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रूस-चीन शिखर सम्मेलन को लेकर घबराया हुआ है अमेरिका

एंग्लो-सैक्सन गुट मॉस्को में होने वाली वार्ता पर बेचैनी भरी नज़र गड़ाए हुए है।
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रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (बाएँ) और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग 20 मार्च, 2023 को मॉस्को में मिलने वाले हैं (फाइल फोटो)

अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) ने जब व्लादिमीर पुतिन के खिलाफ वारंट जारी किया तो केवल एंग्लो-सैक्सन गुट ने ही इसे प्रचार स्टंट के रूप में देखा, जिसका नेतृत्व अमेरिका पीछे से कर रहा है। हालांकि, विडंबना यह है कि आईसीसी ने 2003 में इराक़ पर एंग्लो-सैक्सन आक्रमण की 20 वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर यह कार्रवाई की है, जहां अमरीका और उनके सहयोगियों ने भयानक युद्ध अपराध किए, लेकिन हेग में बैठे "न्यायाधीश" इस पर सो गए थे। वाशिंगटन और लंदन दोनों आज स्वीकार करते हैं कि इराक़ पर 2003 का हमला बेमानी था था – जो सद्दाम हुसैन के खिलाफ झूठे आरोपों के आधार पर किया हमला था।

बेशक, इस बात की कभी कोई संभावना नहीं रही कि कोई भी आईसीसी के वारंट को कभी गंभीरता से लेगा। रूस वैसे भी आईसीसी के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है, जो अमेरिका की तरह रोम व्यवस्था/संविधि का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है। लेकिन यहां मंशा कुछ और है।

पुतिन पर कीचड़ उछालना, राष्ट्रपति बाइडेन की रूसी नेता के प्रति घृणा का एक और उदाहरण है, जब एक दशक पहले मॉस्को में पुतिन ने उन्हें बेरहमी से पीछे हटाने को कहा था। आईसीसी वारंट को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सोमवार को मॉस्को होने वाली यात्रा से ध्यान हटाने के लिए भी उछाला जा रहा है, जो यात्रा एक ऐसी घटना होने जा रही है जिसमें न केवल शानदार नज़ारा शामिल है बल्कि दो महाशक्तियों के बीच "कोई सीमा नहीं" वाली साझेदारी भी होना निश्चित है।

एंग्लो-सैक्सन गुट कल मॉस्को में होने वाली वार्ता को बड़ी बेचैनी भरी नज़रों से देख रहा है। बैठक यह सुनिश्चित करने के लिए की जा रही है कि मॉस्को और बीजिंग ने तय कर लिया है कि अमेरिकी दादागिरी/आधिपत्य को खत्म करना है। 

आज, चीन विनिर्माण क्षमता में अमेरिका और उसके यूरोपीय सहयोगियों की संयुक्त क्षमता को पार कर गया है, और समान रूप से, रूस दुनिया के सबसे बड़े परमाणु हथियार वाला देश बनकर उभरा है, जो हथियारों की संख्या और गुणवत्ता दोनों में अमेरिका से बेहतर है।

अमेरिकी दिमाग में यह बात बैठ गई है कि यूक्रेन में रूस को हराया नहीं जा सकता है। पोलिटिको की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नाटो के सामने मुर्गी और अंडे की स्थिति है। रूस के रक्षा उद्योग की रफ्तार से मुक़ाबले करने के लिए बड़े पैमाने के निवेश की जरूरत है लेकिन यूरोप के सामने अपनी बीमार अर्थव्यवस्थाओं और बढ़ती सामाजिक अशांति से जूझने की अन्य महत्वपूर्ण प्राथमिकताएँ भी हैं।

"नारकीय प्रतिबंध" जैसे छद्म युद्ध के ज़रिए रूस को हराने की धारणा भ्रमपूर्ण निकली है। क्योंकि हक़ीक़त यह है कि ये अमेरिकी बैंक हैं जो ढह रहे हैं, यह यूरोपीय अर्थव्यवस्थाएं हैं जिनमें ठहराव का खतरा मंडरा रहा है।

14 मार्च को क्रीमिया प्रायद्वीप के पास एमक्यू-9 रीपर ड्रोन के बड़े और गुप्त मिशन से अमेरिका की नाराजगी स्पष्ट झलकती है। हाल के वर्षों में यूएस ग्लोबल हॉक ड्रोन नियमित रूप से काला सागर के ऊपर देखे गए हैं लेकिन यह मामला अलग है।

