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डिजिटल मीडिया के पत्रकारों पर पाबंदियों का साल रहा 2022

“डिजिटल मीडिया की ज़रूरत सबको है, लेकिन सिर्फ़ लोकप्रियता हासिल करने के लिए, आलोचना के लिए नहीं। जो डिजिटल का पत्रकार सरकार की तारीफ़ करता है, वही किसी वारदात या घटना पर सरकार की पोल खोल देता है, जो उन्हें पसंद नहीं है।”
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मध्य प्रदेश के सीधी जिले से 3 अप्रैल 2022 की सुबह-सुबह एक सनसनीखेज वीडियो के साथ कुछ फोटो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल होने शुरू हो गये थे। वायरल हो रहे फोटो और वीडियो में कुल आठ लोग थे, जिनके शरीर पर लिबास के नाम पर सिर्फ अंडरवीयर था और वे सभी हाथ बांधे खड़े थे। हाथ बांधे खड़े युवकों के चेहरों पर दासत्व का जो भाव था उसे देख लग रहा था कि वह किसी व्यक्ति विशेष के सामने खड़े हैं, जो रुतबेदार है और वे बेचारे अपनी बारी पर फैसले आने का इंतजार कर रहे हैं। खैर, दिन होते—होते इस रहस्य से पर्दा उठा और पता चला कि घटना 2 अप्रैल रात 8 बजे की है। यह रहस्य भी खुला कि इस तस्वीर में नंगी हालत में खड़े लोग पत्रकार, कैमरामैन, रंगकर्मी और आरटीआई एक्टिविस्ट हैं ओर जिनके सामने खड़े हैं वे सीधी कोतवाली थाना प्रभारी मनोज सोनी और अमिलिया थाना प्रभारी अभिषेक सिंह हैं।

पत्रकार को थाने में नंगा करने के मामले को तूल पकड़ता और पुलिस की फजीहत होते देख तत्कालीन एडिशनल एसपी अंजुलता पटेल ने अपना बचाव करते हुए मीडिया में बयान दिया, 'जर्नलिस्ट द्वारा फेक आईडी के जरिए बीजेपी विधायक केदारनाथ शुक्ला के पुत्र गुरुदत्त शुक्ला को परेशान किया जा रहा था।' वहीं पीड़ित पत्रकार कनिष्क तिवारी ने मीडिया से बातचीत में कहा था, 'हमने पुलिस और विधायक से जुड़े भ्रष्टाचार को उजागर किया इसलिए हमारे साथ यह बर्ताव किया गया। हम यहां के स्थानीय पत्रकार हैं, सभी मुझे जानते हैं, मैं यू-ट्यूब चैनल चलाता हूं, मुझे फेक आईडी वाला पत्रकार कहना गलत है। डिजिटल मीडिया का पत्रकार होना फेक जर्नलिस्ट होना कैसे है? मैं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से भी जुड़ा रहा हूं।'

उस घटना के बाद जब कनिष्क तिवारी से अब बातचीत की गयी तो वह कहते हैं, उस घटना के बाद मैंने डिजिटल मीडिया को और बारीकी से समझना शुरू किया, जिसमें मेरा काम भी शामिल है। मेरी राय में, 'डिजिटल मीडिया सरकार और अन्य संस्थाओं के लिए सांप—छछूंदर जैसी हालत में है, जिसे न उगलते बन रहा है न निगलते। डिजिटल मीडिया की जरूरत सबको है, लेकिन सिर्फ लोकप्रियता हासिल करने के लिए, आलोचना के लिए नहीं। जो डिजिटल का पत्रकार सरकार की तारीफ करता है, वही किसी वारदात या घटना पर सरकार की पोल खोल देता है, जो उन्हें पसंद नहीं है। सच दिखाते ही वह आपको फेक जर्नलिस्ट कह देंगे, यू-ट्यूबर बोल के तफरीह लेंगे—मजाक बनाएंगे, रजिस्ट्रेशन दिखाओ के साथ—साथ कई और सवाल किये जायेंगे। सरकार को समस्या डिजिटल के 'दौ कौड़ी' (अफ़सरों की ज़बान) के पत्रकार से नहीं है, बल्कि उसके 'बड़े से बड़े सच' को तपाक से दिखा देने के साहस से है। बड़ी मीडिया — प्रिंट हो या इलेक्ट्रॉनिक, मैनेज हो जा रही है, लेकिन बाइक से घूम रहे नए—नए 'लड़के', मैनेज नहीं हो पा रहे हैं, 'कृपा' यहां अटकी पड़ी है।'

