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सूखे के बाद अब बाढ़ से पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसानों पर भारी संकट

मानसून का समय बीत जाने के बाद हुई भारी बारिश से दर्जनों ज़िलों में कई जगहों पर सड़कें बह गई हैं और हज़ारों लोगों को ऊंचे स्थानों पर शरण लेने या सुरक्षित स्थानों पर जाने के लिए अपने गांवों को छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
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फाइल फ़ोटो।

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के अधिकांश तराई और पूर्वी क्षेत्रों में लगातार बारिश, नियमित रूप से बढ़ते जल स्तर और बाढ़ ने क़हर बरपा रखा है। पिछले दिनों हुई बारिश से बुधवार से जहां कुछ राहत मिली है वहीं नेपाल के बांधों से छोड़े गए पानी ने हालात और ख़राब कर दिया है। लखनऊ में रिलीफ कमिश्नर ऑफिस द्वारा गुरुवार को बताए गए आंकड़ों के अनुसार, बाढ़ से उत्तर प्रदेश के 18 ज़िलों के 1,380 गांव डूब गए हैं। यह सब तबाही असामान्य रूप से सूखे मानसून का समय बीत जाने के बाद हुआ है।

यूपी के बलरामपुर ज़िले में छह, गोंडा में चार और श्रावस्ती में दो लोग बाढ़ के पानी में बह गए हैं। इनमें से दस की मौत हो चुकी है, जबकि दो अभी भी लापता हैं। झांसी ज़िले में मंगलवार देर रात भारी बारिश के बीच बिजली गिरने से छह लोगों की मौत हो गई।

बलरामपुर को सबसे अधिक प्रभावित ज़िले के रूप में पहचाना गया है जहां 287 गांव बाढ़ से प्रभावित हैं। इसके बाद सिद्धार्थनगर ज़िला अधिक प्रभावित बताया गया है जहां 129 गांव बाढ़ की चपेट में हैं। सबसे अधिक बाढ़ वाले अन्य ज़िलों में गोरखपुर (120 गांव प्रभावित), श्रावस्ती (114 गांव), गोंडा (110 गांव), बहराइच (102 गांव), लखीमपुर खीरी (86 गांव), बाराबंकी (82 गांव), बुलंदशहर (68 गांव), महाराजगंज (63 गांव), आजमगढ़ (60 गांव), सीतापुर (57 गांव), बस्ती (32 गांव), संत कबीर नगर (19 गांव), कुशीनगर (14 गांव), मऊ (13 गांव), अयोध्या (12 गांव), देवरिया (5 गांव) और अंबेडकर नगर (2 गांव) शामिल हैं।

नदी के किनारे स्थायी रूप से रहने वाले सैकड़ों स्थानीय लोग और उनके पशुधन अब भुखमरी के कगार पर आ गए हैं। बाढ़ आने के चलते ग्रामीण लोग अपने घरों की छतों पर जग कर रात गुज़ारते हैं। प्रभावित लोगों का आरोप है कि सरकारी विभाग न तो उन्हें राहत दे रहे हैं और न ही उनकी दयनीय स्थिति जानने के लिए संपर्क कर रहे हैं।

इस स्थिति को क़रीब से देखने वाले लोगों का कहना है कि संत कबीर नगर और देवरिया सहित राप्ती, घाघरा और सरयू के आसपास के लगभग चार दर्जन गांवों के लोग ओवरफ्लो की बढ़ती चिंताओं के बीच रातों की नींद हराम कर रहे हैं।

बहराइच के मिहीपुरवा के रहने वाले राजवीर ने न्यूज़क्लिक को बताया, "हमारा 70 साल पुराना घर कीचड़ से भरा है, हालांकि यह खड़ा है लेकिन हम नहीं जानते कि यह कब गिर जाएगा। छत पर लगे लकड़ी के तख़्ते अंदर धंस रहे हैं। बदबूदार पानी इसे और भी ख़राब कर रहा है। हमें नहीं पता कि पानी कम होने के बाद भी हम यहां रह पाएंगे या नहीं।"

सौ से अधिक गांवों में बाढ़ का पानी घुस जाने से गोंडा ज़िले के हजारों लोग अपने घर छोड़ने को मजबूर हो गए हैं। कई नदियों के बढ़ते जल स्तर से आने वाले दिनों में कई अन्य गांवों के डूबने का ख़तरा बना हुआ है।

जहां पुरुष और बच्चे मवेशियों, बकरियों और भेड़ों के साथ खुले में सोते हैं, वहीं महिलाएं प्लास्टिक और तिरपाल से बने छोटे-छोटे अस्थायी टेंटों में रातें बिता रही हैं। हज़ारों एकड़ फसल पानी में डूबने से बर्बाद हो गई है। गांव का आपस में संपर्क टूट गया है। लोगों के आने-जाने का एकमात्र सहारा नाव है।

