन जारी है राजनीति  

पानी निकासी वाले कई संम्प हाउस के सही ढंग से नहीं काम करने की खबरें बदस्तूर जारी हैं तो कई संम्प हाउस के कर्मचारियों का कहना है कि उनकी मशीनें ठीक हैं मगर पानी में प्लास्टिक और कचड़ायुक्त पानी आने के कारण निकासी लायक पानी का लेबल ही नहीं बन पा रहा है । इस बीच कई स्थानों पर पानी निकासी में देरी होने और उचित राहत सामग्री नहीं मिलने जैसे सवालों को लेकर सड़कों पर लोगों का आक्रोश दीखने की खबरें आ रहीं हैं।प्रशासनिक भाषा में यदि कहा जाय तो कुलमिलाकर स्थिति ‘तनावपूर्ण लेकिन नियंत्रण' है।
patna flood

पटना जल-आपदा के साथ दिनों बाद अब तक पूरे परिदृश्य से लापता पटना की मेयर महोदया ( भाजपा से ) पहली बार प्रेसवार्ता के माध्यम से प्रकट हुईं । मिडियाकर्मियों के कुछेक सवालों के जवाब तो रटे रटाए अंदाज़ में दे गईं, लेकिन जब उनसे पूछा गया कि राजधानी में पानी निकासी वाले कितनी संम्प हाउस हैं तो सही जवाब नहीं दे सकीं। नालों की सफाई पर कितना बजट था, तो इसके जवाब में भी अटक गईं और जल जमाव त्रासदी के लिए सीधे वुडको को ज़िम्मेवार ठहराते हुए प्रसंग ही बदल दिया ।  
 
पटनावासियों को भयावह जल जमाव से त्रासदी हैं शनैः शनैः छुटकारा मिलने लगा है। कई स्थानों से पानी निकल चुका है तो कहीं निकल रहा है लेकिन मेरे इलाके (सरिस्ताबाद पश्चिम) समेत कई स्थानों पर (जहां पानी निकासी का कोई नाला ही नहीं है) अब भी पानी लगा ही हुआ है। बाकी कई स्थानों पर जमा कचड़ायुक्त काला पानी अब लोगों के जी का जंजाल बन रहा है।

सभी क्षेत्रों में त्वरित ढंग से समुचित दवा व पाउडर इत्यादि के छिड़काव नहीं नहीं होने से जगह–जगह जमा काला व कचड़ायुक्त पानी से उठती भयावह दुर्गंध जंजाल बन रहा है। वहीं स्लम एरिया समेत कई क्षेत्रों में लोगों को बुखार–डायरिया व डेंगू होने की घटनाओं से महामारी का भी खतरा मंडराने लगा है।
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पानी निकासी वाले कई संम्प हाउस के सही ढंग से नहीं काम करने की खबरें बदस्तूर जारी हैं तो कई संम्प हाउस के कर्मचारियों का कहना है कि उनकी मशीनें ठीक हैं मगर पानी में प्लास्टिक और कचड़ायुक्त पानी आने के कारण निकासी लायक पानी का लेबल ही नहीं बन पा रहा है । इस बीच कई स्थानों पर पानी निकासी में देरी होने और उचित राहत सामग्री नहीं मिलने जैसे सवालों को लेकर सड़कों पर लोगों का आक्रोश दीखने की खबरें आ रहीं हैं।प्रशासनिक भाषा में यदि कहा जाय तो कुलमिलाकर स्थिति ‘तनावपूर्ण लेकिन नियंत्रण' है।

जैसे-जैसे पानी घटा, नगरवासियों की आपदा–विपत्ति के समय अदृश्य हो गए सभी स्थानीय सांसद,विधायक और सरकार के नेता–मंत्रियों के प्रकट होने का सिलसिला बढ़ा। हर नेता अपने साथ मीडिया टीम लेकर ही गए। मजेदार वाकया तब हुआ जब पटना सांसद महोदय शहर से सटे ग्रामीण इलाकों का दौरा कर रहे थे।

