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वे 10 कारण जो बताते हैं कि ट्रम्प यात्रा का क्यों विरोध करना चाहिए?

इस यात्रा से भारत के पास पाने के लिए कुछ भी नहीं है और खोने के लिए बहुत कुछ है। इसलिए देश भर का लोकतांत्रिक और प्रगतिशील समूहों का बड़े स्तर बना गठबंधन ट्रम्प की यात्रा का विरोध कर रहा है।
 US President’s India Visit

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प 24 फरवरी को भारत आ रहे हैं। ट्रम्प के भव्य स्वागत के लिए जिस तरह का तामझाम किया जा रहा है, कूटनीतिक तौर पर उससे यह लगता है कि भारत अमेरिका के वैश्विक सहयोग के लिए तड़पा जा रहा है।

इस यात्रा से भारत के पास पाने के लिए कुछ भी नहीं है और खोने के लिए बहुत कुछ है। इसलिए देश भर का लोकतांत्रिक और प्रगतिशील समूहों का बड़े स्तर बना गठबंधन ट्रम्प की यात्रा का विरोध कर रहा है।

आइए नज़र डालते हैं उन 10 कारणों पर जिनकी वजह से इस यात्रा का विरोध किया जा रहा है।

नंबर 1: इंसानियत के लिए

दुनिया भर में दक्षिणपंथ के उभार के मामले में ट्रम्प अगुवाई कर रहे हैं। इसकी वजह से नस्लवाद, जातीय और धार्मिक कट्ट्टरता और अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हमले बढ़ रहे हैं। दुनिया भर में यूनाइटेड किंगडम (यूके), ब्राजील,फिलीपींस,टर्की (तुर्की) और भारत जैसे देशों में इन ताकतों की सत्ता में मौजूदगी है। इन सभी देशों ने आपसी गठजोड़ बना लिया है। इन देशो की हुकूमत अल्पसंख्यकों के लिए दीवार बनाने और इन्हें अलग- थलग करने में महारत हासिल कर चुकी है।

ये हुकूमतें प्रवासियों को टारगेट करती हैं और लैंगिक अधिकारों पर हमले करती हैं। इन हुकूमतों ने अपने देशों में दक्षिणपंथी हमले की लहर फैला रखी है। सत्ता इन हमलों की हौसलाअफ़ज़ाई करती है। समाज के सबसे कमजोर वर्ग से आने वाले लोगों को इन हमलों का शिकार बनाया जाता है।

नंबर 2 : फिलिस्तीन, क्यूबा, इरान और वेनेजुएला के लोगों के ख़ातिर

ट्रम्प की हुकूमत ने फिलिस्तीन, क्यूबा, वेनेजुएला और ईरान के लोगों के खिलाफ अमेरिकी लड़ाई बहुत तीखी कर दी है। अमेरिका वेनेजुएला में तख्तापलट करवाने की कोशिश में लगा हुआ है। इस कोशिश में ट्रंप हुकूमत ने वेनेजुएला के खिलाफ क्रूरता की हद तक कठोर, बहुत सारे प्रतिबन्ध लग रखे हैं। वेनेजुएला में हुए 2019 के रिसर्चों से पता चलता है कि साल 2017 और 2018 के बीच वेनेजुएला में अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से 40,000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है।

ट्रम्प हुकूमत द्वारा क्यूबा में हेल्स बर्टन कानून लागू किया गया है। इस कानून के जरिये वेनेजुएला के आम लोगों के जीवन और आजीविका के खिलाफ दशकों से हो रहे जुल्म में एक और नया अध्याय जुड़ गया है। ईरान में प्रतिबंधों के बाद प्रतिबंधों के लहर ने ईरान की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है और बेतहाशा स्तर पर बेरोजगारों की फ़ौज खड़ी कर दी है। ट्रम्प हुकूमत की नीतियों का सबसे बुरा प्रभाव फिलिस्तीन के लोगों पर पड़ा है ।

ट्रम्प हुकूमत के तहत अमेरिका ने न केवल इजरायल का फिलिस्तीन पर किये जा रहे क्रूर दमन का समर्थन किया है बल्कि फिलिस्तीन की जमीनों पर बन रहे अवैध बस्तियों और फिलिस्तीनों जमीनों और सम्पतियों की लूट का भी समर्थन किया है।