रीपर के ट्रांसपोंडर को बंद कर दिया गया था क्योंकि इसने क्रीमिया प्रायद्वीप के पास विशेष सैन्य अभियान ऑपरेशनों के लिए स्थापित हवाई क्षेत्र को छु लिया था, जो रूस के अस्थायी निजाम की सीमा है (जिसे मॉस्को ने अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुसार अंतरराष्ट्रीय हवाई क्षेत्र के सभी उपयोगकर्ताओं को विधिवत रूप से अधिसूचित किया हुआ है।)

इस घटना में, रूस के सु-27 फाइटर जेट्स ने रीपर को पीछे छोड़ दिया, जो नियंत्रण खो बैठा और काला सागर में डूब गया। मॉस्को ने रीपर को सीबेड में डुबोने के लिए दो बहादुर पायलटों को राष्ट्र पुरस्कार से सम्मानित किया है।

वाशिंगटन में रूसी राजदूत ने तभी चेतावनी दे दी थी कि मॉस्को टकराव बढ़ाना नहीं चाहता है, तटस्थ हवाई क्षेत्र में रूसी विमान पर किसी भी जानबूझकर किए गए हमले को "सबसे बड़ी परमाणु शक्ति के खिलाफ युद्ध की खुली घोषणा" के रूप में माना जाएगा।

यदि अमेरिका ने रूस की प्रतिक्रिया जानने के लिए ड्रोन घटना की योजना बनाई थी, तो ठीक है, रूस ने स्पष्ट प्रतिक्रिया दी है। और यह सब राष्ट्रपति शी की होने वाली यात्रा के अवसर पर हुआ है।

इसके बाद बाइडेन  ने पुतिन पर आईसीसी के वारंट का स्वागत करते हुए कहा कि, "यह उचित कार्यवाही है ... (और) एक बहुत मजबूत केस बनाता है।" लेकिन बाइडेन की बढ़ती उम्र ने उन्हें फिर से विफल कर दिया। क्योंकि अमरीका खुद आईसीसी को मान्यता/तरजीह नहीं देता है, बल्कि कहता है यदि किसी अमेरिकी नागरिक को आईसीसी ने गिरफ्तार किया या आईसीसी के सामने पेश किया गया, तो वाशिंगटन हिरासत में लिए गए व्यक्ति को बचाने के लिए सैन्य बल का इस्तेमाल करने का अधिकार सुरक्षित रखता है!

इसके अलावा, वाशिंगटन ने अमेरिकी नागरिक के खिलाफ आईसीसी वारंट के मामले में सहयोग करने वाले किसी भी देश के खिलाफ प्रतिशोध की धमकी दी है। जॉर्ज डब्ल्यू बुश प्रशासन ने इराक में एंग्लो-अमेरिकन गुट के भयानक युद्ध अपराधों की पृष्ठभूमि के खिलाफ आईसीसी पर अमेरिकी नीति के रूप में कहा था, और अमेरिका इस स्थिति से कभी पीछे नहीं हटा।

वैसे, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद या महासभा ने आईसीसी को कोई परामर्श/रेफरल नहीं दिया है। तो, गिरफ्तारी वारंट किसके कहने पर दिया गया? ब्रिटेन - और कौन? ब्रिट्स ने आईसीसी जजों को धमकाया, जो ब्लैकमेल के मामले में काफी संवेदनशील हैं, क्योंकि वे मोटी तनख्वाह लेते हैं और हेग में उनके लिए विस्तारित शर्तों को सुरक्षित करने में मदद करते हैं तो वे तो शैतान का ही साथ देंगे। हाल के वर्षों में एंग्लो-सैक्सन गुट द्वारा संयुक्त राष्ट्र प्रणाली का टुकड़े-टुकड़े कर विनाश करना भी एक और अध्ययन का मामला बन गया है।

यह कहना काफी होगा कि ड्रोन घटना और आईसीसी वारंट मॉस्को और कीव के बीच किसी भी वार्ता के माहौल को खराब करते हैं। जाहिर है, एंग्लो-सैक्सन गुट नरक बहुत चिंतित है कि चीन एक और आश्चर्य दिखा सकता है जैसा कि उसने हाल ही में सऊदी-ईरानी सौदे में मध्यस्थता करके किया था।

एक बेहतरीन टिप्पणी में, चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने शुक्रवार को कहा कि शी की यात्रा आंशिक रूप से "शांति" को बढ़ावा देने के लिए है। बीजिंग यूक्रेन के संबंध में पहले ही एक "शांति योजना" की घोषणा कर चुका है, जिसमें "यूक्रेन संकट का एक राजनीतिक समाधान" सुझाया गया है और 12 सूत्री एजेंडा पेश किया है, जो कि कीव में ज़ेलेंस्की की मेज पर पड़ा है, हालांकि पश्चिम ने अध्ययनपूर्वक इसे अनदेखा करना चुना।

