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सरकार जी के आठ वर्ष: शौचालय में बैठ कर तसल्ली से सोचें

तिरछी नज़र: सरकार जी जो भी काम करते हैं नम्बर एक, वह हर काम ऐतिहासिक होता है। नम्बर दो, वह हर काम पहली बार हुआ होता है और तीसरे, वह काम अच्छा तो होता ही है।
8 years of modi

सरकार जी के शासनकाल के आठ वर्ष पूरे हो चुके हैं और नवां वर्ष चल रहा है। सरकार जी ने इन आठ वर्षों में बहुत से काम किए हैं। और सभी काम बहुत ही अच्छे अच्छे किए हैं। सरकार जी जो भी काम करते हैं नम्बर एकवह हर काम ऐतिहासिक होता है। नम्बर दोवह हर काम पहली बार हुआ होता है और तीसरेवह काम अच्छा तो होता ही है।

सरकार जी तो सब कुछ अच्छा ही करते हैं। जैसे कि सरकार जी जब छींकते या खांसते हैं तो वह भी अच्छा ही होता है। औरों के छींकने खांसने से अपशकुन हो सकता हैबीमारी फैल सकती हैकोरोना फैल सकता है पर सरकार जी के छींकने खांसने से नहीं। जैसे औरों के शासन में रुपए की कीमत गिरना सरकार की अयोग्यता होती थी पर अब सरकार जी के शासनकाल में रुपए की कीमत गिरना सरकार जी की योग्यता के कारण है। सरकार जी की तो लघुशंका और दीर्घशंका भी अच्छी ही होती होगी। सरकार जी के अलावा यह लघुशंका और दीर्घशंका के अच्छे होने की उपलब्धि सिर्फ और सिर्फ गाय माता को ही हासिल है।

लघुशंकादीर्घशंका से याद आया कि सरकार जी ने घर घर में शौचालय बनवाने का एक बहुत ही अच्छा काम किया है जिससे कि सब लोग घर में ही शंका निवारण कर सकें। शौचालय का सोच से बहुत ही गहरा नाता है। सभी बड़े नेताअफसर आदि सोचने का कार्य शौचालय में ही करते हैं। आप उनके घर कभी भी फोन कर लोसुबह हो या शामउत्तर मिलेगा, 'साब जी शौचालय में हैंनेता जी शौचालय में हैं'। अगर थोड़ी देर बाद फोन करोगे तो पता चलेगा कि साब जी अभी भी शौचालय में ही हैं। या फिरसाब जी आफिस के लिए निकल चुके हैं। आफिस में फोन मिलाओ तो फिर वहीकि साब जी शौचालय में हैं या फिर साब जी मीटिंग में हैं। घरशौचालयआफिसशौचालयमीटिंगलगता है बड़े अफसरों और नेताओं की जिंदगी में यही सबसे बड़ा कन्फ्यूजन है। 

साहब के हर समय शौचालय में होने को सुन कर ऐसा लगता है कि साहब लोग देश के हित कीदेशवासियों के हित की सभी योजनाएं शौचालय में ही बैठ कर सोचते हैं और बनाते हैं। यह इसलिए भी लगता है क्योंकि जिस तरह की योजनाएं बनाई जा रही हैं वैसी योजनाएं तभी बनाई जा सकती हैं जब साहब लोग शौचालय के सुगंधित वातावरण में बैठ कर तसल्ली से सोचें। और जब योजनाएं शौचालय में बैठ कर बन रही हैं तो सरकार जी भी चाहते हैं कि लोग-बाग शौचालय में बैठ कर ही उनकी योजनाओं पर विचार करें और उनका मूल्यांकन करें। तभी तो सरकार जी की योजनाएं लोगों की समझ में ढंग से आ सकती हैं। इसीलिए सरकार जी ने हर घर में शौचालय बनवाने का काम किया। 

शहरी लोगों को तो यह शौचालय में बैठ कर सोचने की सुविधा आम तौर पर पहले से ही उपलब्ध थी। पर गांवों में आम व्यक्ति को यह कहने की सुविधा नहीं थी कि कोई कह सके, 'बबलू के पापा शौचालय में हैं'। वहां यही कहा जाता था कि बबलू के पापा खेत (में) गए हैं। सरकार जी ने अब उन्हें भी यह सुविधा दिला दी है कि वे भी कह सकें कि बबलू के पापा शौचालय में हैं। वैसे बात वही हैखेत में जाने जैसी। शौचालय में पानी नहीं है तो लोटा भर कर या प्लास्टिक की बोतल में ले जाना पड़ता है। पीने के पानी का भी अकाल है और शहरों की तरह से टिश्यू पेपर भी नहीं हैं तो शौचालय में मिट्टी के ढेले से ही पोंछ कर ही आ जाते हैं। पाखाने को बहाने के लिए भी पानी नहीं है तो उस पर मिट्टी डालकर ही काम चला लेते हैं। लेकिन सोचने का काम शौचालय के खुशबू वाले वातावरण में बैठ कर ही करते हैं।

