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दुनिया के 100 से अधिक करोड़पतियों-अरबपतियों ने लिखी खुली चिट्ठी, कहा- अपने हिस्से का टैक्स नहीं चुका रहे अमीर! 

100 से अधिक करोड़पतियों और अरबपतियों की देश के नेताओं और कारोबारियों के नाम खुली चिट्ठी लिखी है, जिसमें उन्होंने कहा है कि बेकार टैक्स प्रणाली की वजह से भयंकर आर्थिक गैर बराबरी पनप रही है।
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ऑक्सफैम की रिपोर्ट ने बताया कि दुनिया में गैर बराबरी इतनी गहरी हो चुकी है कि इसको आर्थिक हिंसा कहा जाना चाहिए। जिन दो सालों में महामारी की वजह से तकरीबन 16 करोड़ लोग गरीबी की चपेट में चले गए, उन्हीं दो सालों में दस सबसे अधिक अमीर लोगों ने अपनी संपत्ति में दोगुने का इजाफा किया। भारत में दस सबसे अधिक अमीर लोगों के पास इतनी संपत्ति है कि अगर उसे सरकार खर्च करे तो प्राथमिक माध्यमिक और उच्च शिक्षा का 25 वर्षों का खर्चा निकल सकता है। असमानता की ऐसी स्थिति के लिए सरकारी संस्थाएं जिम्मेदार हैं, जिन्होंने ऐसी नीतियां और ऐसा ढांचा बनाया है, जिससे अमीर, अमीर होते जा रहे हैं और गरीबों की जिंदगी इतनी भयावह होती जा रही है जैसे उनके जीने और मरने में अंतर नहीं है। 

इस भीषण आर्थिक हालात से गंभीरता से लड़ने के लिए दुनिया के तकरीबन 9 देशों के 100 से अधिक करोड़पतियों और अरबपतियों ने मिलकर के दुनिया की सरकारों और दुनिया के अमीर कारोबारियों के नाम एक चिट्ठी लिखी है। चिट्ठी में कहा है कि विश्व आर्थिक मंच पर अमीरों के वैचारिक मंत्रणा से दुनिया की आर्थिक असमानता की खाई नहीं पटेगी। इसके लिए दुनिया के उन अमीर लोगों को अपने हिस्से का कर यानी टैक्स ईमानदारी से चुकाना होगा जो दुनिया में गैर बराबरी के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार हैं। पूरी चिट्ठी इस तरह से है:

हमारे करोड़पतियों और अरबपतियों साथियों! 

अगर आप विश्व आर्थिक मंच के ऑनलाइन सम्मेलन में भाग ले रहे होंगे, तो आप लोगों के एक ऐसे विशेष समूह में शामिल हो रहे होंगे, जो इस सवाल का जवाब खोज रहे हैं कि कैसे हम सब आपस में मिलकर काम कर सकते हैं ताकि टूटे हुए भरोसे की बहाली हो पाए?

अगर आप ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे कि आपको दुनिया के करोड़पतियों, अरबपतियों और दुनिया के सबसे शक्तिशाली लोगों से घिरे एक निजी मंच पर इस सवाल का जवाब नहीं मिलेगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि आप लोग दुनिया के आम लोगों के बीच भरोसा पैदा करने का काम नहीं करते, बल्कि आप लोग खुद आर्थिक असमानता की परेशानी के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार हैं।

समाज राजनीति और एक दूसरे में भरोसा उन छोटे-छोटे कमरों में बैठकर नहीं बनाया जा सकता है, जहां पर केवल दुनिया के सबसे अमीर और सबसे शक्तिशाली लोग ही पहुंच सकते हैं। यह भरोसा उन अरबपति अंतरिक्ष यात्रियों के जरिए नहीं बनाया जा सकता है जो महामारी में खूब पैसा कमाते हैं लेकिन मामूली टैक्स देते हैं। यह भरोसा उन अमीरों के जरिए नहीं बनाया जा सकता जो सारा मुनाफा खुद हड़प लेते हैं और अपने यहां काम करने वाले को बहुत कम मेहनताना देते हैं।

भरोसा जवाबदेही के जरिए पनपता है। भरोसा खुले लोकतंत्र में निष्पक्ष तौर पर काम कर रही संस्थाओं के जरिए बनता है। एक बेहतर सिस्टम भरोसा बनाने का काम करता है। जब यह सब मिलकर के सभी नागरिकों की मदद और उन्हें बेहतर सेवाएं प्रदान करते हैं, तब भरोसा बनता है। एक मजबूत लोकतंत्र का आधार एक निष्पक्ष टैक्स यानी कर प्रणाली है। समझिए निष्पक्ष टैक्स प्रणाली..