लोगों को प्रभावित करने के लिए टायर कि बनाई गयी अस्थायी नाव पर चढ़कर चेलों से टिकटॉक शूट कराने लगे। उक्त टायर नाव पर अधिक लोगों के कारण उसके उलट जाने से सांसद महोदय भी कमर भर पानी में जा गिरे, टिकटॉक में यह भी शूट हो गया। लेकिन दूसरे ही दिन मीडिया में इसकी खबर बनी कि वे डूबते–डूबते बचे (सोशल मीडिया में वायरल हुए उस टिकटॉक को फेसबुक ने हटा दिया है)।फिलहाल केंद्र की भी एक विशेष टीम के पहुँचकर पानी–कहर झेल चुके लोगों के बीच फेरा लगाने की खबर आयी है।
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भयावह जल-विपत्ति के समय सरकार के जिन नेताओं–जनप्रतिनिधियों का कहीं आता पता नहीं था, अब पटनावासियों की दुर्दशा–आपदा का कौन है ज़िम्मेवार की रार छेड़े हुए हैं। मुख्यमंत्री ने जल जमाव के कारणों की जांच कर दोषियों पर कारवाई करने की बात कही है। लेकिन उसके पहले ही शुरुआती वक्तव्य में भाजपा प्रदेश प्रवक्ता ने जल आपदा का सारा ठीकरा मुख्यमंत्री के सर फोड़कर खुला विरोध किया था।

लेकिन 2 अक्तूबर को वरिष्ठ भाजपा नेता व प्रदेश के उप मुख्यमंत्री द्वारा हमेशा की तरह उनकी बगल में खड़े होकर ये कहने कि देश को बनाया पीएम ने और राज्य को बनाया सीएम ने। तब से भाजपा नेताओं समेत स्थानीय सांसद–विधायक से लेकर मेयर तक सभी एक स्वर से अधिकारियों और वुडको खलनायक बता रहें हैं। एक विधायक ने अपनी भूमिका पर सफाई देते हुए कहा कि 6 माह से वे विभागीय मंत्री और सचिव से समीक्षा बैठक के लिए बोल रहें हैं लेकिन नहीं सुना गया। एक अन्य स्थानीय विधायक ने कहा कि पानी निकासी वाले संप हाउस इस तरह से धोखा देंगे नहीं सोचा था  खैर अगली बार ऐसा होने पर दुबारा ऐसी गलती नहीं होगी। इसपर लोगों ने चुटकी लेते हुए कहा है कि इसी आजमाने के लिए तो हमलोगों को एकबार फिर से ऐसी आपदा–आफत में फंसना होगा।

 जल-जमाव से बाढ़ प्रकरण में भी अमानवीय विसंगतियों ने पीछा नहीं छोड़ा। एनडीआरएफ की बोटें अधिकांशतः पॉश–रिहायशी इलाकों में ही घूमती रहीं और राहत पहुँचने की होड़ राजेन्द्र नगर जैसे संभ्रांतों के इलाकों में ही मची रही। मीडिया फोकस भी इन्हीं इलाकों पर अधिक रही। मलम्मीचक जैसे गरीबों के मुहल्लों और स्लम बस्तियों की ओर तो कई दिनों तक किसी ने झाँका भी नहीं, राहत पहुँचना तो दूर की बात रही। जिन्हें देखने और प्राथमिक राहत पहुंचाने के लिए भाकपा माले के छात्र–युवाओं की टीम ट्रैक्टर लेकर कमर भर पानी का सामना करते हुए गयी।
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ऐसे ही वंचित–उपेक्षित नागरिक समाज के पीड़ित लोगों के मुहल्लों में जेएनयू  छात्रसंघ महासचिव के नेतृत्व में वहाँ से आई छात्रों की टीम ने जाकर राहत वितरण व अन्य सुविधाए पहुंचाने का काम किया। कई इलाकों में विभिन्न सामाजिक संगठनों और सामाजिक जागरूक युवाओं–नागरिकों ने भी आपदाग्रस्त नगर वासियों की दिन रात राहत–सहायता पहुंचाने में सक्रिय दीखे। दो-तीन दिनों से जल जमाव के कई इलाकों में युवाओं की टीमें ऐसे मौकों पर होनेवाली चोरियों को रोकने के लिए रात पहरा भी दे रहें हैं।

 प्रकृति से होनेवाली आपदा को रोक पाना किसी के लिए भी संभव नहीं है लेकिन इससे होनेवाली आपदाओं को यथा-संभव निपटने की समय रहते तैयारी की जिम्मेवारी सरकार–शासन और जन प्रतिनिधियों की ही बनती है। जनता की बुनियादी व मूलभूत जरूरतों व समस्याओं के समाधान के दायित्व से इनमें से किसी को भी बरी नहीं किया सकता। इन्हीं संदर्भों में अब वोट देनेवाले लोगों से ही ये सवाल उठ रहें हैं कि प्रदेश की राजधानी जैसे शहर में पिछले 20 वर्षों से चुने जानेवाले भाजपा विधायक और वर्तमान केंदीय मंत्री व सांसद के साथ साथ नगर-निगम महापौर ने अब तक क्या किया ......... ?

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