ख़ास रपट : कृषि संकट, अनुपयोगी गाय और बदहाल किसान
देश के लगभग सभी हिस्सों में छुट्टा पशु विशेषकर छुट्टा गाय एक गंभीर समस्या बन गये हैं। इन छुट्टा गायों को इनके मालिकों ने अनुपयोगी हो जाने के कारण खुला छोड़ दिया है, क्योंकि उनके भरण-पोषण में बहुत पैसा खर्च होता है और अभी जब पूरे देश में कृषि संकट गहराया हुआ है ऐसे में किसान इन छुट्टा गायों के पालन का खर्चा वहन करने में सक्षम नहीं हैं।
लगभग हर गाँव और शहर में इन छुट्टा/आवारा गायों के झुण्ड के झुण्ड दिखाई पड़ते हैं जो खाने की तलाश में इधर-उधर भटकते रहते हैं और खेतों में फसल खाते हैं जिसके कारण किसानों की फसल बर्बाद होती है और उनका नुकसान होता है। खेतों में फसल के नुकसान से बचने के लिए किसान रात-रात भर पहरेदारी करते और देश की कई हिस्सों ऐसी भी खबरे आई हैं कि किसानों ने इन आवारा पशुओं को पकड़ कर सरकारी भवनों और विद्यालयों में बंद कर दिया है।
ग्रामीणों द्वारा स्कूल में बंद की की गईं छुट्टा गाय
पिछली पशुगणना के आंकड़े बताते हैं कि देशी नस्ल की गायों की संख्या में गिरावट आई है जिसका मुख्य कारण इनके द्वारा कम दूध उत्पादन है जबकि वहीं दूसरी और भैंस और विदशी/ क्रॉसब्रीड की संख्या में बढ़ोतरी हुई है क्योंकि इनका दूध उत्पादन देशी नस्ल से कहीं ज्यादा है। नवीनतम पशुगणना के अनुसार देशी गायें जो दुधारू हैं वह कुल दुधारू गायों एवं भैंस की संख्या का 40 प्रतिशत हैं पशुपालन विभाग के दूध उत्पादन के नवीनतम आंकड़ो के मुताबिक देशी गायों का कुल दूध उत्पादन में मात्र 21 प्रतिशत हिस्सा है। इसीलिये किसान आर्थिक फायदा देखते हुए देशी नस्ल की गायों की अपेक्षा विदेशी नस्ल की गायों और भैंस पालने की तरफ बढ़ रहे हैं।
पिछले 25 वर्षों में देशी गोवंश की आबादी में 25% की गिरावट आई है, जबकि क्रॉसब्रीड गोवंश में तीन गुना से ज्यादा और भैंस में 30% से अधिक की वृद्धि हुई है।
स्रोत: पशुगणना, पशुपालन और डेयरी विभाग, भारत सरकार
हालाँकि सभी देशी गाय सभी दुधारू पशुओं की संख्या का लगभग 40% हैं, लेकिन उनके दूध का उत्पादन कुल दूध के उत्पादन का सिर्फ 21% है। आश्चर्य तो यह है कि बेहतर रिटर्न के लिए किसान विदेशी गाय और भैंस की तरफ़ रुख कर रहे हैं।
स्रोत: पशुगणना 2019 व बुनियादी पशुपालन और मत्स्य पालन सांख्यिकी
मोदी सरकार में गाय की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के प्रयासों और कथित गोरक्षकों की जानलेवा गतिविधयों ने मांस उत्पादन में भारी गिरावट ला दी है। इसका दूसरा पहलू यह भी है कि देश की कृषि अर्थव्यवस्था पर बड़ी संख्या में अनुपयोगी गायों का भार पड़ रहा हैं।
स्रोत: पशुगणना 2019 व बुनियादी पशुपालन और मत्स्य पालन सांख्यिकी
CAGR: कंपाउंड ऐनुअल ग्रोथ रेट
गायों पर आने वाली लागत:
गायों का पालने में किसान को काफी खर्च करना पड़ता है, अगर गाय दुधारू है तो किसान के लिए उपयोगी है परन्तु जब गाय दूध देना बंद कर देती है तो किसान को इसके पालने से कोई आय नही होती है और उल्टा उसको पालने के लिए खर्च करना पड़ता है। उत्तर प्रदेश की कामधेनु योजना के अनुसार एक अनुपयोगी गाय को पालने में एक वर्ष में करीब 15,650 रूपये का खर्च आता है |
नवीनतम पशुगणना के अनुसार पुरे देश में 1.328 करोड़ छुट्टा व अनुपयोगी पशु है और इनके भरण-पोषण पर एक साल में 20,777 करोड़ रुपये खर्च की जरुरत है। अनुपयोगी गायों के भरण-पोषण का यह अतिरिक्त आर्थिक बोझ प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसान और आम जनता पर ही पड़ रहा है और समुचित नीतियों के आभाव में भविष्य में भी पड़ेगा।
चमड़ा व्यापार टेनरी बंद से खस्ताहाल
पूरी दुनिया में चमड़ा करोबार के लिए मशहूर देश के चमड़ा बाजार पर संकट मंडरा रहा है। नोटबंदी और मवेशियों को लेकर हुए बवाल आदि कारणों ने इस कारोबार को मुसीबत में खड़ा कर दिया है जिसके कारण लाखों लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट छाया पड़ा है और निकट भविष्य में भी इसमें सुधर के कोई आसार नजर नहीं आते हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार ने अचानक टेनरियों को बंद करने का आदेश दे दिया, जिसके कारण इस व्यवसाय को हजारो करोड़ों का नुकसान हो रहा है और वहीं दूसरी और लाखों लोगों के रोजगार पर भी मुसीबत आ गई है, वो भी ऐसे समय जब देश में लाखों लोगों के सामने रोजगार का संकट है।
चमडा मंडी, हापुड़
चमड़ा निर्यात परिषद (सेंटर रीजन) कानपुर के रीजनल चेयरमैन जावेद इक़बाल बताते है कि कानपुर और उन्नाव में टेनरियों का प्रति वर्ष करीब 30,000 करोड़ रुपये का कारोबार हैं, जिसमे से करीब 20,000 करोड़ रुपये से अधिक का घरेलू और 8,000 करोड़ रुपये का निर्यात शामिल है। टेनरी को बंद किये जाने से इस क्षेत्र के चमडा व्यापर ठप हुआ जिसके चलते टर्नओवर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। टेनरियों के बंद होने से करीब 20,000 करोड़ रुपये से अधिक के नुकसान का अनुमान है।
टेनरी, जाजमाऊ, कानपुर
जाजमाऊ, कानपुर की एक टेनरी में बंद पड़ी मशीन
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