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मप्र में सरकारी प्रतिबंधों के बावजूद 26 नवंबर की हड़ताल लिए कमर कस चुके हैं किसान एवं असंगठित क्षेत्र के मजदूर   

मजदूर यूनियनों के नेताओं का कहना है कि मप्र की बीजेपी सरकार 26 नवंबर से पहले रैलियों की इजाजत देने से इंकार कर हड़ताल को विफल करने की कोशिशों में लगी है।
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छवि मात्र प्रतिनिधित्व हेतु।

भोपाल: मध्य प्रदेश में ट्रेड यूनियन और किसान संगठन 26 नवंबर को होने जा रही राष्ट्रव्यापी आम हड़ताल की तैयारियों को लेकर कमर कस रहे हैं। इस हड़ताल का आह्वान 10 केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों की एक संयुक्त समिति ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्ववाली केंद्र सरकार द्वारा लाये गए नए श्रम एवं कृषि कानूनों के साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के निजीकरण के फैसले के खिलाफ किया है।
ट्रेड यूनियन नेताओं के अनुसार यह हड़ताल राज्य के संगठित और असंगठित दोनों ही क्षेत्रों में प्रभावी होने जा रही है।

संगठित क्षेत्र में सिंगरौली, अनूपुर, शहडोल, उमरिया, बैतूल एवं छिंदवाडा की कोयला खदानों के साथ-साथ सिंगरौली के विभिन्न ताप विद्युत संयंत्रों, जिसमें भोपाल की बीएचइएल ईकाई एवं रीवां के सीमेंट प्लांट्स भी शामिल हैं, में हड़ताल का प्रभाव देखने को मिल सकता है। यूनियन नेताओं के अनुसार इसके अलावा बैंकों, कपड़ा मिलों एवं राज्य के विशेष आर्थिक क्षेत्रों जैसे कि प्रीतमपुरा, मंडीदीप, मालनपुर और गोविन्दपुरा में भी हड़ताल देखने को मिलने वाली है।

जहाँ तक असंगठित क्षेत्र की भागीदारी का प्रश्न है तो इसमें हजारों की संख्या में आंगनबाड़ी एवं आशा-उषा कर्मियों, परिवहन क्षेत्र और 65 कृषि उपज मंडियों से जुड़े लोग भी 26 नवंबर की आम हड़ताल में शामिल होने जा रहे हैं।

सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू) के प्रमोद प्रधान के अनुसार “बड़े उद्योगों एवं असंगठित क्षेत्रों में हड़ताल होने जा रही है और वे संयुक्त रूप से मजदूर-हितों के खिलाफ बने विधेयक, किसान-विरोधी कानूनों एवं गरीब-विरोधी मोदी सरकार के कानूनों के खिलाफ आवाज बुलंद करेंगे।”

सीटू, आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक), इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (इंटक), हिन्द मजदूर सभा (एचएमएस), सेल्फ-एम्पलॉयड विमेंस एसोसिएशन (सेवा) जैसी अनेकों ट्रेड यूनियनें इस हड़ताल में कतारबद्ध तरीके से शामिल हैं और इसको लेकर तैयारियां पूरी जोरों पर है। हालाँकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) समर्थित भारतीय मजदूर संघ इस हड़ताल में शामिल नहीं होने जा रहा है।
इसके अलावा प्रमुख ट्रेड यूनियनों में बैंकिंग, बीमा एवं रेलवे क्षेत्र के कर्मचारी संगठनों के साथ-साथ राज्य एवं केंद्र सरकार के संस्थानों में कार्यरत कर्मचारियों के संगठन भी इस हड़ताल में भाग ले रहे हैं।
यूनियन के नेताओं ने निजी क्षेत्रों के व्यवसाय से सम्बद्ध मालिकों से भी अपील की है कि वे भी इस हड़ताल को अपना समर्थन दें।

इस बीच बीजेपी शासित राज्य रैलियों एवं सभाओं की अनुमति देने से इंकार कर हड़ताल को विफल करने की कोशिशों में लगे हैं, यह आरोप लगाया है एसइडब्ल्यूए (सेवा) की सदस्या एवं मध्य प्रदेश जॉइंट एक्शन कमिटी की समन्यवक शिखा जोशी ने।

शिखा का आरोप है कि “हमने राज्य के करीब 10 जिलों में 24 नवंबर के दिन मशाल जुलूस के साथ एक रैली के आयोजन की योजना बनाई थी। लेकिन जिलाधिकारियों ने कोरोनावायरस के प्रसार को देखते हुए सभी प्राप्त अनुमतियों को रद्द कर दिया है। वे 26 नवंबर की हड़ताल को भी बाधित करने की कोशिश करेंगे, लेकिन हम रुकने वाले नहीं हैं।”

आरोप लगाते हुए वे आगे कहती हैं कि “जब मप्र में 28 सीटों पर उप-चुनाव चल रहे थे तो राजनीतिक नेताओं ने जिनमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केन्द्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी शामिल थे, तो उस दौरान उन्होंने कोविड-19 के दिशानिर्देशों का जमकर उल्लंघन करने का काम किया था और अपनी सुविधानुसार राज्य ने कोविड-19 के बढ़ते मामलों के बावजूद इसे रद्दी में डालने और कुछ मामलों में कानून को अपने हिसाब से इस्तेमाल किया। लेकिन जब ट्रेड यूनियनों की ओर से गरीब-विरोधी और किसान-विरोधी नीतियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन की अनुमति माँगी जा रही है तो सरकार इसे कोविड-19 प्रसार के नाम पर ख़ारिज करने में लगी है।”