नंबर 3 - महिलाओं के हकों पर हमले

ट्रम्प हुकूमत ने बहुतेरे ऐसे संगठनों को पैसा देना बंद कर दिया है, जो यौन, प्रजनन देखभाल और गर्भपात जैसे मुद्दों पर काम करते थे। पैसे की कमी की वजह से अमेरिका में इन स्वास्थ्य सेवाओं तक लोगों की पहुंच कम हो रही है। इसलिए गरीब महिलाएं, खास तौर पर रंग भेद का शिकार बनी महिलाएं और ट्रांसजेंडर समुदाय से जुड़ी महिलाओं को स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी मानव अधिकार नहीं मिल पा रहा है।

नंबर 4 - भारतीय कृषि पर बुरा असर

अमेरिकी कृषि कंपनियों के लिए भारत एक बहुत बड़ा बाजार है। अमेरिकी कृषि कंपनियां बादाम, अखरोट, काजू, सेब, छोले, गेहूं, सोयाबीन, मक्का और मूंगफली जैसे उत्पादों की बिक्री के लिए भारत को ध्यान में रख कर काम करती है। अमेरिकी सरकार द्वारा इन बड़ी कृषि कंपनियों को बहुत अधिक सब्सिडी दी जाती है। बड़े स्तर पर सरकारी मदद मिलने की वजह से ये कंपनियां बेचे जाने वालों कृषि उत्पादों की कीमत बहुत कम रखती है। जिसका सबसे अधिक बुरा असर विकासशील देशों के कृषि बाज़ार पर पड़ता है।

अब तक भारत ने अपने किसानों को अमेरिकी आयात से बचाने के लिए नीतिगत तरीकों के तौर पर टैरिफ का इस्तेमाल किया है। ट्रंप की मांग है कि भारत इन टैरिफ को खत्म करे। अब अमेरिका भारत के डेयरी और पोल्ट्री क्षेत्र में भी सेंधमारी करने की कोशिश कर रहा है। इन क्षेत्रों पर भारत के 10 करोड़ से अधिक घरों की जिंदगी जुड़ी हुई है ।

नंबर 5 - स्वास्थ्य देखभाल तक लोगों की पहुँच को कम करना

भारत सस्ती जेनेरिक दवाओं के उत्पादन का एक अहम क्षेत्र है। भारत का पेटेंट कानून आम लोगो के लिए सस्ती जेनेरिक दवाओं के लिए सुरक्षा कवच की तौर पर काम करता है। ट्रम्प की भारत यात्रा के दौरान एक बार फिर से दबाव डाला जाएगा कि भारत ऐसे माहौल बनाय जिससे अमेरिकी दवा कंपनियों को फायदा मिले। अमेरिका कार्डियक स्टेंट और नी इम्पलांट यानी घुटना प्रत्यारोपण जैसे मेडिकल उपकरणों की कीमत को नियंत्रित करने वाली भारत की प्रगतिशील नीतियों को भी टारगेट कर रखा है। अगर भारत सरकार अमेरिका की इन मांगों को मांग लेती है तो अमेरिका की मल्टीनेशनल कंपनियों को अपने ऊँचे कीमत वाले मेडिकल उपकरणों को भारत में आसानी से पहुँचाने में मदद मिलेगी।

नंबर 6 - ई-कॉमर्स पर अमेरिकी कॉर्पोरेट का एजेंडा

अमेरिका विश्व व्यापार संगठन (WTO) में अंतर्राष्ट्रीय डिजिटल व्यापार व्यवस्था पर दस्तखत करने के लिए विकासशील देशों पर बहुत अधिक दबाव डाल रहा है। ट्रम्प भारत में अमेरिका के बड़े टेक्नोलॉजी कॉर्पोरेशन की बेलगाम पहुंच बनाने के लिए भारत पर जोर डाल रहे हैं। अगर अमेरिका को यह इजाजत मिल जाएगी तो अमेरिका भारत की डिजिटल टेक्नोलॉजी और अर्थव्यवस्था को हद से अधिक नियंत्रित करने लगेगा। इस तरह का समझौता भारतीय अर्थव्यवस्था को आने वाले दशकों में बहुत अधिक नुकसान पहुंचाएगा। किसानों, व्यापारियों और मजदूरों को अधिक कष्ट में डालेगा।