स्थिति पर नज़र रख रहे सिंचाई के कार्यपालक अभियंता दिनेश सिंह ने कहा कि संत कबीर नगर में नदी का जलस्तर स्थिर है लेकिन देवरिया ज़िले में बढ़ गया है। उन्होंने आगे कहा कि वे किसी भी ख़तरे से निपटने के लिए तैयार हैं।

गुरुवार को, बूढ़ी राप्ती नदी ने शोहरतगढ़ के पास तटबंधों को तोड़ दिया और 20 से अधिक गांव डूब गए। इस पर क़रीब से नज़र रखने वाले लोगों ने बताया कि नेपाल के निकट बैराज में 8 लाख क्यूबिक लीटर पानी छोड़ा गया जो अगले 24 घंटे में गोरखपुर पहुंचेगा। इससे लोगों में दहशत फैल गई है।

एनडीआरएफ अधिकारी गौतम गुप्ता के मुताबिक़ गोरखपुर ज़िले में पांच राहत शिविर बनाए गए हैं। 172 गांव बाढ़ से प्रभावित हैं, जबकि 22 गांव पर बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हैं। उन्होंने कहा कि ज़िला प्रशासन ने 170 नावों को डूबे गांवों में भेजा है।

किसानों के लिए दोहरी मार

उत्तर प्रदेश में एक सप्ताह से अधिक समय तक हुई बारिश के बारे में कहा जाता है कि इससे खड़ी फ़सलों को भारी नुकसान हुआ है। इससे पहले राज्य के क़रीब 50 ज़िलों में कम बारिश हुई थी जिससे किसानों की मुश्किलें बढ़ गई थीं।

स्थिति से वाक़िफ़ लोगों ने कहा कि लगभग 50 ज़िलों में मानसून के दौरान कम बारिश की दोहरी मार और मानसून के बाद भारी बारिश और बाढ़ ने उत्तर प्रदेश में किसानों को भारी नुक़सान पहुंचाया है।

बाराबंकी ज़िले के एक छोटे किसान राजू ने न्यूज़क्लिक को बताया, "मानसून के दौरान सूखे से धान की बुआई में देरी हुई, जिससे पहले ही नुक़सान हो रहा है और अब अक्टूबर में हुई भारी बारिश ने धान और अन्य फ़सलों को चौपट कर दिया है।"

उन्होंने मांग की, "सरकार को पहले सूखे के कारण और अब भारी बारिश और बाढ़ के कारण किसानों को हुए नुक़सान का उचित आकलन करना चाहिए ताकि उनकी भरपाई की जा सके।"

देवरिया ज़िले के एक किसान भगत कुशवाहा ने न्यूज़क्लिक को बताया, "हमारे क्षेत्र की स्थिति 1998 से भी बदतर है। लोग सुरक्षित स्थानों की ओर पलायन कर रहे हैं, लेकिन उन ग़रीब किसानों के पास प्रशासन की विफलता के कारण कुछ भी नहीं बचा है। अगर स्थिति ऐसी ही रही, तो हम अपने घर और फ़सल दोनों को गंवा देंगे।”

सरकारी एजेंसियां अभी भी सूखे जैसी स्थिति के कारण किसानों को हुए नुक़सान का आंकड़ा इकट्ठा करने में व्यस्त हैं। उधर अक्टूबर में हुई भारी बारिश ने उनके नुकसान के सभी आकलन को धराशायी कर दिया है।

कृषि विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि उनके क्षेत्र के सर्वेक्षण से संकेत मिलता है कि सूखे के कारण धान का उत्पादन 20% तक गिर सकता है और वे प्रभावित किसानों को मुआवज़ा देने के लिए केंद्र से वित्तीय सहायता लेने के लिए रिपोर्ट तैयार कर रहे थे।

उन्होंने कहा, "लेकिन, अब हमें लगता है कि भारी बारिश के कारण नुक़सान बहुत अधिक हो सकता है।"

अतिरिक्त मुख्य सचिव (कृषि) देवेश चतुर्वेदी ने कहा कि कम बारिश से फ़सल को हुए नुक़सान के आकलन को अभी अंतिम रूप दिया जा रहा है जबकि भारी बारिश और बाढ़ ने भी क़हर बरपाना शुरू कर दिया है।

उन्होंने कहा, "ऐसा लगता है कि फ़सलों पर बारिश और बाढ़ का असर सूखे से भी ज़्यादा हो सकता है।"

उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुधवार को कृषि और राजस्व विभागों द्वारा बारिश और बाढ़ के कारण किसानों को हुए फ़सल के नुक़सान का आकलन करने के लिए क्षेत्र के सर्वेक्षण का आदेश दिया है।

चतुर्वेदी ने कहा, "अब हम सूखे और अधिक बारिश दोनों के कारण हुए नुक़सान की समग्र रिपोर्ट केंद्र को भेजेंगे।"

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

Drought, Now Floods: Misery Haunts Eastern UP

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