यह शौचालय में बैठ कर तल्लीनता से सोचने का ही परिणाम था कि लोगों ने नोटबंदी में भी सरकार जी की बहाने मान लिए। जीएसटी लागू करने में बंद हुए व्यवसाय और गई नौकरियां भी स्वीकार लीं। शौचालय में सोचने का ही परिणाम था कि बे-सिर-पैर के लॉकडाउन भी बर्दाश्त किए और ऑक्सीजन न मिलने के कारण मरने पर भी प्रश्न नहीं उठाया। शौचालय में बैठ कर सोचते रहे इसीलिए तो कोरोना में मरने वालों की संख्या तक नहीं पूछी। बंद शौचालय में सोच सोच कर दिमाग भी बंद कर लिया। सरकार जी भी तो यही चाहते थे। शौचालय बनवाए भी इसीलिए गए थे। 

अब सरकार जी की यह नई अग्निपथ योजना को ही लीजिए। बहुत ही अधिक सोच-विचार कर बनाई गई है। लगता है योजना बनाने वालों ने घंटों शौचालय में बिताए हैं। अब इतनी अच्छी योजना नवयुवकों को समझ ही नहीं आ रही है। क्या सरकार जी द्वारा बनवाए गए शौचालयों में कोई कमी रह गई है जो नवयुवक इस योजना को ढ़ंग से समझ नहीं पा रहे हैं। ठीक है योजना बनाने वालों के शौचालय आलीशान होते हैं। कुछ के तो वातानुकूलित भी होते हैं। वहां पोटी धोने के लिए जेट लगे होते हैं जिनसे लीटरों पानी निकलता है। पॉट साफ करने के लिए फ्लश सिस्टम होता है। जबकि गांव देहात में लोगों के शौचालय में इतनी सुविधाएं नहीं होती हैं। पर नौजवान लोग शौचालय में बैठ करसमय लगा करजरा ढंग से सोचते तो योजना समझ में आ ही जाती।

सरकार जी ने योजना का कितना अच्छा नाम रखा है- अग्निपथ। इस नाम की फिल्में दो दो बार हिट हो चुकी है तो क्या यह योजना हिट नहीं होगी। यह योजना लागू हो गई तो भारतीय सेना वास्तव में ही अग्निपथ पर चल पड़गी। और नौजवानोंयाद रखोतुम्हें नाम दिया है- अग्निवीर। कितना सुन्दर नाम है। ऐसा लगता है जैसे कोई नाम नहींपुरस्कार हो। परमवीरमहावीरअग्निवीर। और साढ़े सत्रह वर्ष की आयु में ही भर्ती। कोई सत्रह-अठारह की उम्र में भर्ती हुआ तो इक्कीस-बाइस की उम्र में ही रिटायर भी हो जाएगा। मतलब शादी ब्याह की उम्र तक भूतपूर्व सैनिक। पच्चीस से पहले पहले ही भूतपूर्व सैनिकपास में दस बारह लाख रुपए और लम्बी अनिश्चित जिंदगी। है ना अभूतपूर्व योजना। यह सिर्फ यह सरकार जी ही दे सकते हैंऔर कोई सरकार जी नहीं। इस योजना का विरोध करने सेसड़कों पर आंदोलन करने सेउधम मचाने से कुछ हासिल नहीं होगा। शौचालय में बैठ कर तसल्ली से सोचोगे तो सब कुछ समझ आ जाएगा। 

सरकार जी ने ये सब शौचालय स्वच्छता के लिए नहीं बनवाए हैंबैठ कर सोचने के लिए ही बनवाए हैं। स्वच्छता की चिंता होती तो तन की स्वच्छता के साथ साथ मन की स्वच्छता की भी बात करते। बाहर शौच करने जाने वालों पर ही फाइन नहीं करतेगाली गलौज करने वालों पर भी फाइन ठोकते। उन को ट्विटर पर फॉलो नहीं करतेबल्कि उन पर लगाम लगाते। तन की शौच बाहर खुले में करने पर रोक लगाने के साथ साथ मन की शौच खुले में करने पर भी रोक लगाते। धर्मांधता और सांप्रदायिकता को खत्म करने के लिए कदम उठाते। पर सरकार जी तो घर घर शौचालय स्वच्छता के लिए नहीं इसलिए बनवाये हैं कि हम वहां बैठ कर तसल्ली से सोच सकें और सरकार जी का समर्थन कर सकें।

तो आप अपने घर में बने शौचालय में बैठ कर तसल्ली से एक सप्ताह तक सोचें और सरकार जी की इस नई अग्निपथ योजना के समर्थन के लिए तर्क जुटाएं। और मैं तब तक के लिए ब्रेक ले लेता हूं। बस एक हफ्ते के लिए। 

(इस व्यंग्य स्तंभ तिरछी नज़र के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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