नंबर 7 - डब्ल्यूबीटीओ में भारत और विकासशील देशों को दबाना

अमेरिका ने विश्व व्यापार संगठन में भारत पर कई बिंदुओं पर निशाना साधा है। अमेरिका ने पब्लिक स्टॉकहोल्डिंग और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर भारत की नीतियों को चुनौती दी है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम को लागू करने के लिए ये नीतियाँ महत्वपूर्ण हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि गरीबों को भोजन मिले और किसानों को अपनी उपज की सही कीमत मिले। ट्रम्प की अब यह चाह है कि भारत और दूसरे विकासशील देशों को अब विश्व व्यापार संगठन में विकासशील देशों के तौर पर नहीं रखा जाए। अगर ऐसा होगा तो भारत जैसे देशों के लिए स्पेशल एंड डिफ्रेंशियल ट्रीटमेंट जैसे प्रावधानों को कोई मायने नहीं होगा। यानी भारत की विकासशील स्थिति को देखते हुए भारत के साथ अलग तरह से व्यवहार करने की छूट नहीं मिलेगी। ऐसी में वैश्विक व्यवस्था ही विकासशील देशों को लूटने वाली बन जाएगी।

नंबर 8 - जलवायु संकट का बद से बदतर होना

हम जलवायु संकट के खतरों को अपने सामने देख रहे हैं लेकिन ट्रम्प ने जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन के पेरिस समझौते से अमेरिका को अलग करने की औपचारिक प्रक्रिया शुरू कर दी। अमेरिका ने यह कदम इस तथ्य के बावजूद उठाया कि उसके द्वारा औद्योगिक समय से लेकर अब तक दुनिया में सबसे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन किया गया है। ऐसे में भारत जैसे विकासशील देशों का समर्थन करने के बजाय ट्रम्प भारत को ग्रीन हॉउस गैसों के उत्सर्जन के लिए दोषी ठहरा रहे हैं।

नंबर 9 - निर्माण और निवेश नीतियों पर आक्रामक रवैया

2018 में ट्रम्प हुकूमत ने भारत सहित कई विकासशील देशों से स्टील और एल्यूमीनियम के आयात पर एकतरफा टैरिफ लागू किया। रिपोर्ट्स बताती हैं कि अमेरिकी कार्रवाई की वजह से 12 महीनों में भारत के इस्पात उत्पादों का निर्यात 46% तक गिर गया। अमेरिका ने बीमा में और बैंकिंग जैसे कई क्षेत्रों में भारत की निवेश सीमाओं पर भी निशाना साधा है। बीमा में निवेश के जरिये विदेशी मालिकाना हक 49% और बैंकिंग में 74% तक हासिल किया जा सकता है। ट्रम्प मीडिया और मल्टी-ब्रांड खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा को हटाना चाहते हैं। भारत की ऐसी सभी औधोगिक नीतियों को अमेरिका अपने पक्ष में मोड़ना चाहता है।

नंबर 10 - साम्राज्यवादी एजेंडे को नकारना

ट्रम्प की अगुवाई में अमेरिकी साम्राज्यवादी आक्रामकता तेज हो गई है। यह आक्रमकता दुनिया को एक एक परमाणु प्रलय की तरफ ले जा रही है। अमेरिका ने वैश्विक निरस्त्रीकरण के स्तंभों में से एक इंटरमीडिएट रेंज न्यूक्लियर फोर्सेस (आईएनएफ) ट्रीटी से खुद को अलग कर लिया है। अमेरिका ने ईरान परमाणु समझौते से हटकर और ईरानी जनरल क़ासम सोलेमानी की हत्या करके पश्चिम एशिया को एक भयावह युद्ध के कगार पर ला दिया है।

अमेरिका फिलिस्तीन पर इजरायल के कब्जे का लगातार समर्थन करता रहा है। सऊदी अरब को हथियार देने में सबसे आगे रहता है। सऊदी अरब के यमन पर हमले ने सदी के सबसे खराब मानवीय संकटों में से एक को जन्म दिया है। अमेरिका ने लैटिन अमेरिका के बोलीविया, होंडुरास और वेनेजुएला में तख्तापलट करवाया है और तख्तापलट के कोशिशों का समर्थन किया है।

इसलिए अमेरिका की इस तरह की तमाम हकरतों की वजह से भारत के लोग 24 फरवरी को ट्रम्प की यात्रा का विरोध करने के लिए सड़कों पर उतर रहे हैं।

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