गुरुवार को चीनी विदेश मंत्री किन गैंग ने अपने यूक्रेनी समकक्ष दमित्रो कुलेबा से फोन पर कहा कि बीजिंग को उम्मीद है कि "सभी पक्ष शांत, तर्कसंगत और संयमित व्यवहार का सबूत देंगे और जल्द से जल्द शांति वार्ता फिर से शुरू करेंगे।"

चीनी बयान में कहा गया है कि कुलेबा ने "शांति वार्ता की संभावना" पर चर्चा की ... और बताया कि यूक्रेन संकट के राजनीतिक समाधान पर चीन युद्ध-विराम को बढ़ावा देने और युद्ध को समाप्त करने में अपनी ईमानदारी दिखा रहा है। उन्होंने चीन के साथ संपर्क बनाए रखने की उम्मीद जताई है।

यह अप्रत्याशित है लेकिन बाइडेन, चीन द्वारा मॉस्को और कीव के बीच मध्यस्थता करने की पहल से पगला रहे हैं। मुद्दा यह है, वे और ज़ेलेंस्की एक घातक आलिंगन में बंद हैं - कीव में हंटर बाइडेन की गतिविधियों से जुड़ा भ्रष्टाचार/घोटाला पिता के राजनीतिक करियर तलवार की तरह लटका हुआ है, जबकि दूसरी ओर, ज़ेलेंस्की भी राजनीतिक लड़ाई लड़ रहे हैं जीवित है और तेजी से अपने हिसाब से काम करने का साहस कर रहा है।

पोलिटिकों के मुताबिक, डोनबास में बखमुत के बिखरते सीमावर्ती शहर को वापस कब्ज़ाने के पश्चिमी संदेहों की अवहेलना करते हुए, ज़ेलेंस्की मजबूती से लगे हुए हैं और एक रक्षात्मक प्रणाली बनाए हुए है जिससे टकराव खिंच सकता है। 

जाहिर है, बाइडेन लोहे गर्म छत पर बिल्ली की तरह बर्ताव कर रहे हैं। क्योंकि वे न तो ज़ेलेंस्की को जाने देना चाहते हैं और न ही वे यूक्रेन में हमेशा के लिए युद्ध में बंद होने का जोखिम उठा सकते हैं, जबकि ताइवान जलडमरूमध्य उसे एक बड़े आश्चर्य का इशारा कर रहा है।

बीजिंग का रुख हाल ही में स्पष्ट रूप से कठोर हो गया है और अमेरिका ने उसके मौसम के गुब्बारे को ध्वस्त कर चीन के राष्ट्रीय गौरव पर जो हमला किया है, उसने अविश्वास को और बढ़ा दिया है। इसी तरह, रीपर ड्रोन उकसावे और एंग्लो-सैक्सन गुट के आईसीसी घोटाले के बाद रूस के साथ उसका संबंध और खराब हो गया है।

यूक्रेन में जारी युद्ध के बावजूद, शी ने अपने तीसरे कार्यकाल की शुरुवात में, अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए रूस को चुना है। शी की रूस यात्रा की घोषणा करते हुए, चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा, "जब दुनिया अशांति और बदलाव के एक नए दौर में प्रवेश कर रही है, तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य और एक महत्वपूर्ण शक्ति होने के नाते, चीन-रूस संबंधों का महत्व द्विपक्षीय दायरे से परे बढ़ जाता जाता है। 

फिर, बाइडेन ने सोचा होगा कि वह रीपर स्टंट और आईसीसी घोटाले के ज़रिए पुतिन को चटाई पर बिठा सकते हैं। लेकिन पुतिन बेपरवाह हैं, उन्होंने डोनबास की अपनी पहली यात्रा के लिए आज का दिन चुना। 

पुतिन ने बंदरगाह शहर मारियुपोल का दौरा किया, जिसे बचाने के लिए यूक्रेन की नव-नाजी ब्रिगेड ने नाटो के गुर्गों के साथ मिलकर कड़ा मुकाबला किया था, उसी शहर की सड़कों पर पुतिन ने वाहन चलाया, कई स्थानों पर रुके और पुनर्निर्माण कार्यों का सर्वेक्षण किया। यह बाइडेन को एक कडा इशारा है कि नाटो युद्ध हार गया है।

एमके भद्रकुमार पूर्व राजनयिक हैं। वे उज़्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। व्यक्त विचार निजी हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

US Paranoid About Russia-China Summit

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