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करीब 27 करोड़ लोगों के पास किसी भी तरह का कामकाज नहीं

रोजगार के उत्पादन से हटाकर देखा जाए तो 27 करोड़ लोगों को रोजगार मुहैया करवाने के लिए 13 से 14 लाख करोड़ रुपया खर्च होगा। मगर रोजगार में उत्पादन स्वाभाविक तौर पर जुड़ता है इसलिए हकीकत में यह खर्च 2 - 3 लाख करोड़ से ज्यादा का नहीं होगा।
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भारत में बेरोजगारी की बीहड़ परेशानी है। बेरोजगारी को खंगलाने पर भारत की कई सारी परेशानियां खुलकर सामने आती है। इसी बेरोजगारी पर देश के जाने माने अर्थशास्त्री अरुण कुमार ने विस्तार से एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। इस रिपोर्ट का नाम है राइट टू वर्क :फिजियबल एंड इन्डेसपेंसिबल फॉर इंडिया टू बी ट्रूली सविलाईज़ेड एंड डेमोक्रटिक नेशन। भारत सरकार ने बेरोजगारी और गरीबी के आंकड़े बहुत लम्बे समय से प्रकाशित करना बंद कर दिए हैं। इसलिए इस रिपोर्ट में कुछ जरूरी जानकरियों को आधार बनाकर भारत में रोजगार और बेरोजगारी की हालत के कुछ जरूरी आंकड़े प्रकाशित किये गए हैं। यह बताया गया है कि मौजूदा वक्त में भारत में कुल बेरोजगारों की संख्या कितनी है। अगर भारत की सालाना औसत आमदनी को तकरीबन 30 प्रतिशत आमदनी के हिसाब से देखा जाए तो कितना पैसा खर्च होगा?

मौजूदा वक्त में तकरीबन 3 करोड़ लोग संगठित क्षेत्र में काम करते हैं। तकरीबन 40 करोड़ असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। इन दोनों को मिला दिया जाए तो भारत में तकरीबन 43 करोड़ लोग किसी न किसी तरह के काम में लगे हुए हैं। अगर इसमें से कुछ ऐसे कामगारों को निकाल दिया जाए जिनके पास रोजागर तो है मगर वह बरोजगारी से भी बदतर है तो बेरोजगारी का हाल और भयवाह दिखता है। जैसे अगर इस आंकड़े से उन्हें निकाल दिया जाए जिन्हें रोजगार के नाम पर मनरेगा मिला है (36 मिलियन), जिनकी नौकरी अभी हाल ही में छूटी है (24 मिलियन), जिन्हें हफ्ते में दो-तीन दिन काम मिलता है और बाकी दिन नहीं (9 मिलियन) तो आंकड़ा महज 30 करोड़ के आसपास बनता है। यानी महज 30 करोड़ लोग ऐसे हैं जिनके पास सुबह-शाम का खाना जुगाड़ करने लायक काम है। इससे ज्यादा कुछ नहीं। अगर काम गया तो समझिए जिंदगी सड़क पर आ जायेगी।

इस 30 करोड़ में महज़ तीन करोड़ ऐसे लोग हैं जो संगठित क्षेत्र में काम करते हैं। यानी जिनके पास सरकारी नौकरी है या किसी भी तरह की ऐसी नौकरी है जिससे महीने में सैलरी मिलती हैं और सामाजिक सुरक्षा से जुड़ भत्ता हासिल करते है। कहने का मतलब यह है कि यही 3 करोड़ ऐसे लोग हैं जिनकी जेब में इतना पैसा होगा कि वह कुछ बचत कर पाते होंगे। ठीक-ठाक जिंदगी जी पाते होंगे। इसलिए याद रखिए कि 140 करोड़ लोगों में महज तीन करोड़ लोग ऐसे हैं जो गरिमा पूर्ण जीवन जीने लायक कमाई कर पाते हैं।

अब आप पूछेंगे कि भारत में कितने लोग ऐसे हैं जिन्हें हाल फिलहाल किसी भी तरह का रोजगार चाहिए। इस पर अरुण कुमार की रिपोर्ट बताती है कि काम करने लायक आबादी में ( 15 साल से ऊपर ) तकरीबन 278 मिलियन यानी 27 करोड़ 80 लाख लोग ऐसे हैं , जो बेरोजगारी में जी रहे हैं। जिन्हें तुरंत किसी ना किसी तरह का काम चाहिए। एक वक्त के लिए अगर इसमें से 6 करोड़ उन मनरेगा मजदूरों को हटा दिया जाए जिन्हें साल में महीने 2 महीने से ज्यादा काम नहीं मिलता तो यह संख्या तकरीबन 21 करोड़ के आसपास बैठती है। यानी भारत में 21 करोड़ लोगों के पास किसी भी तरह का कामकाज नहीं है। यह संख्या उतनी है जितनी जर्मनी और रूस की पूरी आबादी है।

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर सरकार भारत की सालाना औसत आमदनी के 30% के हिसाब से बेरोजगार लोगों को रोजगार मुहैया कराए तो तकरीबन 13 से 14 लाख करोड़ रुपए खर्च होगा। यह भारत के कुल GDP यानी 270 लाख करोड़ रुपये का 5 से 6% होगा। यानी भारत सरकार केवल GDP का महज 5 से 6% खर्च करे तो 27 करोड़ लोगों को रोजगार मुहैया करवाया जा सकता है।

मगर यहां ध्यान से समझने वाली बात यह है कि जब हमारे पास रोजगार होता है तो सेवा या सामान का उत्पादन करते हैं। जब कोई क्लर्क या वेल्डर बनता है तो वह फाइल या लोहा बनाता है। मतलब अगर किसी को रोजगार मिल रहा है तो वह भी अर्थव्यवस्था में कुछ योगदान करता है। यानी 27 करोड़ लोगों को रोजगार मुहैया करवाने के लिए 13 से 14 लाख करोड़ रुपया खर्च करने की बात कहना - इस तरह से है जैसे रोजगार करने वाला किसी भी तरह का उत्पादन नहीं करेगा उस पर बस पैसा खर्च कर दिया जाएगा। असली हकीकत यह है कि जब 27 करोड़ लोगों को रोजगार मिलेगा। मुश्किल से 2 -3 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च नहीं होगा। वह भी केवल जब तक लोग ऐसे उत्पादन में नहीं लग जाते जो अर्थव्यवस्था को चलाने का काम करता हो। यही इस रिपोर्ट की सबसे बड़ी बात थी, जिसका यहां पर जिक्र करना जरूरी था। जिसके बारे में दूसरी प्राइवेट रिपोर्टें नहीं बताती हैं।

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