दूसरी तरफ इंटक के आरडी त्रिपाठी का कहना है कि “इस महामारी के दौरान श्रमिकों को भारी कष्ट उठाने पड़े हैं। अपने घरों तक पहुँचने के लिए उन्हें नंगे पाँव मीलों सफर तय करने के लिए मजबूर होना पड़ा था। कुछ की तो मौत तक हो गई। हजारों की संख्या में लोग बेरोजगार हो गए। ऐसे में जब उन्हें मदद पहुँचाये जाने की सख्त जरूरत है, के बजाय केंद्र सरकार बेशर्मी के साथ सुधार के नाम पर मजदूरों के ही खिलाफ कानून बना रही है।”
वहीँ एटक के रूप सिंह चौहान ने दावा किया कि जिन श्रम कानूनों को केंद्र सरकार रद्द कर देने पर उतारू है, उन्हें अस्तित्व में लाने के लिए अथक खून-पसीना बहाने एवं दशकों के लंबे संघर्षों के बाद जाकर सफलता हासिल हो सकी थी। “इसलिये हम इतनी आसानी से इसे खत्म नहीं होने देंगे, और अपनी अंतिम साँस तक इसके बचाव के लिए लड़ेंगे।” 

वे आगे कहते हैं “जहाँ एक तरफ लॉकडाउन के बाद से 15 करोड़ लोगों को अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा है और वे बेहद दरिद्रता में अपना जीवन गुजारने के लिए मजबूर हैं, वहीँ इसी दौरान अडानियों और अम्बानियों की आय में तेज उछाल दर्ज की गई है। यह साबित करता है कि मोदी सरकार पूंजीपतियों के हित में काम कर रही है, ना कि गरीबों के। हम उत्पीडित वर्ग की आवाज को बुलंद कर के रहेंगे।”
यह पहली बार है कि किसान संगठनों ने भी मजदूरों की हड़ताल को अपना समर्थन दिया है, और इसके साथ ही मेधा पाटकर, डॉ. सुनीलम एवं मध्यप्रदेश में राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ (आरकेएमएम) के शिवकुमार ‘कक्का जी’ सहित विभिन्न सामाजिक कार्यकताओं एवं किसान नेताओं ने इस हड़ताल को अपना समर्थन दिया है।

किसान नेता और पूर्व विधायक डॉ. सुनीलम का कहना है “हर गुजरते दिन के साथ मजदूरों और किसानों की हालत निरंतर बिगडती ही जा रही है। सरकार न सिर्फ उनका दमन करने में लगी है बल्कि श्रम एवं कृषि कानूनों में संशोधन और उन्हें रद्द करने के जरिये उनके अधिकारों को भी छीनने में व्यस्त है।”
इस हड़ताल के जरिये ट्रेड यूनियनों एवं किसान संघों की माँग है कि “किसान-विरोधी एवं मजदूर-विरोधी” विधेयकों को सरकार वापस ले, सभी गैर-करदाता परिवारों के खातों में 7,500 रूपये जमा किये जाएं। हर जरूरतमंद परिवारों को प्रत्येक माह 10 किलो अनाज का प्रावधान किया जाए, मनरेगा में विस्तार कर हर वर्ष 200 कार्य दिवसों को सुनिश्चित कर, बढ़ी हुई दर पर मजदूरी देने के साथ शहरी क्षेत्रों में भी इस स्कीम को अमल में लाया जाए। हड़तालियों की यह भी माँग है कि रक्षा, रेलवे, बंदरगाह, उर्जा, खनन एवं वित्तीय क्षेत्रों में निजीकरण बंद हो, विभिन्न सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में कर्मचारियों की जबरन छंटनी पर रोक लगे और सभी के लिए पेंशन दिए जाने का प्रावधान किया जाए।

तमाम बाधाओं के बावजूद मध्यप्रदेश सहित तमाम अन्य राज्यों से किसानों के जत्थे संसद का घेराव करने के लिए दिल्ली की ओर कूच कर रहे हैं। 

 

किसान नेता शिवकुमार शुक्ल उर्फ़ कक्का जी के अनुसार “बड़वानी, खरगोन, धार, ग्वालियर, भिंड, मुरैना, मंदसौर सहित राज्य के सभी हिस्सों से किसान तमाम दिक्कतों के बावजूद दिल्ली की ओर प्रस्थान कर रहे हैं। वे हाल ही में पारित किये गए कृषि कानूनों के प्रति अपने गुस्से को दर्ज कराने को लेकर बैचेन हैं।” उन्होंने आगे कहा “सरकार हमें बीच रास्ते में ही रोकने की कोशिश करेगी, लेकिन हम आखिर तक इस लड़ाई को जारी रखेंगे।“

शुक्ला आगे कहते हैं “जिस प्रकार से केंद्र सरकार ने अलोकतांत्रिक तौर-तरीकों से सूने पड़े संसद के भीतर तीन कृषि कानूनों को पारित करने का काम किया, जब इस दौरान विपक्षी सांसदों ने लोकसभा और राज्य सभा के कामकाज को अलोकतांत्रिक तरीके से चलाए जाने के विरोधस्वरूप सदन की कार्यवाही का बहिष्कार किया था। ये कानून पूरी तरह से किसान एवं श्रमिक समुदाय के खिलाफ में हैं, और कॉर्पोरेट के हितों को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं।” 


https://www.newsclick.in/MP-Trade-Unions-Farmers-Unorganised-Workers-Ready-Nov-26-Strike-Despite-Govt-Restrictions
 

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