कनिष्क तिवारी को उनके साथियों के साथ थाने में नंगा किये जाने की घटना 2022 के शुरुआती महीने अप्रैल की है, जिसको लेकर पत्रकार जगत की तमाम संस्थाओं ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। इस घटना की तुलना अबू गरेब जेल के हालात के साथ की गयी, पूरी दुनिया की मीडिया ने हमारी सरकारों को लानत मलानत भेजी और विपक्षी दलों ने इसे पत्रकारिता जगत पर पहला कठोरतम हमला कहा। तब कहीं जाकर मामा के नाम से चर्चित मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस मामले की जांच कराई और दोनों जिम्मेदार थाना प्रभारियों को घटना उजागर होने के बाद सस्पेंड किया गया। पर सवाल उठता है कि क्या इसके बाद डिजिटल मीडिया के साथ होने वाली सरकारी—गैरसरकारी अघोषित तानाशाही की घटनाओं पर कोई रोक लगी, कमी आई?

हरियाणा के यमुनानगर जिले के जिला सूचना अधिकारी की ओर से 10 मई को डिजिटल मीडिया के पत्रकारों से संबंधित एक बयान जारी होने की जानकारी पत्रकारों को मिली। तत्कालीन जिला सूचना व जनसम्पर्क अधिकारी सुनील बसताड़ा ने कहा था कि जिन पत्रकारों के पास आरएनआई और सूचना व प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार से रजिस्टर्ड संस्थानों का नियुक्ति पत्र है उन्हें ही मीडियाकर्मी की श्रेणी में रखा जाता है। उनके इस बयान के मद्देनजर जिले के 14 डिजिटल मीडिया पत्रकारों ने कमीश्नर के नाम एक पत्र लिखा और कहा कि हम लोग सभी पत्रकारीय मानदंडों के साथ रिपोर्टिंग करते हैं, खबरें दिखाते हैं। लेकिन प्रश्न है कि यह बयान सूचना अधिकारी द्वारा जारी ही क्यों किया गया, क्या इसके पीछे स्वतंत्र पत्रकारिता की पहचान बन रहे डिजिटल मीडिया पर कोई नकेल कसना था?

दैनिक भास्कर के यमुनानगर जिले के पूर्व ब्यूरो प्रमुख मनोज ठाकुर कहते हैं, 'डिजिटल मीडिया पर पाबंदी का सबसे बेहतर जरिया है उसे फेक कह देना या फिर रजिस्टर्ड न होने की धौंस दिखाना। बड़ी मीडिया विज्ञापनों के दबावों में आसानी से मैनेज हो जाती है, लेकिन डिजिटल मीडिया को न तो विज्ञापन मिलता है, न उस पर बंदिशें संभव हैं। उनकी रोजी—रोटी तो जनसहयोग या यू-ट्यूब—फेसबुक के लाइक—सब्सक्राइब से चलती है। मगर यमुना नगर में इसका असर दिखा और सूचना अधिकारी के इस पत्र के बाद पत्रकारों में खबरों को करने का वह जुनून नहीं दिखता, क्योंकि उसी पत्र में यह भी लिखा गया था कि जो कवर करेगा, उस पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी।'

भाजपा के ‘डबल इंजन’ की दोनों सरकारों मध्य प्रदेश और हरियाणा में डिजिटल मीडिया और उससे जुड़े पत्रकारों के साथ जो रवैया हुआ, ये उसके चंद उदाहरण हैं या आप इसे प्रतिनिधि कहानियां भी कह सकते हैं। अन्यथा सिर्फ उत्तर भारत की बात करें तो यूपी, उत्तराखंड, झारखंड, बिहार, पंजाब और राजस्थान समेत देश के तमाम राज्यों में 'नए मीडिया' की संज्ञा से संबोधित होने वाले इस प्लेटफॉर्म पर हर रोज नित—नए हमले हो रहे हैं।

कारवां हिंदी वेबसाइट के सहायक संपादक विष्णु शर्मा के अनुसार, 'भारतीय समाज में जिस तरह मेहनत करने वाले और सच बोलने वाली बड़ी आबादी हाशिए पर है, वैसे ही मीडिया में डिजिटल की स्थिति है। 2022 में डिजिटल पत्रकारिता का साल स्थानीय और ग्राउंड रिपोर्ट करने वाले पत्रकारों के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण रहा। पत्रकारिता के बड़े नामों को पुलिस या स्थानीय प्रशासन एक बार नहीं रोकते—टोकते, लेकिन स्थानीय और छोटे डिजिटल मीडिया संस्थानों को डिक्टेशन देकर चलाने की कोशिश हो रही है जो बहुत खतरनाक है। खतरनाक इसलिए है कि अगर मामूली संसाधनों में काम करने वाले डिजिटल के स्वतंत्र पत्रकार या उनके संस्थान असुरक्षा बोध में चले गए तो यकीन मानिए भारतीय पत्रकारिता अपने परास्त काल में पहुंच जाएगी, जहां अफसोस के अलावा कुछ बचेगा नहीं। मैं कहूंगा कि 2022 में जो बड़ी चुनौती उभरी है, वह है डिजिटल के स्वतंत्र पत्रकारों की सुरक्षा और सम्मान की रक्षा।'

कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट के भारत प्रतिनिधि कुणाल मजूमदार हमारा ध्यान कुछ नई चुनौतियों की तरफ ले जाते हैं। वह बताते हैं, '2022 की शुरुआत बुल्ली और उसके बाद सुल्ली डील से हुई। इसमें 20 मुस्लिम महिला पत्रकारों को बुरी तरह टारगेट किया गया, उनको ट्रोल किया और सामाजिक रूप से उनके सम्मान को ठेस पहुंचाकर उन्हें मानसिक प्रताड़ना के जाल में फंसाने की पूरी कोशिश हुई। उसमें उनके परिवारों को धमकियां मिलीं। पत्रकार राना अय्यूब के ट्रोलर्स ने 24 हजार ट्वीट किए। भारत में 10 में से 9 महिला पत्रकार डिजिटल माध्यमों में कुंठितों के समूहों द्वारा चुनौती झेल रही हैं। इतना ही नहीं ट्रोलर्स की ओर से पत्रकारों पर ऑफलाइन हमले होने लगे हैं। महिला पत्रकार नेहा दीक्षित के घर पर हमला हुआ, उनकी खिड़कियां तोड़ डाली गयीं।' महिला पत्रकारों पर बढ़ते हमले का एक कारण यह भी हो सकता है कि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक के मुकाबले ऑनलाइन जर्नलिज्म में महिलाओं खासकर युवा लड़कियों की दखल बढ़ी है, डिजिटल पत्रकारिता महिलाओं को ज्यादा स्पेस दे रही है।

ह्यूमैन राइट डिफेंडरर्स एलर्ट से जुड़े रवीश आलम मानते हैं, 'यह साल डिजिटल मीडिया के भरोसे का वर्ष है। देश की व्यापक जनता का भरोसा डिजिटल मीडिया पर बढ़ा है। पहले लोग डिजिटल की खबर पढ़कर प्रिंट या टीवी देखते थे कि खबर सही है या नहीं, लेकिन अब आपको अनगिनत लोग मिल जाएंगे, जो टीवी या प्रिंट में छपी खबर पर भरोसा करने के लिए यू-ट्यूब—फेसबुक के वीडियो देखते हैं या समाचार पोर्टल पर खबरें देखते हैं, जिससे क्रॉस चेक हो सके। अब सोशल मीडिया पर भरोसेमंद, शोधपरक और जनपक्षधर पहचान वाले तमाम पत्रकार मिल जाएंगे, जिन पर जनता किसी भी कॉरपोरेट घराने के पत्रकार और पत्रकारिता से ज्यादा ट्रस्ट करती है।'

संभवत: डिजिटल मीडिया की इसी बढ़ते भरोसे की मजबूरी में भारत सरकार ने दिसंबर के शुरुआती दिनों में डिजिटल मीडिया को राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार करने का अनमने मन से ही सही लेकिन आदेश दिया है। अनमने मन से इसलिए कि डिजिटल मीडिया संस्थानों को कोई अधिकार नहीं दिया, कोई सुविधा नहीं दी बस डिजिटल मीडिया के सामूहिक मंचों को सेल्फ रेगुलेशन करने के लिए कहा है।

हालांकि जहां एक तरफ डिजिटल मीडिया को रेगुलेट करने की बात कही जा रही है, वहीं सरकार द्वारा उसके मुंह पर जाबी लगाने का काम भी जारी है। सरकार द्वारा 2022 में अब तक कुल 84 ऑनलाइन न्यूज चैनल्स को बैन किया गया है, वहीं एक साल में 23 वेबसाइट्स को भी प्रतिबंधित किया गया है। यह सूचना खुद सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने राज्यसभा में दी थी। वहीं 2021 में भी 20 ऑनलाइन न्यूज चैनल्स और 2 वेबसाइटों को बैन किया गया था।

(लेखक न्यूज़ वेबसाइट जनज्वार के संपादक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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