यह चिट्ठी लिखने वाले हम सभी करोड़पति हैं। हम जानते हैं कि मौजूदा कर प्रणाली निष्पक्ष कर प्रणाली नहीं है। हम सभी जानते हैं कि पिछले दो सालों में जब पूरी दुनिया अथाह पीड़ा से गुजर रही थी तब भी हमारी संपत्ति बढ़ रही थी। हम में से कोई भी यह बात ईमानदारी से नहीं कह सकता कि हमने उतना टैक्स दिया है जितना हम से लिया जाना चाहिए।

इसी नाइंसाफी के आधार पर अंतरराष्ट्रीय कर प्रणाली की बुनियाद पड़ी हुई है। इस नाइंसाफी ने दुनिया के आम लोगों और दुनिया के चलाने वाले अभिजात्य लोगों के बीच पनपने वाले भरोसे के संबंध को तोड़ा है। इस टूटे हुए भरोसे का पुल अमीरों के द्वारा किए जाने वाले परोपकारी और दान दक्षिणा के काम के जरिए नहीं बनाया जा सकता है। इसके लिए उस पूरे सिस्टम को बुनियादी तौर पर बदलना होगा जो अब तक चला आ रहा है। जो जानबूझकर इस तरह से बनाया गया है जिससे अमीर और अधिक अमीर होते रहे।

सीधे शब्दों में कहें तो भरोसा बहाल करने के लिए अमीरों पर कर लगाने की जरूरत है। पूरी दुनिया और दुनिया के हर एक देश की तरफ से यह मांग उठनी चाहिए कि उसका अमीर वर्ग इतना टैक्स दे जितना उसे ईमानदारी से देना चाहिए। इस चिट्ठी को लिखने वाले हम सब करोड़पति हैं, इसलिए हम सीधे शब्दों में कहते हैं 'Tax us, the rich, and tax us now'

इतिहास बताता है कि जिन समाजों में गैर बराबरी बहुत अधिक थी, वहां परेशानियां बहुत भयंकर रही हैं। दुनिया की आर्थिक गैर बराबरी से लड़ना बहुत जरूरी है। इस गैर बराबरी की लड़ाई अमीरों के समूह के छोटे-छोटे कमरे में बैठकर नहीं लड़ी जा सकती है। इसके लिए ईमानदार कदम उठाने की जरूरत है। मौजूदा वक्त में ईमानदार कदम यही है कि दुनिया के सबसे अमीर लोग इतना टैक्स दे जितना ईमानदारी से उन पर टैक्स का हिस्सा बनता है।

चिठ्ठी ख़त्म…

जब दुनिया की बहुत बड़ी आबादी गरीबी की वजह से नरक की जिंदगी जी रही है, वैसे समय में इस चिट्ठी के जरिए जोर दे कर दिए गए सुझाव का बहुत अधिक महत्व है। ऑक्सफैम की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया के तकरीबन 2600 अरबपतियों के पास चीन की अर्थव्यवस्था के बराबर संपत्ति है। दुनिया के करोड़पतियों के ऊपर 2% की वार्षिक दर से टैक्स लगा दिया जाए और दुनिया के अरबपतियों पर 5% वार्षिक दर से टैक्स लगा दिया जाए तो इतना धन इकट्ठा होगा कि दुनिया की तकरीबन 200 करोड़ गरीब आबादी को गरीबी रेखा से बाहर निकाला जा सकेगा। मुफ्त में पूरी दुनिया में कोरोना की वैक्सीन दी जा सकेगी। तकरीबन 300 करोड़ लोगों को यूनिवर्सल हेल्थ केयर से जुड़ी योजनाओं और सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी योजनाओं के अंतर्गत लाया जा सकेगा। 

अगर भारत की बात करें तो एक अध्ययन के मुताबिक साल 2010 में केंद्र सरकार के प्रति सौ रुपए के राजस्व में कंपनियों से 40 रुपए और आम लोगों से 60 रुपए आते थे। 2020 में कंपनियां केवल 25 रुपए दे रही हैं आम लोग दे रहे हैं 75 रुपए। भारत में पेट्रोल और डीजल पर टैक्स लगाकर गरीबों से वसूली की जा रही है और अमीरों को कॉरपोरेट टैक्स में छूट से लेकर बैंक कर्जा माफी तक कई तरह की छूट दी जाती हैं। भारत की मौजूदा भाजपा सरकार पैसे के दम पर राजकाज चला रही है। इसलिए दुनिया के अमीर लोगों और नेताओं के नाम लिखी गई इस चिट्ठी का बहुत अधिक महत्व होने के बावजूद भी भारत की मौजूदा राजकाज की नीति से तो यही कहा जा सकता है कि भारत के नेता इस चिट्ठी पर तनिक भी ध्यान नहीं देंगे।

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